12.3.15

माँ तुम्हारी मृदुल मुस्कान

माँ तुम्हारी मृदुल मुस्कान 
अनवरत प्रवाहित 
आस्थामयी रेवा की धार सी 
रोमांचित कर गई मुझे 
तब हलक तक पीर उभरी 
याद आए वो पल जब 
अस्थिकलश  से 
अपनी माँ के
फूल रेवा में प्रवाहित किए थे 
तब लगा था अब न मिलेगीं वो 
पर आज तुमको अपनी बेटी 
जिसे तुमने नाम "टिया"
के साथ देख मुझे मेरे सव्यसाची माँ बहुत याद आई 
 
प्रणाम नमन माँ 
तुम जो अक्सर मिल जाती हो मुझे 
सड़क पर चौराहे पर दो राहे पर 
किसी न किसी रूप में .....
बाल भवन में जब शिप्रा 
दिव्यचक्षु बेटियों को करातीं हैं 
कण्ठ  साधना 
तब तुम मुझे 
सुनाई देतीं हो 
शिव-महिम्न स्त्रोतम का सस्वर गान  करती हुईं 
तब जब रेणु भरती हैं शक्तिरूपा में रंग 
तब तुम्ही नज़र आती हो न 
जिरोती में रंग भरती हुईं......
माँ 
तुम्हारा जाना असह्य था है रहेगा 
फिर भी खोजता हूँ 
हर नारी में तुमको 
  तुम मिल भी जाती हो ...... कितनी सहज हो न माँ
 मुझे मालूम है माँ कभी भी मरती ही नहीं   ज़िंदा रहती है ..................
  उसे तुम मारते हो रोज़ यातनाओं से 
  सड़क पर चौराहे पर दो राहे पर 
   एक बार खंजर लेकर आओ 
  मेरे आँखें निकाल अपनी आँखों पर लगाओ 
   तुमको रोजिन्ना दिखेगी तुम्हारी माँ 
               ::::::::::::::::::: गिरीश बिल्लोरे "मुकुल"::::::::::::  

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मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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