15.6.14

जिसके बाबूजी वृद्धाश्रम में.. है सबसे बेईमान वही.

बरगद पीपल नीम सरीखेतेज़ धूप में बाबूजी
मां” के बाद नज़र आते हैं , “मां” ही जैसे बाबूजी ..!!
अल्ल सुबह सबसे पहले , जागे होते बाबूजी-
पौधों से बातें करते पाए  जाते बाबूजी ...!!
अखबारों में जाने क्या बांचा करते रहते हैं
दुनिया भर की बातों से जुड़े हुए हैं बाबूजी ..!!
साल चौरासी बीत गए जाने  क्या क्या देखा है
बातचीत न कर पाएं हम  घबरा जाते बाबूजी..!!
जाने कितनी पीढ़ा भोगी होगी जीवन में
उसे भूल अक्सर मित्रों संग  मुस्काते हैं बाबूजी ..!!
चौकस रहती आंखें उनकी,किसने क्या क्या की गलती
पहले डांटा करते थे वेअब समझाते हैं बाबूजी...!!
दौर पुराना याद है उनको, सैतालिस की रातों का
देश हुआ आज़ाद जिस दिन, वो पल था सौगातों का
उपरैनगंज की कुलियों में हो खुश  घूमे हैं बाबूजी ...
 खेल कबड्डी हाकी कुश्ती, चैस वैस सब उनके थे –
शिब्बू दादा बोले भैया- बहुत तेज़ थे बाबूजी .

           आज़ साथ हैं हम सबके वो हम सब का धन मान वही
जिसके बाबूजी वृद्धाश्रम में.. है सबसे बेईमान वही.
लेकर आओ, झटपट आके पूजो पिता प्रभू ही हैं
समझाते इक नवल युगल को, वो थे मेरे बाबूजी.!!    

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मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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