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गुरुवार, मई 08, 2014

बटवारे के बाद के बटवारे और भारतीय वोटर


    
   बटवारे के बाद रोज होते बटवारों को  बटवारे देख खुद लौह पुरुष सहित सभी शहीद दु:खी हो बेकल होते ही होंगे . अंग्रेज़ो से हमने कुछ सीखा हो या न सीखा हो पर एक बात हमारे सियासत दां ज़रूर घुट्टी के साथ पी चुके हैं  बाक़ायदा धर्म, जाति, वर्ग, का बंटवारा करने से न तो लज़्ज़ित होते हैं न ही उनमें अब कोई शर्म बाक़ी रह गई है. 
             बड़े मज़े ले लेकर वोटों को रिझाने में बड़े सुनियोजित तरीक़े से किसी भी हिस्से को (जो मूलरूप भारतीय होता है ) भारत से अलग करने में गुरेज़ नहीं करते. सियासीयों का ये शगल तब और परवान चढ़ता है जब जब इलेक्शन क़रीब होते हैं. भारतीय प्रजातांत्रिक व्यवस्था की ये सबसे दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति है. अब जबकि देश का वोटर अधिक जागरूक और समझदार हो रहा है उसे अपने वोट का अर्थ अब महसूस हो चुका है तब आने वाले आम इंतिखाब में ये हथकंडे शायद ही काम आएं . क्योंकि वोटर जान चुका है कि सच्चाई क्या है. क्यों उसकी रगों पर हाथ फ़ेरा जाता है.. ? वो गाली गलौच भरे भाषणों जिसमे ऊंच नीच, हनीमून, जैसे सर्वथा वर्जित शब्दों का उल्लेख होता है को सिरे से नकार रहा है क्यों कि अब अधिसंख्यक भारतीय वोटर कुर्सी दौड़ के हर हथकंडे से वाकिफ़ है. .
       पिछले दिनों इलेक्शन के दौरान डिंडोरी की सभा में एक पार्टी का प्रचारक नेता सवाल कर रहा था -"जब गाय इनकी माता है तो बोले बैल से इनका नाता क्या होगा..?" बताईये भला ऐसी बेवकूफ़ी भरी बातों का अर्थ क्या है क्या ऐसे मूर्ख वक्ताओं के प्रति वोटर ने क्या सोचा होगा ? जी हां सारे के सारे वोटर जो सभा में जमा किये गये थे.. खुसर फ़ुसर करने लगे.. यानी जिसे सबसे बड़ा बेवकूफ़ समझा जा रहा है सियासित में वो अपनी अक्ल का नमूना दिखा ही देगा. 
          इलेक्शन के रिज़ल्ट जो भी हों लिख के रख लीजिये ज़नता न्याय करेगी .. कौन जीतेगा कितना जीतेगा ये इतर मुद्दा है प्रिणाम साफ़ साफ़ बता देंगें भारत को सिगमेंट्स में बांटना कितना ग़ैर ज़रूरी और बेवकूफ़ी भरा क़दम है.... 







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