11.3.14

भीड़ तुम्हारा कोई धर्म है ..?


भीड़ तुम्हारा
कोई धर्म है ..
यदि है तो तुम
किसी के भरमाने में क्यों आ जाती हो..
अनजाने पथ क्यों अपनाती हो
भीड़ ....
तुम अनचीन्हे रास्ते मत अपनाओ
क़दम रखो मौलिक सोच के साथ
पावन पथों पर
मोहित मत होना
आभासी दृश्यों में उभरते
आभासी रथों पर
तब तो तुम सच्ची शक्ति हो !
वरना हिस्से हिस्से अधिनायकत्व
के अधीन कोर्निस करते नज़र आओगे
सामंती ठगों के सामने
सबकी सुनो
अपनी बुनों
चलो बिना लालच के
बिको मत
 दृढ़ दिखो
 स्वार्थ साधने
बिको मत

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मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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