21.2.14

गलती किसी की भी हो कटते तो मुर्गे ही हैं.

               मुर्गों का आतंक देख मुर्गियां खुद विलापरत थीं.दौनों मुर्गे ज़मीन से आकाश वाली लड़ाई लड़ते देख लगा गोया wwwF की फ़ाईट चल रही हो एक खली तो दूसरा जान सीना नज़र आ रहा था. पूरे गांव भर के तमाशबीन झोप लगाके झगड़ा देख तालियां पीट रहे थे ... जब इस तरह के हादसे हुआ करते हैं तो गांव दो हिस्से में बंट जाता है . एक ग्रुप काले खां की तरफ़ दूसरा लालचंद की तरफ़ दौनों की गुंडा गर्दी से हलाकान मुर्गियों ने लालचंद की मालकन शकुन को उकसाया कि - बाईसा, लालचंद को चंडी मेले में दान कर दो ..
बाईसा ने अनसुनी कर दी और धुत-धुत कर भगा दिया. कालेखां के मालिक ने भी उनका  यही हाल किया.     अब मुर्गियां चुग्गा कम चुनतीं दौनों को हटाने पर विशेष चर्चा करतीं . लालचंद की मालकिन को नौकरी की तलब हुई सो राजा के हाकिम के पास पहुंची . हाक़िम ने उससे एक मुर्गे और पांच अशर्फ़ीयों की मांग कर डाली . मामला सेट हुआ.  मुर्गे और पांच अशर्फ़ी लेने के बाद हाक़िम यूं भूला जैसे आम तौर पर एक पति अपनी सगाई और शादी की तारीख भूल जाते हैं. 
            जब मरे हुए लालचंद की आत्मा ने दुहाई दी तू ने अकारण कटवाया अगर तू राजनौकर न बनी तो समझ लेना ... मारे डर के थर थर कांपती शकुन ने मुखिया से मुर्गे के भूत वाली बात बताई . मुखिया ने मालगुज़ार को, मालगुज़ार ने कोतवाल को कोतवाल ने वज़ीर को तब जाकर कहीं वज़ीर ने बुलावा भेजा फ़रियादिन शकुन और हाक़िम के बीच बातचीत के ज़रिये सुलह सफ़ाई कराई गई . पांच अशर्फ़ियां और दो मुर्गे वापसी पे मामला सेट हुआ. 
          मुकरर किये  दिन पर हाकिम एक मुर्गा  लेकर शकुन बाई के घर जा पहुंचा . दूसरा मुर्गा छै:आने में खरीदा गया. मुर्गा क्या वो काले खां था लालचंद का दुश्मन .
                              शाम को सारा गांव इस जीत पर खुश था  दावत हुई दोनों मुर्गे काटे और पकाए गये सब ने छक के खाए . आज़ रात शकुन बाई को फ़िर दौनों मुर्गों के भूत दिखे - जो आपस में बतिया रहे थे - गलती किसी की भी हो कटते तो मुर्गे ही हैं. 

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