3.11.13

भगवान तो सस्ते में दे रहा हूं.. !


कार्टूनिष्ट राजेश दुबे
के ब्लाग डूबे जी से साभार 
भगवान को खोजता
दूकानदार
 एक दो तीन दिन न पंद्रह दिन लगातार लेखन कार्य से दूर रहना लेखक के लिये कितना घातक होगा ये जानने हमने खुद को लिखने से दूर रखा सच मानिये   हमारी दशा बिना टिकट प्रत्याशी की मानिंद हो गई. हम लगभग चेतना शून्य हैं..बतर्ज़ बक्शी जी सोच रहा हूं..  क्या लिखूं...?
 फ़िर सोचता हूं कुछ तो लिखूं..  आज़ दिन भर से मानस में एक ही हलचल मची हुई है कि कोई ये बताए कि हम किधर जा रहे हैं .. या कोई हमसे ये पूछे कि हम किधर से आ रहे हैं..?
   फ़िर कभी सोचा कि इस मौज़ू पर लिखूं कि -   ऐसा कोई नज़र आ नहीं रहा.जो खुद को देखे सब दूसरों को देखते तकते नज़र आ रहे हैं.. फ़िर फ़ूहड़ सा कमेंट करते और और क्या.. जिसे देखिये "पर-छिद्रांवेषण" में रत अनवरत .. आक्रोश  अलबर्ट पिंटो की मानिंद  जिसे गुस्सा क्यों आता है  क्विंटलों-टनो अलबर्ट पिंटो बिखरे पड़े हैं.. जुबानें बाबा रे कतरनी की तरह चलती नज़र आ जातीं हैं . सरकारें मुंहों पर कराधान करे तो .. बेशक आबकारी के बाद सबसे इनकम जनरेटिंग "माउथ-टैक्स-विभाग" बनना तय है...!
भगवान तो सस्ते
में दे रहा हूं..मैडम जी !
         इस बीच धरमपत्नि जी की तरफ़ से  बाज़ार जाने का आदेश हुआ .. फ़िर ये आदेश हुआ कि - " बाज़ार जाओ जा ही रए हो न..?  तो लक्ष्मी-गणेश-सरस्वती खरीद लाना. देवी-देवताओं को खरीदने पर परसाई दद्दा का लेखांश आपको याद ही होगा :-
दुनियां भगवान को पूजती है पर अपने से कम अक्ल मानती है.. सवा रुपये चढ़ा कर मन ही मन मानता यानी सौदा कुछ यूं तय करता है-"प्रभू अभी सवा रुपये बाक़ी एक सौ काम होने के बाद .. "
      हम भी गोरखपुर में एक फ़ोटो पोस्टर वाली दुकान पे पहुंचे "लक्ष्मी-गणेश-सरस्वती"  लेने .
  जहां  एक मोहतरमा  दूकानदार से  काफ़ी मशक्कत करवाने के बाद पोस्टर की क़ीमत पर हुज़्ज़त कर रहीं थीं. ..
भाई बहुत मंहगे हैं..
न मैडम मंहगा तो डालर है.. प्याज़ है.. भगवान तो सस्ते में दे रहा हूं.. !
न भैया.. दस रुपये और वापस करो..
न, मैडम.. इतना ही तो बच रहा है..
         बात तो फ़ोटो बेचने वाले ने सोलह-आने सच्ची कही.डालर और प्याज़ के मुक़ाबले भगवान तो सस्ते ही हैं है न मित्रो .
                    भगवान को अपने से कम अक्ल और डालर/प्याज़ के मुक़ाबले कम आंकने वाले कम नहीं है मित्रो.. तभी तो विरासत, सियासत सबमें भगवान का उपयोग सहजता से जारी है.
     सच है भगवान तुम बहुत सस्ते हो...
हैप्पी दीवाली प्रभू... 

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मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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