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शुक्रवार, अगस्त 02, 2013

घीसू-माधौ आज़ तक ज़िंदा हैं लुटते पिटते

                                   
   यूं तो दुनिया बेहद रंगीन खुशमिज़ाज़ लोगों का बाज़ार है पर करीब़ से देखिये उफ़्फ़ कितनी बेनूर भयानक बदमिज़ाज़ सब अपने अपने हाथौ मे अपनी अपनी ढफ़ली लिये गलियों चौबारों में बजाए जा रहे हैं. किसका राग कौन सुन रहा है किसी को भी पता नहीं. पता हो भी कैसे ? सुबह अखबार आया तो बांचा फ़िर लगे पूरे दिन सियासी बतकहाव करने. फ़लां मंत्री ने ये किया ढिकां संतरी ने वो किया. खुद का पाज़ामा देखते नहीं कि नाड़े की एक डोर लटक के बदहवास लापरवाह होने का ऐलान किये जा रहा है. ससुरा दिल्ली से भोपाल तक की सियासत पे बात करते करते जीभ भी नहीं थकती मुओं की गोया सियासी लोग इनकी सुन रहे होंगे . यक़ीन मानिये चौबीस घंटे में लोग आठ घंटे सरकार को गरियाने, सल्लू मियां कैटरीना के ब्रेक-अप जैसी बकवास में बिताते हैं. शहर तो शहर गांव के गांव चंडू खाने हो गये हैं. जिस देश के लोग आठ घण्टे के बकवासी हों उस देश में डालर और टमाटर सबके दाम बढ़ने तय हैं.
  हमारा किराने वाला पुराना खिलाड़ी है कांग्रेसी को देख पक्का कांग्रेसी भाजपाई को देख पक्का भाजपाई हो जाता है. यूं तो उसके ग्राहकों में आधे से ज़्यादा सरकारी आदमी हैं पर निज़ी तौर पर सबके अपने अपने विचार बिंदू हैं. माधौ कांग्रेस का पक्का समर्थक बस किराने वाला दादू उसे देख मनमोहन जी की ऐसी तारीफ़ करता है  कि कल्लू खुश इत्ता खुश कि एक किलो शक्कर तौलने दादू ने कित्ते बांट रखा उसे परवा नहीं होती. माधौ की बीवी गुसयाती है-दिन भर टुन्न रहते हो ले आए न आठ सौ ग्राम शक्कर
उधर घीसू मोदी से उम्मीद लगाए बैठे हैं कि प्रभू रामराज लाएंगे किराने की दुक़ान पे घीसू की बड़ी तारीफ़ करता है दादू किराने वाला  घीसू भैया अगर मोदी जी............
  मोदी जी सुनते ही घीसू के मुख से आज़ादी के बाद से देश की दुर्गति का हिसाब-किताब पेश होता है. फ़िर उसे दो-हज़ार की उधारी अढ़ाई हज़ार बता के दादू हिसाब चुकता करवाए तो भी भाई को होश नही रहता.
                                कुल मिला कर घीसू-माधौ आज़ तक ज़िंदा हैं लुटते पिटते लापरवाह जी रहे है.. इनकी अपनी कोई  सोच नही है इनके सर सियासत का इश्क़ इस क़दर हावी है कि समय बे समय सियासी बहस मुसाहिबे में मुखरित हो जाते हैं । इलेक्शन क़रीब है देखिये इन वाकवीरों की वाणी से हर सीट का नफ़ा-नुकसान निकलेगा । सच  कहूं आप मानेगें मेरा कहा तो सुनिए सच यही है कि - ये घीसूओं माधवों का हिन्दुस्तान है. एक बेतरतीब मंज़र पैदा करते ये लोग कभी कभार  सल्लू की कार से कुचले जाते हैं वरना इनको सामाजिक-आर्थिक  गैर बराबरी रोज़िन्ना कुचलती है।  
                             आप हम सब अपने अपने एक  एक सिगमेंट का निर्माण करते हैं अपने इर्द गिर्द उसी में जीना चाहते हैं।  घीसूओं माधवों का अपना सिगमेंट है.आपके हमारे सिगमेंट से बड़ा है.  ध्यान रहे जब इनके हाथ मुट्ठियां बन  बगावत के लिए तन जाएँगी तब सर्वत्र अराज़कता हिंसा होगी इस तथ्य  को हम आप नकार नहीं सकते। नक्सलवाद इसी का उदाहरण है.  घीसूओं माधवों के  सिगमेंट में  खोने का भय नहीं है।  वह  खोयेगा क्या  है.……।  समझ रहे हैं न।               
           इस सचाई को आप देख-सुन और समझ सकते है.………कहीं भी कभी भी. ।      





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