10.8.13

कहो न कि मैं भी चोर हूँ


वरुण जी के ब्लॉग से साभार 
किसी  के   खिलाफ   क्यों हैं  आप …… कभी सोचा आपने ?
      न आपने कभी भी न सोचा होगा सोचने के लिए खुद का अपना चिन्तन ज़रूरी है. आपकी सोच तो केवल सूचना आधारित है तो आप स्वयं कितना  सोचेंगे और  क्या सोचेंगे ?
मैं नहीं कहता काबुल में केवल घोड़े मिलते हैं पर आप अवश्य कहते हैं क्योंकि आपने जो सूचना प्राप्त की उसके मुताबिक़ यही सत्य है मित्र।
  अक्सर  व्यवस्था को गरियाने वाले लोग मुझे मिले हैं जब मेरे मोहल्ले में सड़क न थी तब नगर निगम को लोगों ने इतना कोसा इतना कोसा कि सतफेरी बीवी सौतन को भी न कोसती हो किन्तु सड़क बनाते ही हमारे सभी नागरिक सरेआम पूरे अधिकार से घरेलू कूडा करकट सड़क पे डाल रहे है। किसी को कोई आत्मिक दर्द नहीं।  उधर किसी गली से खबर आई की सार्वजनिक नल से  नल की टौंटी चुरा   के घर में रखने वालो की कमी नहीं अरे हाँ सरकारी बल्व ट्यूब लाइट के चोर चहुँओर बसे है. इतना ही नहीं लोग  गरीबी रेखा के साथ रहना पसंद करते हैं गोया गरीबी रेखा , गरीबी रेखा  न होकर अभिनेत्री रेखा हो। यानी कैसे भी हो लाभ होता रहे।

 
    अस्पतालों से मुफ्त की दवाएँ हासिल करना , मुफ्त में आयोजनों के पास हासिल करने की ज़द्दो-ज़हद करने वाले इस व्यवस्था-विरोधी समाज से ही आतें हैं।  बिजली चोरी तो बड़े बड़ों का शगल बन गया है. कुल मिला समूचे-समाज पर "कनक-शक्ति"(चोरों का देवता) का आशीर्वाद बना रहता है.
  आप ही बताएं  अब जिस समाज पर ऐसे देवता का  आशीर्वाद बना हो उस की व्यवस्था कैसी होगी ?  नकारात्मकता फैलाने वाले लोग हर जगह हैं  वास्तविकता ये नहीं है कि समूची व्यवस्था आज गर्त में जा गिरी है बल्कि अच्छाइयों को लिखा और  दिखाया नहीं जा रहा है। आप किसी को बिना सोचे समझे चोर कहें तो आप वास्तव में केवल नकारात्मकता आधारित सूचनाओ के शिकार हैं।  मौलिक चिन्तन नज़र  नहीं आता  है आप में  तब जब की आप किसी के भी खिलाफ कुछ भी बोलने लगते हैं आप शुचिता पूर्ण चिन्तक बने
सकारात्मकता बोयें।
नक़्शे पा आज़कल नहीं बनते
आप क्यों राह पे नहीं चलते ?
उड़ रहे लोग हवा में देखो
या अपाहिज हैं जो नहीं चलते ?

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मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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