"झंपिंग ज़पांग..झंपिंग ज़पांग.के बाद . गीली गीली......!!"

        
              हमारे देश के  चिंरंजीव श्री संत, अजीत चंदीला और अंकित चव्हाण की  पाकिस्तान की डी कम्पनी के गुर्गे  मास्टर सलमान, कुमार, विक्की, जंबू, बबलू, गुलाब मुहम्मद, उमर भाई, कासिफ भाई, रेहमद भाई, शरीफ भाई और डॉक्टर जावेद. भारत में इसके सूत्रधार रमेश व्यास,  मनोज मेट्रो, बंटी, जीजू जनार्दन , जूपिटर के साथ जैसे ही झंपिंग झपांग शुरु हुई कि दिल्ली के पोलिस वाले साहब ने उनकी सुत्तन गीली गीली कर दी.. 
कहानी की शुरुआत शुरु से होती है.. जब फ़रहा मैडम से आईपीएल वाले ज़िंगल के लिये बात करने गये थे..फ़रहा को शायद कहा होगा कि "भाई सिर्फ़ मैच नहीं देखने का क्या....... बेट भी.." आखिरी के शब्द बोलो न बोलो फ़रहा मैडम जनता जान जाएगी.. 
  इस पूरे खेल में भी  जीजू तत्व प्रधान है..आज़कल जो भी मामले उभरते हैं उनमें  जीजू तत्व की उपस्थिति सदा मिलती है. अब बताइये सारी खुदाई एक तरफ़ कोई झुट्टा थोड़े न कहा होगा.. सटीक मुहावरा है.. है न वाड्रा सा’ब. आप भी तो जीजू हो कि नईं अर्र बुरा न मानो दद्दा हम तो मज़ाक या कर रये हैं.. राहुल की तरफ़ से.. 
                उधर अभी रेलवई वाले जीजू... साले की कथा चल ही रही थी कि आई.पी.एल. के कैनवास पर श्रीसंत के जीजू का रेखा चित्र उभरा सच क्या है.  ये जांच के बाद पता चलेगा पर धुंये से आग का संदेशा तो मिल ही गया है. पड़ोसी पाकिस्तान के पालित पुत्र दाउद बाबा की दूकान पर बिके चिंरंजीव श्री संत, अजीत चंदीला और अंकित चव्हाण को  भारतीय क्रिकेट प्रेमी बदहवास होकर कोस रहे हैं. अब भैया कोसने का होगा.. किरकिट का खेल है ही ऐसी बला कि अच्छे अच्छे विश्वामित्र रीझ जाते हैं.. इसमें खनक और चमक दौनों ही मिलती है.
                           
  हमारे मोहल्ले के पांच-पंद्रह  साल तक के बच्चे  आराध्य, आर्मेंद्र,दीपक,बबलू, छोटू, मयूर, मृदुल,सनी, गुरु, गौरव, हों या गांव खेड़े के बच्चे सबके सब किरकिटियाये हैं. घरेलू महिलाएं, युवतियां-युवक, यहां तक कि क्रिकेट के फ़ेन्स उम्र दराज़ बुज़ुर्गवार भी हैं.. जो चश्मा पौंछ-पौंछ क्रिकेट का आनंद उठाते हैं. 
                                किरकिट के लिये ऐसे दीवाने  भारतीयों की दीवानगी पर मलाली गुलाल  लगाते क्रिकेटर्स का चरित्र स्पष्ट हो चुका  है. उधर बीसीसीआई के कर्ताधर्ता कानों में रुई लगाए येन केन प्रकारेण सर्वाधिक धन कमाने वाले  बोर्ड का तगमा लगाए मुतमईन बैठे हैं. 
               केजरी कक्का जी केवल सियासी भ्रष्टाचार की मुखालफ़त कर रहे हैं.. अच्छा है पर उससे अच्छा ये होता कि - "भारतीय-चारित्रिक-पतन" का भी विश्लेषण किया होता. आप सोच रहे होंगे कि आम भारतीय युवा भ्रष्टाचार के खिलाफ़ हैं परंतु यह अर्ध सत्य है.. अपनी औलादों को महत्वपूर्ण बनाने की गरज़ से भारतीय भ्रष्टाचार में लिप्त है. मंहगी बाईक, मंहगी शिक्षा व्यवस्था , के लिये लोग जो शार्ट कट अपना रहे हैं उस पर किसी की निगाह नहीं. भारतीय युवा भ्रष्टाचार के खिलाफ़ अन्ना के साथ अन्ना बन जाता है पर एक क्लर्क का बेटा स्कूल मास्टर का बेटा जब घर लौटता है तब अपने मां बाप से पूछता है-"हमारे लिये आप ने किया क्या है..?" ऐसे ही सवालों से बचना चाहते हैं लोग.. और नैतिक-मूल्यों को गिराने में कोई कमीं नहीं छोड़ते .     
                            भारतीय उपमहाद्वीप में क्रिकेट के आई.पी.एल. नामक महाकुम्भ के ये युवक न केवल धन के लोभी हैं वरन इनका चरित्र भी ठीक नहीं.. इस बात का लाभ बुकीज़ ने बखूबी उठाया और एस्कार्ट सेवाओं के तोहफ़े से भी नवाज़ा.. यानी कुल मिला के  खिलाड़ियों के गंदे आचरण का एक नमूना सामने है. 
                कुल मिला कर देश की युवा शक्ति भ्रमित और दिशा हीन है..तभी तो धन की लिप्सा में झंपिंग ज़पांग..झंपिंग ज़पांग करता है.. पर याद रहे उसके बाद सुत्तन  गीली गीली हो जाती है...!!

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