तो क्या मैं कर दूं..
जी करना ही होगा..
सच,..तो कर दूं..?
जब बड़ी से बड़ी शंका व्यक्त करते वक्त नही पूछते तो लघु और लघुतम के वक्त काहे सोचते हो हज़ूर.. आप की मर्ज़ी जहां चाहें वहां अक्खा इंडिया को तो आप की तरह के लोगों ने सर्व सुलभ-सुभीता खोली बना रक्खा है तो अब बांध,ड्रम,टंकी,सूखे नदी-नालों में कहीं भी कुछ भी कर सकते हैं..
एक बात बता देत हैं कै हमाए परसाई दादा होते तो तुमाए टाइप के लोगों को किधर करना है किधर कराना है अच्छे से समझाते बड़े बड़े लोग उनको ट्रंककाल लगाय के बता देते थे कि "दादा, हम सही जगह पर निपट-सुलझ लिये " पर उनकी ग़ैरमौज़ूदगी में आप लोगों ने ये न जाना कि हम भी सहीसाट स्थान बता देते हैं.. अरे दादा के हाथ से गोलियां खाएं हैं.. बालपने से.
आपको हम एक सच्ची सलाह देवें.. ऐसे सवालों आप को भरी सभा में पूछने की ज़रूरत न पड़ती कि :-"तो क्या मैं वहां कर दूं..?"
अब पूछ ही लिया है तो हम क्यों बताएं.. हम से पहले काय नईं पूछा कसम से हम बता भी देते .
स्कूल के दिनों मास्साब और छात्र के बीच एक ज़बरदस्त कैमेस्ट्री होती है. इस करने-कराने के मसले पर . हम शहपुरा भिटौनी के थाने वाले स्कूल में पढ़ते थे जब हमको छोटी-मोटी शंका महसूस होती तब हम मास्साब को छिंगी दिखाते हुए हाथ जोड़ के उनके सामने खड़े हो जाते.और जैसई हमने छिंगी उठाई उधर रजक मास्साब ने मुंडी मटकाई.. बस हम कर आते थे. आप भी जनता को छिंगी दिखा देते .. पर आप भी क्या करते इन दिनों आपकी कैमेस्ट्री बायो में बदल गई है..
तब करने-कराने के लिये जगह निश्चित होती थी.. पर अब .. अब तो जगह जगह सुभीता खोलीयां हैं यदी न भी हो तो पूरा देश.. ही..आप के लिये !
आप के इस सवाल को सुन के मुझे एक कहानी याद आ रही है.- त्रेता युग में राम-रावण युद्ध के समय रावण ने अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया ताकि वह युद्ध जीत सके। शिवजी ने शिवलिंग का आकार लेकर रावण को लंका में शिवलिंग स्थापित करने का निर्देश दिया। इसके लिए भगवान शिव ने एक शर्त रखी कि शिवलिंग लो बीच में कहीं पर भी नीचे नहीं रखना है। लेकिन रास्ते में रावण को पेशाब लगी तो उसने एक गड़रिये को शिवलिंग पकड़ने को कहा। कहते हैं कि भगवान शिव ने अपना वजन बढ़ा दिया और गड़रिये को शिवलिंग नीचे रखना पड़ा। रावण को भगवान शिव की चालाकी समझ में आ गयी और वह बहुत क्रोधित हुआ। रावण समझ गया कि शिवजी लंका नहीं जाना चाहते ताकि राम युद्ध जीत सकें। क्रोधित रावण ने अपने अंगूठे से शिवलिंग को दबा दिया जिससे उसमें गाय के कान (गौ-कर्ण) जैसा निशान बन गया।
कुछ जगह इस कथा में यह वर्णन मिलता है-"रावण को शंका निवारते-निवारते बहुत देर लग गई तो गड़रिये बने भगवान शिव ने शिवलिंग भूमि पर रख दिया और भूमि पर शिवलिंग का रखा जाना शर्त के विरुद्ध था अस्तु शिवलिंग रावण न ले जा सका " साथ ही जहां रावण ने शंका निवारी थी वहां अथाह जल राशि का भंडारण हुआ "..
मुझे लगता है कि शायद इसी पौराणिक कथा से प्रेरित हो कर आपने एक आमात्य की हैसियत से जनता से सवाल किया होगा.. आप ग़लत कदापि नहीं हो सकते.. आप सर्व-शक्ति मान जो हैं..आप गलत कह ही नहीं सकते .इस सवाल ने एक प्रमेय सिद्ध कर ही दिया कि आप का पूर्व-जन्म क्या था..?
मेरे प्रोफ़ेसर पंकज जायसवाल का मानना था- " करना हो और सही जगह मिल जाए उससे बड़ा सुख दुनियां में नहीं होता " उनकी इस थ्योरी को के आगे हम ने एक अंवेषण किया तो हमें पता चला कि-"जिसे बार बार इधर उधर कर लेने की आदत होती है उससे बड़ा दुनियां के लिये दु:ख दाता और कौनऊ होऊ न सकै..!
एक बात बता देत हैं कै हमाए परसाई दादा होते तो तुमाए टाइप के लोगों को किधर करना है किधर कराना है अच्छे से समझाते बड़े बड़े लोग उनको ट्रंककाल लगाय के बता देते थे कि "दादा, हम सही जगह पर निपट-सुलझ लिये " पर उनकी ग़ैरमौज़ूदगी में आप लोगों ने ये न जाना कि हम भी सहीसाट स्थान बता देते हैं.. अरे दादा के हाथ से गोलियां खाएं हैं.. बालपने से.
आपको हम एक सच्ची सलाह देवें.. ऐसे सवालों आप को भरी सभा में पूछने की ज़रूरत न पड़ती कि :-"तो क्या मैं वहां कर दूं..?"
अब पूछ ही लिया है तो हम क्यों बताएं.. हम से पहले काय नईं पूछा कसम से हम बता भी देते .
स्कूल के दिनों मास्साब और छात्र के बीच एक ज़बरदस्त कैमेस्ट्री होती है. इस करने-कराने के मसले पर . हम शहपुरा भिटौनी के थाने वाले स्कूल में पढ़ते थे जब हमको छोटी-मोटी शंका महसूस होती तब हम मास्साब को छिंगी दिखाते हुए हाथ जोड़ के उनके सामने खड़े हो जाते.और जैसई हमने छिंगी उठाई उधर रजक मास्साब ने मुंडी मटकाई.. बस हम कर आते थे. आप भी जनता को छिंगी दिखा देते .. पर आप भी क्या करते इन दिनों आपकी कैमेस्ट्री बायो में बदल गई है..
तब करने-कराने के लिये जगह निश्चित होती थी.. पर अब .. अब तो जगह जगह सुभीता खोलीयां हैं यदी न भी हो तो पूरा देश.. ही..आप के लिये !
आप के इस सवाल को सुन के मुझे एक कहानी याद आ रही है.- त्रेता युग में राम-रावण युद्ध के समय रावण ने अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया ताकि वह युद्ध जीत सके। शिवजी ने शिवलिंग का आकार लेकर रावण को लंका में शिवलिंग स्थापित करने का निर्देश दिया। इसके लिए भगवान शिव ने एक शर्त रखी कि शिवलिंग लो बीच में कहीं पर भी नीचे नहीं रखना है। लेकिन रास्ते में रावण को पेशाब लगी तो उसने एक गड़रिये को शिवलिंग पकड़ने को कहा। कहते हैं कि भगवान शिव ने अपना वजन बढ़ा दिया और गड़रिये को शिवलिंग नीचे रखना पड़ा। रावण को भगवान शिव की चालाकी समझ में आ गयी और वह बहुत क्रोधित हुआ। रावण समझ गया कि शिवजी लंका नहीं जाना चाहते ताकि राम युद्ध जीत सकें। क्रोधित रावण ने अपने अंगूठे से शिवलिंग को दबा दिया जिससे उसमें गाय के कान (गौ-कर्ण) जैसा निशान बन गया।
कुछ जगह इस कथा में यह वर्णन मिलता है-"रावण को शंका निवारते-निवारते बहुत देर लग गई तो गड़रिये बने भगवान शिव ने शिवलिंग भूमि पर रख दिया और भूमि पर शिवलिंग का रखा जाना शर्त के विरुद्ध था अस्तु शिवलिंग रावण न ले जा सका " साथ ही जहां रावण ने शंका निवारी थी वहां अथाह जल राशि का भंडारण हुआ "..
मुझे लगता है कि शायद इसी पौराणिक कथा से प्रेरित हो कर आपने एक आमात्य की हैसियत से जनता से सवाल किया होगा.. आप ग़लत कदापि नहीं हो सकते.. आप सर्व-शक्ति मान जो हैं..आप गलत कह ही नहीं सकते .इस सवाल ने एक प्रमेय सिद्ध कर ही दिया कि आप का पूर्व-जन्म क्या था..?
मेरे प्रोफ़ेसर पंकज जायसवाल का मानना था- " करना हो और सही जगह मिल जाए उससे बड़ा सुख दुनियां में नहीं होता " उनकी इस थ्योरी को के आगे हम ने एक अंवेषण किया तो हमें पता चला कि-"जिसे बार बार इधर उधर कर लेने की आदत होती है उससे बड़ा दुनियां के लिये दु:ख दाता और कौनऊ होऊ न सकै..!