18.2.13

अमिताभ बच्चन पर आरोप है कि उनने स्तर मैंटेन नहीं किया ..?

175643_Chesapeake Bay Perfect Crab Cakesबीमार हूं सोचा आराम करते  करते सदी के महानायक यानी  अमिता-अच्चन- और रुखसाना सुल्ताना की बिटिया अमृता सिंह  अभीनीत फ़िल्म देख डालूं जी हां पड़े पड़े  मैने फ़िलम देखी  बादल-मोती वाली फ़िलम देखी नाम याद आया न हां वही 1985 में जिसे मनमोहन देसाई ने बनाई थी    मर्द    जिसको दर्द नहीं होता ..बादल यानी सफ़ेद घोड़ा जो अमिताभ को अनाथाश्रम से लेकर भागता है वही अमिताभ जब जवान यानी बीसपच्चीस बरस का होने तक युवा  ही पाया . 
          मित्रो हिंदी फ़िल्मो  को आस्कर में इसी वज़ह से पुरस्कार देना चाहिये.. पल पल पर ग़लतियां करने वाली फ़िल्में.. श्रेणी में  सदी का महानायक कहे जाने  का दर्ज़ा अमिताभ बच्चन जी को ऐसी ही फ़िल्मों के ज़रिये मिला. 
OEM parts 120x240     उस दौर की फ़िल्में  ऐसी ही ग़लतियों से अटी पड़ीं हुआ करतीं थीं. भोले भाले दर्शकों की जेब से पैसे निकलवाने और टाकीज़ों में चिल्लर फ़िंकवाने अथवा  दर्शकों की तालियां बजवाने के गुंताड़े में लगे ऐसे निर्माताऒं ने  भारत को कुछ दिया होगा.आप सबकी तरह ही  मैं बेशक अमिताभ की अभिनय क्षमता फ़ैन हूं.. अदभुत सम्मोहन है उनमें आज़ भी पर आनंद 1971   मिली (1975 )अदालत (1977) मंज़िल  (1979) जैसी फ़िल्मों के बाद  फ़ूहड़ एवम बेतुकी फ़िल्मों में अभिनय कर अमिताभ से पैसों के लिये अभिनय करवाया ऐसा मेरा निजी विचार है. अमिताभ पर यह आरोप गलत नहीं कि एक समय ऐसा आया था जबकि उन्हौंने  फ़िल्म चयन में  उनने  अपना स्तर मैंटेंन नहीं रखा. जबकि आमिर खान जो स्वयम निर्माता निर्देशक भी हैं उनका एक स्तर है. वो जो भी विषय उठाते हैं.   अनूठा होता है. ज़रूरी होता है. 
                                 यही एक बात अमिताभ को महानायक के खिताब से दूर करतें हैं. निर्माता-निर्देशकों को पैसों से मतलब अमिताभ जी जैसे प्रतिभावान क्षमता वान कलाकारों की अपनी ज़रूरतें होतीं हैं. कुल मिला कर शो-बिज़नेस के लिये हीरो की लोकप्रियता ( राजेश खन्ना दिलीप कुमार और आज़ आज़ के दौर में सलमान खान ) चाहिये. विषय तो सामान्य रूप से निर्माता निर्देशकों के पास होते नहीं पस किसी फ़ार्मूले पर फ़िल बनाया करते हैं.. वही फ़ूहड़ हास्य देह दर्शन, अथवा वर्जित विषय पर फ़िल्म बनाना  इनकी आदत सी हो चुकी है. वैसे ये मेरे अपने विचार है आप असहमत भी हो सकते हैं मुझे जो कहना था कह दिया.  


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मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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