27.8.12

खबरिया चैनल आज़तक के संस्थापक एस.पी.सिंह का भावपूर्ण स्मरण किया गया



मुंबई । दिल्ली हो या मुंबई आधुनिक भारतीय पत्रकारिता के महानायक और हिंदी न्यूज़ चैनल 'आजतक' के संस्थापक संपादक सुरेंद्र प्रताप सिंह यानी एस.पी सिंह को चाहने वाले और मानने वाले हर जगह है. एस.पी.सिंह स्मृति  समारोह मुंबई में आयोजित किया गया तो यहाँ भी उनके चाहने वाले और साथ काम कर चुके पत्रकार पहुंचें. उनसे जुडी यादों को बांटा. उन्हें याद किया और भावुक भी हुए. 
वरिष्ठ पत्रकार विश्वनाथ सचदेव ने एस.पी सिंह को याद करते हुए कहा कि उनकी सबसे बड़ी खासियत थी कि वे आने वाले कल को पहचानने की कोशिश करते थे और उसी हिसाब से नए - नए प्रयोग करते थे. उनके टेलीविजन के सफ़र पर बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि आजतक ने एस.पी को जो पहचान दी वह अद्वितीय है. बुलेटिन के अंत में एस.पी कहते थे, यह थी खबरें आजतक, इंतज़ार कीजिये कल तक और लोग इंतज़ार करते थे. 
एस.पी. सिंह के ज़माने में आजतक के मुंबई ब्यूरो में कार्यरत नीता  कोल्हटकर ने एस.पी को याद करते हुए कहा कि अंग्रेजी माध्यम से होते हुए भी वे मुझे आजतक में लेकर आये. लेकिन उन्होंने कहा कि पंडिताना हिंदी को भूल जाओ. सरल, सहज और आम लोगों की भाषा का इस्तेमाल करो. एस.पी की खासियत के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में लोगों को क्या पसंद आनेवाला है, इसकी उन्हें बहुत अधिक समझ थी. वे व्यक्तिगत चीजों को परे रखकर पत्रकारिता करते थे और बहुत दिल से बुलेटिन की एंकरिंग करते थे. 
सीएनबीसी-आवाज़ में कार्यरत आलोक जोशी ने एस.पी.सिंह के साथ आजतक में बिताये लम्हों को याद करते हुए कहा कि एस.पी की पारखी नज़र थी. उन्हें सब पता होता था कि क्या होने वाला है. लेकिन एक संपादक की तरह वे डराते नहीं थे. समाज और पत्रकारिता के अलावा बिजनेस भी समझते थे. लेकिन मैनेजमेंट का किसी तरह का दबाव पत्रकारों पर नहीं पड़ने देते थे. अपनी इन्हीं खूबियों की वजह से वे इतने बड़े आयकॉन बने कि पत्रकारिता में बहुत सारे लोग खींचे चले आये.
आजतक के मुंबई ब्यूरो के प्रमुख साहिल जोशी ने कहा कि एस.पी.सिंह के बुलेटिन को देखकर ही हम जैसे लोगों के अंदर यह ज़ज्बा पैदा हुआ कि हम भी हिंदी के पत्रकार बन सकते हैं. एस.पी सिंह के बुलेटिन को देखकर ही हम जैसे लोगों ने हिंदी सीखी. साहिल जोशी ने एक दिलचस्प किस्सा बताते हुए कहा कि, ' मुझसे एक बार किसी दर्शक ने पूछा कि आप भी उसी चैनल में काम करते हैं न , जिसमें दाढ़ी वाले पत्रकार खबरें पढ़ते हैं. यह 2004 की बात है.  मुझे लगा कि शायद ये दीपक चौरसिया के बारे में बात कर रहे हैं. लेकिन उस दर्शक ने कहा की नहीं, वो दूसरे दाढ़ी वाले, एस.पी सिंह.'
पूरा आलेख यहां उपलब्ध है "मीडियामोरचा

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जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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