28.4.12

वीर तो शर शैया पर आराम की तलब रखतें हैं


बेहद कुण्ठित लोगों के का जमवाड़ा सा नज़र आता है हमारे इर्द-गिर्द हमको.  
हम लोग अकारण आक्रामक होते जा रहे हैं. वास्तव में हमारी धारण शक्ति का क्षय सतत जारी है. उसके मूल में केवल हमारी आत्म-केंद्रित सोच के अलावा और कुछ नहीं है. इस सोच को बदलना चाहें तो भी हम नहीं बदल सकते क्यों कि जो भी हमारे पास है उससे हम असंतुष्ट हैं.एक बात और है कि  हमारी आक्रामकता में बहादुर होने का गुण दिखाई नहीं देता अक्सर हम पीछे से वार करतें हैं या छिप के वार करते हैं.यानी युद्ध के आदर्श स्वरूप हटकर हम छ्द्म रूप से युद्ध में बने रहते हैं. यानी हम सिर्फ़ पीठ पे वार करने को युद्ध मानते हैं. हां रण-कौशल में में "अश्वत्थामा-हतो हत:" की स्थिति कभी कभार ही आनी चाहिये पर हम हैं कि अक्सर "अश्वत्थामा-हतो हत:" का उदघोष करते हैं. वीर ऐसा करते हैं क्या ? न शायद नहीं न कभी भी नहीं. वीर तो शर शैया पर आराम की तलब रखतें हैं .पता नहीं दुनियां में ये क्या चल रहा है..ये क्यों चल रहा है..?  कहीं इस युग की यही नियति तो नहीं..शायद हां ऐसा ही चलेगा लोग युद्ध रत रहेंगे अंतिम क्षण तक पर चोरी छिपे..! क्यों कि वे खुद से युद्ध कर पाने में अक्षम हैं अच्छे-बुरे का निर्णय वे अपने स्वार्थ एवम हित के साधने के आधार पर करते हैं तभी तो कुण्ठा-जन्य युद्ध मुसलसल जारी है..जहां वीर योद्धाओं का अभाव है.  




तीर बरछी और भालों पर बहुत आराम मिलता..
पंखुरी पे चलने वालों को कहां है नाम मिलता.?
मैं खबर हूं छाप दो अंज़ाम देखा जाएगा- 
मैं न होता तो बता क्या तुझको कोई काम मिलता ?
भेड़-बक़रे पाल के वो भीड़ का सरताज़ है -
ये अलग है कि उसे बस भीड़ में कुहराम मिलता.
बेवज़ह  सियासत के तीर-बरछे  छोड़ना-
वार तेरा तिनके सा- गिरके फ़िर बेकाम मिलता .
समझदारों को मुकुल अब और क्या समझाएगा-
उसे वो करने दे जिसे जो करने में आराम मिलता .









   

1 टिप्पणी:

Raju Patel ने कहा…

गिरीशजी,
अच्छा लिखते है -लिखते रहिएगा.....

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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