11.3.12

50 वर्ष पूर्व अरबवासियों के प्रति दृष्टि :डैनियल पाइप्स


डैनियल
पाइप्स





1962 में अत्यंत आकर्षक, चिकने आवरण पर 160 पृष्ठों की The Arab World शीर्षक की पुस्तक में तात्कालिक रूप में कहा गया, "कभी अत्यन्त समृद्ध और फिर पराभव को प्राप्त विस्तृत अरब सभ्यता आज परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। कुछ फलदायक अव्यवस्था प्राचीन जीवन की निश्चित परिपाटी को बदल रही है" ।
इस संस्करण ने इस बात का दावा किया कि इसकी तीन विशेषतायें आधी शताब्दी के बाद भी इसे समीक्षा के लिये बाध्य करती हैं। पहला, उस समय की उच्चस्तरीय अमेरिकी साप्ताहिक पत्रिका लाइफ ने इसे प्रकाशित किया जिसमें कि सांस्कृतिक केंद्रीयता निहित थी । दूसरा, एक सेवा निवृत्त विदेश मंत्रालय के अधिकारी जार्ज वी एलेन ने इसकी प्रस्तावना लिखी थी जिससे कि पुस्तक के मह्त्व की ओर संकेत जाता था। तीसरा, एक ख्यातिलब्ध ब्रिटिश पत्रकार, इतिहासकार और उपन्यासकर्ता डेसमन्ड स्टीवर्ट ( 1924 – 1981) ने इस पुस्तक को लिखा ।
द अरब वर्ल्ड अत्यंत प्रभावी रूप से दूसरे काल के समय को प्रस्तुत करता है; वैसे तो पूरी तरह अपने विषय को बहुत मधुर बनाकर नहीं रखा है लेकिन स्टीवर्ट ने सहज और शालीन भाव से अपनी बात रखी है जो कि आज के सबसे मुखर लेखक को भी चुप कर देगा। उदाहरण के लिये वे कहते हैं कि जब पश्चिमी पर्यटक अरब भाषी देशों में प्रवेश करते ही " अलादीन और अली बाबा के क्षेत्र में प्रवेश करते हैं जहाँ कि लोग उन्हें उनकी बाइबिल की व्याख्या की याद दिलाते हैं" अल कायदा के इस युग में उनकी भावना से किंचित मुठभेड की जा सकती है।
सबसे रोचक यह है कि इस पुस्तक से यह प्रदर्शित होता है कि किस प्रकार एक प्रमुख विश्लेषक भी बडे चित्र को पढने में गलती कर बैठता है।
जैसा कि इसके शीर्षक से स्पष्ट है कि पुस्तक की विषयवस्तु मोरक्को से इराक तक एक अरब जन का अस्तित्व है ऐसे लोग जो कि इस प्रकार परम्परा से आबद्ध हैं कि स्टीवर्ट ने पक्षी इसकी तुलना करते हुए लिखा है, " अरबवादियों की एक अलग सामान्य संस्कृति है जिसे वे इसे हमिंग पक्षी के घोंसले की भाँति चाह कर भी हर बार फेंक नहीं सकते" अरबवासियों द्वारा अपने देशों को एक रख पाने में असफल रहने के पिछले रिकार्ड की अवहेलना करते हुए स्टीवर्ट भविष्यवाणी करते हैं कि, " कुछ भी हो अरब संघ की शक्ति बनी रहेगी"। 1962 के बाद शायद ही ऐसा सम्भव रह सका कि अरबी भाषा ही केवल जन की परिभाषा कर सकी और इतिहास और भूगोल नकार दिये गये।
उनकी विषयवस्तु की दूसरी महत्वपूर्ण चीज इस्लाम है। स्टीवर्ट लिखते हैं कि इस सामान्य आस्था ने मानवता को नयी ऊँचाइयों की ओर पहुचाया है और यह " शांतिवादी ना होकर भी इसका मुख्य शब्द सलाम या शांति है" वे इस्लाम को एक " सहिष्णु धर्म मानते हैं" और अरबवासियों को परम्परागत रूप से " सहिष्णु आक्रांता" और " सहिष्णु स्वामी मानते हैं"। मुसलमानों ने यहूदियों और ईसाइयों के साथ सहिष्णुता पूर्वक व्यवहार किया" । वास्तव में तो अरबवासियों की सहिष्णुता एक संस्कृति तक फैल गयी। सहिष्णुता के प्रति स्टीवर्ट की इस दृष्टि से वे आग्रहपूर्वक लेकिन अयुक्तिपूर्ण ढंग से इस्लामवाद की अभिव्यक्ति को नकार देते हैं, जो उनकी नजर में, " एक पुरानी पीढी की चीज है जिसके प्रति नयी पीढी में कोई आकर्षण नहीं है"। संक्षेप में स्टीवर्ट इस्लामवाद के आरम्भ से आधुनिक काल तक इसकी सर्वोच्चता को लेकर इसके बारे में कुछ भी नहीं जान सके।
तीसरी महत्वपूर्ण चीज अरबवासियों का आधुनिता के प्रति प्रतिबद्धता : " आश्चर्यों में से एक यह है कि बीसवीं शताब्दी के अरब मुस्लिमों ने आधुनिक विश्व के परिवर्तनों को स्वीकार किया है" । सउदी अरब और यमन को छोड्कर हर स्थान पर उन्हें मिला कि, " अरब आधुनिकता दिखाई देने वाली शक्ति है" (इसलिये परिवर्तन की हवा मेरा पहला शब्द है) । महिलाओं के प्रति उनकी एकांगी चिंता पढने वाले को सन्न कर देती है: " हरम और इसके मनोवैज्ञानिक स्तम्भ बीसवीं शताब्दी में आये हैं"। आर्थिक मामलों में महिलायें लगभग पुरुषों के बराबर हैं। वे वही देख रहे हैं जो वह चाहते हैं और वास्तविकता से उनके ऊपर कोई असर होता नहीं दिखता ।
अपनी व्यापक दृष्टि के आशावाद को जारी रखते हुए स्टीवर्ट को लगता है कि अरब भाषी अपने प्राचीन काल से बाहर आने को प्रतिबद्ध हैं। वह सातवीं शताब्दी के बारे में लिखते हैं जिस प्रकार कि अब कोई भी साहस नहीं कर सकेगा विशेष रूप से जार्ज ड्ब्ल्यू बुश की इराकी मह्त्वाकाँक्षा और बराक ओबामा के लीबिया के खतरनाक मिशन के बाद। "पहले चार खलीफा ब्रिटेन के विलियम ग्लैडस्टोन की भाँति लोकतांत्रिक थे यदि अमेरिका के थामस जेफरसन की भाँति नहीं तो," स्टीवर्ट तो यह भी दावा करते हैं कि " अरब सभ्यता पश्चिमी संस्कृति का भाग है न कि पूर्वी संस्कृति का" इसका अर्थ कुछ भी हो ।
पचास वर्ष पूर्व इस्लाम के सम्बंध में जानकारी कितनी कम थी कि लाइफ पत्रिका के दो दर्जन कर्मचारी पुस्तक के सम्पादकीय स्टाफ के रूप में एक चित्र पर इस गलत सूचना के साथ अंकित थे कि इस्लाम की तीर्थयात्रा " प्रत्येक वर्ष बसंत में होती है" ( हज प्रत्येक वर्ष के कैलेंडर के आरम्भ होने से 10 या 11 की तिथि को होता है)
किसी के पूर्वाधिकारी की भूलों का प्रभाव होता है। मेरे जैसे विश्लेषक को आशा करनी चाहिये कि डेसमन्ड स्टीवर्ट और लाइफ की भाँति अस्पष्टता ना हो ताकि समय व्यतीत होने के साथ बुरे रूप में न देखा जाये। इसलिये निश्चित रूप से मैं इतिहास इस भाव से पढता हूँ कि व्यापक दृष्टि बने और तात्कालिक अवधारणाओं तक सीमित न रहे । 2062 में यह बतायें कि मैं कैसा कर रहा हूँ ।

1 टिप्पणी:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

बड़ा मुश्किल है अरब समाज का बाक़ी दुनिया से जुड़ पाना

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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