26.2.12

जो गीत तुम खुद का कह रहे हो मुकुल ने उसको जिया है पगले




कि जिसने देखा न खुद का चेहरा उसी  के  हाथों  में  आईना है,
था जिसकी तस्वीर से खौफ़ सबको,सुना है वो ही तो रहनुमां है.
हां जिनकी वज़ह से है शराफ़त,है उनकी सबको बहुत  ज़रूरत-
वो  चार लोगों से डर रहा हूं… बताईये क्या वो सब यहां हैं..?
अगरचे मैंने ग़ज़ल कहा तो गुनाह क्या है.बेचारे  दिल का...
वो बेख़बर है उसे खबर दो    कि उसके चर्चे कहां कहां हैं..?
वो लौटने का करार करके गया था, लेकिन कभी न लौटा-
करार करना सहज सरल है- निबाहने का ज़िगर कहां है .
जो गीत तुम खुद का कह रहे हो मुकुल ने उसको जिया है पगले
किसी को तुम अब ये न सुनाना सभी कहेंगे सुना- सुना है .

2 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

गिरीश जी, बहुत सुन्दर लिखा है.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

सभी कहेंगे सुना- सुना है...
वाह! बहुत सुन्दर....
सादर..

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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