24.2.12

बहुत प्रिय हैं पादुकाएं.. आपको मुझको सभी को अगर सर पर जा टिकें तो रुला देतीं हैं सभी को.

इन पे अब ताले लगा दो ताकि ये न चल सकें..
ज़ुबां की मानिंद इनको चलने की बीमारी लग गई.


वो कतरनी सी चले हैं..ये सरपट गाल पर
यक़बयक़ ये जा चिपकती चमकते से भाल पर 
रबर और चमड़े की किसी की भी बनी हो
असरकारक हो ही जातीं दोस्तों की चाल पर 
देवताओं से अधिक मन में पादुकाओं की लगन
इनके चोरी जाते ही,सुलगती मन में अगन..
बहुत प्रिय हैं पादुकाएं.. आपको मुझको सभी को 
अगर सर पर जा टिकें तो रुला देतीं हैं सभी को.
जागती जनता मशालें छोड़ जूते हाथ ले 
सरस चिंतन से अभागी बढ़ा लेती फ़ासले.




  

2 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

पादुकाओं को रखकर ही तो भरत जी ने राज चलाया वर्षों तक.
फिर आज इनका महत्त्व क्यों कर काम हो.

Rajesh Kumari ने कहा…

paadukayen jinke bina hum bahar pair nahi rakh sakte bahut ahamiyat hoti hai inki aapke rochak andaaj ne bhakhoobi bayaan ki hai inki mahatta.

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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