20.1.12

मधुर सुर न सुनाई दें जिस घर से वो घर कैसा न मांडी जाए रंगोली जिस दर पे वो दर कैसा ?


मधुर सुर  सुनाई दें जिस घर से वो घर कैसा 
 मांडी जाए रंगोली जिस दर पे वो दर कैसा ?
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बिना बेटी के घर लगते अमावस की घुप रातें 
 रु झु पायलें बजतीं  होती हैं मृदुल बातें
 दीवारों पे  रौक और  देहरी से चमक गायब-
देखता जो भी सोचे ये घर तो है मगर कैसा ..?
                       मधुर सुर  सुनाई दें जिस घर से वो घर कैसा 
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वो बेटी ही तो होती है कुलों को जोड़ लेती है
अगर अवसर मिले तो वो मुहाने मोड़ देती है
युगों से  बेटियों को तुम परखते हो  जाने क्यूं..?
म लेने तो दो उसको जम-लेने से डर कैसा..?
                          मधुर सुर  सुनाई दें जिस घर से वो घर कैसा
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पालने से पालकी तक की  चिंता छोड़ के आना
वो बेटों से भी बेहतर है ये चिंत जोड़ ते लाना
उसे तुमने जो अब मारा धरा दरकेगी ये तय है-
उसे ताक़त बनाओगे जमाने से डर कैसा 
                         मधुर सुर  सुनाई दें जिस घर से वो घर कैसा 

2 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

बात तो पते की है, सुंदर भाव हैं।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बेटियों से ही घर में रौनक होती है.

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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