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रविवार, सितंबर 25, 2011

2 अक्तूबर ....


2 अक्तूबर 1869 ....
                गांधी  एक चिंतन के   सागर  थे  गांधी जी  को केवल  समझाया जाना हमारे लिए एक कष्ट कारक विषय है सच तो यह है की "मोहन दास करम चंद गांधी को " समझाने का साधन बनाने वालों से युग अब अपेक्षा कर रहा है की  वे पहले  खुद  बापू को समझें और फिर लोगों को समझाने की कोशिश करें.  महात्मा गाँधी की आत्मकथा  के अलावा उनको किसी के सहारे समझने की कोशिश भी केवल बुद्धि का व्यापार माना जा सकता है.इस बात को भी नकारना गलत होगा   गांधीजी - व्यक्ति नहीं, विचार यही उनके बारे में कहा सर्वोच्च सत्य है . 140 बरस बाद भी गांधी जी का महान व्यक्तित्व सब पर हावी है क्या खूबी थी उनमे दृढ़ता की मूर्ती थे बाबू किन्तु अल्पग्य  उनका नाम "मज़बूरी" के साथ जोड़ते तो लगता है की हम कितने कृतघ्न हो गए . 
बापू अब एक ऐसे दीप स्तम्भ होकर रह गए हैं जिसके तले  घुप्प तिमिर  में पल रहा है विद्रूप भारत . उसका कारण है कि बापू को जानते तो सब हैं पहचानने वाले कम हीं है. 
मुझे सबसे ज़्यादा आकृष्ट करती है कि बापू के साथ केवल सत्य है जो एक बच्चा बना आगे आगे चल रहा है. सोचिये क्या आज का नेता अफसर,पत्रकार,विधि-विज्ञानी, बापू का ऐसा साथी बनाना चाहता है. कदापि नहीं . 
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आज सबको सिगमेंट में जीने की आदत है कहीं कोई बिहार में कोई महाराष्ट्र में तो कोई छतीसगढ़ में जी रहा है ..... कहीं कोई जाती में तो कोई धर्म में तो कोई वर्ग में ज़िंदा है. मुझे कोई नहीं मिलता "भारत" में जीने वाला.  बताइये बापू किसे साथ रखगें अपने साथ .
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मेरे शहर के पूर्व महापौर गांधी जयंती की पूर्व संध्या पर खबर रटाऊ केबल समाचार को इंटरव्यू दे रहें हैं कि बापू की मूर्ती न लगाए जाने का विरोध बहुत क्रांतिकारी तरीके से करते नज़र आ रहे हैं ............ बापू आपकी "अहिंसा" आपके बाद  इन लोगों ने आपकी भस्मी के साथ पवित्र नदियों में विसर्जित कर  दीं हैं .... आपकी सहयात्री दंडिका का दुरुपयोग ये अच्छी तरह से करना सीख गए बापूजी .
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बापू, सच तुम कितने साहसी थे सत्य  का सफ़ेद झक्क लिबास, फ़ोटू में आपकी लकड़ी पकड़ा बच्चा, सच तुमको हर बच्चा खोज रहा है. एक ने मेरे बच्चों को बताया भी कि वो आज़ का गांधी है.. हो सकता है भरम हो गया हो. किसी भी बच्चे ने उसे बापू न माना. मानते भी क्यों बापू तुम क्या हो उन बच्चों की नज़र में सभी को मालूम है. वे किताबों के ज़रिये तुम से मिल आते हैं अक्सर तो किसी को बापू क्यों मानें. बहरहाल आज़ तुम्हारे जन्म दिन पर मैं तो बस एक ही गीत गाऊंगा 
वैष्णव जन तो 

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