30.8.11

30.08.2011 : और टोपी पहना ही दी अन्ना जी ने

ज़ीरो से हीरो तक सबके दिमाग में अन्ना इस क़दर हावी हैं कि कुछ लोग इस स्थिति को मास हिस्टीरिया कहने से परहेज़ नहीं कर रहें हैं. सबका अपना नज़रिया है आप और हम समय का इंतज़ार करते हैं . बहरहाल अभी तो एक चर्चा गर्म है "अन्ना की टोपी " अन्ना जी ने जिस दबंग तरीके से टोपियां पहनाईं है उसे देख कर दुनियां भर के सियासत दां सकते में आ गये. एक सज्जन के  बाल काटते हुए हज़्ज़ाम साब बोले :”अमां, इस बार आपके बडे़ नर्म हैं..?
सज्जन बोले :-मियां,हम ने अन्ना को पहचाना और स्वेच्छा से पहन ली सो  हमारे सो बाल नर्म हुए हैं, उनके पूछो जिनके अन्ना ने जबरन पहनाई है जुबानें तक नर्म हो गईं. 
   यानी अन्ना ने सबको पहना दी..?
"हओ, मियां कुछ ने स्वेच्छा से कुछ ने जबरिया "
               अन्ना  आंदोलन के शुरु होने पर  एक सज्जन टोपी वाले की दूकान पे पहुंचे बोले..टोपी मिलेगी. 
गांधी टोपी ?
न अन्ना टोपी ?
जे टोपी में क्या फ़रक है बाबू ?
फ़रक है .. भाई गांधी की टोपी में कुछ लिखा पढ़ी नाय थी, अन्ना टोपी में "मैं अन्ना हूं" लिखा होए है भाई..
न, वो तो मेरे कने नहीं..
रात घर पहुंचा तो उसने बीवी को वाक़या बताया:"सुन फ़ूला, आज़ एक ग्राहक अन्ना टोपी मांग रिया था "
 "तुम भी कुएं के मैंढक हो , अरे टी वी देखो सब जान जाओगे .. "
 राम लीला मैदान में "मैं अन्ना हूं" लिखी टोपियां ही टोपियां नज़र आई. बस फ़िर क्या था.. टोपी-वाले नें झट अन्ना-टोपी का आर्डर दे मारा . अगली दोपहर तक दूकान पे अन्ना टोपी उपलब्ध है का बोर्ड तक टंग गया. 
       टोपी की कीमत मुंह मांगी हो गई किसी को चालीस  की तो किसी साठ की दर से टोपी थमाता दूकानदार नें लछ्मी-गनेश के पहले "अन्ना-केजरीवाल-किरन" वाले पोस्टर के समक्ष अगरबत्ती जलाना शुरु कर दिया.  
  अन्ना की कृपा से भाई की दूकान पर अब सम्पूर्ण अन्ना-सामग्री उपलब्ध होने का बोर्ड नज़र आने लगा है. 
   मेरे मित्र सलिल समाधिया चेला वह दुकानदार सलिल जी से मिला चरण स्पर्श किये और बोला "गुरु, अगला आंदोलन कब करवा रहें हैं अन्ना..?"
      क्यों..?
  गुरु टोपी झण्डे बच गये हैं.. कुछ टी शर्ट भी.. गनीमत कि मैं टी शर्ट कम लाया था.. 
   वात्सल्य भरी निगाह से शिष्य की ओर अपलक निहारते समाधिया जी  दार्शनिक भाव से  बोल पड़े:-"प्रिय, किसी का नुकसान नहीं किया अन्ना जी ने.. तुम्हारा कैसे होगा.. वत्स प्रतीक्षा करो..?"

2 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

देखिये क्या निकलता है आगे..

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

वत्‍स प्रतीक्षा करो। बढिया है सभी कर रहे हैं।

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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