22.5.11

किसी को धोखा देते वक़्त अक्सर विजेता होते हैं...धोखेबाज़


साभार : जागरण जंक्शन

           अक्सर धोखा देने षड़यंत्र के जाल बुनने वाले अचानक किसी से धोखा खाते हैं तब मढ़ा करते हैं दूसरों पर धोखे बाज़ी के इल्ज़ाम . इन्सानी  फ़ितरत अज़ीब है मेरा एक मित्र कहता है :-"प्राकृतिक-न्याय से कोई नहीं बचता" धोखा देना क्रूरता का पर्याय ही तो है. सियासत कुछ इस तरह हावी है हमारे जीवन क्रम पर कि हम हमेशा दूसरों को हराने की प्रवृत्ति के भाव से भरे पड़े हैं. किसी की जीत को नकारात्मक भाव से देखना या यूं कहूं कि किसी की जीत में अपनी पराजय का एहसास करना आज़ का  जीवन-दर्शन बन चुका है. सभ्य समाज समय के उस मोड़ पर आ चुका है जहां से अध्यात्मिक-चेतनाएं असर हीन हो गईं हैं .गाहे बगाहे सभी किसी न किसी  धोखे का शिकार होते हैं.कौन कितना पावन है कहना मुश्किल है. मुझे तो मालूम है कि मेरी आस्तीनों में धोखे़बाज़ भरे पड़े हैं आप भी इस मुग़ालते में न रहना कि आप के इर्द गिर्द वाले सभी अपने हैं.
    ईसा मसीह सबसे अच्छा उदाहरण हैं , सियासत में तो अटे पड़े हैं उदाहरण पर इनका ज़िक्र ज़रूरी नहीं क्यों कि धोखा सियासत का मूलभूत तत्व है. 
   हां चलते चलते एक बात याद आ रही है  आमजीवन को धोखा देते लोग हमेशा ज़रूरत मंद हों यह ज़रूरी नहीं आप जानते हो आपको धोका दे रही है सियासत,व्यवसायिकता,और धर्म के स्वयम्भू अगुए... ये सारे के सारे आपके पीछे अदृश्य सलीब लिये फ़िर रहें हैं कभी कभार इनको गौर से देखना ज़रूरी है.         
          

5 टिप्‍पणियां:

Patali-The-Village ने कहा…

बिलकुल सही कहा है आप ने| धन्यवाद|

Udan Tashtari ने कहा…

सही कहा

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

हमने तो आस्‍तीनों में ही नहीं अपने चारों तरफ मजमा लगा रखा है और बेपरवाह रहते हैं।

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

डा० साहिबा
सादर अभिवादन
ये तरीका भी रास आया
Patali-The-Village
समीर जी
आप दौनों का आभार

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

धोखेबाज़ी की अच्छी व्याख्या की है आपने...

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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