14.5.11

एक आंदोलन जो जी न सका

अजन्मा आंदोलन 
अबोध विचारों के
के बीच के आकर्षण से
गर्भस्त हुआ
गर्भ में ही 
मारा गया 
हां ऐसा होना तय था 
आंदोलन का भ्रूण
विग्रह और स्वापेक्षी आग्रह के   
निषेचन का परिणाम हो
तब अक्सर ऐसा ही होता है..!!
यक़ीन आया
हर कोई गांधी सा 
न सुभाष सा, न ही अन्ना सा 
प्रेरक कैसे हो सकता है
 रंगे सियारों की 
अधीनता मत स्वीकारो 
अपनी अपनी रीढ़ में शक्ति भरो
अपना संकल्प खुद करो
उठो जागो
अभी भी कुछ नहीं हुआ है
उतार फ़ैंको 
कवच 
आओ साथ मेरे 
बिना किसी को अनदेखा कर
हम करतें हैं
एक नई शुरुआत
पहले अपने झुण्ड में 
जहां रंगे-सियार न हों








2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा!!!

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

जहां रंगे-सियार न हों
बहुत उम्दा!!!

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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