4.4.11

संजीव 'सलिल' की एक रचना: बिन तुम्हारे...


बिन तुम्हारे सूर्य उगता, पर नहीं होता सवेरा.
चहचहाते पखेरू पर डालता कोई न डेरा.


उषा की अरुणाई मोहे, द्वार पर कुंडी खटकती.

भरम मन का जानकर भी, दृष्टि राहों पर अटकती.. 



अनमने मन चाय की ले चाह जगकर नहीं जगना.

दूध का गंजी में फटना या उफन गिरना-बिखरना..



साथियों से बिना कारण उलझना, कुछ भूल जाना. 

अकेले में गीत कोई पुराना फिर गुनगुनाना..



साँझ बोझिल पाँव, तन का श्रांत, मन का क्लांत होना. 

याद के बागों में कुछ कलमें लगाना, बीज बोना..



विगत पल्लव के तले, इस आज को फिर-फिर भुलाना.

कान बजना, कभी खुद पर खुद लुभाना-मुस्कुराना..



बिन तुम्हारे निशा का लगता अँधेरा क्यों घनेरा? 

बिन तुम्हारे सूर्य उगता, पर नहीं होता सवेरा.
Acharya Sanjiv Salil

के  ब्लाग ”दिव्य नर्मदा " से 

2 टिप्‍पणियां:

Archana Chaoji ने कहा…

गीत पसन्द आया......शुक्रिया.......

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

संजीव 'सलिल' जी ने मनोभावों को खूबसूरती से पिरोया है। बधाई।

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

Wow.....New

अलबरूनी का भारत : समीक्षा

   " अलबरूनी का भारत" गिरीश बिल्लौरे मुकुल लेखक एवम टिप्पणीकार भारत के प्राचीनतम  इतिहास को समझने के लिए  हमें प...

मिसफिट : हिंदी के श्रेष्ठ ब्लॉगस में