मशाल बाबू नमस्कार। बहुत आनंद आया जी आपसे गिरीश जी की बातें सुनकर। बेलफ़ास्ट के विषय में और वहाँ के साहित्यिक वातावरण के बारे में मालूम पड़ा। हैकिंग बड़ी ख़तरनाक महसूस हुई। गिरीश जी के लिए कल ही अलाव की व्यवस्था कराने का निर्णय हमने और समीरजी ने अभी अभी फ़ोन पर लिया है क्योंकि वे सर्दी से अत्यंत पीड़ित प्रतीत हो रहे हैं। हा हा। लेकिन उनके हर व्यथात्मक सवाल पर आपके जवाब बड़े वाजिब लगे। रही बात काग़ज़ी आँकड़ों की तो आपको ख़बर लगे कि यहाँ हर कामगार याने वो नब्बे रुपए वाला और काम वाली बाई भी मोबाइल अफ़ोर्ड करते हैं जी। कहाँ है हमारा हिन्द ग़रीब ? हा हा। ये सिद्ध है मगर, कि हमारे मशाल बाबू के दिल में अपने वतन के लिए दर्द की मशाल जल रही है और बस यही है तो जज़्बा है, बात है जो इस हस्ती (हिन्दुस्तान) को क़तई मिटने नहीं देती। जनसंख्या के बारे में और खेत और मकान के बारे में तो आपने बहुत ही गंभीर बात कही है। हम भी यही आजकल सोचा करते हैं कि अगामी वर्षों में क्या आदमी छतों पर खेती करेगा ? बहुत उम्दा मशाल साहब और गिरीश जी का बहुत बहुत धन्यवाद। शुभ रात्रि। शब्बाखै़र। अरे भा
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में।
शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी
छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन
सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर
2 टिप्पणियां:
bahut hi badiya lagi vaarta
मशाल बाबू नमस्कार। बहुत आनंद आया जी आपसे गिरीश जी की बातें सुनकर। बेलफ़ास्ट के विषय में और वहाँ के साहित्यिक वातावरण के बारे में मालूम पड़ा। हैकिंग बड़ी ख़तरनाक महसूस हुई। गिरीश जी के लिए कल ही अलाव की व्यवस्था कराने का निर्णय हमने और समीरजी ने अभी अभी फ़ोन पर लिया है क्योंकि वे सर्दी से अत्यंत पीड़ित प्रतीत हो रहे हैं। हा हा। लेकिन उनके हर व्यथात्मक सवाल पर आपके जवाब बड़े वाजिब लगे।
रही बात काग़ज़ी आँकड़ों की तो आपको ख़बर लगे कि यहाँ हर कामगार याने वो नब्बे रुपए वाला और काम वाली बाई भी मोबाइल अफ़ोर्ड करते हैं जी।
कहाँ है हमारा हिन्द ग़रीब ? हा हा।
ये सिद्ध है मगर, कि हमारे मशाल बाबू के दिल में अपने वतन के लिए दर्द की मशाल जल रही है और बस यही है तो जज़्बा है, बात है जो इस हस्ती (हिन्दुस्तान) को क़तई मिटने नहीं देती। जनसंख्या के बारे में और खेत और मकान के बारे में तो आपने बहुत ही गंभीर बात कही है। हम भी यही आजकल सोचा करते हैं कि अगामी वर्षों में क्या आदमी छतों पर खेती करेगा ?
बहुत उम्दा मशाल साहब और गिरीश जी का बहुत बहुत धन्यवाद। शुभ रात्रि। शब्बाखै़र।
अरे भा
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