22.12.10

पराजित होती भावनाएं और जीतते तर्क


मानव जीवन के सर्व श्रेष्ट होने के लिये जिस बात की ज़रूरत है वो सदा से मानवीय भावनाएं होतीं हैं.  किंतु आज के दौर में जीवन की श्रेष्ठ्ता का आधार मात्र बुद्धि और तर्क ही है न कि हृदय और भावनाएं.....!!
   जो व्यक्ति भाव जगत में जीता है उसे हमेशा  कोई भी बुद्धि तर्क से पराजित कर सकता है. इसके सैकड़ों उदाहरण हैं.
बुद्धि के साथ तर्क विजय को जन्म देते हैं जबकि हृदय भाव के सहारे पाप-पुण्य की समीक्षा में वक्त बिता कर जीवन को आत्मिक सुख तो देता है किंतु जिन्दगी की सफ़लता की कोई गारंटी नहीं...
    जो जीतता है वही तो सिकंदर कहलाता है, जो हारता है उसे किसने कब कहा है "सिकंदर"
                                                आज़ के दौर को आध्यात्म दूर  करती है  बुद्धि जो "स-तर्क" होती है यानि सदा तर्क के साथ ही होती है और  जीवन को विजेता बनाती है, जबकि भावुक लोग हमेशा मूर्ख साबित होते हैं.जीवन है तो बुद्धि का साथ होना ज़रूरी है. सिर्फ़ भाव के साथ रिश्ते पालने चाहिये. चाहे वो रिश्ते ईश्वर से हों या आत्मीयों से सारे जमाने के साथ भावात्मक संबन्ध केवल दु:ख ही देतें हैं. भावात्मक सम्बंध तो हर किसी से अपेक्षा भी पाल लेतें हैं  अपेक्षा पूर्ण न हो तो दु:खी हो जाते हैं. जबकि ज़रूरी नहीं कि आपसे जुड़े सारे लोग आपके ही हों ? 
आप मैं हम सब जो भावों के खिलाड़ी हैं .... बुद्धि का सहारा लें तो हृदय और जीवन दोनों की जीत होगी 

9 टिप्‍पणियां:

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

sundar vichar

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

यह विषय ऐसा है कि इसे किसी भी तरह समझाया जा सकता है। कभी लगता है कि जिस के पास केवल भावनाएं हैं वह सुखी रहता है। जब तर्क आने लगता है तब वह निष्‍पाप नहीं रहता।

Archana Chaoji ने कहा…

चिंतन .....जारी है ...

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

नो कमेन्टस क्योंकि मुझे इन मामलों में कुछ समझ नहीं आता...

निर्मला कपिला ने कहा…

सार्थक चिन्तन। बधाई।

Sushil Bakliwal ने कहा…

ये तो दिल और दिमाग का रिश्ता है और समझदार लोग दिमाग को आगे रखकर ही जीते हैं ।

शिवम् मिश्रा ने कहा…


बेहतरीन पोस्ट लेखन के लिए बधाई !

आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - पधारें - पराजित होती भावनाएं और जीतते तर्क - सब बदल गए - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा

अनुपमा पाठक ने कहा…

सार्थक चिंतन!

Rahul Singh ने कहा…

वस्‍तुतः भावना और तर्क के उचित समन्‍वय से ही सफलता और संतुष्टि मिलती है.

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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