24.5.10

आंचल के आंचल का अमिय

http://www.uplyme.com/images/pre-school-picture-2.jpgड्राईंग रूम दीवारों दाग बना रही अपनी बेटी को चाक देते वक्त  आंचल ने सोचा न था कि अनिमेष उसे  अचानक रोक देगा , अनिमेष का मत था कि घर को सुन्दर सज़ा रहने दो आने जाने वाले लोग क्या कहेंगे ?
”कहने दो, मुझे परवाह नहीं, बच्ची का विकास अवरुद्ध न हो ”
"भई, ये क्या, तुम तो पूरे घर को "
"हां, अनिमेष मैं अपनी बेटी के विकास के रास्ते तुम्हारी मां की तरह रोढ़े न अटकाने दूंगी समझे..?"
अनिमेष को काटो तो खून न निकले वाली दशा का सामना अक्सर करना होता था, उसे अच्छी तरह याद है मां ने पहली बार अक्षर ज्ञान कराया था उसे तीलियों के सहारे. ड ण आदि के लिये रंगीन  ऊन का अनुप्रयोग करने वाली तीसरी हिन्दी पास मां के पास दुनियादारी गिरस्ती के काम काज़ के अलावा भी पर्याप्त समय था हम बच्चों के वास्ते. आंचल के आंचल में अमिय था  किन्तु वक्त नहीं  तनु बिटिया के पेट  में बाटल का दूध ............उसका विरोध करना भी हमेशा अनिमेष को भारी पड़ता था. आंचल का जीवन बाहरी दिखावे का जीवन   था. उसे मालूम था कि किसी भी तरह अपनी स्वच्छन्दता को कायम रखेगी  आंचल !
तर्क का कोई मुकाबला न कर पाना अनिमेष की मज़बूरी थी सो आज़ उसने अपनी बिटिया को मां के रूप में वक्त देना शुरु कर दिया.
जब वीमेन्स-क्लब-मीटिंग से आंचल जब लौटी तो देखा बिटिया माचिस की तीलियों से  A ,B ,C ,D , लिख रही है,
किसने बताया बेटे ?
पप्पा ने
गुड
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समय का चक्र आगे चला चलना ही था . तनु के  विकास का चक्र  रुका नहीं . चाईल्ड सायकोलाज़ी पर धुआंधार भाषण दे रही आंचल की  बेटी तनु अपने लेक्चर में पप्पा के बताये तरीकों का ज़िक्र कर रही थी पूरे भाषण में कहीं भी अपने अवदान का जिक्र न पाकर हताश आंचल के मन की अकुलाहट अनिमेष खूब भली भाँती पढ़ चुके  था. सभा के बाद तनु से मिलते ही बोले ''बेटे, माम कितनी खुश है तुम्हारी तरक्की से फिर आंचल  के  कांधे पर हाथ रखके जोर से बोले :-''वाह, माँ हो तो तुम्हारे जैसी जिसने सब कुछ सिखाया और श्रेय मुझे दिला दिया.'' पिता का यह वाक्य आँचल के अंतस में उतारा झट माम से लिपट गई लोग भी आँचल की और सम्मान से देख रहे थे.
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7 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया लगा..

दीपक 'मशाल' ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन लघुकथा सर जी.. बहुत पसंद आयी.. समर्पण में जो आनंद है वो और कहाँ..

honesty project democracy ने कहा…

रोचक और प्रेरक प्रस्तुती / आप दिल्ली के ब्लोगर सभा में क्यों नहीं आये ? अगली सभा जल्दी ही होगी और उसकी सूचना दस दिन पहले आप तक पहुँच जाएगी ,आइयेगा जरूर /

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

परम आनद है समर्पण में... लघुकथा के रूप में खूब कही आपने.

alka mishra ने कहा…

इस कहानी के माध्यम से आपने आँचल पर बहुत तीखा वार किया है,ऎसी कहानियों की जरूरत है आधुनिक माताएं अपनी सबसे बड़ी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ रही हैं .नतीजा देश की भावी पीढी के संस्कार अधर में हैं

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

वास्तव में यहां तबादलों का सीजन चल रहा है हम बस उसी में बिज़ी हैं दिल्ली हमसे दूर नही जी

हर्षिता ने कहा…

रोचक प्रसंग उठाया है आपने।

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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