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मेरे बारे में
- बाल भवन जबलपुर
- जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर
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16 टिप्पणियां:
कौन बेहतर है, और कौन बेहतर नहीं। इसका प्रमाण पत्र, एक बेहतर व्यक्ति दे सकता है, दूसरों का मूल्यांकन करना खुद को स्वयं जज घोषित करने की बात है।
let's ignore personal conflicts...
आपने जैसा महसूस किया, वैसा कहा और मुझे संबल प्रदान किया. आपके स्नेह से अभिभूत हूँ. स्नेह बनाये रखिये. बहुत आभार.
एक अपील:
विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.
-समीर लाल ’समीर’
बहुत अच्छे
कौन बेहतर है, और कौन बेहतर नहीं।
meri hisaab se
blogjagat me sabhi behtar hai....
इस पोस्ट के लिये आपका आभार. इस जबलपुरिया हीरे को ज्ञानदत्त ने कोयला साबित करने की घिनौनी कोशीश की है. आप इस घिनौनी और ओछी हरकत का पुरजोर विरोध करें. हमारी पोस्ट "ज्ञानदत्त पांडे की घिनौनी और ओछी हरकत भाग - 2" पर आपके सहयोग की अपेक्षा है. कृपया आशीर्वाद प्रदान कर मातृभाषा हिंदी के दुश्मनों को बेनकाब करने में सहयोग करें.
-ढपोरशंख
आज साफ हो गया कि ज्ञानदत्त पांडे के कद और सोच में कितना बौनापन है.
मानसिक हलचल या फिर मानसिक विचलन?
समझ नहीं आया कि इस पोस्ट से वे क्या साबित करना चाहते थे?
क्या ऎसा सच मे कुछ है जिस पर इतना बखेडा .
बिल्कुल सही लिखा आपने। अरे ज्ञानदत्त जी है कहां कोई खोजो भाई उनको। मैंने सुना है कि वे कल शाम से गंगा किनारे किसी साधु से मिलने गए थे तब से लौटे नहीं है। वैसे उनकी शिकायत रेलवे के तमाम बड़े अफसरों को भी भेजी जा रही है। जो शख्स वैमनस्यता फैलाने का काम करता हो वह भला अपने आसपास का माहौल तो ठीक रहने ही नहीं देता होगा।
कौन कहे की राजा आपन ....(दूकान) ढांप लो... अब खुल गयी है तो सारी दुनिया देख रही है ... जब तक हलचल मानसिक होती है लोग भांप नहीं पाते ... लेकिन जब हलचल जुलाब का रूप ले लेती है तो कंट्रोलय नहीं होता और अंततः दुनिया नाक बंद कर लेती है ... ताज़ी हवा में सांस लेना ही मेरी मंशा है ... सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे भवन्तु निरामया ... गंगा मैया सद्बुद्धि दें
जी कहां राजा भोज कहां ........?
काहे की बराबरी
अब भैया जी अर्थ निकालिये
धीरू भैया
इस बात की समीक्षा पूरा ब्लाग जगत कर रहा है
प्रयोग अच्छा है..
दीपक भाई किसका पाण्डे जी का हा हा हा
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