राष्ट्र वादी विचार धारा के पोषक अंतर जाल के महत्वपूर्ण लेखक सुरेश चिपलूनकर से हुई बात चीत दो भागों में पेश है
भाग दो
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एक
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Wow.....New
धर्म और संप्रदाय
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18 टिप्पणियां:
अरे! वाह! सुरेश जी से मिलकर बहुत अच्छा लगा.......
बिलकुल सही कहा सुरेश जी..ने.....ब्लॉग्गिंग का मतलब बच्चन, अमर या फिर मनोज बाजपेयी ...
आपने बिलकुल सही कहा पाबला जी के साथ हादसा ही हुआ....
Subscription की बात बिलकुल सही कही सुरेश जी ने.......
बिलकुल सही ....हिंदी के अखबार.... ब्लॉग्गिंग को समझ ही नहीं पाए.....सब एहसान ही कर रहे हैं........
महफूज़ भाई
शुक्रिया
आप भी तैयार रहिये
आनन्द आ गया सुरेश भाई के विचार जान कर और वो भी उनकी आवाज में. :)
i congratulate u for taking all this pain and conveying Suresh Chiplunkar's voice to bloggers.
बढ़िया लगा चिपलूनकर जी को सुनना.. थैंक्स..
बुकमार्क किया है. शांति से सुनने लायक है. प्रतिक्रिया की प्रतिक्षा करें.
सुरेश जी को पोस्टकाड पर सुनकर अच्छा लगा.
@ महफूज़ अली said...
बिलकुल सही ....हिंदी के अखबार.... ब्लॉग्गिंग को समझ ही नहीं पाए.....सब एहसान ही कर रहे हैं........
भाई ब्लोग और अखबार बिल्कुल अलग माध्यम है. मुझे दिक्कत उन ब्लोगर से है जो अखबार मे छपे अपने लेखो की कतरन से ब्लोग को सजाते है. बिल्कुल नये और पहचान के लिये जूझ रहे ब्लोगर का ऐसा करना फिर भी समझ आता है. अखबारो मे छपने को ब्लोग की गुणबत्ता का सूचक ना माने. ब्लोग एक नयी दुनिया है और यहा का हिसाब यही हो. कुछ याद आ रहा है - -
राज भवन उस ओर यहा तुम नूतन पेड लगाओ
स्वर्ग आरती लेकर आये ऐस विश्व रचाओ
( भूमिजा से )
http://sharatkenaareecharitra.blogspot.com/2010/02/blog-post_2415.html
मुझे उस दिन का इन्तेजार रहेगा जब महफ़ूज भाई के किसी अखवारी लेख के नीचे लिखा होगा कि लेखक मशहूर ब्लोगर है और इनके ये ब्लोग है.
बातचीत अच्छी लगी।
स्कैवटिंग पर आपकी टिप्पणी देखकर हरिशंकर परसाईजी की ये बात याद आयी।
लोग कहते हैं कानून अंधा होता है लेकिन वह अंधा नहीं काना होता है-एक ही तरफ देखता है- हरिशंकर परसाई
उस मसले पर जो कहा गया वह विकिपीडिया और नेट पर जो
उपलब्ध है उसके आधार पर कहा गया। उस पर बातों को और धमकी को सम्पूर्णता में न देखकर अपने-अपने हिसाब से तथ्य उठाकर निष्कर्ष ठेले जा रहे हैं लोग!
बलिहारी है आपकी भी।
बहुत सुन्दर सुरेश जी !
सुरेश जी के विचार जान कर अच्छा लगा, धन्यवाद
अच्छी लगी बातचीत!
गीत के अंत में सलाम कहा जाना गलत था. अनावश्यक था. जिनके लिए कहा गया है वे लोग इस महान देशभक्ति गीत के विरोधी है. जिन्हे विरोध नहीं है उन्हे फर्क नहीं पड़ता. सलाम कहें या वन्दे....
वर्तमान मुद्दों पर आमने सामने सुनना जोरदार है.
सुरेश जी से आपकी यह प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी, आपको और उन्हे बधाई
उनकी बातो पर गौर और मनन किया जाना चाहिये।
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