3.8.09

समाज में बदलने को कुछ बाक़ी नहीं है...?....

विश्व की अधिकाधिक आबादी जिस मूल्यहीनता से गुज़र रही है उसके लिए कितने भी प्रयास कियें जावें मुझे नज़र नहीं आ रहा की कोई परिवर्तन आएगा। आज का दौर "आर्थिक-लिप्सा" का दौर है । कुलमिला कर विश्व को अब एक ऐसे श्रीमद्‍भगवद्‍गीता की ज़रूरत है जो विश्व की इस गन्दगी को समाप्त । केवल और केवल धन की लिप्सा से मुक्ति के लिए सार्थक चिंतन की ज़रूरत है आप सोच रहें होंगे इस तरह के प्रवचनों का आज और वो भी इस ब्लॉग जगत में क्यों कर रहा हूँ...? मेरा यह करने का सीधा-साफ़ कारण यह है कि उपदेश,लेखक,विचारक,जों भी आज बाँट रहे हैं चाहे वो कितना भी सर्व-प्रिय,है शुद्ध व्यापारी नज़र आता है मुझे। इन सभी को आत्मसंयमयोग के स्मरण/अनुकरण की ज़रूरत है।
ओशो ने भी कहा है ""यह भी हो सकता है कि आदमी अंधा हो और अपने को जानता हो तो वह आँख वाले से बेहतर है। आखिर तुम्हारी आँख क्या देखेगी? उसने अंधा होकर भी अपने को देख लिया है। और अपने को देखते ही उसने उस केंद्र को देख लिया है जो सारे अस्तित्व का केंद्र है।
"
इन मुद्दों पर विचार करना ज़रूरी है।
यदि अब भी इस और ध्यान नहीं दिया तो कल हम कह देंगें:-"समाज में बदलने को कुछ बाक़ी नहीं है...?..."

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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