उडन तश्तरी ....: रोज बदलती दुनिया कैसी... को पड़कर याद सी आ रही है अशोक चक्रधर की वो कविता जिसमें आम आदमी को दूसरे के मन की बात पड़ने की शक्ति मिल जाती है । कैसे कैसे मजेदार सीन उभारतें हैं उस कविता चकल्लस वाले भैया जी ........!
मैँ गंभीर हो गया हूँ इस मुद्दे पर डर भी लग रहा है सरकारी आदमीं हूँ रोज़िन्ना झूठ की सेंचुरी मारने के आदेश हैं इस सिस्टम के......?
सो सोचा रहा हूँ कि व्ही0 आर0 एस0 ले लूँ....?
वो दिन दूर नहीं जब तकनीकी के विकास के की वज़ह से लाईडिटेक्टर मशीन,ब्रेन-मेपिंग मशीन,आम आदमी की ज़द में आ सकती है और फ़िर सतयुग के आने में कोई विलंब न होगा ।
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