2 अक्तूबर ....
2 अक्तूबर 1869 .... गांधी एक चिंतन के सागर थे गांधी जी को केवल समझाया जाना हमारे लिए एक कष्ट कारक विषय है सच तो यह है की "मोहन दास करम चंद गांधी को " समझाने का साधन बनाने वालों से युग अब अपेक्षा कर रहा है की वे पहले खुद बापू को समझें और फिर लोगों को समझाने की कोशिश करें. महात्मा गाँधी की आत्मकथा के अलावा उनको किसी के सहारे समझने की कोशिश भी केवल बुद्धि का व्यापार माना जा सकता है.इस बात को भी नकारना गलत होगा गांधीजी - व्यक्ति नहीं, विचार यही उनके बारे में कहा सर्वोच्च सत्य है . 140 बरस बाद भी गांधी जी का महान व्यक्तित्व सब पर हावी है क्या खूबी थी उनमे दृढ़ता की मूर्ती थे बाबू किन्तु अल्पग्य उनका नाम "मज़बूरी" के साथ जोड़ते तो लगता है की हम कितने कृतघ्न हो गए . बापू अब एक ऐसे दीप स्तम्भ होकर रह गए हैं जिसके तले घुप्प तिमिर में पल रहा है विद्रूप भारत . उसका कारण है कि बापू को जानते तो सब हैं पहचानने वाले कम हीं है. बापू की यह तस्वीर मुझे सबसे ज़्यादा आकृष्ट करती है कि बापू के साथ केवल सत्य है जो एक बच्चा बना