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“सूक्ष्म-पूंजी निर्माण में विफलताएं :कुछ कारण कुछ निदान ”

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 विकासशीलता का सबसे बड़ा संकट “आय अर्जक का उत्पादकता में सहभाग न करना सकना ” है . अर्थात औसत आय अर्जित करने वाला कोई भी व्यक्ति अपने धन को पूंजी का स्वरुप देकर स्वयं के स्वामित्व में रखने असमर्थ है. जबकि भारतीय मान्यताओं के प्रभाव से उसकी अपेक्षा बचत के लिए प्रेरित तो करती है परन्तु परिस्थितियाँ आय-अर्जक के सर्वथा विपरीत होती है .      “ भारतीय वैदिक जीवन प्रणाली में जीवन में “अर्थ-धर्म-काम-मोक्ष” का भौतिक अर्थ !” अर्थ को सर्वोपरी रखते हुए जीवन के प्रारम्भ में ही नागरिक को अर्जन करने का संकेत स्पष्ट रूप से दिया गया है ... कि आप अपनी युक्तियों, साधनों, एवं पराक्रम (क्षमताओं  एवं स्किल ) से धन अर्जन कीजिये . जो आपके धर्म अर्थात सामाजिक-दायित्वों के निर्वहन जैसे परिवार-पोषण, सामाजिक दायित्वों के निर्वहन – दान, राजकीय लेनदारियों जैसे कर (टेक्स) , लगान  आदि का निपटान कीजिये . काम अर्थात अपनी आकांक्षाओं एवं ज़रूरतों  की प्रतिपूर्ति पर व्यय कीजिये, शेष धन को संग्रहीत कीजिये भविष्य की आसन्न ज़रूरतों के लिए और मुक्त रहिये किसी भी ऐसे भय से मोक्ष का भौतिक तात्पर्य सिर्फ यही  है. यहाँ अध्य