भारत रत्न पंडित बिस्मिल्लाह खान को नमन



        25-26 जून 2019 की रात मैं बिस्मिल्लाह खां के बारे में सोच रहा था....अचानक जाने कहां से मेरे  सामने बिस्मिल्ला खां साहब नमूदार हो गए मेरे ज़ेहन में...? मेरी दृष्टि में हर कलाकार गंधर्व होता है । जो कहीं भी कभी भी आ जा सकता है और इन गंधर्वों के बारे में कुछ भी कहना उस निरंकार सत्ता पर सवाल उठाना मेरे जैसे अदना लेखक के लिए तो ठीक वैसा ही है जैसे सूरज को लालटेन दिखाकर यह बताना कि तुम इस रास्ते से चलो...!
   सुधि पाठक जानिए कि बिहार के किसी गांव में 21 मार्च 1913 को जन्मे उस्ताद बिस्मिल्लाह खां साहब के बारे में लिखने के बात मैंने  शीर्षक यानी आलेख टांगने की खूंटी खोजी ।   मैंने पंडित बिस्मिल्लाह खान लिखा है कट्टर पंथी मुझ पर निशाना साधेंगे  पर जानते हो आप हमने ऐसा क्यों किया उस्ताद को पंडित लिखा ? ऐसा इसलिए किया  क्योंकि जब मैं शीर्षक लिखने के बारे में सोच रहा था तो यह सोचा कि नहीं वे मज़हबी एकता यानी असली सेक्युलरिज्म के सबसे बड़े पैरोकार आईकॉन हैं । उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के गुरु उनके नाना अली बख्श साहब हुआ करते थे और भी गंगा के पंच घाट के पास बनी एक कोटरी में रियाज किया करते थे । अली बख्श साहब के बेटे भी उस वक्त शहनाई बजाया करते थे । एक बार मामू ने बिस्मिल्लाह खान साहब से कहा - जब तुम्हें कोई खास नजर आए तो उसका जिक्र किसी से ना करना । 12 साल  के बिस्मिल्लाह खान को यह बात समझ में ना आए और कुछ दिनों के बाद जब वे रियाज कर रहे थे तो उन्होंने बनारस के घाट पर किसी साधु को देखा और मैं साधु बिस्मिल्लाह खान साहब से शहनाई बजाने की जिद कर रहे थे पता नहीं क्यों बिस्मिल्लाह खान शहनाई नहीं बजाई । और यह बात  मामू  से कह दी मामू जो उनके गुरु भी थे ने कहा तुम्हें याद है ना मैंने कहा था कि कुछ खास देखना तुम मुझे ना बताना किसी को ना बताना चलो कान पकड़ो उठक बैठक लगाओ । गंगा घाट के पत्थरों पर बैठकर मंदिरों में बैठकर रियाज करने वाली बिस्मिल्लाह खान फिर और भी चमत्कारिक अनुभव किए परंतु उन्होंने कभी किसी से शेयर नहीं किया यह अवश्य कहा कि हां मुझे कुछ एहसास हुए हैं जो अलौकिक थे । इस्लाम में मौसिकी पर पाबंदी है किंतु बिस्मिल्लाह खान साहब ने ऐसा कुछ महसूस नहीं किया वे इस बात को साबित करने पर लगे रहे कि संगीत ब्रह्म से मिलने का अर्थात ईश्वर या अल्लाह से मिलने का एकमात्र रास्ता  है । खान साहब यह कहा करते थे अगर दुनिया के हर शख्स को संगीत सिखा दिया जाए तो कोई नहीं लड़ेगा सब शांत और बेहतर जिंदगी जी सकेंगे
     बनारस का यह संत पूरी उम्र हिंदुस्तान का सितारा बनने के लिए रियाज नहीं  करते थे  कि उन्हें ईश्वर यानी अल्लाह का आशीर्वाद हासिल ।  एक पत्रकार ने उनसे जब यह पूछा जी आप तो आप भारत रत्न पा चुके हैं क्यों नहीं आप एक अच्छे से घर में रहते हैं वही पुराना कदीम घर वही बहुत सारे लोग जो उस घर में रहते हैं आप तो कोई अच्छी जगह भी रह सकते थे ?
   सादगी पसंद खान साहब ने जवाब दिया कि - हमें अपने पूरे परिवार को साथ में लेकर चलना है जीना है हमें अपने लोगों के साथ रहना अच्छा लगता है हमारे पूर्वज भी यही करते थे और यही हिंदुस्तान की संस्कृति है ।
      बिस्मिल्लाह खान साहब को पाकिस्तान जाने के लिए भी जाने वालों ने ऑफर किया लेकिन उनका जवाब यह था कि अगर पाकिस्तान ने कोई दूसरा अल्लाह है तो मैं जा सकता हूं अल्लाह मुझे हिंदुस्तान मैं भी वही मदद करेगा जो पाकिस्तान में तो फिर मैं क्यों जाऊं ?
     यकीनन वे अपनी जन्मभूमि के प्रति पूरा सम्मान रखते थे ।
     एक और प्रसंग है जब उनकी एक शिष्या ने उनसे कहा- गुरुजी अब यह फटी लुंगी क्यों पहनते हो अच्छा नहीं लगता भारत रत्न हो जो भारत का सबसे बड़ा सम्मान है ।
     पंडित बिस्मिल्लाह खान ने स्पष्ट किया - बेटी मुझे भारत रत्न इस लूंगी की वजह से नहीं मिला बल्कि मौसिकी की वजह से हासिल हुआ है । ऐसी सादगी पसंद मधुर भाषी गंधर्व ने 21 अगस्त 2006 अपनी देह को त्याग दिया था । 84 साल के सफर में पंडित बिस्मिल्लाह खान को लीजेंडरी आर्टिस कहना बहुत छोटा शब्द होगा इसलिए मैं बार-बार उन्हें गंधर्व कहता हूं जो यह मानते थे कि ईश्वर की सत्ता इस कायनात को ऑपरेट करती है ।
     बनारस की भूमि पर बिस्मिल्लाह खान का होना एक महान घटना थी । बिहार से बनारस अपने वालिद के साथ आकर बसे बिस्मिल्लाह खान ने शादियों में बजने वाली शहनाई को उठाया इतना उठाया इतना उठाया की शहनाई उनके नाम का पर्याय बन गई है । आप जानते हैं जानते ही होंगे कि बिस्मिल्लाह खान की शहनाई शास्त्रीय संगीत उप शास्त्रीय संगीत का बेमिसाल उदाहरण है। आकाशवाणी लखनऊ में जब वे शहनाई के ऑडिशन के लिए बुलाए गए उनके भाई उनके साथ थे लोगों ने जो संगीत के बड़े नामी-गिरामी लोग थे उन्होंने फिराक कत की नजरों से दोनों भाइयों को देखा ऑडिशन लेने वाले प्रोग्राम एक्सिक्यूटिव ने उनका शहनाई वादन सुना और भी स्वर लहरियों में डूबते चले गए इतना ही नहीं लखनऊ के स्टेशन डायरेक्टर को जब यह जानकारी मिली तो उन्होंने भी आकर खान साहब को सुनाओ और यह कहा- क्या बजाते हो ?
    खान साहब को लगाओ की उनसे कोई गलती हुई है तब प्रोग्राम एक्सिक्यूटिव ने कहा सर वे भी आपके शहनाई वादन के मुरीद हो गए हैं निशब्द है अभी केवल इतना पूछ पाए कि क्या बजाते हो इसमें कमी नहीं निकाल रहे हैं ऐसे भोले भाले संगीत के मर्मज्ञ महान कलाकार बिस्मिल्लाह खान को भारत सरकार ने भारत रत्न देखकर ना केवल कला की पूजा की है बल्कि उस वाद्य यंत्र को भी सराहा है पूजा है जो अक्सर दरवाजे तक आज भी हम सीमित रखते हैं शादियों के मौकों पर ।
     कई बार भारत सरकार उनसे पुरस्कार देने के लिए पूछा करती थी कि किसी का भी नाम  सम्मान के लिए प्रस्तावित कीजिए ! खान साहब जानते थे कि सरकार उनसे उनके परिवार के किसी व्यक्ति का नामांकन चाहती है उन्होंने कभी भी ना तो खुद का और ना ही अपने परिवार से किसी का नाम रिकमेंड किया । उन्हें भारत रत्न के अलावा पद्मश्री पद्मभूषण पद्म विभूषण जैसे अलंकार से अलंकृत किया गया किंतु उन्होंने कभी भी अपना नामांकन स्वयं नहीं किया यह एक खास बात उनके साथ रही है । 

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