सावन के तीज त्यौहारों में छिपे सन्देश भाग 01

मध्य प्रदेश के मालवा निमाड़ एवम भुवाणा क्षेत्रों सावन में दो त्यौहार ऐसे हैं जिनका सीधा संबंध महिलाओं बालिकाओं बेटियों के आत्मसम्मान की रक्षा से बाबस्ता है । अक्सर सोचता था कि इन तीज त्यौहारों का कोई न कोई कारण अवश्य ही है । नानी दादी माँ से सुनी कहानी को जैसा समझा उसे आप सुधि जनों तक पहुंचाना मेरी जवाबदारी है सो देखिये ये लोककथा जो दो त्यौहारों को जन्म देती है उद्देश्य साफ है कि समकालीन चिंतक चाहते थे कि नारी के अधिकारों की पुनर्व्याख्या की जावे तथा ग्रामीण भारत की भोली भाली जनता को समझाया जावे  कि सनातन संस्कृति में नारी के अधिकार समान थे । यह पर्व एक सामाजिक पुनर्जागरण के उद्देश्य से शुरू हुआ है अब आप भी देखिए
जिरोती एक बेहद नाज़ुक और अतिसुन्दर बालिका थी । बड़े सुख से पली बढ़ी जिरोती जब युवा हुई तो उसका विवाह एक सुयोग्य वर से कर दिया गया । उसे कोई संतान भी न हुई थी वंश वृद्धि होते देख सास उसे ताने देने लगी ।
जिससे क्षुब्ध होकर जिरोती ने ससुराल छोड़कर मायके वापस जाना तय किया, और एक दिन वो घर से निकल पड़ी ।
श्रमसाध्य पैदल यात्रा से पांवों से खून रिसने लगा तक के चूर बालिका एक पेड़ के नीचे सो गई । उसे मालूम न था कि पास ही एक सांप की बाँबी है । कुछ देर में ही उसे गहरी नींद आ गई ।

बाँबी से निकले साँप ने देखा कि बालिका अकेली पेड़ के नीचे लगभग बेसुध पढ़ी है, और घनघोर जंगल में इंसान का रुकना खतरे से खाली नहीं । साँप को दूर से जानवरों का झुंड आता भी दिखाई दिया । बस साँप ने जिरोती को मन ही मन बहन स्वीकार उसकी रक्षा करना तय कर लिया । और उसके सर पर फन तान कर रक्षक बन गया । जानवर दूर से ही डर के वापस लौट गए ।
अचानक जिरोती की नींद खुली नज़ारा देख घबरा गई । साँप ने उसे समझाया कि - बैण, डरो मत मैं तुम्हारा भाई हूँ तुम्हारी हर मुसीबतों में तुम्हारे साथ नज़र आऊंगा ।
उधर सास जब जागी और घर के बाहर निकली तो आश्चर्य हुआ कि पैरों की सुनहरी छाप देहरी से बाहर जाती देख उसने झट जिरोती जिरोती की आवाज़ लगाई । जिरोती के कमरे में झाँककर देखा तो सास समझ गई कि पक्का *घर की लक्ष्मी थी जिरोती जो उसके तानों से रूठ कर चली गई ।*
गाँव वालों के साथ उन्हीं पदचिन्हों का अनुशरण करते घनघोर जंगल में जा पहुंची । जहां पेड़ पर पंछी खूब चहचहाते नज़र आए । पेड़ स्वर्णिम आभा युक्त था पेड़ का तना चाँदी के खंभे की तरह चमक रहा था जिरोती वहां न थी उसके वैसे ही पैरों के निशान जिस दिशा में जा रहे थे उसी दिशा में सब उसी दिशा में चल पड़े।
उधर अपने आसरा पाने जिरोती पीहर जा पहुंचीं माँ ने बिन बुलाई बेटी को आया देख उसे उल्हाना दिया कि *तुम ससुराल छोड़कर क्यों बिना बुलाए पीहर आ गईं ।*
माँ की बात सुन उसे गहरा विषाद हुआ और वो रोने लगी और इस दुःख से उसकी सांस रुक गई
उधर ससुराल वाले जिरोती के पीहर पहुंचे तथा भाई नाग भी पहुंच गया । जिस दिन जिरोती ने अपने प्राण त्यागे वो सावन की अमावस्या का दिन था जैसे ही बेटी ने प्राण त्यागे वैसे ही पीहर की दीवार पर पुतलियाँ प्रगट हो गईं ।
अब तो सभी को पक्का विश्वास हो गया कि जिरोती कोई देवी ही थी । सब एक साथ चलते चलते जिधर पहुंचे वो तो जिरोती का पीहर था । जहां घर से रोने की आवाज़ें आ रहीं थीं इस बीच जिरोती का मानस भाई सांप भी भीड़ में उपस्थित हो गया ।
साँप कहा - बेटी और बहू घर की लक्ष्मी होती है आप दौनों ने जिरोती को अपमानित किया दुःख दिया । इसी कारण वो आप सबको छोड़कर चली गई अपनी बहन के वियोग में मैं भी बहुत दुःखी हूँ । साँप का आर्त विलाप सुन सभी का मन भारी हो गया । सभी ने शपथ ली कि वे अब न बहू को न बेटी को कभी भी दुःखी करेंगे । तब सांप ने बताया कि हरियाली अमावस्या को आप सब घर की दीवार पर पाँच से सात पुतलियाँ बनाके देवी जिरोती की पूजन करें ताकि इस बात की याद बनी रहे कि किसी बहू या बेटी को दुःख पहुंचाया जावे । साँप लगातार अगले 5 दिन तक वहीं रुका और पॉचवे दिन उसने भी बहन के वियोग में नाग पंचमी के दिन प्राण त्याग दिए ।
सुधि पाठकों हरियाली अमावस्या के पूर्व मालवा निमाड़ और भुवाणा क्षेत्रों में ये स्मृति दिवस *नागजिरोती* के भित्ती चित्र दीवार पर उकेर कर उनकी पूजा की जाती है । तथा घर की बुजुर्ग महिला यह कहानी सबको सुनातीं हैं । देवी जिरोती के चित्र के साथ पुतलियाँ, प्रसूता स्त्री, खेलते बच्चे , अर्थात हर वो वस्तु उकेरी जाती है जो ग्रामीण सुखी जीवन को प्रदर्शित की जाती है । साथ ही नाग देवता के चित्र दीवार पर उकेरे जाते हैं । जो जिरोती के चित्र के ठीक ऊपर बनाए जाते हैं।
नाग देवता की पूजा में चंदन, दूध, सफेद फूल , नारियल, मटर के भुने हुए दाने, जवार की लाई आदि का प्रयोग होता है ।
*यह लोककथा केवल नारी के सम्मान को बढ़ावा देना है साथ ही साथ गृहणियों में खुशहाल परिवार की भावना के चिर स्थाई रखने का प्रयास है साथ ही भित्ती चित्रांकन कर कलात्मक अभिरुचि एवम सृजनात्मकता को अक्षुण बनाने की कोशिश है*
प्रस्तुति :- गिरीश बिल्लोरे मुकुल
girishbillore@gmail.com

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