ज्ञानरंजन जी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
ज्ञानरंजन जी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

17.1.11

ज्ञानरंजन जी करेंगे समीर लाल की कृति ’ देख लूं तो चलूँ’ का अंतरिम विमोचन

प्रवासी समीर अपनी यात्रा को फ़िल्म की तरह देखते हैं  और लिखते हैं लम्बी कहानी जो आकार ले लेती है उपन्यास का जी हां उनने यात्रा के दौरान देखा कि:-"स्कूली बच्चे वहां भी दुकान पर काम करते हैं. वहां भी कोई सिसकता नही बल्कि सोचता है इससे पर्सनाल्टी में निखार आयेगा. " लेखक  सोचता है कि ये वे ही लोग हैं जो भारत  में  ऐसी स्थिति को शोषण की संज्ञा देतें हैं. यदि भारत के बच्चे कामकाज करते हैं तो वो शोषण और पश्चिम में बच्चे काम करें तो उसे पर्सनाल्टी डेवलपमेंट करार दिया जाता है. लेखक यहाँ भारत की परिस्थियों की वकालत नहीं वरन बालश्रम के वैश्वीकरण को गलत साबित करते नज़र आ रहे हैं. यूं तो कई सवाल खड़े करती है यह कहानी बकौल अर्चना चावजी " समीर लाल "समीर" की नई पुस्तक "देख लूँ तो चलूँ" हमें भी अपने आस-पास देखने को मजबूर कर देती है ...सामान्य सी घटना में जिंदगी को बाँधे रखने की क्षमता होती है ..चाहे वो सड़क पर पास से गुजरने वाली किसी गाड़ी के मिरर से दिखती कोई छवि हो या किसी मित्र के घर की पूजा....बचपन से लेकर उम्र की ढलान तक गुजरा हर पल किसी न किसी याद को साथ लिए चलता प्रतीत होता है लेखक को ....ग्रामीण व शहरी किसी भी माहौल को भूल नहीं पाता लेखक" जी इस किताब पर एक लम्बी समीक्षा करना चाहता हूं  किन्तु विस्तार नहीं दूंगा अपनी समीक्षा को तब तक जब तक कि अंतरिम विमोचन नहीं हो जाता और यह विमोचन अधिक दूर नहीं आज जब मैं पोस्ट लिख चुकुंगा तबसे कोई 36 -37  घंटों की दूरी है तब तक शायद इस उपन्यासिका (साहित्यकार भले असहमत हों इस संज्ञा से ) "देख लूं तो चलूँ "   को दो बार पढ भी लूंगा .तो तब तक आप के लिए आपको यह सूचना देना ज़रूरी है कि यह किताब तीन घण्टे के अन्दर पढ़ी जा सकती है. यानी दिल्ली से जबलपुर की सत्रह घंटे की यात्रा में 5.66 बार . और हां आप सभी सादर आमंत्रित हैं अन्तरिम विमोचन पर 
 अंतरिम विमोचन समारोह "देख लूं तो चलूँ "
  • अध्यक्षता : श्री हरिशंकर दुबे
  • मुख्य-अतिथि एवम विमोचन-कर्ता : श्रीयुत ज्ञानरंजन
स्थान : होटल सत्य अशोक जबलपुर,
दिनांक :18/01/2011 सायं : 04:00 बजे 
आग्रह 
महेंद्र मिश्रा,डाक्टर विजय तिवारी ,संजू ,बवाल,प्रेमफर्रुखाबादी, विवेक रंजन श्रीवास्तव ,आनंद कृष्ण,राजेश पाठक प्रवीण, और साथ में हम भी 

23.11.10

ज्ञानरंजन


ज्ञानरंजन जी पर  कल दैनिक-भास्कर में प्रकाशित आलेख के लिए भास्कर-परिवार को हार्दिक शुभ कामनायें एवं साधुवाद
साथ ही श्री राजेन्द्र चंद्रकांत राय जी के प्रति भी आभार सहितअखबार की स्कैन प्रति सादर प्रकाशित

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

Wow.....New

अलबरूनी का भारत : समीक्षा

   " अलबरूनी का भारत" गिरीश बिल्लौरे मुकुल लेखक एवम टिप्पणीकार भारत के प्राचीनतम  इतिहास को समझने के लिए  हमें प...

मिसफिट : हिंदी के श्रेष्ठ ब्लॉगस में