19.1.20

बिना विवेकानंद जी को समझे विश्व गुरु बनने की कल्पना मूर्खता है


100 से ज्यादा वर्ष बीत गए , विवेकानंद को समझने में भारतीय समाज और राजनीति दोनों को ही बेहद परिश्रम करना पड़ रहा है मुझे तो लगता है कि अभी हम समझ ही नहीं पाए कि विवेकानंद  किस मार्ग के पथिक रहे और इस मार्ग पर चलने के लिए उन्होंने भारत सहित विश्व को प्रेरणा दी । अगर ऐसा होता तो विवेकानंद के बताए मार्ग पर हम स्वतंत्रता के पहले से ही चलने लगते और अब तक हम उस शिखर पर होते जिस का आव्हान आज भारत कर रहा है.... विश्व गुरु की धरती पर विश्व गुरु का टैग लगाना बहुत मुश्किल नजर आ रहा है तब 19वीं शताब्दी में स्वामी ने साफ कर दिया था कि कैसा सोचो यह सनातन में साफ तौर पर लिखा है उसके अभ्यास में लिखा है कैसा जिओ इस बारे में स्वामी ने साफ कर दिया था यूरोप की यात्रा से लौटकर जब उन्होंने लोक सेवा का संकल्प लिया और पूरे भारत में एक अलख सी जगा दी थी । भारत में स्वामी के उस सानिध्य को भी अनदेखा किया जिसका परिणाम आप देख रहे हैं । अगर विवेकानंद को समझने की कोशिश अब तक नहीं हुई है तो करना ही होगा बच्चों को इस तरह के पाठ पढ़ाने ही होंगे अब जब यह एलानिया तौर पर कहा जा रहा है कि भारत विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसरित है जैसा आप कह रहे हो नेता कह रहे हैं मुझे लगता है कि बुद्ध कृष्ण महावीर और विवेकानंद को अपने साथ रखें बिना ऐसा कहना भी मूर्खता है । खुले तौर पर यह कह देना चाहता हूं कि हमें सनातन के सार को जो इन महापुरुषों ने हमें दिया है समझ लेना चाहिए खासतौर से विवेकानंद जी को तो समझना बेहद जरूरी है मुझे उम्मीद है कि बिना इन महान हस्तियों को समझे आप एक ही बिंदु पर खड़े होकर व्यायाम शाला में ट्रेडमिलिंग करते हुए नजर आते हैं । भारतीय समाज जिसमें हिंदू मुसलमान सिख ईसाई पारसी आदि आदि मतों को मानने वाले रहते हैं.... सबको स्वामी के बारे में समझना चाहिए नानक भी इसी श्रेणी में आते हैं खालसा पंथ अध्यात्म की वह महत्वपूर्ण वाटिका है जहां बलपूर्वक मानसिकता और व्यवस्था को बदलने के लिए किए जाने वाले प्रयासों को रोकने का संदेश दिया गया है लेकिन ब्रह्म के सार्वभौम होने का ऐलान भी किया है खालसा सैनिक नहीं समाज का धर्म है अक्सर देखता हूं कि अगर कोई दुखी अगर किसी सिख के सामने होता है तो वह सरदार चैन से नहीं रहता जब तक उसका दर्द अपने हाथों से खत्म ना कर दे सरदार व्याकुल रहता है । लेकिन औसत समाज ऐसा नहीं सड़क पर कोई घायल है मदद के हाथ बहुत कम होते हैं और सवाल पूछने वाली जीभों की संख्या असीमित होती है एक ऐसा ही दृश्य 1989 से अब तक हमने देखा कश्मीरी पंडितों और डोगरा लोगों के प्रति हम कितने संवेदित रही हैं । मामला वर्ग संघर्ष का नहीं है मामला मानवता की रक्षा का है अगर आपका पंथ संप्रदाय समूह विश्व के लिए मानवतावादी अप्रोच से काम नहीं करता तो तय है कि भारत विश्व गुरु तो क्या अपने उपमहाद्वीप के लिए आइकॉन भी नहीं बन सकता । उन संकल्पों का क्या हुआ जो सामाजिक न्याय की दिशा में दिए जा रहे थे बस्तों में बांध दी गई हैं ऐसी कोशिशें यहां आप सोच रहे होगे की ओशो की धरती से ओशो को मैंने इस बात में शामिल नहीं किया हां बिल्कुल नहीं किया मैंने तो गांधी को भी शामिल नहीं किया है उसके कारण है गांधी प्रयोग धर्मी  थे । ओशो भी ऐसा ही कुछ करने के गुंताड़े में थे। गांधी के प्रयोग भी समाज को लेकर हुआ करते थे उसने भी वही किया परंतु ना तो अहिंसा का संदेश बेहद प्रभाव से रह पाया और ना ही समाज सुधार की तह में ओशो जा पाए। ऐसा नहीं है कि मैं इनसे सहमत हूं अथवा इन का विरोधी हूं हो सकता है कि आप में से कोई मेरी इस बात का बतंगड़ बना दे क्योंकि सवाल तो आपके जेहन में बहुत हैं आप आरोप भी लगा सकते हैं शाम 5:00 बजे के बाद घर का टेलीविजन लगाओ तो बच्चे लड़ना ही सीखते हैं चीख चीख कर अपने आप को ब्रह्म वाक्यों को प्रतिपादित करने वाला साबित करने वाला साबित कर देते हैं । मित्रों भारतीय दर्शन यह नहीं है । भारतीय दर्शन उत्कृष्टता के लिए श्रेष्ठतम प्रयासों की पहचान करना सिखाता है भारतीय सनातन भारतीय दर्शन है सनातन को धर्म कहने की गलती मत करो सनातन श्रेष्ठतम अध्यात्म है शुरू की पंक्तियों में ही विवेकानंद ने खुले तौर पर अभिव्यक्त कर दिया था भारतीय दर्शन धर्मों की जननी है । विश्वास नहीं हो तू विवेकानंद की अभिव्यक्ति को देख लीजिए यहां क्लिक कर  क्लिक कीजिए  और समझने की कोशिश कीजिए शायद आपकी मदद से भारत विश्व गुरु बन जाए परंतु मुझे मालूम है ऐसा होगा नहीं होगा तो तब जबकि आप दर्शन के मूलभूत तत्व को पहचानेंगे ।
*ॐ राम कृष्ण हरि:*
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

14.1.20

कल्लू का सोशियो-पॉलिटिकल चिंतन : गिरीश बिल्लोरे मुकुल

हमारे कल्लू भाई दिन भर काम धंधे में मशरूफ रहते हैं . सुबह उठते गर्म पानी रखते अपने लिए और दो कप चाय एक खुदके और एक अपनी पत्नी परमेसरी के लिए  बना देते हैं । 
      तब जाकर परमेसरी बिस्तर से बाहर निकलती वह भी ऐसी अंगड़ाई लेते हुए जैसे सपेरे की टोकरी से वह निकलती है  जिसका नाम आमतौर पर हमारे यहां रात में नहीं लेते ।  कल्लू भाई की सुबह  तो यूं ही होती है  । 
      बड़ी मुश्किल परमेसरी रोते झीकते  कलेवा बनाती कल्लू  कलेउ के तौर पर रोटी और अथाना प्याज के साथ निपटा के निकलते और सीधे थोक सब्जी मंडी में जाकर सब्जियां खरीदते फिर.... गली-गली चलाना पड़ता आलू ले लो प्याज ले लो टमाटर ले लो की टेर के साथ  । 
लगभग तीन चार  बजे तक सब्जी बेच के कल्लू भाई ₹500/ -₹600/ तक कमा लेते हैं । 
       उन्हें पेट भरने के लिए इतना पर्याप्त समझ में आता पर हालात तब मुश्किल में आ जाते जब कभी परमेसरी बीमार हो जाती ।  यूं तो वह अक्सर बीमार रहती बीमारी क्या आराम करने की इच्छा हो तो बीमार होने का ऐलान करना परमेसरी की मूल प्रवृत्ति में शामिल है । 
    और इसी के सहारे परमेसरी को  आराम मिल जाता और कल्लू को ओवरटाइम  ।        
कल्लू एक प्रतीक हैं उस निम्न मध्यवर्ग के जिनको सम्पूर्ण विकास का अर्थ नहीं मालूम । अर्थ तो बहुतेरों को भी नहीं मालूम जिनके कांधे पे आज-कल-परसों की ज़वाबदेही है जैसे नेता, मंत्री, संत्री, हीरो हीरोइन, बालक,  किशोर, युवा,  जेएनयू जाधवपुर आदि के छात्र छात्राएं ।
  किसी ने बताया है कि इस साल कल्लू सोच रिया है कि 15 अगस्त नहीं मनाएगा ! उसने टीवी पे देखा लौंडे जिन्ना वाली आज़ादी मांग रए हैं ? गांधी वाली कल्लू के बाप के ज़माने की है वो समझ गया इस बार नई वाली आज़ादी मिलेगी । अरे बच्चे मांग कर रहे हैं तो मिलेगी है न पाठकों ?  
    कोई रैली को विकास मानता है तो कोई आज़ादी को जिन्ना वाली  भी मानने लगे हैं  कल्लू क्या जाने यह दौर भीषण बेवकूफी भरा दौर बस जलाओ पुलिस को गरियाओ सवाल उठाओ ट्रेन फूंको, 
  कल्लू ऐसा नहीं करता वो आंदोलित नहीं वो आदर्श भारतीय है बच्चे के निजी स्कूल की फीस टाइम पर देता है । डाक्टर को फीस देता है भले कर्ज़ा काढ़ के दे देता है । भले ही लोग उसे बेवकूफ समझें 

कल्लू और उसकी बचत
कल्लू 400 से 500 रुपए बचा पाता है । बचत के नाम पर 2500 भी बचाना चाहता है... वो ताक़ि उसका राशिफल सही हो जाए पर न तो बचत होती न ही राशिफ़ल सही निकलता ! 
कल्लू के कुछ दोस्तों ने छपाक कुछ ने देखी तानाजी भी पर उसने नहीं । उसकी यही आदत फ़िज़ूल खर्ची से बचाती है और कमीने मित्र उसे बेवकूफ समझतें हैं । 
       अब बताइए फ़िल्म देखेगा तो उसका पैसा फ़िल्म दिखाने वाले थियेटर मालिक से लेकर प्रोड्यूसर यूनिट में बंट जाएगा । उससे छपाक वाली लक्ष्मी जैसी बेचारियों को क्या लाभ होगा ? कोई चैरिटी थोड़े न कर देगी फिलम कम्पनी बताओ भला ? 
हालांकि कल्लू ने ये सोचके फ़िल्म न देखी हो ऐसा नहीं उसे तो फिल्मी के अर्थशास्त्र अल्फा-बेट भी नहीं मालूम । हमने तो यूं ही लिख दिया ताकि आपको समझ आ जाये 😊 ?
कुल मिलाकर कल्लू की बचत करने की कोशिश की तारीफ करने की कोशिश कर रहा हूँ हमारे मोदी जी बोले थे न मेडिसन-स्कैवर पर हम पर्सनल सैक्टर को विकसित करेंगे ? 
अरे पर्सन अगर बचत करे पाया तो  पूंजी बनेगी, पूंजी बनेगी तो पर्सनल सैक्टर नज़र आएगा पर ये सब भाषण की बातें हैं इन पर अधिक मत सोचो बुद्धू बने रहो कल्लू जैसे । 
और हां आज तो बस इतनी बात जान लो कल्लू फिल्म नहीं देखता है केवल प्रमेसरी और उसका लड़का फ़िल्म देखता है । 

कल्लू का डेमोक्रेसी में योगदान 

           कल्लू मुन्ना चाचा जिसको बोलते उसे वोट दे देता है,उसका एक कारण है ।  हुआ यूँ कि जब से वोट दे रहा है उसका कैंडिडेट हार जाता था । उसे बड़ा दुःख होता , इस दुःख का ज़िक्र उसने मुन्ना चाचा से किया । मुन्ना चाचा ने कहा अबसे हम जिसको कहें उसका ईवी एम बटन दबाना । बस तब से अब तक कल्लू का घोर भरोसा है मुन्नाचाचा पर ।  कल्लू आदर्श निम्न मध्यम वर्गीय भारतीय है ।  जिसे भाषण सुनाई तो देता है पर समझ में नहीं आता ..हाँ उसे पता है जब भी आंदोलन होते हैं तब उसका टैक्स का कुछ रोकड़ जलता है जैसा मुन्ना चाचा बतातें हैं । पर कैसे और क्यों जलता है कल्लू के लिए विचारणीय नहीं । कुल मिला कर कल्लू मस्त लाइफ जी रहा है । उसका बेटा भी सब्जी का ठेला लगाएगा बस और क्या ? कल्लू के बहाने किसको हमने किसको और कितना निपटाया आप खुद समझो मीज़ान लगालो भई ....!

5.1.20

कब होगा अनहक बुलंद, कब राम राज फिर आएगा



हम देखेंगे...!!
अमन ज़वां फिर से होगा, वो वक़्त  कहो कब आयेगा जब
बाज़ीचा-ए-अत्फालों में जब, बम न गिराया जाएगा
कब होगा अनहक बुलंद, कब राम राज फिर आएगा
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे वो दिन, वो दिन जरूर फिर आयेगा .
पेशावर जैसा मंज़र भी , फिर न दोहराया जाएगा
ननकाना जैसा गुरुद्वारों  पर फिर संग न फैंका जाएगा
वादा कर दो तुम हो ज़हीन, शब्दों के जाल न बुनना अब
हाथों में बन्दूक लिए कोई कसाब न आयेगा ..!
आवाम ने जो भी सोचा है,उस पे अंगुली मत अब तू उठा
जब आग लगी हो बस्ती में, तो सिर्फ तू अपना घर न बचा
ख़ल्क़-ए-ख़ुदा का राज यहाँ जहां मैं भी हूँ और तुम भी हो
ये घर जो तेरा अपना है, हमसाये का तारान यहाँ तू न गा ।
गुस्ताख़ परिंदे आते हैं, खेपें बारूदी ले लेकर -
बेपर्दा होतें हैं जब भी तब- बरसाते
अक़्सर पत्थर ।
न ख़ल्क़ वहां, न स्वर्ग वहां, सब बे अक्ली की बातें हैं-
कोशिश तो कर आगे तो बढ़, हर घर ख़ल्क़ हो जाएगा ।।
गिरीश बिल्लोरे मुकुल





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धर्म और संप्रदाय

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