Ad

बुधवार, नवंबर 24, 2010

सर्किट हाउस भाग:-दो

(सर्किट हाउस भाग एक  )
     सुबह सरकारी फ़रमान के मुताबिक विभाग के अपर-संचालक हिम्मत लाल जी की जी अगवानी के लिये दीपक सक्सेना , अब्राहम, सरकारी गाड़ी से स्टेशन पर पहुंच चुके थे  उन सबके पहले एक दम झक्कास वर्दी पर मौज़ूद था.  वो भी गाड़ी .के आगमन के नियत समय  के तीस मिनिट पहले. दीपक  सक्सेना ने लगभग गरियाते हुए सूचित किया :-”ससुरा, अपने दोस्त के बेटे के रिसेप्शन में आया है. ”
अब्राहम ने पूछा :-तो मीटिंग लेगें.. और टूर भी नहीं ?
दीपक:-लिखा तो है फ़ेक्स में पर पर तुम्ही बताओ इतना सब कर पायेंगे. चलो आने पे पता   चलेगा.
 अब्राहम:-हां सर, वो प्रोटोकाल वाले बाबू से रात बात हो गई थी . कमरा नम्बर तीन और पीली-बत्ती वाली  गाड़ी अलाट हो गई है. एस०डी०एम०सा’ब से भी बात हो गई  थी.
 दीपक:- सुनो भाई, तुम बाबू को कुछ दे दिया करो ?  
अब्राहम:-देता हूं सर,
 दीपक:- हां, तो पुन्नू वाली फ़ाईल का क्या हुआ…?
अब्राहम:- सर, हो जाता तो अप्रूवल न ले लेता आपसे.
  इस हो जाता में  गहरा अर्थ  छिपा था. जिसे एक खग ने उच्चारित किया दूजे  खग ने समझा.
 दीपक:-  हां. ये तो है.
 अब्राहम:- सर, कोई मीटिंग नहीं तो चलिये मैं चर्च हो आऊंगा.
 दीपक:-  . अरे, जीजस नाराज़ न होंगें और अगर साहब नाराज़ हुए तो सब धरा रह   जाएगा.
अब्राहम:-  ओ के सर
 दीपक:-  ज़रा, ट्रेन का पता लगाओ ?
अब्राहम:- सर, वो गिरी जी  को भी बुला लेते उसका स्टेशन पर अच्छा परिचय है..?
 दीपक:-  ओह तो तुम्हारा भी ज़वाब नहीं जाओ भाई जिससे मुझे घृणा है तुम तो बस ?
अब्राहम:- सारी सर !
 दीपक:-  आईंदा इस तरह के नामों का उच्चारण वर्ज़ित है.
                              दीपक का चिढ़ना स्वभाविक था. काम धाम का आदमी न था स्साला कमाई धमाई के नाम पे ज़ीरो इधर सर्किट-हाउस और बीवियों के खर्चे इत्ते बढ़े हुये थे कि गोया कुबेर भी उतर आए तो इन दौनों पे लगाम लगाने की ताक़त उसमें नहीं ऊपर से डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट का बढ्ता प्रचार सरकारी अफ़सरों और मुलाज़िमों की तो बस दुर्दशा समझिये. और सुबह सुबह उस नाकारा मरदूद का नाम लेकर सुबह खराब करदी . ज़ायका बिगाड़ू  स्थिति से मुक्ति की गरज़ से अब्राहम डिप्टी एस एस के कमरे में तांक-झांक यूं कर रहा मानो गाड़ी इसी चेम्बर में छुपा के रखी हो.
“बोलिये”
कुछ नहीं सर वो इंदौर-बिलासपुर
भई, इनक्वैरी में पूछिये काहे हमारा टाईम खराब करतें हैं आप…?
विश्वकर्मा जी, मै गिरी साब का मित्र हूं..!
पहले देना था न रिफ़रेन्स आईये बैठिये – डिप्टी एस एस ने कहा.
                          डिप्टी एस एस की आफ़र की गई कुर्सी पर सवार अब्राहम बाहर खड़े यात्रियों को हिराक़त भरी नज़र से निहारने लगा इस बीच  डिप्टी एस एस  ने ट्रेन की पोज़ीशन ली पता चला कि नरसिंहपुर में बार बार चेन पुलिंग होने से  गाड़ी  समय से एक घण्टा लेट हो रही है. अंदर की पक्की खबर मिलते ही अब्राहम तुरंत रवाना हुआ बिना आभार व्यक्त किये .       उधर जिधर ए०सी० डब्बा रुकने के लिये रेलवे ने स्थान  नियत पर दीपक  एक अन्य महिला अधिकारी से गपिया रहा था, जिसका अफ़सर भी इसी से आने वाला था .  
अब्राहम दीपक ने पूरे गब्बर स्टाईल में सवाल दागता है: ”क्या खबर लाये हो ?”
’सर, बस साढ़े छै: के बाद ही आयेगी .
बातों में खलल न हो इस गरज़ से दीपक ने अब्राहम की तरफ़ मुखातिब हो कहा:- ठीक है तो जाओ रामपरसाद को लेकर चाय ले आओ ?
                     लोक-सेवा आयोग इसी टाईप के  क्लास टू अर्दलीयों की भर्ती करता है. जो हज़ूर का हुक़्म सर माथे लगाएं और फ़ौरन कूच करें आदेश के पालन के लिये.
दीपक की तरह कई और अफ़सर अपने अपने अफ़सरों को लेने आये थे जो आपस में दो या तीन के समूह में जन्मभूमि,डायरेक्ट-प्रमोटी,यहां तक कि जाति के आधार पर छोटे-छोटे खोमचों में जमा हो चुके थे, यानी खुले आम क्षेत्रीयता, जातिवाद,और तो और प्रमोटी-डायरेक्ट जैसे वर्ग-भेद का सरे आम प्रदर्शन . क्या कर होंगे मत पूछिये ब्रह्म-मूहूर्त में इन मरदूदों ने   मुख्य प्लेटफ़ार्म पर मातहतॊं और पूर्ववर्ती अफ़सरों और अपने अपने बासों की इतनी  चुगलियां  कीं कि सारा वातावर्ण नकारात्मक उर्ज़ा से सराबोर हो गया.
        (क्रमश:):
.

Ad

यह ब्लॉग खोजें

मिसफिट : हिंदी के श्रेष्ठ ब्लॉगस में