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जी हां एक शरीर से एक लेखक मर गया है उसकी स्मृतियां शेष रह गय़ीं यह मानते हुए अब एक शोक सभा ज़रूरी है विभूति नारायण राय की देह मे रह रहा एक विचारक लेखक दिवंगत हो गया . उनका बयान वास्तव में हिन्दी साहित्य जगत का सबसे घृणित बयान है जिसकी पुनर्रावृत्ति यहां करना मेरे बस की बात तो क़तई नहीं. मैत्रेयी पुष्पा जी ने मोहल्ला लाईव पर जितने भी सवाल विभूति से किये हैं वाज़िव हैं . और उनके पास विभूति नारायण राय सरकारी पुलिसिया जीवन के दौरान सरे आम जिस भाषा का प्रयोग करते रहे उसी का प्रयोग कर रहें हैं. कपिल सिब्बल जी का के आश्वस्त कराये जाने के बावज़ूद अथवा ताज़ा खबरों के मुताबिक उनके माफ़ी नामे के बावज़ूद इनका अपराध कदापि कम नहीं होता. न तो वे साहित्यकार रह गये हैं और न ही अब किसी संवैधानिक पद पर बने रहने का उनको अधिकार ही है. इससे कम पर कोई बात स्वीकार्य नहीं है. साथ ही साथ मेरा अनुरोध यह भी है जिस व्यक्ति को देश में नारी का सम्मान करना नहीं आता उसे साहित्यकार के रूप में स्वीकारना सर्वथा अनुचित ही है. मोहल्ला लाइव पर छपी इस बात को देखिये कि-”कार्रवाई की बात पर मानव संसाधन मंत्री ने कहा कि हम वीसी को बर्खास्त नहीं कर सकते।
।”यदि विभूति नारायण जी स्वयम पानी दार इंसान हैं तो उनको स्वयम ही पद से मुक्ति ले लेनी चाहिये. साथ ही साहित्यिकारों के सूची से ऐसे व्यक्ति का नाम विलोपित करना अब हमारी ज़वाब देही है. आप सोच रहे होंगे कि इतने कठोर निर्णय कैसे लिये जा सकते हैं तो सच मानिये ठीक वैसे ही जैसे एक पागल को शाक ट्रीटमेंट देकर दुरुस्त किया जाता है. ऐसा उपचार ज़रूरी है वरना कल कोई और इतनी ज़ुर्रत कर सकेगा. वैसे एक बार विभूति नारायण जी अपनी लेखिका पत्नि (जो मेरे लिये पूज्य हैं) के बारे में विचार कर लेते तो शायद ऐसा अश्लील शब्द मुंह से न उगल पाते . उनके असभ्य बयान ने साबित कर दिया कि विभूति नारायण राय न तो साहित्यकार थे न हैं न ऐसे लोगों को साहित्यकार का दर्ज़ा दिया जाना चाहिये. आज़ मुझे इतनी पीड़ा हो रही जितनी कि द्रोपदी के चीरहरण के समय समकालीन समाज को हो रही होगी. वैसे विभूति नारायण राय के खिलाफ़ वर्धा थाने में एफ़ आई आर दर्ज़ होना एक ज़रूरी एवम उचित क़दम है . इस एफ़ आई आर के आधार पर उनको पद्च्युत किया जा सकता है.
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