Rejections Acceptance and Success
तुम्हें उस माउंट एवरेस्ट पर देखना चाहता था ,शिखर पर चढ़ने के दायित्व को बोझ समझने की चुगली तुम्हारा बर्ताव कर देता है। इस चोटी पर चढ़ना है रास्ता आसान नहीं है और तो और अवरोधों से भी अटा पड़ा है । कभी किसी पर्वतारोही से पूछो..... वह बताएगा कि बेस कैंप से बाहर निकलो और पूछो कि मैं तुम्हारी चोटी पर आना चाहता हूं । तो पर्वत बताता है कि नहीं लौट जाओ यह आसान नहीं है। पर्वतारोही बताता है कि - दशरथ मांझी ने तो ऐसे घमंडी पर्वत को बीच से चीर दिया था याद है ना...! दशरथ मांझी को कोई कंफ्यूजन नहीं था एवरेस्ट पर चढ़ने वालों को कोई कंफ्यूजन नहीं होता। और जो कंफ्यूज होते हैं उनके संकल्प नहीं होते बल्कि वे खुद से मजाक करते नजर आते हैं। जो लोग दुनिया को फेस करना जानते हैं वही सफलता का शिखर पा सकते हैं। *एक्सेप्टेंस और रिजेक्शन* में ही सफलता के राज छिपे हुए हैं । रिजेक्शन सबसे पहला पार्ट है। सबसे पहले हम खुद को रिजेक्ट करते हैं फिर दो चार लोग फिर एक लंबी भी आपको रिजेक्ट करती है। तब कहीं जाकर भीड़ से कोई आकर कहता है - "*वाह क्या बात है..!*" आइए मैं अपने आप