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Rejections Acceptance and Success

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     तुम्हें उस  माउंट एवरेस्ट पर देखना चाहता था ,शिखर पर चढ़ने के दायित्व को  बोझ समझने की चुगली तुम्हारा बर्ताव कर देता है।      इस चोटी पर चढ़ना है  रास्ता आसान नहीं है और तो और अवरोधों से भी अटा पड़ा है । कभी किसी पर्वतारोही से पूछो..... वह बताएगा कि  बेस कैंप से बाहर निकलो और पूछो कि मैं तुम्हारी चोटी पर आना चाहता हूं । तो पर्वत बताता है कि नहीं लौट जाओ यह आसान नहीं है। पर्वतारोही बताता है कि - दशरथ मांझी ने तो ऐसे घमंडी पर्वत को बीच से चीर दिया था याद है ना...!    दशरथ मांझी को कोई कंफ्यूजन नहीं था एवरेस्ट पर चढ़ने वालों को कोई कंफ्यूजन नहीं होता। और जो कंफ्यूज होते हैं उनके संकल्प नहीं होते बल्कि वे खुद से मजाक करते नजर आते हैं।    जो लोग दुनिया को फेस करना जानते हैं वही सफलता का शिखर पा सकते हैं। *एक्सेप्टेंस और रिजेक्शन* में ही सफलता के राज छिपे हुए हैं । रिजेक्शन सबसे पहला पार्ट है। सबसे पहले हम खुद को रिजेक्ट करते हैं फिर दो चार लोग फिर एक लंबी भी आपको रिजेक्ट करती है। तब कहीं जाकर भीड़ से कोई आकर कहता है - "*वाह क्या बात है..!*"     आइए मैं अपने आप

नीरज चोपड़ा की जीत से सबा नक्वी को तकलीफ हुई है...!

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एक शर्मनाक और दिल को चोट पहुंचा देने वाली टिप्पणी की है सबा नक्वी ने। जी हां और कोई मुद्दा होता तो शायद इन्हें क्षमा भी कर दिया जाता परंतु सबा नक्वी ने नीरज चोपड़ा की जीत खासकर गोल्ड मेडल जीतने पर एक बड़ी अभद्र टिप्पणी की है . देखेंगे क्या लिखती हैं Just the way we are all celebrating one gold shows how starved we were for it.. वे मानती हैं कि हम गोल्ड मेडल के सोने के लिए कितने लालची हैं तभी तो हम जश्न मना रहे हैं। एक पत्रकार टिप्पणीकार विचारक का यह अशोभनीय ट्वीट देख कर बहुत दुख हुआ।   और दूसरी और मैं बहुत खुश हूं इस वतन की हर एक उस इंसान के साथ जो सिर से पांव तक गौरव का अनुभव कर रहा है। हर हिंदुस्तानी के मन में नीरज के लिए सम्मान जाग उठा है। ऐसी हजारों लाखों प्रतिभाएं भारत की गली कूचे मोहल्लों में अब तक अवसर न मिलने के कारण जब जाया करती थी लेकिन आप कुछ वर्षों से उस सुबह का आगाज हो चुका है जो सुबह अपनी उजली किरणों से भारत को रोशन करती है . अवसर तो अब मिल रहे हैं पर समूचे देश में एक प्रभावी खेल नीति की भी जरूरत है। आज सुबह सुबह ट्विटर के स्पेस में चर्चा चल र

चाणक्य की अर्थवत्ता लेखक श्री नमः शिवाय अरजरिया

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          लेखक  नमः शिवाय अरजरिया 【 लेखक श्री नमः शिवाय अरजरिया, मध्यप्रदेश शासन में संयुक्त कलेक्टर के पद पर जबलपुर में कार्यरत हैं । उनकी फेसबुक वॉल से साभार आपकी समीक्षा आर्टिकल प्रस्तुत है ]  चाणक्य नाम मन:पटल पर आते ही मौर्ययुगीन आचार्य विष्णुगुप्त या कौटिल्य का चित्र उभर कर सामने आता है। चणक ऋषि के पुत्र होने के कारण आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य कहलाए। चाणक्य का शाब्दिक अर्थ प्रतीति कराता है- जो चार नीतियों का विशेषज्ञ हो। बुंदेलखंड में आज भी चतुर लोगों को कहते हैं- बड़ा चणी आदमी है। यद्यपि शब्दकोश में इस प्रकार का अर्थ नहीं मिलता परंतु जबलपुर जिले के संस्कृत के प्रकांड पंडित आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी से जब चर्चा की उन्होंने भी चाणक्य के शाब्दिक अर्थ को मेरे मतानुसार पुष्ट किया। अतः इससे यह तो तय होता है कि "चा" यानि चार तथा "नक्य" यानी नीति। इस प्रकार चाणक्य चार नीतियों के विशेषज्ञ के रूप में ही प्रकट होते हैं। चार नीतियां हैं- साम, दाम, दंड एवं भेद। यहां साम का तात्पर्य विनय या प्रार्थना से है। दाम का अर्थ प्रलोभन या लालच से लिया जाता है। गोस्वामी

भाई तो खून का नाता है सिरफ़...! दोस्त वरदान ज़िंदगी के लिए.. !

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*भाई तो खून का नाता है सिरफ़* *दोस्त वरदान ज़िंदगी के लिए.. !*      दोस्ती के नए फार्मूले में भले ही यह कहा हो कि हर एक दोस्त क मीना होता है। परंतु मित्रता एक सदाबहार पर्व है। मैत्री भाव सबसे अलग ऐसा अनोखा भाव है जो सबकी आंतरिक चेतना में पाया जाता है। परंतु यह वो दौर नहीं है । भारतीय इतिहास में मैत्री भाव का सबसे बड़ा उदाहरण कृष्ण और सुदामा मैत्री था। तो भामाशाह और महाराणा प्रताप की मैत्री भाव को कैसे भूला जा सकता है। आपको याद होगा और अगर ना भी हो तो विश्वास कीजिए यही मैत्री भाव राजा दाहिर ने परिभाषित किया था। इस्लाम के अभ्युदय के समय हिंदू राजा दाहिर का बलिदान इस्लाम के प्रवर्तक के प्रति मैत्री भाव का सर्वोच्च उदाहरण है। कवि चंद्रवरदाई और पृथ्वीराज चौहान की अटूट मैत्री विश्व जानता है। यह अलग बात है कि राजा दाहिर के त्याग के बावजूद भारतीय मैत्री भाव का मूल्यांकन आयातित विचारधारा नहीं कर सकी है। भगत सिंह राजगुरु सुखदेव के आत्मउत्सर्ग के आधार पर हुए मैत्री भाव ने देश के सम्मान के लिए क्या कुछ नहीं किया। मैत्री भाव में आयु ज्ञान ओहदा पद प्रतिष्ठा सब कुछ द्वितीयक हो जाती है। मैत्

Story of Mahjabeen Bano | Josh Talks Hindi thanks Narendra Modi ji ............ thanks national balbhavan.......

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  रोंगटे खड़े हो जाएंगे ये कहानी सुनकर | Never Give Up | Mahjabeen Bano | Josh Talks Hindi नेशनल बालभवन की कला साधिका की कहानी जो रुलाती भी है  तो प्रेरणादायक भी है ।  इस बेटी ने दिल्ली में खुद को साबित कर दिया । दिव्यांग महिला मेहजबीन को मुख्तार अब्बास नकवी एवम प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी जो सहृदयता दिखाई शायद उसका गौरव भी आप अवश्य महसूस करेंगे ।

आजाद जबलपुर आए थे...प्रो आनंद राणा

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इतिहास  संकलन समिति महाकोशल प्रांत की ओर से शोध के आलोक जबलपुर के इतिहास में पहली बार यह तथ्य सामने आया कि महा महारथी श्रीयुत चंद्रशेखर आजाद जबलपुर गुप्त प्रवास पर महा महारथी श्रीयुत प्रणवेश चटर्जी के यहाँ आए 🙏🙏.. इस चित्र पंडित जी की शहादत के बाद क्रांतिकारियों ने "आजाद मंदिर" के नाम से बनाया था..  महारथी रामप्रसाद बिस्मिल पंक्तियाँ कितनी सटीक बैठती हैं.. "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है.. देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है".. काकोरी कांड या षड्यंत्र नहीं है या लूट नहीं है (जैंसा कि अंग्रेजी इतिहासकारों और उन पर आश्रित कांग्रेस पोषित कतिपय भारतीय इतिहासकार और मार्क्सवादी इतिहासकारों ने लिखा है..इन लोगों ज्यादती तो देखिये कि इन लोगों ने क्रांतिकारियों को आतंकवादी कह डाला ) काकोरी यज्ञ है जिसमें क्रांतिकारियों ने लुटेरे अंग्रेजों से अपनी पवित्र आहुतियां देकर धन का अधिग्रहण कर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया.. पंडित जी ने..भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम सेना बनायी (एच. एस. आर. ए.).. आजाद के नेतृत्व में लाला जी के हत्यारे का साण्डर्स का वध.. अस

जल बिन तरसे मीन जैसे गुरु बिन तरसूं मैं

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अपने अनंत गुरुओं को शत शत नमन करते हुए आप सब को सुप्रभात ।     मित्रों और सुधि पाठक जन आप सब मेरे गुरु हैं। अगर कोई मेरा शत्रु है तो उसे मैं अपने सबसे बड़े गुरु के रूप में मानता हूं स्वीकारता भी हूं...! चलिए यह तो लौकिक बात हुई। वास्तविकता यह है कि जीवन को अचानक बदल देने वाला गुरु अलौकिक रूप से मेरे साथ है। लौकिक रूप से शिवाय जनेऊ संस्कार के आज तक मैंने आध्यात्मिक दीक्षा नहीं ली है। परंतु अलौकिक गुरु के रूप में सबसे पहले मेरा परिचय स्वामी शुद्धानंद नाथ से हुआ । उनके विषय में बहुत अधिक जानकारी यहां नहीं दूंगा। इतना जानिए कि वे ना मिले होते तो शायद हम प्रपंच में अध्यात्म के योग को नहीं समझ पाते। स्वामी जी अतिशय स्नेह रखते थे । आधी शताब्दी बीत जाने के बाद उनके सूत्रों से समझ पड़ता है कि वह क्या कहना चाहते थे। स्वामी जी ने हमारे जैसे कई मध्यवर्गीय परिवारों को आध्यात्मिक चिंतन दीया। बहुत छोटा था मैं जब उनसे स्पर्श दीक्षा मिली। स्वामी जी अद्भुत चमत्कारी योगी नहीं थे बल्कि वे कर्म और कर्म फल के सिद्धांत को आलोकित और परिभाषित करते रहे।  उनका परिचय जानना चाहते हो तो आपको बता दूं ग्