आओ खुद से मिलवाता हूँ..! भाग 07
उस दिन रेल मिनिस्टर माधवराव सिंधिया जी जबलपुर आए थे हां तिथि याद नहीं है और सुबह 10:00 बजे का वक्त था हमने भी अपना एक आवेदन सर्किट हाउस में नौकरी के वास्ते उनको टिपा दिया । उस आवेदन का क्या हुआ किसे पता ऐसे सैकड़ों आवेदन आते रहते हैं डीआरएम ऑफिस के किसी एपीओ के चेंबर तक में भी पहुंचा कि नहीं ऊपरवाला जाने । सुना था नौकरी क्लर्कशिप आसान थी मिलना जुगाड़ हो तो। बाबूजी के पास कितने जुगाड़ थे या नहीं ये भी ईश्वर जाने पर बाबूजी खुद के बूते अर्जन को श्रेष्ठ समझते हैं । वे कहते थे -"स्टेशन मास्टर्स के बच्चे कुली कबाड़ी बनते हैं । तुम लोग मत बनना रे..। हमने भी चाहे अनचाहे उनकी बात को रखा । क्लास फोर्थ में जॉब तो चाहिए ही न था । फिर एक दबाव टायपिंग सीखने का आया वो मेरी रुचि का न था । सतीश भैया ने क्लास जॉइन की पर जब वे टायपिंग क्लास जाते तब मेरा नर्म गर्म बिस्तर पर सोने का वक़्त होता था 7 बजे सुबह बिस्तर से उठना तब तक भाई टायपिंग का बहुत सारा हिस्सा सीख लेते होंगे । खैर जो भी हो बिना एक्सट्रा हुनर के अपने राम की ज़िंदगी कविता साहित्य छात्र राजनीति में उलझी रही । स्व