31.10.20

रौशनी की तिज़ारत वो करने लगा


घर के दीवट के दीपक जगाए नहीं
रोशनी की तिज़ारत वो करने लगा ।
ये मुसलसल करिश्मों भरा दौर है -
वक़्त-बेवक्त सूरज है ढलने लगा ।।
खुद ने, खुदको जो देखा डर ही गया
आईने अपने घर के,वो बदलने लगा ।।
खोलीं उसकी गिरह, हमने फिर कभी
पागलों की तरह वो, मचलने लगा ।।
दौर ऐसा कि सब हैं तमाशाई से
हरेक दिल में क्या रावण, पलने लगा ।
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

29.10.20

निकिता तुम एक सवाल हो.!

*निकिता तुम एक सवाल हो.!*

जिसे कोई हल कैसे करेगा ?
सब एर्दोगान से 
थर थर काँपते हैं..!
वो सब के सब 
तुम्हारी आख़िरी कराह का
और अपनी चाह का 
मीज़ान मापते हैं..!
तुम्हारी आखिरी सांसें 
धीमे धीमे बन्द होती आंखें 
अब किसी इंकलाब को
जन्म न दे सकेंगी ।
आने वाली तिथियां
तुम्हारे ही हलफनामें को
सामने रखेंगी ।
तुम तब तक 
ज़ेहन से सबके मन से 
हो चुकी होगी ओझल ।
तुम्हारी सखि माँ बापू भाई
को याद रहेगा वो पल ।।
इन चैनल्स पर नहीं आओगी
कभी किसी को भी 
सत्ताईस अक्टूबर के दिन 
याद नहीं आओगी.. !
तुम इस दुनियाँ में 
अफसर भी बन जाती तो 
क्या होता..?
क्या खाक बदलता ये समाज
ये हमेशा समझौता करेगा 
डर से आक्रांता से 
सामाज में बचे सम्मान से
डर कर  ।
समझौते जारी रहेंगे 
इस देश में 
मृत्यु तुल्य कष्ट 
सहकर ...! 
निकिता कल भी 
तुम ही हारोगी..!
सोचता हूँ आकाश ताकते हुए
तुम कब पलट कर मरोगी ..!!
सुनो अब जब आना 
हाथ में आयुध लेकर
इन रसूखदारों का 
इन बलात समझौताकारों का
इन आयातित विचारों के 
पैरोकारों का ...
मुँह जो नोंचना है ।
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

27.10.20

क्या सोचते हैं विस्तारवादी

     


बख्तावर खिलजी से लेकर तालिबान तक सभी  सभी के मस्तिष्क में एक ही बात चलती है अगर किसी राष्ट्र का अंत करना है तो उसके पहले उसकी संस्कृति अंत कर दो। पोल पॉट की जिंदगी का लक्ष्य  भी यही था । 1975 से लेकर 1979 तक  कंबोडिया के सांस्कृतिक वैभव को समाप्त करने के लिए पोलपॉट अपना एक लक्ष्य सुनिश्चित किया । उसने जैसे ही खमेररूज की की मदद से कंबोडिया पर कम्युनिस्ट शासन की स्थापना की सब से पहले कंबोडिया के 50 मुस्लिम आराधना स्थलों का सर्वनाश किया। क्योंकि नास्तिकों के मस्तिष्क में  आस्था के लिए कोई जगह नहीं है अतः पोल पॉट की सेना ने उसके स्थान पर कुछ दूसरा धार्मिक स्थल नहीं बनाया। किंतु बाबर इससे कुछ  अलग ही था । भारत में आक्रमणकारी  विदेशी ने सांस्कृतिक हमला भी बाकायदा सामाजिक परिस्थितियों को बदलने के लिए किया। तालिबान इससे पीछे नहीं रहे । स्वात से बुद्ध के वैभवशाली इतिहास को खत्म करना हो या कश्मीर के सनातनी सांस्कृतिक वैभव को नेस्तनाबूद करना हो ... विदेशी आक्रांता इस कार्य को सबसे प्राथमिकता के आधार पर किया करते थे।



     ऐसा अक्सर हुआ है इसमें कोई दो मत नहीं। अब कुछ इससे ज्यादा हटकर हो रहा है। अब वैचारिक स्तर पर हमले होना स्वाभाविक सी बात बन गई है ।
   सामाजिक परंपराओं को बदलने की प्रक्रिया अब तेजी से हो रही है। सामाजिक सहमति हो या ना हो बलपूर्वक सांस्कृतिक परिवर्तन करना एक सामान्य सा लक्ष्य था जो अब मीडिया के जरिए विस्तारित हो रहा है।
          बहुत वर्ष पहले की बात है, हाँ  लगभग 40 से 45 वर्ष पूर्व कन्वर्टटेड मुस्लिम के घर के मुखिया का नाम भगवानदास था उसकी पत्नी का नाम पार्वती बच्चे का नाम गुलाब । हमने जब उस परिवार से पूछा- आप जब मुस्लिम धर्म अपना चुके हैं तो आपके नाम हिंदुओं जैसे क्यों हैं ?
     भगवान दास का कहना था कि हमने धर्म बदला है ना कि हमने अपनी संस्कृति । यह घटना गोसलपुर की है जहां पर भगवानदास रेल विभाग में केबिन मैन के पद पर नौकरी किया करते थे । उनके घर में बाकायदा हिंदू त्यौहार होली दिवाली रक्षाबंधन आदि बनाए जाते थे । सांस्कृतिक बदलाव कभी भी आसानी से नहीं हो पाता था उस दौर तक। फिर अचानक क्या हुआ कि धर्म परिवर्तन के साथ साथ सांस्कृतिक बदलाव बहुत तेजी से हुए । उसके पीछे का कारण है - कट्टरपंथी सोच पूरे विश्व में एक साथ तेजी से उभरना है ।
    यह परिवर्तन उन्मादी होने का  पर्याप्त कारण है । अगर आप धार्मिक बदलाव के साथ मूल संस्कृति में कोई बदलाव नहीं करते तो सामाजिक सामंजस्य में भी किसी भी तरह का नेगेटिव चेंज नहीं आता है और शांति कायम रहती है । 

26.10.20

TANYA SHARMA ON VIJAYADASHAMI PRAV

*विजयादशमी पर हार्दिक बधाई*
🙏🙏🙏🙏
Tanya Sharma (D/O Mr. Sunil Sharma & Mrs Archana Sharma Bhopal)  presents Mahishasura Mardini Stotram. Tanya Sharma is winner of award 2019 organised by National Bal Bhawan Delhi. Tanya Sharma lost her vision but not her confidence and capability she has scored more then 90%  in her 10th board school examination.
https://youtu.be/4i3n4NVl5v4
Please Click "JAY JAY HE"

24.10.20

वीरांगना रानी चेन्नम्मा आलेख :- आनंद राणा जबलपुर

"जब तक तुम्हारी रानी की नसों में रक्त की एक भी बूंद है,कित्तूर को कोई नहीं ले सकता" - वीरांगना रानी चेन्नम्मा🙏"आईये अवतरण दिवस पर गर्व के साथ नमन करें.. भारत की प्रथम वीरांगना कित्तूर की रानी - चेन्नम्मा को जिन्होंने 11 दिन लगातार अंग्रेजों को पराजित किया और 12 वें अपने लोगों के ही धोखा देने से वो पराजित हुईं ..आईये जानते हैं कि वीरांगना रानी चेन्नम्मा का गौरवशाली इतिहास 🙏🙏
1. रानी चेन्नम्मा का परिचय-
रानी चेन्नम्मा भारत की स्वतंत्रता हेतु सक्रिय होनेवाली पहली वीरांगना थीं । सर्वथा अकेली होते हुए भी उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य पर दहशत जमाए रखी। अंग्रेंजों को भगाने में रानी चेन्नम्मा को सफलता तो नहीं मिली, किंतु ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध खड़ा होने हेतु रानी चेन्नम्मा ने अनेक स्त्रियों को प्रेरित किया। कर्नाटक के कित्तूर रियासत की वह वीरांगना चेन्नम्मा रानी थी। आज वह कित्तूर की रानी चेन्नम्मा के नामसे जानी जाती है। 
2.रानी चेन्नम्मा का बचपन-
रानी चेन्नम्मा का जन्म काकती गांव में (कर्नाटक के उत्तर बेलगांव के एक देहात में )23 अक्टूबर 1778 में  हुआ। बचपन से ही उसे घोड़े पर बैठना, तलवार चलाना तथा तीर चलाना इत्यादि का प्रशिक्षण प्राप्त हुआ । पूरे गांव में अपने वीरतापूर्ण कृत्यों के कारण से वह परिचित थी ।रानी चेन्नम्मा का विवाह कित्तूर के शासक मल्लसारजा देसाई से 15 वर्ष की आयु में हुआ । उनका विवाहोत्तर जीवन सन् 1816 में उनके पति की मृत्यु के पश्चात एक दुखभरी कहानी बनकर रह गया । उनका एक पुत्र  था, किंतु दुर्भाग्य उनका पीछा कर रहा था । सन् 1824 में उनके पुत्र ने अंतिम सांस ली, तथा उस अकेली को ब्रिटिश सत्ता से लड़ने हेतु छोड़कर कर चला गया ।
3.अंग्रेजों द्वारा व्यपगत की नीति के अंतर्गत रानी चेन्नम्मा की रियासत को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने के लिए अल्टीमेटम दिया - कित्तूर रियासत धारवाड़ जिलाधिकारी के प्रशासन में आ गया ।चॅपलीन उस क्षेत्र के कमिश्नर थे । दोनों ने नए शासनकर्ता को नहीं माना, तथा सूचित किया कि कित्तूर को अंग्रेज़ों का शासन स्वीकार करना होगा ।
4..वीरांगना रानी चेन्नम्मा का अंग्रेज़ों के विरुद्ध युद्ध-
अंग्रेजों के मनमाने व्यवहार का रानी चेन्नम्मा तथा स्थानीय लोगों ने कडा विरोध किया । ठाकरे ने कित्तूर पर आक्रमण किया । इस युद्ध में कई ब्रिटिश सैनिकों के साथ ठाकरे मारा गया । एक छोटे शासक के हाथों अपमानजनक हार स्वीकार करना अंग्रेजों के लिए बड़ा कठिन था । उन्होंने मैसूर तथा सोलापुर से प्रचंड सेना लाकर उन्होंने कित्तूर को घेर लिया ।
रानी चेन्नम्मा ने युद्ध टालने का अंत तक प्रयास  किया, उसने चॅपलीन तथा बॉम्बे प्रेसिडेन्सी के गवर्नर से बातचीत की, जिनके प्रशासन में कित्तूर था । उसका कुछ परिणाम नहीं निकला ।आखिरकार परीक्षा की घड़ी आ ही गई और रानी चेन्नम्मा युद्ध की घोषणा कर दी । 12 दिनों तक पराक्रमी रानी तथा उनके सैनिकों ने उनके किले की रक्षा की, किंतु अपनी आदत के अनुसार इस बार भी देशद्रोहियों ने तोपों के बारुद में कीचड़ एवं गोबर भर दिया । 1824 में रानी की हार हुई ।उन्हे बंदी बनाकर जीवनभर के लिए बैलहोंगल के किले में रखा गया । रानी चेन्नम्मा ने अपने बचे हुए दिन पवित्र ग्रंथ पढने में तथा पूजा-पाठ करने में बिताए । सन् 1829 में उनकी मृत्यु हुई ।
कित्तूर की रानी चेन्नम्मा ब्रितानियों के विरुद्ध युद्ध भले ही न जीत सकी, किंतु विश्व के इतिहास में उनका नाम अजर अमर हो गया । कर्नाटक में उनका नाम शौर्य की देवी के रुप में बडे आदरपूर्वक लिया जाता है ।रानी चेन्नम्मा एक दिव्य चरित्र बन गई हैं । स्वतंत्रता आंदोलन में, जिस धैर्यसे उसने अंग्रेज़ों का विरोध किया, वह कई नाटक, लंबी कहानियां तथा गानों के लिए एक विषय बन गया । लोकगीत एवं लावनी गाने वाले जो पूरे क्षेत्र में घूमते थे,स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में जोश भर देते थे ।
दुर्भाग्य देखिए कि तथाकथित वामपंथी इतिहासकारों और एक राजनैतिक दल विशेष के समर्थक परजीवी इतिहासकारों ने इतिहास लिखते समय - भारत की प्रथम वीरांगना कित्तूर की रानी चेन्नम्मा के स्वतंत्रता के लिए किए गए बलिदान को हाशिये में भी नहीं रखकर जो अपराध किया है उसका दंड उनको भुगतना ही पड़ेगा..परंतु अब हम लोग तो न्याय करें!.. पुनः वीरांगना रानी चेन्नम्मा के अवतरण दिवस पर शत् शत् नमन है 🙏 🙏 🙏 प्रेषक - डॉ आनंद सिंह राणा, इतिहास का एक विद्यार्थी, इतिहास संकलन समिति महाकोशल प्रांत 🙏🙏🙏🙏🙏

19.10.20

कोविड के बाद का भारत

 कोविड19 के बाद का भारत..!

  रोजगार के लिए प्रवास स्वाभाविक प्रक्रिया है। इतिहास में भी यह सब कुछ दर्ज है...और यहां  रोजगार के लिए प्रवास के बाद कोविड19 के बाद घर और गांव के महत्व को महसूस किया होगा आपने भी

गांघी जी भी याद आए होंगे न ?  जो कुटीर उद्योगों के प्रबल समर्थक थे । बापू के उसी मार्ग को आत्मनिर्भरता कही जा सकती है । जिसे वर्तमान प्रधानमंत्री जी ने अंगीकार किया है ।  परन्तु कोविड संकट जूझ रहे भारत को सम्हलना अभी एकाएक ज़रा कठिन है । परन्तु वैक्सीन आने के बाद अर्थात लगभग 6 माह बाद केंद्र सरकार एवम राज्य सरकारों को तेज़ी से काम करना होगा । उसे यहाँ एक ट्रष्टी एवम प्रमुख प्रबंधक के रूप सक्रिय होने की ज़रूरत होगी ।

    सरकार छोटे से छोटे उत्पादन के लिए स्थानीय पृष्ठभूमि को देखते हुए उत्पादन को प्रमोट करें और बाजार उपलब्ध कराएं तो निश्चित तौर पर रोजगार की संभावना सुदूर क्षेत्रों में बढ़ेगी !

   मजदूरों का गांव से पलायन अधिकतम 500 वर्ग किलोमीटर के आसपास होना चाहिए ताकि एक या 2 दिन के अंदर पूरा का पूरा परिवार वापस घर पहुंच सके। अब आप सवाल करेंगे कि क्या भारत सरकार की औद्योगिक नीति में बदलाव की जरूरत है । जी हां भारत सरकार की ही नहीं बल्कि राज्य सरकारें भी व्यवसायिक एवम औद्योगिक  नीति का गंभीरता से पुनरीक्षण करें इसमें परिवर्तन अवश्यंभावी है ।

आईएमएफ की रिपोर्ट के अनुसार 2021 में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए समस्या का कारण होगा पर कैपिटा इनकम और इकोनामी में गिरावट की संभावना है । कोविड19 के बाद उत्पादन और उनका विपणन करने के लिए सरकार को बहुत तेजी से समन्वयक की भूमिका निभानी होगी। कुछ बाजार विज्ञानी मानते हैं कि- क्रय शक्ति कमजोर होने से स्थानीय उत्पादों के लिए बाजार दूरस्थ  क्षेत्र में ही तलाशने होंगे। ऐसा नहीं है आवश्यकतानुसार उत्पादों  का आकलन कर आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम को सफल बनाया जा सकता है । और यह केवल प्रदर्शनात्मक ना होकर वास्तविक रूप से क्रिया रूप में परिणित करना होगा।

*यहां समाज और सरकार दोनों की भूमिका समान रूप से महत्वपूर्ण हो जाती है.. आप जानते हैं कि पूरी अर्थव्यवस्था का 60 से 70 प्रतिशत भाग में मध्यमवर्ग की सहभागिता होती है* मानव संसाधन भी मध्यवर्ग से ही निकल कर आता है। ऐसी स्थिति में मध्यमवर्ग से निकल रही प्रतिभाओं को जिले संभाग और राज्य स्तर तक उत्पादन और सेवा इकाइयों  रूप से प्रारंभ कराना ज़रूरी है । 

सकल बचत के लिये सरकारी क्षेत्र के बैंक पोस्ट ऑफिस की जमा व्यवस्था को सिक्योरिटी के साथ साथ टैक्स में छूट की लिमिट को बढ़ावा देकर प्रतिव्यक्ति बचत जो 36% से घटकर 30% से भी कम हो चुकी है को बढ़ावा देना ही होगा । जीडीपी में शुद्ध बचत की वृद्धि से व्यक्तिगत क्षेत्र में पूंजी का निर्माण तेजी से होना तय है ।

वर्तमान में मध्यवर्ग का 70% हिस्सा कार, एसी, टीवी तथा अन्य अनुत्पादक लक्ज़री की #ईएमआई  के दुष्चक्र में  फंसा है । जो बचत पूंजी निर्माण (वेयक्तिक सेक्टर में पूंजी निर्माण ) की बड़ी बाधा है । पर्सनल लोन सबसे अधिक ब्याज वसूली का माध्यम  है । जिसका मिलना बहुत सरल है । डेली यूज़ की सामग्री के मूल्य नियंत्रित न होने से भी बचत बेहद प्रभावित होती है । अगर #ईएमआई का दायित्व एवम अनियंत्रित कीमत वृद्धि को नियंत्रित करते ही  वैयक्तिक सेक्टर में पूंजी निर्माण की दर तेज़ी बढ़ेगी । कोविड19 के संकट से उभरने से पहले ही हम लक्ज़री और हमारी सरकार मूल्यों को नियंत्रित करें तो हम एक विशाल पूँजी का निर्माण करेंगे । यह पूँजी हमारे लिये बचत होगी जो बड़े औद्योगिक घरानों के लिये भी ज़्यादा होगी ।


   

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धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...