27.7.20

गुमशुदा हैं हम, ख़ुद अपने बाज़ार में ।

ग़ज़ल 
गुमशुदा हैं हम, ख़ुद अपने बाज़ार में ।
ये हादसा हुआ है, किसी ऐतबार में ।।
कुछ मर्तबान हैं, तुम रखना सम्हाल के -
पड़ जाए है फफूंद भी, खुले अचार में ।।
रोटियों पे साग थी , खुश्बू थी हर तरफ -
गूँथा है गोया आटा, तुमने अश्रुधार में ।।
अय माँ तुम्हारे हाथ की रोटियाँ कमाल थीं-
बिन घी की मगर तर थीं तुम्हारे ही प्यार में ।।
हाथों पे हाथ, सर पे दूध की पट्टियाँ-
जाती न थी माँ जो हम हों बुखार में ।।

26.7.20

चीन के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध एवम कारपोरेट सेक्टर

ताहिर गोरा के टैग टीवी पर आज पामपियो के हवाले से निक्सन के दौर से ओबामा तक जिस प्रकार चीन को बारास्ता पाकिस्तान सपोर्ट दिया वो चीन के पक्ष में रहा । अब उसका उसका दुष्परिणाम भी देखा भारतीय सन्दर्भ में एक  एक दम साफ है कि हमारे  विदेशी कारपोरेट केे लिए अधिक वफादार हैैं  चीन के सापेक्ष । अगर इम्पोर्टेड विचारों ने कोई हरकत न की और भारत में अस्थिरता पैदा न की । कास्टिज़्म को रीओपन करने वाली एकमात्र विचारधारा यही है । 

22.7.20

बक रहा हूँ जुनूँ में क्या-क्या कुछ कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई..!

बक रहा हूँ जुनूँ में क्या-क्या कुछ
कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई..!
इस शेर में ग़ालिब ने जो कहा है हुबहू ऐसा ही कुछ हो गया हूं। ना तो अदब की समझ से वाकिफ हूँ न ही कोई धीरज बचा है । उन दिनों का क्या जब रिसाले पढ़कर समझ लेता था कि वतन में खुशनुमा सदा बहती है । उस हिमालय से दक्कन तलक हिन्दुतान पूरब से मगरिब तलक कुछ भी जुड़ा नहीं । शायद यह सब कुछ किताबों में भी पढ़ाया था हमको और इसकी तस्दीक करते थे यह रिसाले हमें नहीं मालूम कि असलम मंदिर में क्यों नहीं जाता और ना ही असलम यह जानता था कि मैं मंदिर क्यों जाता हूं ?
संग साथ पढ़े सुना था कुछ दिनों पहले वह स्कूल में मास्टर हो गया था । हमें हाकिम बनना था सो बन गए । अब वो कहां हम कहां मालूम नहीं किस हाल में होगा । पता नहीं जफर मुझे पहचानेगा कि नहीं । कभी-कभी अजय का पता मिल जाता है सुनते हैं वह भी टीचर है ।
जाने क्या शाम को हो जाता है दीवार पर टंगी टीवी में... गोया आग उगलती है यह टीवी । आठ-दस लोग बैठ कर लड़ा करते हैं । इतनी कहासुनी तो जुए के फड़ों में भी नहीं होती ।
अखबार ऐसी आग ना लगाया करते थे और अब तो हर शाम दीवार जला करती है ।
देखिए लपटें बहुत से रंग की है लाल हैं, हरी हैं, सुफेद भी तो हैं । अब इन लपटों को देख कर कौन चुप रहेगा ।
रोजिन्ना यही होता है लगता है रोम जल रहा है.. और में हूँ कि नीरो बन जाना चाहता हूँ....! हरिप्रसाद जी की बांसुरी सुनने लगता हूँ , मिर्ज़ा ग़ालिब कबीर मीरा से मिल आता हूँ । मिलता तो बुद्ध से भी हूँ, बुद्ध को कभी किसी किताब को जलाते नहीं देखा । बुद्ध और बख्तावर ख़िलज़ी में यही तो फ़र्क़ है ।
कहते हैं कि यह पत्थरों का शहर है । यकीनन पत्थरों का शहर है बेहतरीन शहर है । यहां कि पत्थर नरम है वादियां भेड़ाघाट की देखता हूं तो लगता है इतना नरम पत्थर कैसे हो सकता है कोई...! टोटल लॉकडाउन के दिनों में देखा था... जिनको मवाली समझता था शहर लोगों के घर जा जाकर उनके हालात पूछते और उनकी सेवा करते । चारों तरफ चौकस निगाहें रखें ये लड़के साबित कर रहे थे वे कितने नर्म हैं । जानते हैं जिस्म खुशी रोम रोम खड़ा हो गया जब यह सुना कि मेरे महल्ले में कोई परिवार भूखा नहीं सोता । वो माँ जिसके जचकी हुई है ये लड़के अपने आइकॉन के साथ लड्डू दे आये । अब तो समझ गए न कि मेरा शहर इतना नर्म क्यों है ।
चलते चलते ग़ालिब की ग़ज़ल पूरी देखिए

इब्ने-मरियम [1] हुआ करे कोई
मेरे दुख की दवा करे कोई

शरअ-ओ-आईन[2] पर मदार[3] सही
ऐसे क़ातिल का क्या करे कोई

चाल, जैसे कड़ी कमाँ का तीर
दिल में ऐसे के जा[4] करे कोई

बात पर वाँ ज़बान कटती है
वो कहें और सुना करे कोई

बक रहा हूँ जुनूँ में क्या-क्या कुछ
कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई

न सुनो गर बुरा कहे कोई
न कहो गर बुरा करे कोई

रोक लो, गर ग़लत चले कोई
बख़्श दो गर ख़ता करे कोई

कौन है जो नहीं है हाजतमंद[5]
किसकी हाजत[6] रवा[7] करे कोई

क्या किया ख़िज्र[8] ने सिकंदर से
अब किसे रहनुमा[9] करे कोई

जब तवक़्क़ो[10] ही उठ गयी "ग़ालिब"
क्यों किसी का गिला करे कोई
साभार कविता कोश
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

20.7.20

लमटेरा : शिवाराधना का एक स्वरूप



सुधि जन
आज कुछ कविताएं विभिन्न भावों पर आधारित हैं प्रस्तुत कर रहा हूँ । पसंद अवश्य ही आएगी । पहली कविता बुंदेलखंड की लोक गायकी लमटेरा पर केंद्रित है । इस कविता में शिव आराधना करते हुए नर्मदा यात्रा पर निकले यात्रियों का जत्था जिंदगी तो को गाता है वह ईश्वर एवं उसके मानने वालों के बीच एक अंतर्संबंध स्थापित करता है । कुल मिलाकर लमटेरा शिव आराधना का ही स्वरूप है । 

लमटेरा : -

नर्मदा के किनारे
ध्यान में बैठा योगी
सुनता है
अब रेवा की धार से
उभरती हुई कलकल कलकल
सुदूर घाट पर आते
लमटेरा सुन
भावविह्लल हो जाता
अन्तस् की रेवा छलकाता
छलछल....छलछल .
हो जाता है निर्मल...!
नदी जो जीवित है
मां कभी मरती नहीं
सरिता का सामवेदी प्रवाह !
खींच लाता है
अमृतलाल वेगड़ की
यादों को वाह !
सम्मोहित कर देता है
ऐसा सरित प्रवाह..!!
यह नदी नहीं बूंदों का संग्रह है..!
यह आपसी अंतर्संबंध और
प्रेम और सामंजस्य भरा अनुग्रह ..
शंकर याचक से करबद्ध..!
अंतत से निकली प्रार्थना
गुरु को रक्षित करने का अनुरोध
सच कहा मां है ना रुक जाती है
बच्चे की करुण पुकार सुन पाती है
मां कभी नहीं मरती मां अविरल है
मां रगों में दौड़ती है जैसे
बूंदें मिलकर दौड़ती हैं रेवा की तरह
आओ चलें
इस कैदखाने से मुक्त होते ही
नर्मदा की किनारे मां से मिलने
💐💐💐💐💐


प्रेरणा-गीत

नाहर के दंत गिनते कुमार
हर ओर मुखर भू के विचार
गीता जीवन का हर्ष राग
अरु राम कथा जीवन सिंगार ।
जय भरत भूमि जय राम भूमि जय कृष्ण भूमि ............ !
परबत अंगुल पर थाम खड़ा
जा बीच समर निष्काम अड़ा
दूजे ने वनचर साथ लिए –
रावण भू पर निष्प्राण पड़ा !!
जय कर्म भूमि जय धर्म भूमि जय भरत भूमि ............ !
जब जागा तो पूरब जागा
उसकी आहट से जग जागा
जो भोर किरन फिर मुसकाई
तो नेह नीति ने दिन तागा !
जय भरत भूमि जय भरत भूमि जय भरत भूमि ............ !
करुणा के सागर बुद्धा ने
शमशीर समर्पण दिखा दिया !
जिस वीतराग गुरु चिंतन ने –
सबको जिन दर्शन सिखा दिया !
जय बुद्ध भूमि जय आदि भूमि जय भरत भूमि ............ !



18.7.20

रूप ऐसा कि, दर्पन सह न सके

रूप ऐसा कि, दर्पन सह न सके
💐💐💐💐💐💐💐💐
दाम अपने न ऊंचे, बताया करो
टाट तुम न ज़री से सजाया करो !
तन है भीगा हुआ, प्रीत-बौछार से
छाछ से मन को, मत भिगाया करो ।
ताल स्वर लय, मौलिक न हो अगर
गीत मेरे बेवज़ह तुम न गाया करो ।
रूप ऐसा कि, दर्पन सह न सके
ऐसे दर्पन के सनमुख न जाया करो ।
ग़र भरोसा नहीं , मुकुल के प्यार पर
प्रेम गीत मुझको न, सुनाया करो ।।

  • *गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

15.6.20

क्यों करते हैं सितारे आत्मघात कभी सोचा आपने...!


आत्महत्या करना सामान्य रूप से एक अवसाद की स्थिति का दुष्परिणाम है सुशांत की आत्महत्या और इसके पहले भी लगभग 15 चर्चित कलाकारों तथा कई गुमनाम कलाकारों ने आत्महत्या की है और जब भी कोई कलाकार आत्म हंता बनता है तो बेहद पीढ़ा होती है !   व्यक्ति के लिए आत्महत्या बेहद सरल विकल्प होता  है क्योंकि एकाकीपन और विकल्पों का अभाव कुछ ऐसे ही मनोवैज्ञानिक नजरिए से विध्वंसक माने जाने वाले निर्णय लेने के लिए बाध्य कर देते हैं।
सारेगामापा 18-19 में 
सुशांत ने इशिता को क्या 
कहा था सुनिए ।
वीडियो स्रोत Zeetv से
आभार सहित । 
सौजन्य  तेजल विश्वकर्मा 


   क्योंकि उसके पास जीवन की विषम परिस्थितियों में जीने के लिए निदान खोजते खोजते जब कभी भी डेडएंड नजर आने लगता है सब उसके पास नकारात्मक विकल्प सहज ही उपलब्ध होते हैं? 
और वह सुसाइड करना परंतु अत्यधिक संवेदनशील होते हैं अगर आप देखें तो कलाकार बहुत जल्दी ऐसे निर्णय लेने में देर नहीं लगाते और आत्मघाती कदम उठा लेते हैं। यह उनकी अत्यधिक संवेदनशीलता का परिणाम होता है। 
सामान्य व्यक्तियों में अधिकतर विकल्पों की तलाश होती है जो भले ही उसके पास घर परिवार जिम्मेदारी और संघर्ष सब कुछ एक विकल्प के रूप में सामने आता और बेहद डार्कनेस नजर आती है तब ही वह आत्महत्या को अंजाम देता है। जबकि कलाकार ऐसा नहीं करता उसके पास बहुत सारे विकल्प होते हैं परंतु संवेदनशीलता इस कदर हावी होती है कलाकार सबसे पहला कदम आत्महत्या ही सोचता है। सुशांत सिंह का जाना उसी क्रम में घटना समझ में आती है। 
अक्सर देखा गया है कि लोग हारना स्वीकार नहीं करते हैं !
     क्योंकि उन्हें उनके जन्म के साथ दी जाने वाली घुट्टी में जितना है जितना है जितना है इतनी बार लिखा जाता है कि वह पराजय बर्दाश्त नहीं कर पाना सबसे पहले सीखता है। जबकि जीवन में हाथ को स्वीकार ना और उसके साथ नए विकल्पों को जोड़ना बहुत जरूरी है गार्जियन बचपन से ऐसा नहीं सिखाते। सभी को यह लगता है कि उनका बच्चा पड़ोस वाले पांडे जी गुप्ता जी के बच्चों से कमजोर क्यों? और बच्चा भी इसी कोशिश में लग जाता है कि मैं पांडे जी गुप्ता जी शर्मा जी जैन साहब आदि सब के बच्चों से आगे होकर दिखाऊंगा । अब तो जानते हैं कि सुशांत सिंह एआई ट्रिपल ई के एंट्रेंस एग्जाम में सबसे टॉप वाली लिस्ट में शायद सातवें रैंक के साथ चुन लिए गए थे कुछ साल उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी की थी। सुनते हैं इंस्टाग्राम पर पर सुशांत नहीं अपनी मां को याद किया शायद यह उनका अंतिम मैसेज रहा है वे बीती यादों को याद करते हैं और उपलब्धियों को मां के अभाव में सुने मानते रहे। यह एक अलग साइक्लोजिकल पहलू भर के आ रहा है जिसे जीत और हार के पहलू से भी नहीं देखा जा सकता। क्योंकि एमएस धोनी में उनकी सफलता पर शायद उन्होंने कहा था शायद क्या निश्चित ही कहा था कि वह इस सफलता से अत्यधिक प्रसन्न है नहीं है क्योंकि वह अपनी मां को अपनी उपलब्धि दिखाना चाहते थे भौतिक रूप में मां उनके साथ नहीं है यह एक भावनात्मक संबंध भी है हो सकता है की सुशांत ने विरक्ति भाव जो आमतौर पर किसी भी बच्चे में होता है अब तक सक्रिय रहा ? यह सब हमारी सोच और कयास ही हैं । पर व्यक्तिगत तौर पर एक संवेदनशील लेखक के रूप में मैं अक्सर हिल जाता हूं जब कोई कलाकार आत्महत्या करता है हाल ही में प्रेक्षा की आत्महत्या से मुझे इसलिए दुख हुआ क्योंकि उसके साथ के कई संघर्षशील कलाकार आज भी मेरे संपर्क में हैं और भी काफी हताश थे। यद्यपि कई बच्चों का तो यह मानना था किस तरह का नकारात्मक एनवायरमेंट नहीं बनना चाहिए। बच्चे तो बच्चे हैं फर्क इतना है अत्यधिक सुख सुविधा और सफलता मैं अगर किसी भी तरह की नकारात्मक परिस्थिति सामने आ जाती है तो संवेदनशील कलाकार सबसे पहले आत्महत्या का रास्ता अख्तियार करता है। मध्य प्रदेश ड्रामा अकादमी के वर्तमान छात्र अक्षय ने अपना दर्द बयान करते हुए कहा- हमें पराजय और हार से डर जाना या घबराकर हमें प्रेक्षा जैसे कदम उठाना उचित नहीं लगता। अक्षय से मैं पूर्ण तरह सहमत हूं परंतु यह भी सत्य है के अक्सर बच्चों को हारने में प्रताड़ित करना या उसे ऐसा महसूस कर आना कि वह शर्मा जी गुप्ता जी आदि के बच्चों से पीछे हैं सही तरीका नहीं है। मुझसे जब अभिभावक यह पूछते थे कि तुम्हारे बच्चों के रिजल्ट क्या रहे? मैं अक्सर कहता था फेल भी हो जाएगा कोई बच्चा तो भी मैं मिठाई लेकर जाऊंगा और उसके लिए दुलार में मेरी कोई कमी नहीं होगी। क्योंकि मैं जानता हूं कि निर्माण फेल या पास होने से नहीं होता व्यक्तित्व का निर्माण होता है उसके व्यक्तिगत गुणों में सकारात्मक बदलाव से। और वही सकारात्मक चिंतन अगर बच्चों में डाल दिया जाता है तो फिर क्या कहने ना सुशांत आत्महत्या करता है और ना प्रेक्षा । ऐसा नहीं कि मैं स्वयं दूध का धुला हूं कई बार इस तरह के विचार मस्तिष्क में आते हैं परंतु जब यह विचार आता है की विकल्प यहीं नहीं है हमारे पास विकल्पों की संख्या कम नहीं है जीवन को साबित करने के लिए जीवन के प्रबंधन के लिए हजारों हजार विकल्प मिल जाएंगे और अगर वह विकल्प मिल जाते हैं फिजिकल कोई कमजोरी के कारण हम शरीर को छोड़ना पड़ता है तो इससे बेहतर और क्या होगा कि हम ईश्वर की सत्ता के अनुरूप काम करते इस दुनिया को अलविदा कहेंगे।
मेरे मित्र एक गंभीर अवसाद के समय मुझे खोजते हुए मुझ तक पहुंचे और मुझे हताश देखकर ढांढस बंधाया और कहा- रात के बाद सुबह होती है। और हां यह भी कि पंडित नौशाद अली जब जबलपुर में आए और उनके कार्यक्रम को मैंने सुना जब यह गीत पेश किया जा रहा था- "वो सुबह कभी तो आएगी...!" तो ऐसा लगा कि मित्र मेरे साथ गुनगुना रहा है। आत्महत्या के मुहाने से लौटना या लौटा कर लाना सच में बहुत बड़ी घटना होती है। कोविड-19 के दौर में सुना है 15 से अधिक प्रसिद्ध कलाकार और सैकड़ों साधारण कलाकारों ने अपनी जान गवाई है। मेरी समझ में तो एक मात्र कारण आता है और वह यह है कि वह मुख्य रूप से अत्यधिक संवेदनशील है और उनकी यह अत्यधिक संवेदनशीलता उन्हें शहर ही गुमराह कर देती है । 
छोटे शहरों की प्रतिभाएं जब चकाचौंध वाली माया नगरी में जाते हैं तो आप जानते हैं वास्तव में वह अकेले रहते हैं कहने को भीड़ रहती है उनके साथ और उनके साथ रहता है आभासी संसार जो दिखता तो है पर संवेदी कितना है इसका अंदाज कोई नहीं लगा पाता मित्रों माया नगरी कुछ ऐसी ही है। अब तक कई बार ऐसे मौके आए कि जब मुझे मुंबई से बुलावा आया हूं पर कोई ना कोई प्राकृतिक अथवा आकस्मिक परिस्थिति ने रोक दिया यही है नियति का खेल जो नियति सबके साथ खेलती है। कभी भी मुझे वहां पहुंचने का आत्मिक क्लेश नहीं रहा दुख अवश्य हुआ इसे छिपाने की कोई बात नहीं है। और मुझे मालूम है कि नियति जब चाहेगी तब मुझे वैसे काम मुहैया कराएगी अभी मेरी यहां जरूरत है जो भी होता है बेहतर के लिए होता है इसमें अत्यधिक संवेदी होने की आवश्यकता तो बिल्कुल नहीं होनी चाहिए। मित्रों अक्सर हम देखते हैं कि बच्चे किसी स्पर्धा में हार जाते हैं तो रोने लगते हैं स्वभाविक है । बच्चों का रोना स्वभाविक है उनका कोमल मन बहुत जल्दी हताश हो जाता है दुखी हो जाता है। मैं अपने कला साधक बच्चों को यही बताता हूं जो तुम विजेता हो तो अगली जीत की तैयारी करो और जो आज की जीत है आज का यह है उसे मां नर्मदा को अर्पित कर दो। मैं इस बात को कभी नहीं सुनता और ना सुनना चाहता कि फला स्पर्धा में जजमेंट गलत हुआ अब तो बच्चे यह समझने भी लगे और भी अपनी जीत से अवगत अवश्य कराते हैं पर अत्यधिक उत्साह और अभिव्यक्ति में उत्तेजना नहीं व्यक्त करते। और जिन बच्चों का कोई रंग नहीं लगता वे बच्चे भी बहुत दुखी मन से नहीं आती नहीं निर्णायकों पर संवाद ही उठाते हैं। यानी पहला पाठ है पराजय को समझना और अगली विजय के लिए खुद को तैयार रखना। इसका बेहतर उदाहरण थिएटर से मैं समझ पाया। थिएटर में बहुत बड़ा कलाकार छोटी सी भूमिका में आ जाता है और बहुत छोटा सा कलाकार जो अभी-अभी अरुण पांडे जी अथवा संजय गर्ग जी के समूह में आता है उसे बड़ा रोल में जाता है। शायद यह प्रयोगवादी निर्देशक यह देखना चाहते हैं की मजबूती किसमें है। माया नगरी में ऐसा नहीं है क्योंकि वहां शुद्ध व्यवसाय है आपका चेहरा आपके संवाद आपकी आवाज किस भाव खरीदी जा रही है उसी स्तर पर आपको लाकर फिक्स कर दिया जाता है। कभी-कभी तो खेमे बाजी भी हावी होती है । 
हम सरकारी लोग भी ऐसे ही वातावरण को दिनभर भोंकते हैं डायरेक्ट इनडायरेक्ट प्रमोटी कैजुअल यह मूर्खता और से भरी शब्दावली महसूस होती है पर आप जानते हैं गालिब ने कहा है-
बाज़ीचा ए अतफाल है दुनियां मेरे आगे ..! इस फलसफे को मैं कभी भूलता नहीं भूलना भी नहीं चाहिए चाहे कितनी भी विषम परिस्थिति हो चाहे आप से बड़ा व्यक्ति आप से प्रतिस्पर्धा करने लगे तब भी आप पर्वत जैसे दृढ़ बने कितना भी चूहे पर्वत को बुनियाद से कुतरने की कोशिश करते रहें पर्वत को कोई असर होता है। यानी दृढ़ता प्रतिबद्धता यह कोई साहित्यिक शब्द मात्र नहीं है इनके अर्थों में प्रवेश कीजिए तो पता चल जाएगा वास्तव में दुनिया में बहुत सारे विकल्प मौजूद हैं और हम हमारी समझ और दृढ़ता के साथ हम अपनी मंजिले मकसूद तक पहुंच ही जाएंगे
सुशांत के ह्रदय में आध्यात्मिक चिंतन कितना था जो उसे मजबूती देता शायद उतना नहीं जितना होना चाहिए था। सुशांत की एक्टिंग देख कर मुझे उनके व्यक्तित्व में एक असरदार सुशांत व्यक्तित्व नजर आता था। कलाकारों को बहुत करीब से देखा है उनके प्रति बहुत अधिक संवेदनशील पर अगर कुबेर होता तो इन गन्धर्वों पर सारा खजाना लुटा देता क्योंकि मुंबई वाले कलाकारों से ज्यादा मेरे इस शहर के कलाकार अभावों में श्रजन करते चले आ रहे हैं और बरसो अपना जीवन होम करते आ रहे हैं बस एक जुनून है कला के माध्यम से दुनिया को जगाते रहना । 
कई तो फक्कड़ बाबा है फक्कड़ बाबा लोगों का नाम अभी जिक्र करना लाजमी नहीं है पर घटनाओं का जिक्र कर देता हूं ऐसे ऐसे कलाकार है जो ₹5 जेब में होने पर किसी भूखे गरीब या जरूरतमंद को दे देते हैं और खुद मुस्कुराते हुए घर चले आते हैं यह वही शहर है जहां कलाकार बनते हैं और महानगर मुंबई वह शहर है जहां कलाकार बिकते हैं।
वहां चमक गए तो स्टार वरना वही वर्षों तक खाक छानना इसके अलावा एक ऐसे ग्रुप का वहां पर साम्राज्य है जो सिर्फ और सिर्फ स्वयं की ओर देखता है । दूसरों के कामों को दोयम बताकर और अपना काम श्रेष्ठ साबित कर जो वास्तव में कभी-कभी होता भी है दूसरों के काम हो तो बाधित कर देते हैं। मुंबई की गलियां कलाकारों के लिए स्वर्ग कम नर्क से ज्यादा बदतर है। मुंबई से प्रोफेशनल लोगों के लिए एक स्वर्ग है और संवेदनशीलों के लिए स्वर्ग तो बिल्कुल नहीं कहा जा सकता। वैसे भी कलाकार संवेदनशीलता के साथ ही जाते हैं वहाँ । 
लेकिन अगर वे प्रोफेशनल स्किल के साथ मजबूत व्यक्ति के रूप में जाते हैं जैसे अमिताभ !
मुंबई जैसी भ्रामक जगह पर जाने से पहले विकल्पों को तलाश लेना चाहिए और उसका सही समय पर उपयोग करें तो सफल हो जाता है। 
सुशांत सिंह की अभिनय क्षमता फिल्मों में बरसों से जमे हुए ( फूहड़ अभिनेताओं ) से जो अपने बड़बोले पन घमंड और यहां तक कि बाउंसरों के लिए भी प्रसिद्ध हैं से मजबूत और परिपक्व हो रहा है। रितेश देशमुख, विवेक ओबरॉय और कुछ और ऐसे नाम है जिन्हें इंडस्ट्री में जमना एक खास खेमे के प्रोड्यूसर और कलाकारों को बिल्कुल पसंद नहीं है। परंतु वे भी अत्यधिक संवेदनशीलता और भावुकता  से परे आज भी संघर्ष कर रहे हैं। अभिनेत्रियों की भी दशा लगभग ऐसी ही है। प्रोड्यूसर यह देखता है कि आपके अभिनय कितने पैसे उगेंगे ? यह स्थिति उन कलाकारों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन जाती है। जनता को क्या देखना चाहिए इसका सर्वेक्षण प्रोड्यूसर पास नहीं होता लेकिन जनता को क्या दिखाना फायदेमंद होगा यह वह बखूबी जानते हैं पैसा ही आधार आधार है बॉलीवुड का। इंडस्ट्री सबसे ज्यादा वही फोकस करती है। अब तो फिल्मी स्टार्स भी यह समझने लगे। 
गुरुदत्त को भी इसी संकट का सामना करना पड़ा उन दिनों के कलाकारों और अन्य दूसरे कलाकारों के बीच आपसी अंतराल बड़ा हुआ था। संगीतकारों की भी कमोबेश यही स्थिति थी। अब तो निर्माता निर्देशकों को साफ कह दिया जाता है कि आप अमुक व्यक्ति को प्रमोट कीजिए अमुक पर ध्यान देने की जरूरत नहीं। इस तरह है बॉलीवुड दो भागों में बांट दिया है और एक बात इनमें भी दो समूह सक्रिय हैं एक आयातित विचारधारा के पोषक और दूसरे राष्ट्रवादी।
राष्ट्रवादी कलाकारों को दोयम दर्जे का सिद्ध करने की जबरदस्त होड़ लगी हुई है और स्वयं को श्रेष्ठ बताने का जो मुहिम चल रहा है वह भी इन कलाकारों की कला का सही मूल्यांकन नहीं करने देता। खास तौर पर जितने भी कलाकार हिंदी पट्टी के हैं वे तो दो कारणों से प्रभावित है एक तो उनका हिंदी पट्टी से होना दूसरा अगर वह दुर्भाग्य से राष्ट्रवादी नजर आ गया तो फिर उसे यंत्रणा उसके काम पर रोक लगाने की उपहार सहित ही मिल जाती है। हो सकता है जितना मैंने जो लिखा हो वह गलत साबित हो यह मेरे लिए भी अच्छा है । कोई और भी कारण हो सकते हैं इस आत्महत्या के पीछे जो भी हो सुशांत का आत्महत्या करना दुखद तो है। एक संदेश अवश्य देना चाहूंगा गार्जियंस अपने बच्चों को केवल जीतना ही न सिखाएं ! हारना भी सिखाए और हादसे उभरना भी फिलहाल सुशांत सिंह को विनम्र श्रद्धांजलि और उनके परिजनों पर इस वज्रपात को सहने की शक्ति की ईश्वर से कामना करता हूं ॐ शांति शांति 

3.6.20

मध्य प्रदेश के बाल भवनों में ऑनलाइन प्रवेश सुविधा प्रारंभ


कोविड-19 के दौरान लॉकडाउन 1 से 4 तक एवं अनलॉक वन के दौरान प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रभावित होने के कारण संभागीय बाल भवन द्वारा पंजीकृत बच्चों को ऑनलाइन प्रशिक्षण की सुविधा लॉक डाउन 1 से 4 तक उपलब्ध कराई गई किंतु भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा ज़ूम ऐप के संदर्भ में जारी एडवाइजरी के कारण ऑनलाइन प्रशिक्षण व्हाट्सएप के माध्यम से किया जा रहा था। किंतु इससे हम बहुत कम उपलब्धियां हासिल कर पा रहे थे। व्हाट्सएप के जरिए ऑनलाइन प्रशिक्षण एक बार में केवल चार विद्यार्थियों तक पहुंच सकता था किंतु फेसबुक के माध्यम से संख्या में बढ़ोतरी अवश्य हुई परंतु बच्चों को उसके संबंध में अत्यधिक ज्ञान ना होने के कारण भी अपेक्षित परिणाम नहीं मिल सके फल स्वरूप गूगल मीट ऐप आने के बाद अब इस ऐप के जरिए एक साथ कई बच्चों को ऑनलाइन प्रशिक्षण देने की सुविधा उपलब्ध होगी। इस तरह के प्रयास प्रदेश के अन्य बाल भवनों द्वारा भी किए जा रहे हैं
 इस क्रम में जबलपुर  बाल भवन द्वारा और अधिक विस्तार देते हुए  समस्त संबद्ध ज़िलों  क्रमशः जबलपुर छिंदवाड़ा बालाघाट मंडला सिवनी कटनी नरसिंहपुर डिंडोरी उमरिया सिंगरौली के बच्चों को लाभान्वित करने का प्रयास किया गया है । 
सुविधा कैसे प्राप्त करें - 
 बालभवनों में प्रवेश हेतु संचालक जवाहर बाल भवन मध्यप्रदेश भोपाल द्वारा ऑनलाइन प्रवेश सुविधा उपलब्ध करा दी गई है।
अभिभावकों को सूचित किया गया है कि पुत्र या पुत्री अगर किसी कला का ऑनलाइन या ऑफलाइन प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहे तो वह ऑनलाइन आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं। विभिन्न विधाओं में प्रवेश के लिए 5 वर्ष से 16 वर्ष आयु वर्ग के बालक बालिकाओं को ऑनलाइन आवेदन प्रस्तुत करना है आवेदन के पूर्व ₹60 (वर्ष में एक बार ) की राशि का ऑनलाइन भुगतान कर प्राप्त रसीद ऑनलाइन आवेदन  पत्र में  दिए गए  ऑप्शन पर अपलोड करना है ।
आइडेंटिटी कार्ड प्राप्त करना- 
अपना आई कार्ड प्राप्त करने के लिए दो पासपोर्ट साइज फोटो संभागीय बाल भवन जबलपुर के पोस्टल एड्रेस सहायक संचालक संभागीय बाल भवन 383 जवाहर वार्ड गड़ा फाटक मेन रोड डाक के माध्यम से अथवा स्थानीय आवेदक रसीद की छाया प्रति भेज कर प्राप्त कर सकते हैं। कटनी नरसिंहपुर बालाघाट छिंदवाड़ा मंडला सिवनी डिंडोरी उमरिया शहडोल सिंगरौली के आवेदकों द्वारा दिए गए पते पर डाक से भेज दिए जाएंगे। ऑनलाइन पंजीयन उपरांत संभागीय बाल भवन  जबलपुर  प्रत्येक अभिभावक कृपया पत्राचार द्वारा समस्या अथवा सुझाव व्हाट्सएप नंबर 79990038 94 पर पंजीयन क्रमांक के साथ भी सकते हैं। साथ ही
सभी अभिभावक बाल भवन जबलपुर के फेसबुक खाते में भी अपनी फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज सकते हैं ताकि उन्हें समय-समय पर अपडेट प्राप्त होता रहे। इसके अतिरिक्त आप balbhavanjbp@gmail.com मेल कर सकते हैं।
ऑफलाइन आवेदन प्रस्तुत करने के लिए कोई भी आवेदक प्रातः 10:30 से 5:30 के बीच सीधे बाल भवन जबलपुर के पते पर संपर्क कर सकते हैं। संपर्क हेतु कोविड-19 के संदर्भ में जारी शासकीय एवं कलेक्ट्रेट जबलपुर द्वारा जारी अनुदेशकों का पालन करना होगा। अभिभावक अपने बच्चों को फार्म भरने के लिए साथ में ना लाएं परिवार से केवल एक ही व्यक्ति को आने की अनुमति होगी। प्राथमिकता के आधार पर ऑनलाइन प्रवेश प्रक्रिया का पालन किया जाए।
ऑनलाइन प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए परिवार में उपलब्ध स्मार्टफोन में
 #गूगल_मीट ऐप को डाउनलोड कीजिए तथा ऑनलाइन प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले बच्चों को एक लिंक प्रदान किया जाएगा। उस पर क्लिक करके मासिक प्रशिक्षण कैलेंडर अनुसार  निर्धारित समय के 10 मिनट पूर्व आपके व्हाट्सएप नंबर एवं Balbhavan Jabalpur फेसबुक हैंडल पर प्रकाशित की जाएगी। उस लिंक को क्लिक करके ऑनलाइन प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले बच्चों को ज्वाइन कराया जा सकेगा। 
बाल भवन जबलपुर तक पहुंचने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए ताकि आप व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हो सकें
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*संकट में सृजन के तहत राज्य स्तरीय बालश्री कला  प्रतियोगिता 06 मई से प्रारम्भ हो 20 जून 2020 तक आयोजित की जायेगी। जो बच्चे इस प्रतियोगिता में भाग लेना चाहते हैं,  वे नीचे दिए लिंक पर क्लिक कर जवाहर बाल भवन में अपना *Online Registration*  करा सकते हैं। प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए भी इसी लिंक पर क्लिक करें।
#बालभवन_भोपाल
http://www.jawaharbalbhawanbhopal.com
राज्य स्तरीय बाल प्रतियोगिता 2000 
प्रतियोगिता से संबंधित जानकारी एवं नियम लिंक में दिये गये हैं। 
#1. प्रशासनिक कठिनाई के निराकरण हेतु
 *सजन सिंह कठैत -8959503202,*
#2. विधावार ऑनलाइन जानकारी हेतु 
*के जी त्रिवेदी- 9425011719,* 
#3. मीडिया संबंधी एवं ऑनलाइन पंजीयन हेतु - *अरविन्द शर्मा 9669333020* 
#4. वेबसाइट, पंजीयन एवं प्रतियोगिता हेतु वीडियो डाऊनलोड की जानकारी हेतु तरुण बामा 9303130173 

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