29.5.20

Muskan Soni live on me and my status official group of balbhavan



Hi world Greetings From This is Balbhavan Jabalpur Me and My daughter's : official group of balbhavan Jabalpur 💐💐💐💐💐 Balbhavan Jabalpur is a government organisation under WCD MP for creative activity . During coronavirus pandemic: (lockdown05 ) Bal Bhawan is continuously working to promoting their artists especially girl child and student of institution. We have decided to include our Ex-Students of balbhavan in BalBhavan's live all Facebook *me and my daughters group.* Next and sixth episode the Muskaan Soni D/o Mrs. Maya & Mr. Rakesh will perform. She was very talented student of the Institutions since 2007 ( first batch ) She completed her study MBA recently. She is self composer and singer. Mr Sanjay Garg Davinder Singh Grover, of Natylok decided to add live music pit with theatre under guidance of Dr Shipra sullere & she became the backbone of the music pit. In my words -"Ye meri Sher Beti Hai..!" Please don't miss her live performance on Facebook Balbhavan Jabalpur Date: 29th of May 2020 Friday Time :- 5:30 to 6:15 Kindly! Remember the date and time. Thanks and Regards, Girish K Billore On behalf of team BalBhavan Jabalpur. 💐💐💐💐💐💐💐 Please search and Subscribe Facebook group *Me and My daughters* The official group of Bal Bhawan Jabalpur https://m.facebook.com/groups/2195912257380868?tsid=0.24589334563000498&source


 

28.5.20

कोरोना काल मे लिखी एक कविता


नर्मदा के किनारे
ध्यान में बैठा योगी
सुनता है
अब रेवा की धार से
उभरती हुई कलकल कलकल
सुदूर घाट पर आते
गाते जत्थे लमटेरा
लमटेरा सुन जोगी
भावविह्लल हो जाता
अन्तस् की रेवा छलकाता
छलछल....छलछल .
हो जाता है निर्मल...!
नदी जो जीवित है
मां कभी मरती नहीं !
सरिता का सामवेदी प्रवाह !
खींच लाता है...
अमृतलाल वेगड़ की
यादों को वाह !
सम्मोहित कर देता है
ऐसा सरित  प्रवाह..!!
नदी नहीं बूंदों का संग्रह है..!
यह आपसी अंतर्संबंध और
प्रेम और सामंजस्य भरा अनुग्रह .. है..!
 है न ?
शंकर याचक सा करबद्ध..!
न मन में क्लेश न क्रोध ....!
अंतत से निकली प्रार्थना
गुरु को रक्षित करने का अनुरोध त्वदीय अपाद पंकजम
करते हो न तुम सब ?
सच कहा
मां है ना रुक जाती है
माँ ही
बच्चे की पुकार सुन पाती है
मां कभी नहीं मरती मां अविरल है !
माँ जो शास्वत निश्छल है !
मां रगों में दौड़ती है जैसे
बूंदें मिलकर दौड़ती हैं
रेवा की तरह आओ चलें
इस कैदखाने से मुक्त होते ही
नर्मदा की किनारे मां से मिलने

#फोटोग्राफ Mukul Yadav
#वीडियो #आशीष_पटेल
लमटेरा (Lamtera Bundeli Folk Song) का अर्थ होता है एक लंबी गायकी बुंदेलखंड महाकौशल हिस्से में नर्मदा की यात्रा करते समय लमटेरा गीत गाया जाता है।

26.5.20

"जब भारत के गांव ठहाके लगाते हैं तो शहरों में ठहाके लगते हैं जिसे विश्व सुनता है"


"जब भारत के गांव ठहाके लगाते हैं तो शहरों में ठहाके लगते हैं जिसे विश्व सुनता है"
           मोदी जी ने जब आत्मनिर्भरता पर अपनी बात रखी तो कुछ लोग जोक बनाने लगे । कुछ सोशल मीडिया पर ट्रोल करते नज़र आ रहे हैं । पर हम जैसों को महसूस होता है कि -"गांधी जी ने सही कहा था कि आत्मनिर्भरता ही स्वतंत्रता का आधार है !"
यहाँ संकेत साफ है कि गांधी जी के आत्मनिर्भरता के सन्देश में एक दीर्घकालिक चिंतन था । हर किसी ने उसे लॉक डाउन के दौर में महसूस किया है ।
गांधी जी स्वदेशी के प्रबल समर्थक थे । वे अत्यधिक महत्व स्थानीय उत्पादन को देते थे । यहां तक की वैयक्तिक उत्पादन सबके लिए बहुत प्रेरक था । रुई तकली पौनी का अर्थ बैकवर्ड होना नहीं । हमें इसका अर्थ समझना चाहिए ।
लॉक डाउन के दौर में साफ हो गया कि यांत्रिक विकास से जब पहिए थम गए तब गांव याद आया ।
सबने देखा मज़दूरों और मजबूरों के पांव छलनी हुए थे है न...पसीना चुहचुहाता सड़कों को सींचता हुआ
किसने नहीं देखा ?
      रेल से मारे गए, बुखार ताप से मारे गए पथचारियों का दर्द कवियों ने लेखकों ने भी बखूबी महसूस किया ।
क्या सिर्फ हमें गांव छोड़कर ही तरक़्क़ी के स्वप्न देखा है ? यदि हाँ तो सबसे बड़ी मूर्खता है। शहर में जिस कारखाना मालिक को आप मालिक समझ रहे थे उसने लॉक डाउन में आपको शैल्टर तो छोड़ो खाना भी मुहैया न कराया होगा । वो मौलिक रूप से शोषक था है और कल भी रहेगा ।
मजबूर मज़दूर शायद ही अब बड़े शहरों की तरफ जाएंगे । अगर व्यवस्था, उनको अपने गांव में ही रोटी मुहैया करा दी जाती है । ऐसे संक्रमण काल में सबसे सुखी गांव ही रहेंगे । एक आंकलन से यह तथ्य सामने आया है कि - "कृषि उपज प्रति हेक्टेयर जमीन में उत्पादित होने वाली फसल की मात्रा होती है। ... इसके मुकाबले भारत की उपज 2.0 टन प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 3.6 टन प्रति हेक्टेयर हो गई। इस अवधि में चीन में चावल की उत्पादकता भी 4.3 टन प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 6.7 टन प्रति हेक्टेयर हो गई।"
भारत-चीन तुलना (कृषि क्षेत्र में)
चीन एवम भारत कृषि योग्य भूमि क्रमशः 120 मिलियन हेक्टेयर156 मिलियन हेक्टेयर जबकि चीन का कुल सिंचित क्षेत्र41 और भारत का प्रतिशत 48
सकल बुआई के लिए चीन का कुल क्षेत्र 166 मिलियन हेक्टेयर और 198 मिलियन हेक्टेयर
फिर भी कृषि उत्पादन की कीमत चीन के 1367 बिलियन ( रुपए 103,714.29 बिलियन ) और भारत में 407 बिलियन डॉलर अर्थात 30,879.09 विलयन रुपए मात्र है ।
कृषि आधारित अन्य मुद्दे पर हम पीछे ही हैं । क्योंकि हमने फुलपेंट शर्ट पसन्द आने लगा है । ये अलग पर महत्वपूर्ण मुद्दा है कि - कृषि अनुसंधान स्किल डवेलपमेंट आदि हमारी प्राथमिकता में नहीं है ।
*शहर मुकुराते हैं तो सिर्फ शहर ही मुस्कुराते हैं परंतु जब गांव ठहाका लगाता है तो देश के ठहाके विश्व में गूंजते हैं...!*
विकास का अर्थ सर्वांगीण विकास ही होता है । हमारा परिवार ही आधी शताब्दी पहले शहर में आ बसा गांव से नाता तोड़कर । हमारे गांव के तब के कृषि मज़दूर अब बड़े कृषक हैं । हमसे अधिक सामर्थ्यवान और महत्वपूर्ण भी । अब एक इंच भूमि नहीं है गांव में । और न ही सामर्थ्य शेष है ।
केवल स्थानीय अर्थात 200 किलोमीटर तक ही अनस्किल्ड श्रमिक को पलायन करने की ज़रूरत हो ऐसी व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए । कृषि को सामर्थ्यवान बनाए बगैर किसी बेहतर स्थिति का सपना सपना ही रहेगा ।
22 सितंबर 1931 को गांधी जी से चार्ली चैपलिन से मुलाक़ात हुई आप सब इस तथ्य से परिचित हैं ।
इसका विवरण चार्ली चैपलिन की आत्म कथा में दर्ज है । चैपलिन ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि वे गांधीजी से मुलाकात के लिए कुछ समय पहले ही निर्धारित स्थान पर पहुँच गए थे. चैपलिन ने लिखा “अंततः जब वे (गांधीजी) पहुंचे और अपने पहनावे की तहें संभालते हुए टैक्सी से उतरे तो स्वागत में जयकारों की भारी गूंज उठ पड़ी. उस छोटी तंग बस्ती में अजब दृश्य था, जब एक बाहरी शख्स एक छोटे-से घर में जन-समुदाय के जय घोष के बीच दाखिल हो रहा था.” चैपलिन आगे लिखते है “गांधीजी से तो मैं उम्मीद नहीं कर सकता था कि मेरी किसी फिल्म पर बात शुरू करते हुए कहेंगे कि बड़ा मजा आया. ‘मुझे नहीं लगता था कि उन्होंने कभी कोई फिल्म देखी होगी.’ तो चैपलिन ने ही बात शुरू करते हुए कहा मैं स्वाधीनता के लिए भारत के संघर्ष के साथ हूँ, लेकिन आप मशीनों के खिलाफ क्यों है, उनसे तो दासता से मुक्ति मिलती है, काम जल्दी होता है और मनुष्य सुखी रहता है?”
मशीनों से गांधी जी को कोई एतराज न था वे विरोधी भी न थे वे रेल का सफर करते थे पर वे स्वाधीनता के मशीनों को सापेक्ष रखते ही वे गम्भीर हो जाते और चर्खा तकली रुई पौनी के महत्व यानी आत्मनिर्भरता को श्रेष्ठ मानते थे ।
उधर घर से कम्यून ले जाकर विकास का दम्भ भरते हुए प्रोफेसर चंद्रमोहन जी जो आगे चलकर आचार्य रजनीश हुए ने गांधी जी का भरपूर खंडन किया...और हमारा ब्रेनवाश ।
समाज को समझना होगा कि अगर गांव आत्मनिर्भर न हुए तो बाक़ी सब कयास बेमानी होंगे ।  

25.5.20

Me and my daughter's group

Hi world
Greetings From
This is Balbhavan Jabalpur 

   
balbhavan Jabalpur is  organisation  for  creative activity .  coronavirus pandemic【 lockdown 5 】Bal Bhawan continuously working for their child artist.
We will present BalBhavan's fifth live performance of Unnati Tiwari D/o Mrs Shobhana Tiwari & Mr. Gauri Shankar Tiwari
Unnati brand is  ambassador for #POCSO_ACT awareness campaigning in Jabalpur district . She is appointed by the district collector Jabalpur after recommendation of district programme officer women and child development department Jabalpur.
 Her mother Mrs Shobhana Tiwari is a house manager and her father Mr Gouri Shankar Tiwari is preacher and Purohit . She is a student of 10th class  in Kendriya Vidyalaya CMM Civil Line Jabalpur. Unnati is very laborious student of Bal Bhawan Jabalpur. 
    She is always busy in study as well as in music, oration , poetry and theater  . Unnati is a good performer and always tries  to achieve her goals . Unnati will perform under guidance Dr Shipra sullere call Facebook.
    Unnati wants to be a  collector and administrative officer.
date of performance on Facebook me and my daughter official group of Bal Bhawan Government of MP women child development department
Date: 26th  of May 2020
Tuesday
Time :- 5:30 to 6:15
Kindly! Remember the date and time.
Regards,

Girish K Billore
Director
BalBhavan Jabalpur.

with Dr Shipra sullere music teacher of balbhavan Jabalpur
💐💐💐💐💐💐💐
Please search Scribe Facebook page Me and My daughter's biggest musical concert


#यूट्यूब_लिंक
https://youtu.be/o2FVeBLW6G4

23.5.20

कैसे हो आप सब इस कोरोना काल में ? - सखी सिंह

लेखिका
लेखिका : सखी सिंह 

 भयंकर विपरीत समय चल रहा है जैसे, और ऐसे मे हाल पूछना कितनै सही है ? जबकि इस समय में कुछ राह में भटकते हुये दम तोड़ रहे है और भूंख से बेहाल है, मजबूर है, परेशान है, कुछ लोग अम्फन से भी त्रस्त है और कुछ जिंदगी के द्वारा अचानक सामने रखे गए इस प्रश्न से परेशान हैं कि उम्र के इस मोड़ पर पहुंच अचानक बेरोजगार है हम, अब परिवार का पालन पोषण कैसे हो? बच्चों की फीस कैसे भरे तमाम इतंजाम कैसे करें? जब तनख्वाह देने वाली नौकरी ही चली गयी।
 भारत की बेरोजगारी दर 15 मार्च खत्म हुए हफ्ते में 6.74 प्रतिशत थी, जो मई में बढ़कर 27.11 प्रतिशत हो गई. कुछ रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरी इलाकों में बेरोजगारी दर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक है। लॉकडाउन से दिहाड़ी मजदूरों और छोटे व्यवसायों से जुड़े लोगों को भारी झटका लगा है। 
बड़ी बड़ी कई कंपनियों ने व्हाट्सअप या मेल द्वारा मेसेज कर ढिया की अब उसकी नौकरी हमारे यहां खत्म। जिससे कितने ही लोग आज बेबस और लाचार हो गए हैं। जब हम समझ रहे थे कि हम सुविधा सम्पन्न हैं और विकसित राष्ट्र बन रहे हैं, तभी जैसे अपनी ही नज़र लग गयी हमें और हर तरफ ऑफर तफरी जैसी मच गई।

कुल मिलाकर सबके सामने शुरू से शुरुआत करने जैसी स्थिति आ खड़ी हुई है। अब नए शुरू से क्या और कैसे शुरू हो ये सोचना कितनी जिंदगियों को एक अजब बैचेनी में छोड़ गया हैं। जिंदगी बेज़ार हुई जा रही है और बेकार लोगों की तादात बाद जिसने से सामाजिक परिवेश में और खतरनाक बदलाव के संकेत मिलने आगे हैं। ये साल इतना कुछ भयावह लिए क्यो चल आया है? क्यों सबके इष्ट इतने रुष्ट हैं कि किसी भी तरह की प्रार्थना असर नही कर रही। इस संकटकाल में हर देश और धर्म के लोग अपने अपने घरों में बैठे दर्द से कराह रहे हैं। 

 अब कुछ दिन से  सब कहने लगे है की अब इस कोरोना के साथ ही जिंदगी भर रहना होगा। और सब कुछ रूल्स के साथ फुर खुलने लगा हैं जबकि अब बीमारी ज्यादा फैली हुई है।  ऑफिस खुल गए हैं , दुकानें खुल रही हैं और खुल गए है ज्यादा रास्ते कोरोना के फैलने के। अब बस एक ही रस्ता बचता है जो करना है खुद करो , सेल्फ हेल्प। जबकि हम जानते है सेल्फ हेल्प हम कितनी भी कर ले लेकिन जो कोरोना केरियर है उनके सम्पर्क के यदि हम आप आ गए तो हम भी इस बीमारों के वाहक बन लोगों को संक्रमित कर बैठेंगे। इसलिए आप सभी से प्रार्थना है बिना काम के घर से न निकले और सभी नियमों का पूर्ववत पैलां कर जीवन को पटरी पर लाये। जिससे जिंदगी की रेल फिर सरपट दौड़े अपनी मंजिल की ओर।

#रात #की #बात 

#कोरोना_प्रवासीमज़दूर_अम्फन

20.5.20

स्वमेव मृगेन्द्रता : स्वामी विवेकानंद एवं महात्मा गांधी की प्रासंगिकता


किसे क्या पता था कि युवा सन्यासी सनातनी व्यवस्था को श्रेष्ठ स्थान दिला देगा। लोगों के पास अपने अनुभव और अधिकारिता मौजूद थी। बड़ा अजीब सा समय था। तब हम ब्रिटिश भारत थे औपनिवेशिक वातावरण कैसा हो सकता है यह एहसास 47 के बाद प्रसूत हुए लोगों को क्या जब मालूम ?
लोगों के विचार बापू के मामले में भिन्न हैं कोई कहता है - प्रयोगवादी महात्मा गांधी के socio-political चिंतन में कभी-कभी कमी नजर आती है परंतु ऐसा नहीं है कि वह इस कमी के लिए दोषी हैं।
तो किसी ने कहा - महात्मा ने अध्यात्मिक चैतन्य को प्रमुखता नहीं दी। इसका यह तात्पर्य बिल्कुल नहीं है कि महात्मा गांधी ने आध्यात्मिक चैतन्य की मीमांसा नहीं की वे क्रिया रूप में यह सब करते रहे .
कुछ तो मानते हैं कि गांधी जी चर्खे पर अटके हुए हैं । वे भारत का विकास स्वीकार रास्ता बनाते नज़र नहीं आते !
संक्षेप में कहें तो - लोगों को महात्मा से बहुत शिकायत हैं । इसमें गोडसे को शामिल नहीं किया । गोडसे के संदर्भ में बहुत बातें अलग से हो रहीं हैं और गोडसे ने तो गाँधी के साथ अक्षम्य अपराध किया पर कुछ चिंतक गांधी जी के विचारों को समूल विनिष्ट करते नज़र आ रहे हैं ।
गांधी जी और विवेकानंद दोनों महापुरुषों के जन्म और कार्य अवधि के कालखंड को देखें दोनों ही समकालीन थे । इन दोनों महापुरुषों में एक समानता और है वे भारत को भाषित करने विदेश गए ।
दक्षिण एशिया गए और दूसरे शिकागो। भारत के यह दोनों बेटे अलग-अलग देशों से अपने अपने गंतव्य पर पहुंचे थे। दक्षिण अफ्रीका से राजनैतिक तौर पर भारत में आजादी के स्वरों को मजबूती मिली तो दूसरी ओर शिकागो में भारत के आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली होने की घोषणा की आधिकारिक रूप से कर दी ।
उद्घोषणा करने वाले हमारे महान विद्वान स्वामी विवेकानंद ने भारतीय दर्शन और अध्यात्म का विश्लेषण कर विश्व को चकित और विस्मित कर दिया...महान विद्वान नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद हुए ! फिर स्वामी विवेकानंद ने भारत का भ्रमण किया वे जानते थे कि उन्हें बहुत कम समय मिला है। और इसी कारण से स्वामी ने तेजी से काम किया। वे मानव जीवन में चेतना विस्तार करते रहे ।
1947 के बाद के भारत ने ना तो महात्मा को आत्मसात किया और ना ही विवेकानंद को । मेरी पिछली पीढ़ी पर मेरा यह आरोप गलत नहीं है। गांधी के नाम पर सहकारिता लघु और कुटीर उद्योग स्कूलों में गांधी टोपी चरखा तकली आदि को आत्मसात किया लेकिन इसके पीछे वाले गणित को ना समझने की कोशिश की ना समझाने की। अगर सच में समझ लिया होता तो प्रत्येक गांव प्रत्येक पंचायत आत्मनिर्भर होती। ग्रामीण विकास एवं जमीन आत्मनिर्भरता की बात वर्ष 2020 में करने की जरूरत ना पड़ती वह भी कोरोना के भयावह संक्रमण के बाद आप सबको समझ में आया है कि- "भारत के हर एक गांव को आत्मनिर्भर एवं सक्षम बनाना क्यों जरूरी है..!"
गांधी का चरखा किसी तरह से भी बहुत छोटा मोटा संदेश नहीं दे रहा था। गांधी कह रहे थे नंगे मत रहो अपना कपड़ा खुद बुन लो न ..!
पर हमें तो शहर की जगमगाती रोशनी बुला रही थी और हम थे की पतंगों की तरह उस रोशनी की तरफ भागे जा रहे थे है ना झूठ बोल रहा हूं तो कहिए ?
ठीक उसी तरह विवेकानंद को भी उनकी जन्मतिथि और उनकी पुण्यतिथि पर याद करने की फॉर्मेलिटी कर ली गई। हमने भी कभी स्कूल प्रारंभ किया तो ऐसा ही कुछ किया था। हमारे दौर के लोग भी स्वामी को नहीं जानते जानने के लिए जरूरी अध्ययन चिंतन मनन ध्यान यह सब नहीं किया जाना भी भारत का दुर्भाग्य ही तो है।
कुछ वर्ष पूर्व विवेकानंद को राष्ट्रवाद से जोड़ने की कोशिश करने वाला एक आयोजन हुआ। उस आयोजन में सलिल समाधिया भी एक वक्ता थे। बुलाया तो मैं भी गया था परंतु मैंने नन्हे बच्चों को विवेकानंद जी से मिलाने का संकल्प जो लिया था। सलिल भी मेरे कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे। सलिल को जाना पड़ा और गए जहां उन्होंने यह प्रतिपादित किया कि- " स्वामी विवेकानंद मानवतावादी थे।"
लोग बहुत प्रेक्षागृह के लोग चकित थे ।
सलिल का अपना विचार था स्वीकार्य है सबको स्वीकार्य होना चाहिए स्वामी विवेकानंद किस तरह से उन्हें प्रभावित करते हैं। मुझे तो विशुद्ध आध्यात्मिक मानवतावादी विचारक भारत के ऐसे युवा सन्यासी जिसने ना केवल धर्म और अध्यात्म की अलख जगाई बल्कि उसने यह भी साबित कर दिया कि भारतीय दर्शन में मानवता सर्वोच्च स्थान पर है।
1. अमरीकी भाइयों और बहनों, आपने जिस स्नेह के साथ मेरा स्वागत किया है उससे मेरा दिल भर आया है. मैं दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा और सभी धर्मों की जननी की तरफ़ से धन्यवाद देता हूं. सभी जातियों और संप्रदायों के लाखों-करोड़ों हिंदुओं की तरफ़ से आपका आभार व्यक्त करता हूं.
2. मैं इस मंच पर बोलने वाले कुछ वक्ताओं का भी धन्यवाद करना चाहता हूं जिन्होंने यह ज़ाहिर किया कि दुनिया में सहिष्णुता का विचार पूरब के देशों से फैला है.
3. मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है. हम सिर्फ़ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं.
4. मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूं जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी. मुझे गर्व है कि हमने अपने दिल में इसराइल की वो पवित्र यादें संजो रखी हैं जिनमें उनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तहस-नहस कर दिया था और फिर उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली.
5. मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं जिसने पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और लगातार अब भी उनकी मदद कर रहा है.
6. मैं इस मौके पर वह श्लोक सुनाना चाहता हूं जो मैंने बचपन से याद किया और जिसे रोज़ करोड़ों लोग दोहराते हैं. ''जिस तरह अलग-अलग जगहों से निकली नदियां, अलग-अलग रास्तों से होकर आखिरकार समुद्र में मिल जाती हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा से अलग-अलग रास्ते चुनता है. ये रास्ते देखने में भले ही अलग-अलग लगते हैं, लेकिन ये सब ईश्वर तक ही जाते हैं.
स्वामी विवेकानंद यह उदाहरण शिव महिम्न स्त्रोत से दिया है जो मूल चाहे इस तरह है
त्रयी साङ्ख्यं योगः पशुपतिमतं वैष्णवमिति
प्रभिन्ने प्रस्थाने परमिदमदः पथ्यमिति च
रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिल नानापथजुषां
नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव।
7. मौजूदा सम्मेलन जो कि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, वह अपने आप में गीता में कहे गए इस उपदेश इसका प्रमाण है: ''जो भी मुझ तक आता है, चाहे कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं. लोग अलग-अलग रास्ते चुनते हैं, परेशानियां झेलते हैं, लेकिन आखिर में मुझ तक पहुंचते हैं.''
8. सांप्रदायिकता, कट्टरता और इसके भयानक वंशजों के धार्मिक हठ ने लंबे समय से इस खूबसूरत धरती को जकड़ रखा है. उन्होंने इस धरती को हिंसा से भर दिया है और कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हो चुकी है. न जाने कितनी सभ्याताएं तबाह हुईं और कितने देश मिटा दिए गए.
9. यदि ये ख़ौफ़नाक राक्षस नहीं होते तो मानव समाज कहीं ज़्यादा बेहतर होता, जितना कि अभी है. लेकिन उनका वक़्त अब पूरा हो चुका है. मुझे उम्मीद है कि इस सम्मेलन का बिगुल सभी तरह की कट्टरता, हठधर्मिता और दुखों का विनाश करने वाला होगा. चाहे वह तलवार से हो या फिर कलम से.
【 धर्म सभा का भाषण साभार :- बीबीसी https://www.google.com/amp/s/www.bbc.com/hindi/amp/india-41228101 】
भारत का अध्यात्म भी तो यही कहता है दर्शन भी यही कहता है उसे हम भूल जाते हैं और यह भी भूल जाते हैं किसकी व्याख्या विश्व फोरम पर हो चुकी है।

यहां अल्पायु का योगी मेरे ह्रदय पर आज भी राज करता है। ऐसा क्यों... ऐसा इसलिए कि जब भी भारत भ्रमण पर निकले तो उन्होंने जिन से भी मुलाकात की वह सब के सब भारतीय थे। ना हिंदू न मुसलमान थे ना सिक्ख थे, बौद्ध पारसी ईसाई कुछ भी नहीं थे। दौर ही ऐसा था जी हां इन सब से मिले थे वाह क्या बात है ऐसे विद्वान को मैं अपना भगवान क्यों ना मानूँ है कोई जवाब ?
परंतु कुछ बुद्धिवादी ब्रह्म सत्ता को अस्वीकार्य करते हुए अपने तर्कों और लोगों की अध्ययनगत कमी की चलते हर एक व्यक्ति को कृष्ण को राम को यहां तक कि भारत को ही नकारने किसी चेष्टा की है।
देश काल परिस्थिति के अनुसार धर्म सूत्रों की व्याख्या करनी चाहिए। लेकिन कुछ लोग जीवनशैली के मामले में और सामाजिक लोक व्यवहार के मामले में बनी बनाई परंपराओं को पकड़कर चलते हैं तो कुछ लोग अनावश्यक विद्रोही स्वरूप धारण कर लेते हैं। अब कोरोनाकाल को ही ले लीजिए अब जब सड़कों पर मजदूर मर रहे हैं तो दूसरे मजदूर यह सोच रहे हैं हम क्यों गए ? गांधी ने तो कहा ही था न की आत्मनिर्भर बनो ग्राम सुराज को मजबूत करो ।
भ्रमित मत रहो।
यहां तर्क शास्त्री आचार्य रजनीश को कोट करना चाहूंगा वे कहते थे कि- "महात्मा गांधी सोचते थे कि यदि चरखे के बाद मनुष्य और उसकी बुद्धि द्वारा विकसित सारे विज्ञान और टेक्नोलॉजी को समुद्र में डुबो दिया जाए, तब सारी समस्याएं हल हो जाएंगी। और मजेदार बात इस देश ने उनका विश्वास कर लिया! और न केवल इस देश ने बल्कि दुनिया में लाखों लोगों ने उनका विश्वास कर लिया कि चरखा सारी समस्याओं का समाधान कर देगा।"
और अब सारा विश्व समझ रहा है चरखे, तकली, रुई पौनी के जरिए वह प्रयोगवादी बुजुर्ग क्या कह गए थे ।
वापस लौटता गोबर का खाद वापस लौटते वे लोग दो बैलों के गोबर को पिछड़ेपन का प्रतीक मानते थे किसी सेठ की फैक्ट्री के श्रमिक होकर स्वयं को विकसित मानते थे विस्तारित पल उन्हें याद आ रहे होंगे रास्ते भर । भारत की उपजाऊ भूमि पर लोगों के अभाव में जगह-जगह उगते इंजीनियरिंग कॉलेज ना पेट भर पा रहे हैं ना किसी को भी जीने की गारंटी दे रहे हैं।
रहा स्वामी विवेकानंद का प्रश्न तो उन्होंने कभी भी न तो वैचारिक रूप से उग्र बनाया और न ही उग्रता का युवाओं को पाठ पढ़ाया। इसीलिए मुझे प्रिय हैं पूज्य स्वामी विवेकानंद जो शिवांश है यानी शिव का अंश है।
यहां एक और उदाहरण दे रहा हूं। विवेकानंद ने आम भारतीय को आध्यात्मिक रूप से योगी बनने की सलाह दी थी। नई सलाह तो ना थी । भारत के अधिकांश महर्षि विद्वान और महान व्यक्तित्व गृहस्थ हुआ करते थे। उन्होंने प्रपंच अध्यात्म योग का संक्षिप्त हिंदू जरूरी विश्लेषण कर दिया था। जबकि आचार्य रजनीश ने नव सन्यास के नाम पर लोगों को कुछ अजीब सा विचार दे दिया। मित्रों मेरी दृष्टि से नव सन्यास उपलब्ध सुविधाओं विलासिता के साथ सन्यासी हो जाने का अनुज्ञा पत्र यानी लाइसेंस था।
और यह लाइसेंस उनके साधकों के लिए उपयोगी हो सकता है लेकिन समुद्र सनातन व्यवस्था के लिए तो बिल्कुल नहीं।
यहां एक जानकारी देना चाहता हूं कि प्रपंच अध्यात्म योग को विस्तार देने वाले समकालीन ब्रह्मलीन स्वामी शुद्धानंदनाथ ने अपने साधकों को एक आचार संहिता के साथ इस योग को अपनाने की अनिवार्यता और महत्व को प्रतिपादित किया।
*ब्रह्मलीन स्वामी शुद्धानंदनाथ* एक सन्यासी थे उनका कार्यक्षेत्र सतना मैहर कटनी जबलपुर नरसिंहपुर गाडरवारा सालीचौका रहा है। 【नोट-इससे अधिक जानकारी मैं व्यक्तिगत रूप से नहीं देना चाहता कभी उन पर लिखूंगा सब विस्तार से जानकारी दूंगा।】
स्वामी शुद्धानंदनाथ के संदेशों थे आज्ञा से लगता है कि वे बिना वन गमन किए योगियों की तरह तप के बगैर गृहस्थों को आत्म परिष्कार का पथ दे गए।
परंतु यहां नव सन्यास का स्वरूप ही अजीबोगरीब देखा जा रहा है।
मित्रों जो लिखा है वह मेरा व्यक्तिगत विश्लेषण है। जो यह साबित करने के लिए पर्याप्त है भारत के महापुरुष स्वामी विवेकानंद के बिना भारत के आदर्श स्वरूप हो समझना और समझाना कठिन है।
आत्मनिर्भरता का अर्थ अनर्थ करने वालों को सतर्क रहना चाहिए प्रधान सेवक वही कह रहा है जो गांधी ने कहा था। गांधी के प्रयोगों का तात्पर्य समझना आज भी आवश्यक है भविष्य के लिए भी आवश्यक है। और स्वामी विवेकानंद को अपने चिंतन में समाहित कर लेना  आज की अनिवार्यता है।
  सदियों बाद भी आप हम जब ना होंगे तब भी गांधी और विवेकानंद अवश्य होंगे। बहुत सारे ढांचे गिर जाएंगे विकास सूर्य में घर बनाने तक का संभव हो सकता है परंतु वहां भी गांधी विवेकानंद प्रासंगिक होंगे। जहां मानवता है वहां यह दोनों महानुभाव आवश्यक हैं आवश्यक थे और आवश्यक रहेंगे। आचार्य रजनीश को सिरे से खारिज करता हूं गांधियन थॉट्स के मामले में मैं उसे नहीं कह रहा हूं ना उन्हें भगवान कह रहा हूं और आवश्यक भी नहीं भारत तो सनातन का पक्षधर है। सहिष्णुता समग्रता और आत्मनिर्भरता भारत के मूल में है .

14.5.20

स्वमेव मृगेन्द्रता : स्वामी कल्पतरु



मोनालिसा, बुद्ध,और भारत के अशोक स्तंभ में दिख रही कोई 3 शेरों की मुस्कुराहट इसलिए कह रहा हूं कि चौथा शेर हमेशा छुप जाता है यह चारों शेर मुस्कुराते हैं । इसी क्रम में पालघर से ईश्वर के घर तक की यात्रा करने वाले योगी कल्पतरु की मुस्कुराहट हजारों हजार साल के बाद सामने आई है । ऐसी मुस्कुराहट कभी प्रभात लाखो हजारों वर्ष बाद नजर आती है। यह मुस्कान नहीं निर्भीकता की पहचान है।
देखो ध्यान से देखो मृत्यु पूर्व निर्दोष पवित्र और आध्यात्मिक मुस्कुराहट कभी देखी है किसी ने यह वही है इस मुस्कान को अगर परिभाषित करना चाहूं तो मेरा कहना है कि *यह आत्मा की मुस्कान है*। योगी कल्पतरु के साक्षी भाव का परिचय। आत्मा समझ रही है कि उसे अब निकलना होगा आत्मा हँस रही है मूर्खों पर
यह भी कह रही हो शायद ईश्वर इन्हें माफ कर देना ये नहीं जानते कि यह क्या कर रहे हैं। प्रभु यीशु में ऐसे निर्देश नहीं दिए थे ?
परंतु मूर्खों ने अकेले लगाकर एक जुर्म कर दिया। मैं यहां यीशु को जानबूझकर कोट कर रहा हूं । हे हत्यारों पहचान लो सनातन में प्रेम है अखंडता है समरसता है इसने है करुणा है। वही करुणा जो कुष्ठ रोगियों के शरीर से मवाद साफ करने वाली मां टेरेसा ने महसूस की थी।
ईश्वर की अदालत में यही एकमात्र साक्ष्य जाएगा और बाक़ी सब बाकी सब तुम संसारी लोग निपटते उलझते रहना..!
यही है *स्वमेव मृगेन्द्रता* यानी जो जन्मजात महान है वह महान सिंहासन पर आसीन हो ही जाता है। अर्थात आपने किसी भी शेर का राज्य अभिषेक होते देखा क्या..?
स्वामी कल्पतरु इस तरह एक शेर की तरह खुद को मेरे जेहन में तो स्थापित कर गई आपकी आप जाने...!
फिर पूछता हूं आपने देखी है कभी ऐसी मुस्कान नहीं ना बिल्कुल नहीं देखी होगी ?
देखेंगे भी कैसे ? इसे देखने समझने के लिए बुद्ध के रास्ते क्रूस पर जाने वाली प्रभु यीशु को समझना होगा। चलिए पहले महात्मा बुद्ध को समझते हैं।
महात्मा गौतम बुद्ध सिद्धार्थ ही बने रह जाते सिद्धार्थ तो उनका भी राज्याभिषेक हो जाता ?
परंतु सिद्धार्थ तो स्वमेव मृगेन्द्रता को ही सार्थक करना चाहते थे ना ? बस फिर क्या था तुरंत सिद्धार्थ ने राजकुमार वाले अपने लबादे को उतार फेंका संसारी लोग इसे मूर्खता कह रहे होंगे ?
लोग क्या जाने कि सिद्धार्थ को बड़ा राज्य चाहिए दूसरी ओर बड़ा राज्य हाँ...बहुत बड़ा राज्य सिद्धार्थ की प्रतीक्षा कर रहा था शो सिद्धार्थ बुद्ध हो गए। और फिर ऐसा मुस्कुराए कि उनकी मुस्कुराहट देखकर ना जाने कितनी पीढ़ियाँ उसके रहस्य को समझने के लिए आध्यात्मिक यात्रा कर चुकीं है और यह जात्रा पहले जारी है !
मैंने भी भज गोविंदम भज गोविंदम कहते कहते इस जात्रा में शामिल होना तय किया है आप भी करो मुस्कुराहट का मतलब समझ जाओगे।
बुध के मामले में जब कभी भी चिंतन करता हूं तो लगता है कि उनके साथ जन्म लेता तो बार-बार जन्म नहीं लेना पड़ता।
ईश्वर बार-बार जन्म नहीं लेता स्वेच्छा से आ जाता है अवतार बनकर। लौकिक क्रिया करता है ! चला जाता है ! मैं ईश्वर हूं अहम् ब्रह्मास्मि कहा तो है वेदों में..! इसका मतलब यह नहीं कि आप सब मुझे ईश्वर कहने लगे समझने वाली बात यह है की वही समर्पण और संविलियन का भाव मुझ में होना चाहिए। अहम् ब्रह्मास्मि और थोड़ी सी क्रियाएं करने वाले कुछ लोग तो निरर्थक दावा मी कर देते हैं कि मैं भगवान हूं!
जैसे आदरणीय चंद्र मोहन जैन बनाम प्रोफेसर चंद्र मोहन जैन बनाम आचार्य रजनीश बनाम भगवान रजनीश बनाम ओशो !
आत्म उद्घोषणा से कभी कोई भगवान होता है क्या संसारी भी यही सोचते हैं अध्यात्म भी यही कहता है। जो उद्घोषणा करता है वह भगवान नहीं होता वह ओशो भी नहीं होता वह क्या होता है उसे स्वयं वही व्यक्ति स्वयं जानता है या उसका ईश्वर।
कई बार लगता है स्वयंभू के होते हैं लोग। स्वयंभू होने की जरूरत ही क्या है अरे भाई सीधी सी बात है जैसे हो वैसे सामने आ जाओ जो हो वही बन कर आओ निरर्थक अक़्ल ना लगाओ।
यादें अदम गोंडवी साहब ने क्या कहा है
अक़्ल हर चीज़ को, इक ज़ुर्म बना देती है
बेसबब सोचना, बे-सूद पशीमा होना ..!
यहां रियासत में सियासत में रिवायत में सब में लोग अक़्ल लगा देते हैं। अदम साहब आपने सच्ची सच्ची बात कह दी हम भी यही कहते हैं मिर्ची लगती है ! मैं क्या करूं...?

मृत्यु…!!
तुम
सच बेहद खूबसूरत हो
नाहक भयभीत होते है
तुमसे अभिसार करने
तुम बेशक़ अनिद्य सुंदरी हो
अव्यक्त मधुरता मदालस माधुरी हो
बेजुबां बना देती हो तुम
बेसुधी क्या है- बता देती हो तुम
तुम्हारे अंक पाश में बंध देव सा पूजा जाऊंगा
पलट के फ़िर
कभी न आऊंगा बीहड़ों में इस दुनियां के
ओ मेरी सपनीली तारिका
शाश्वत पावन अभिसारिका
तुम प्रतीक्षा करो मैं ज़ल्द ही मिलूंगा !!
यह भाव ले आओ और मुस्कुराओ बुद्ध की तरह मोनालिसा की तरह और सारनाथ स्तंभ के शेरों की तरह यही तो है
*स्वमेव मृगेन्द्रता*
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

9.5.20

"तेरे हाथ की तरकारी याद आती है अम्मा ओ अम्मा"

"मदर्स डे के अवसर पर भावात्मक एलबम अम्मा यूट्यूब पर जारी "

"तेरे हाथ की तरकारी याद आती है अम्मा ओ अम्मा"
*बहुत कम बोलते हैं बाल नायक मृगांक, सब कुछ कहा करतीं आँखें...!*
मदर्स डे 10 मई 2020 के 2 दिन पूर्व यानी 8 मई 2020 को Indie Routes ने एलबम अम्मा रिलीज़ कर दिया रिलीज के आधे घंटे के भीतर इस एल्बम 1000 दशकों तक पहुंच गया। इस बार आभाष-श्रेयस जोशी ने फिर एक बार रविंद्र जोशी के शब्दों को गुनगुनाया है । इन पंक्तियों के लिखे जाने तक एल्बम को देखने वाले दर्शकों की संख्या 4000 से ज़्यादा हो गई है। फीडबैक से पता चला है कि एक ओर बेतरीन निर्देशन संगीत और लिरिक्स की वजह से एलबम स्तरीय है वहीं माँ और पुत्र के कैरेक्टर्स का अभिनय बांधता भी है भिगोता भी है । 
इस एलबम में जबलपुर के बाल कलाकार मृगांक उपाध्याय ने आंखों को भिगो देने वाला काम किया है । माँ की भूमिका में श्रीमती ज्योति आप्टे नज़र आईं 
वीडियो एल्बम के गीत का लेखन रविंद्र जोशी ने निर्माण एवं निर्देशन श्रीमती हर्षिता जोशी ने किया। इस एल्बम में स्वर एवं संगीत श्री श्रेयस जोशी एवं आभास जोशी का है । 
डायरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी हरि नाथ गोविंदन विष्णु की सिनेमेटोग्राफी ने एलबम बेहद प्रभावी बन गया है ।

Mrugank is my favourite student in Bal Bhavan jabalpur
😊😊😊😊😊😊😊😊
Name - Mrugank upadhyay 
Dob-5/10/2007 
School -- St Aloysius school polipather, Jabalpur MP Class--8th, 
performing art --tabla 3rd year in BalBhavan Jabalpur MP 
Contact - please call me on 7999380094 or mail me 
girishbillore@gmail.com 

https://youtu.be/d2IvZLKA8vs 
💐💐💐💐💐

7.5.20

गुलाबी चने, यूएफओ किचन, गोसलपुरी लब्दा और लोग डाउन 3.0


लॉक डाउन के तीसरे पार्ट में Udan Tashtari यानी जबलपुरिया कनाडा वाले भाई समीर लाल से जानिए एक ऐसी रेसिपी जो शाम को आप चाय के साथ जरूर ले सकते हैं । इसके लिए आपको काले चने बनाने के आधे घंटे पहले पानी में भिगो लेना और बाकी क्या करना है समीर लाल से जानी है.. समीर लाल जी के चैनल को सब्सक्राइब कर लीजिए अरे भाई किसी दिन मुझसे कोई चूक हो गई तो मुश्किल होगा ना आप तक नई रेसिपी पहुंचेगी कैसे।
याद होगा जब हम स्कूल जाते थे तो उबले हुए चने इसमें नमक मिर्च वाह और हां सूखे हुए उबले बेर का लब्दा बहुत बढ़िया लगता था। सुबह वाले स्कूल में लगभग नो 9:30 बजे लंच ब्रेक होता था। और तब गोसलपुर में स्कूल के सामने इमली के पेड़ के नीचे #लब्दा वाली बऊ दस्सी पंजी की उधारी भी हो जाती थी पर चने वाला दादा बहुत दुष्ट था उधार नहीं देता था। जेब खर्च में मिले चार आने बहुत होते थे भाई। आधे रुपए में यानी अठन्नी में तो बिल्कुल दादा के दुकान नुमा घर में बैठकर चटपटी चाट खा लेते थे। खास बात यह थी कि चाट के साथ पानी भी मिल जाता था। आधी छुट्टी के बाद श्रीवास्तव मशाल अंग्रेजी पढ़ाने आते थे। जो कभी आते ही ना थी। कहां रहते थे क्या होता था उन्हें अंग्रेजी आती भी थी कि नहीं ऊपरवाला जाने। तो क्लास रूम में पहुंचने में किसी भी तरह का डर नहीं था। बड़कुल दादा की होटल जो घर ही था में कितनी भी भीड़ हो बेफिक्री से नाश्ता किया जा सकता था। और हां अगर दो या तीन रुपए का जुगाड़ हो गया तो समझो कि हमसे बड़ा राजकुमार आसपास नजर ही नहीं आता। तो मित्रो बात निकली और दूर तक चली गई चुपचाप इस रेसिपी को याद कर लीजिए। अच्छा कई लोगों को याद भी नहीं रहता तो कोई बात नहीं ऐसा कीजिए भाभी से कहिए किचन में ना घुसे और यूट्यूब पर मौजूद इस वीडियो को चालू करके बना लीजिए चटपटा चना। और एक बात कान में सुन लीजिए सुन रहे हो अब तो आपके अमृत रस की दुकानें भी खुल चुकी हैं उन दुकानों से मंगा लीजिए एक बोतल आधी बोतल अगर आपको शौक है तो और चखने के तौर पर चटपटे काले चने के साथ मिर्जा गालिब बन जाए ध्यान रहे ज्यादा नहीं उतनी ही जितनी रोजिना लेते हो

ग़ालिब ' छुटी शराब , पर अब भी कभी-कभी
पीता हूँ रोज़े-अब्रो-शबे-माहताब में ।
और फिर गुनगुनाए मेरे चंद शेर अरे चलिए पूरी ग़ज़ल की सही यह रही वो ग़ज़ल ताज़ा है -
कुछ और दे ना दे मुझको शराब तो दे दे ।
वह भी न दे खरीदने को माल'ओ असबाब तो दे दे ।।
एहसास ए समंदर हूं, तेरे वज़ूद का -
तू है कहीं, मुझे भी कोई एहसास तो दे दे ।।

मंदिर के ताले बंद हैं, सनम है मिरे घर में ,
तू भी इन्हें कुछ ऐसे ही एहसास तो दे दे ।।

है घुप्प अंधेरा, उसे जाना है बहुत दूर,
तू साथ है उसके, ये ऐसा
आभास तो दे दे ।।

मांगा नहीं है तुझसे कभी, पसारे नहीं हैं हाथ ।
दाता है मुकुल सबको, यह एहसास तो दे दे।
https://youtu.be/Trtd-esCymc

2.5.20

कोटा : एजुकेशनल स्टेटस सिंबल धराशाही / इंजीनियर सौरभ पारे



महामारी के इन कठिन दिनों में एक नया विचार मन में आ रहा है।
कोटा शहर के कोचिंग संस्थानों में पढ़ने गए बच्चे बड़ी मशक्कत और कष्ट सहने के बाद अपने गृह-ज़िले में पहुँचे हैं।
प्रश्न यह है कि क्या बच्चों को अपने से दूर भेजना ज़रूरी था क्या?
क्या हम अपने शहर में ही बच्चों को पढ़ा नहीं सकते?

हमारे बच्चे का खयाल *हमसे* अच्छा कोई नहीं रख सकता।

कोई भी परीक्षा का परिणाम किसी बच्चे के जीवन से बढ़ कर तो नहीं!

अभी लॉकडाउन खुलने के पश्चात फ़िर ये प्रक्रिया होने वाली है,
"महाविद्यालयों में होने वाले एडमिशन"।
हमारी जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा एडमिशन की लाइन में लगेगा, जिसके कंधों पर अपने परिवार के सपनों का बोझ होगा।

हम सभी यह सोचते हैं कि बड़े बड़े महानगरों के बड़े कॉलेजों में अपने बच्चों को पढ़ाएंगे, बड़े महानगर में बच्चे का भविष्य सुरक्षित होगा...
अपने से व घर से दूर रह कर उनका भविष्य उज्ज्वल होगा,अच्छा भविष्य चाहिए तो घर से दूर रहना जरूरी है, यह सोच सर्वथा अनुचित है।

आज समय की मांग है कि बच्चों को घर से इतनी दूर न भेजा जाए कि ऐसी प्रतिकूल परिस्तिथी में वे चाह कर भी अपने घर नहीं आ सकें।

हम सभी सदा अपने से दूर के संसाधनों को उत्तम तथा अपने आसपास स्थित संसाधनों को दोयम दर्ज़े का समझते हैं, परंतु असल में ऐसा होता नहीं है। आज आपके शहर में स्थित महाविद्यालय में पढ़े हुए बच्चे, दुनिया में नाम कमा रहें है, कोई व्यवसाय के क्षेत्र में अग्रणी हो रहा है,
कोई यहां पढ़ने के बाद उन महानगरों में बहुत अच्छी नौकरी कर रहा है, तो कोई विदेशों में भारत का नाम रोशन कर रहा है। यह आपके शहर के या आसपास के ही शिक्षण संस्थान में पढ़े हुए बच्चे हैं, जिन्हें हम दोयम कह कर नकार देते थे।

जब यह सब अपने घर के आस पास रह कर पढ़ाई करे हुए बच्चे कर सकते हैं, तो उन्हें अपने से दूर क्यों भेजा जाए?

अंत में, अब यह सोचने का समय आ गया है कि हमारी आंख के तारों को क्या हमें इतनी दूर भेजना उचित है,
या तकनीक के इस दौर में अपने शहर के ही महाविद्यालयों में बच्चों का एडमिशन करवाना। इससे हमें हमारे बच्चों की भविष्यत की चिंता भी नहीं रहेगी तथा उनपर सदा आपकी नजर भी रहेगी।

28.4.20

उत्तरकांड और कुमार विश्वास की जबरदस्त अभिव्यक्ति

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 कुमार विश्वास कि इस अभिव्यक्ति से से पूरी तरह सहमत हूं...! मैं यहां तक सहमत हूं की बहुत सारी चीजें पोट्रेट की गई है राम के खिलाफ। और उसे मुखर होकर अभिव्यक्त भी किया गया है जो इस संस्कृति का दुर्भाग्य है। मेरा मानना है कि राम एक ऐसे व्यक्तित्व के धनी है जो है तो मानव किंतु देवांश है। यह तो देवांश हम सब है अद्वैत मत को अगर आपने पढ़ा है तो देवांश है। यह कथानक बहुत जटिल नहीं है। कथानक बहुत सहज और सरल है। यह कथानक इसलिए भी अत्यधिक लोकप्रिय है क्योंकि हमारा नायक राम है करुणानिधान राम मर्यादा पुरुषोत्तम राम। दुर्भाग्य यह है कि किसी को भी नेगेटिव पोट्रेट करने की युग युग से परंपरा रही है।
*कुमार अध्ययन शील व्यक्ति हैं*
लेकिन सिर्फ अध्ययन शील ही नहीं मर्म को समझते हैं इसमें कोई शक नहीं कि वे यह जान चुके हैं कि कोई किसी को भी कुछ भी पोट्रेट कर सकता है। भारत एक असहिष्णु सनातन प्रणाली पर आधारित व्यवस्था है। उससे अफवाह फैलाने वाले और झूठी चुगली करके वातावरण निर्मित करने वाले आहत लोगों को बल भी मिला है।
राम के बारे में एक स्पष्ट तथ्य यह है कि वे किसी भी हालत में रावण को मारना नहीं चाहते थे राम का उद्देश्य था रक्ष संस्कृति को समाप्त करने का।
राम ने रावण को क्यों मारा इस विषय पर एक आर्टिकल आप गूगल करके देख लीजिए स्पष्ट हो जाएगा सूर्यवंश ने रक्ष संस्कृति के समापन का संकल्प लिया था। यह भी सत्य है कि भगवान श्री राम भक्तवत्सल अर्थात करुणानिधान थे। यह एक राजनीतिक घटना थी स्वयं दशरथ ने राम को रावण को सत्ता से अलग करने का आदेश दिया था। उनकी योग्यता पर रखने के लिए उन्हें किसी भी तरह का सहयोग नहीं दिया। अर्थात वे चाहते थे की राम स्वयं अपनी संगठनात्मक शक्ति का प्रयोग करते हुए एक स्ट्रैटेजिक प्लान करें और रक्ष संस्कृति के पुरोधा को सत्ता से पृथक कर दें। राम ने जिस मार्ग को चुना उस मार्ग में बहुत सी ऐसी प्रजातियां थी जिनमें युवाओं की संख्या उनकी सैन्य आवश्यकता के अनुरूप थी । ना राम के शिष्य वानर थे न रीछ थे ना पशु थे। हां अभी शब्द वानर थे। वानर शब्द का विश्लेषण 2 तरह से किया गया है *वन के नर*
और *युवा नर*
जी हां राम ने ही
उन्हें सुगठित कर उन्हीं की क्षमता युद्ध ज्ञान और योग्यता को सुव्यवस्थित कर स्वयं को युद्ध के अनुरूप ढाला।
यह राम की संगठनात्मक क्षमता का एक परिचय है ।  यह स्थिति का उल्लेख इसलिए किया जा रहा है क्योंकि राम  एक कुशल राजनीतिक भी थे। उन्होंने रक्ष संस्कृति का उन्मूलन किया और रावण के द्वारा कैद किए गए सारे वैज्ञानिक चिकित्सक अर्थशास्त्री सभी को मुक्त कराया। यहां विस्तार से लिखा जाना मुश्किल है ( रक्ष संस्कृति और उसकी कार्यप्रणाली पर कभी पृथक से आलेख दे सकूंगा) अब सोचिए ऐसा व्यक्ति क्या सीता को पुनः वन भेजने का आदेश दे सकते हैं
अथवा जो प्रेम मगन शबरी के झूठे बेर खा सकते हैं वे शंबूक का वध कर सकते हैं ?
कदापि नहीं ।
राम ने बाली को पेड़ की आड़ से मारा इस पर भी बहुत बार प्रश्न तर्क वादियों और वामपंथियों ने किए हैं ? प्रश्न कर्ता यह नहीं जानते के रामायण कालीन समय में प्रयुक्त तीर का स्वरूप क्या था। ट्रेन में मुझे डीआरडीओ के एक युवा वैज्ञानिक से मिलने का असर मिला। वैज्ञानिक वैज्ञानिक से पूछा कृपया यह संभव है कोई  ऐसाे वेपन रामायण काल में बाली के पास रहा होगा जो उसकी ओर आने वाले वेपन की क्षमता को निष्प्रभावी कर दे। उस युवा वैज्ञानिक ने बताया कि यह पूर्ण तरह संभव है कि कोई ऐसा वेपन भी हो सकता है जो न केवल राम के पास उपलब्ध वेपन को निष्क्रिय करें और लक्ष्य तक घात कर उसे नुकसान पहुंचाए। अर्थात सामने वाले योद्धा आयुध  शक्ति को कम कर सकने वाला वेपन तब विकसित कर लिया होगा ।
तर्क वादी और वामपंथी लोग  रामायण काल्पनिक मानते हैं कवियों ने राम कथा को लोक रंजक बनाया उसमें तुलसीदास भी शामिल है। उनका उद्देश्य यह था की राम को सामान्य से सामान्य बौद्धिक क्षमता वाली जनता में नायक के रूप में स्थापित किया जा सके।

अत्यधिक लोकेषणा के शिकार हैं हम


सूचना क्रांति के युग में हम सब लोकेशणा के अत्यधिक शिकार हो गए हैं।
  गलती हमारी नहीं है।
  गलती हमारी तब मानी जाती जबकि हम बुद्धि का इस्तेमाल बुद्धि के होते हुए ना कर पाते। इस पंक्ति का अर्थ स्वयं ही  निकलता जाएगा... आलेख में आ गई पढ़ते जाइए और आईने में खुद को निहारिए। हम अपना चेहरा देखकर खुद डर जाएंगे।
   पूज्य गुरुदेव स्वामी श्रद्धानंद कहते थे नाटक बनो मत इससे उलट हम नाटक बन जाते हैं।
एक अंगुली दुख समीक्षा ग्रंथ सी
यह हमारी वृत्ति है। इसका एक दूसरा स्वरूप भी है हम जरा सा करते हैं और उसे बहुत बड़ा प्रचारित करने की कोशिश करते हैं।
बहुत सारे फोटो आते हैं पत्रकारों के पास  यह अच्छे-अच्छे फोटो आते हैं । इन फोटो में लॉक डाउन और सोशल डिस्टेंस का पालन किए बिना फोटो के एंगल पर विशेष ध्यान दिया जाता है। कभी-कभी तो पीछे से फोन दिया जाता है भैया नाम वाम देख लेना ज़रा ?
ईश्वर की आराधना का डॉक्यूमेंटेशन
कुछ लोग ऑनलाइन होकर कथित तौर पर अपनी साधना का विज्ञापन दे रहे हैं इतना ही नहीं उसकी विज्ञप्ति बनाकर भी भेज रहे हैं। प्रेस के पास जगह है छाप भी रहा है। यह प्रेरक गतिविधि नहीं है यह आत्मा प्रदर्शन का एक तरीका है। लोगों को यह सोचना चाहिए कि- " हमने ईश्वर की आराधना की हमारी और ईश्वर के बीच के अंतर संबंधों के लिए यह बहुत उपयुक्त प्रैक्टिक अथवा प्रक्रिया है। बहुत लोग आराधना कर रहे हैं चिंतन कर रहे हैं ध्यान कर रहे हैं अच्छा लग रहा है पर कुछ एक लोग विज्ञप्ति बनाकर अखबारों में भेज रहे हैं। सेवा और आराधना करने का डॉक्यूमेंटेशन करना इन संदर्भों में उचित है यह प्रश्न  है ?
जबकि हिमालय की कंदराओं में तपस्या करने वाले योगी गण अखबार में विज्ञप्ति देते फिरते हैं क्या या कोई कैमरामैन ले जाते हैं अपने साथ। सोचिए ईश्वर की आराधना पर केंद्रित खबर अखबारों में छपी और उस आराधना की खबर की कटिंग प्रभु के पास भेजी जा सकती है ना ही गरीबों को भोजन कराने की सेल्फी सूचना मां अन्नपूर्णा को पृष्ठांकित की जा सकती है । 
सोशल मीडिया पर ऐसी तस्वीरें जमके डाली जा रही है। और खुद कोई और डाले तो कहानी समझ में आती है कि चलिए इनके काम से प्रभावित होकर किसी ने तस्वीर पोस्ट कर दिया घटना का जिक्र कर दिया अच्छा लगता परंतु यह क्या। जबलपुर कलेक्टर जो 12 से 14 घंटे कार्य कर रहे हैं अपनी टीम के साथ इसके अतिरिक्त वे लोग जो दिनभर खटतें चाहे डॉक्टर सफाई कर्मी सरकारी कर्मचारी हूं राजस्व विभाग के अधिकारियों उनको कभी भी हमने अपनी तस्वीर शेयर करते नहीं देखा। परंतु जो घर में बैठे हैं वह जरूर इस दौड़ में शामिल है कि कैसे हमारा नाम पब्लिक जानने लगे और किस तरह मौके का फायदा उठा कर माइलेज लिया जाए।
  मेरे दो मित्र हैं प्रतिदिन लगभग  ₹700 का घास पशुओं को खिलाते हैं वहीं कुछ आंगनवाड़ी कार्यकर्ता घर से रोटियां बना कर गली के कुत्तों को खिलाती है यह सब बात जब मुझे पता चली तो मैंने कहा इन सबसे बढ़िया समाचार बनाया जा सकता है उन्होंने कहा बिल्कुल नहीं क्योंकि ड्यूटी के साथ अगर हम यह कर रहे हैं तो यह ईश्वर का काम है और इसे प्रचारित करना हमारे काम की कीमत को कम कर देगा। जनता की शुभकामनाएं जरूर मिलेंगी लेकिन सर हमें तो ईश्वर का आशीर्वाद चाहिए हम चाहते हैं कि ईश्वर आशीर्वाद स्वरुप हमें इस कठिन समय से से मुक्त कर दें।
     हमने कहा भाई हम बिना नाम के भेज देते हैं ताकि और लोग प्रेरित हो पर फोटो तो चाहिए फोटो भी भेजना जरूर विवरण तो हमने नोट कर लिया था उन अधिकारियों ने फोटो भेजें जिसमें उनका चेहरा नहीं था। यही है सच्चे वारियर हैं ।
            हम घर में बैठे बैठे अनुमान नहीं लगा सकते कि भारत कितना बदल रहा  है कितना आध्यात्मिक हो गया है जीवन का सच हमको लोकेषणा  से दूर रहना होगा फोटो इज अवर मोटो से बचना होगा इस आध्यात्मिक सोच को आगे बढ़ाइए। क्योंकि अखबार की कटिंग ईश्वर तक भेजने के लिए कोई साधन नहीं है और  न ही ईज़ाद  हुआ है।
              😢😢😢😢😢
कुंठित लोग मेरे विचार से क्रुद्ध हैं
आज़ एक  मजेदार बात हुई इस आलेख को मैंने अपने समाज के एक समूह में पेश कर दिया । दो लोग तत्काल नाराज हो
 गए और  स्वभाविक  था नाराज होना क्योंकि उन्होंने भी कुछ ऐसा ही किया था। शाम होते-होते पूरी गैंग एक्सपोज हो गई। अब बताइए ईश्वर की आराधना का प्रचार करना कहां तक उचित है। कुंठित लोगो  से तो बाद में ने निपटता रहूंगा आपको एक बात अवश्य बता देता हूं दान और आराधना तुरंत महत्वहीन हो जाती है जब इसका प्रयोग आप आत्म प्रदर्शन के लिए करें।
              😢😢😢😢😢
मित्रों अब पर्याप्त समय है टाइम मिलता है लिखने का मन भी करता है शुभ कल रात को यह आलेख लिखा है आप अपनी नाराजगी कमेंट बॉक्स में व्यक्त कर दीजिए
☺️😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊

24.4.20

रहस्यमई जबलपुर शहर : भयंकर आपदा में भी सुरक्षित रहता है

मग्गा बाबा और स्वामी शिवदत्त जी
महाराज गोसलपुर वाले
ओशो के शब्दों में मग्गा बाबा की कहानी मुझे याद आ गई तो सोचा क्यों ना ऐसे ही रीड कर लिया जाए। मैं मग्गा बाबा वाला किस्सा पढ़ रहा था तब मुझे सारे शरीर में शहर अंशी हो रही थी रोंगटे भी खड़े हुए। और मुझे एहसास हो गया कि इस शहर को ध्वस्त होने से बचाने वाले 2 लोग हैं एक मशीन वाले बाबा जिन्होंने जबलपुर को भूकंप से बचाया अपने सीने पर लिया वह कष्ट। और उससे कई वर्ष पूर्व मग्गा बाबा थे ।
मशीन वाले बाबा को तो आप सब जानते ही हैं। पर मग्गा बाबा को जानने के लिए खुद आचार्य रजनीश को आना पड़ता था। यह तो मग्गा बाबा और आचार्य रजनीश के बीच के आध्यात्मिक अंतर्संबंध की बात है और दोनों खगो की भाषा वे दोनों ही जानते थे । आचार्य रजनीश ओशो पद धारण करने के बाद बताया कि मग्गा बाबा कोई और नहीं मोजेज थे ?
यह वह दो विभूतियां हैं जो जबलपुर को सुरक्षित रखें हुए हैं अब तक। 3 ओर से पर्वतों से घिरा हुआ शहर जैसा डॉ प्रशांत कौरव ने बताया आग्नेय कोण पर अवस्थित है इस शहर को कोई नहीं तोड़ सकता इसका नुकसान उतना नहीं होगा जितना की अन्य शहरों में हुआ है। आप देख रहे होंगे कि शहर में कोरोना से मौत कम ही हुई। आप जानते हैं कि जब भूकंप ने जबलपुर में कहर मचाया था तब एक योगी जिसे मशीन वाले बाबा कहते हैं ने अपने सीने पर वह तकलीफ रिसीव कर ली थी । घटना होना तय था इस कारण घटना हुई पर उस घटना से जो नुकसान होता है वह कम होगा। उस रात में जबलपुर में नहीं था मेरी पोस्टिंग थी टिमरनी में। मेरी बेटियां बहुत छोटी थी पूरा परिवार जबलपुर में था रात को मैं जबलपुर में था सोते समय गहरी नींद वाले सपने में अपने शहर को देख रहा था अजीब सा माहौल नजर आ रहा था । मुझे लग रहा था कि सब कुछ हिल रहा है रहस्योद्घाटन आज कर रहा हूं तभी सपने मुझे दो साधु मुझे दिखे जिन्हें मैं नहीं पहचानता और वह चेहरे पर गंभीर तनाव लिए हुए थे।
अर्ध निद्रा अवस्था थी। मेरे जीजाजी और बाजू में सो रहे और भाइयों ने बताया कि भाई देखिए यहां भी भूकंप के झटके महसूस हुए । सारा कस्बा सड़कों पर उतर आया हम भी अपने अपने बिस्तर से हटकर बाहर आ गए तभी किसी ने बताया कि उनकी जबलपुर में फोन पर बात हुई और जबलपुर में भयंकर भूकंप आया। जबलपुर फोन लगाकर बात करने की कोशिश की परंतु संभव नहीं हो सका तब लैंडलाइन फोन चला करते थे मोबाइल नहीं थे घर की कोई खबर नहीं मिल पा रही थी। सुबह-सुबह लगभग 4:30 बजे फिर एक बार गहरी नींद आ गई। नींद में फिर वही स्वप्न एक साधु शरीर का व्यक्ति जिसके चेहरे पर तनाव था किंतु अपना पंजा दिखाकर मानो कह रहा हो कि सब ठीक है सब ठीक है। मैं पूछना चाह रहा था बाबा हमारे घर में क्या स्थिति है ? बाबा वैसा ही हाथ दिखाते रहे इन इशारों में मुझे समझ पाया कि सब ठीक है।
और दूसरे दिन अखबारों दूरदर्शन और रेडियो के समाचारों से शहर का हाल मिला टेलीफोन पर बहुत देर बाद यानी चौथे पांचवें दिन बात हो सके ।
*जबलपुर में 14 बरस पुराना हनुमान मंदिर भी है क्यों बदलती यह है कि उस मंदिर में स्वयं तुलसीदास जी आए थे मंदिर की स्थापना के लिए। सत्यता क्या है इस पर विमर्श किया जा सकता है खोज भी की जा सकती है। यह भी मान्यता है कि इस प्रसिद्ध मंदिर में शनिदेव् की जीवंत मौजूदगी है । यहां राजशेखर द्वारा विभिन्न पूजा ग्रहों का निर्माण कराया गया और उनमें से एक शनि मंदिर तिलवारा के पास भी है। जिस शहर में शनिदेव का आशीर्वाद होता है वहां की प्रशासनिक व्यवस्था हमेशा चुस्त और दुरुस्त ही होती है इस हिसाब से इस शहर में काम करने वाले शीर्ष अधिकारी सदा ही शहर के प्रति स्वयं को ही जवाबदार समझने लगते हैं इसके हजारों उदाहरण आप महसूस कर सकते हैं।
जहां तक जबलपुर से कटनी मार्ग तक की स्थिति है उसे देखने वाले स्वामी शिवदत्त महाराज है। जिनकी समाधि गोसलपुर रेलवे स्टेशन के पीछे स्थित है और दद्दा जी की सशरीर मौजूदगी भी इस शहर को और उसकी पेरिफेरी को सुरक्षित और संरक्षित रखे हुए हैं। अधिकांश जबलपुर वासी अपने शहर की कीमत नहीं पहचान सके हैं। आध्यात्मिक दृष्टिकोण जाबालि ऋषि की भूमि भृगु की तपोभूमि बहुत ही महत्वपूर्ण और सुरक्षित है।
इन सब बातों को कि अलावा आप तो जानते हैं की नर्मदा के तट पर विकसित शहर या गांव कस्बे कभी भी अभागे नहीं होते ।
इन सब बातों को बताते हुए शहर वासियों को एक चेतावनी भी है शनि देव अनुशासन के देवता होते हैं कानून और न्याय के संरक्षक माने गए हैं। मित्रों मेरी बात समझ रहे हैं ना कभी भी राज आज्ञा का उल्लंघन करने की कोशिश करना व्यक्तिगत रूप से घातक होगा इसलिए कोशिश यह की जाए कि राजा क्या का उल्लंघन ना करें। वरना परिणाम बहुत जल्दी सामने आएंगे। आप अभी कोरोना संक्रमण के बारे में गंभीर नहीं है तो अब हो जाएं। आप सदा अमरत्व प्राप्त हनुमान एवं शनि देव से संरक्षित नर्मदा से आशीर्वाद प्राप्त भले ही हैं परंतु अगर आपने राज आज्ञा का उल्लंघन किया तो दंड स्वयमेव प्राप्त होगा भले ही आप राजदंड से बच जाए।

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