8.8.19

सुकरात विष के प्याले लिए मेरे पीछे भी लगे हैं लोग


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महान दार्शनिक सुकरात 
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( निवेदन:- यह आलेख मैं बेहद कठिन भाषा में लिख रहा हूं कठिन तो नहीं लेकिन कूट भाषा कहूंगा और उसकी वजह यह है कि आज भी प्यालों में जहर लेकर कुछ स्वयंभू न्यायाधीश मेरे पीछे दौड़ रहे हैं और यह सत्य है इसका अंदाजा आप में से किसी को भी नहीं है मैं उन जहर के प्याले लेकर दौड़ने वालों के प्रति भी बिल्कुल नाराजगी का भाव नहीं रखता लेकिन याद रहे यह आलेख उनके लिए एक ब्रह्मास्त्र है वे और उनकी पीढ़ियां भी नहीं बच सकतीं चाहे जितना कैटवॉक करने वाले के लबादे की ओट में छिपने की कोशिश करें क्योंकि मैं कृष्ण का अनुयाई हूं और धर्म युद्ध जानता हूं सतर्क हो जाइए वह जो मेरी आत्मा को देह से अलग करवाने सक्रिय है )
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सुकरात को जहर पीना पड़ा था । हर सच्चे के लिए जहर एक अमृत ही तो है । 6000 साल पहले श्रीमद भगवत गीता 10000 साल पहले रामायण उसके पहले वेद वेदांत ! क्या कह गए किसे मालूम और मालूम भी करके यह करेंगे क्या समझ ही नहीं पाते की सनातन दर्शन क्या है ? 
याद होगा आपको एलेक्जेंडर के गुरु अरस्तु ने सुकरात को बहुत दिनों तक जिंदा रखा हम सब तक पहुंचाया । पर हम इतने बेवकूफ हैं कि हम कहते हैं विश्व के प्रथम सत्यार्थी हम हैं ....! 
अरे मूरख..! विश्व का क्या आप मोहल्ले के भी नहीं हां तुमको लालबुझक्कड़ अवश्य मां सकता हूँ । 
अब मैं पूरे विश्व के नहीं पश्चिम के सत्यार्थी था सुकरात उसे प्रणाम करता हूं दर्शन की चरम परिस्थिति थी पर वह यह नहीं जानता था कि चंद्रमा सूरज और बाकी सौरमंडल देवता है या सूरज के इर्द गिर्द चक्कर लगाने वाले बालू मिट्टी के या गैस के गोले । कुछ टटपूजिए विद्वान जो विद्वान कम पुजारी ज्यादा थे ने एनेक्सावारस को युवा सुकरात के समक्ष ले गए.... जो यह दावा कर रहा था कि चंद्रमा कोई देवी नहीं है बल्कि पत्थर पहाड़ों का पिंड है और सुकरात ने अपनी राय ज़ाहिर करने से इनकार कर दिया क्योंकि तब तक उस सत्य से अभिज्ञ थे 
हाँ ने उस विद्वान से सहमति या असहमति नहीं जताई तो #पुजारी_ब्रांड विद्वान नाराज हो गए । 
एथेंस का सत्यार्थी निरंतर सत्य की तलाश में लगा रहा और वह जितने करीब पहुंचता सत्य की उजागर कर देता तो रूढ़ीवादी यूनानी लोग सत्यार्थी से दूरियां कायम करने लगते । केवल युवा और समझदार लोग ही एथेंस के सत्यार्थी के , आस पास होते । 
मित्रों यहां यह उदाहरण इसलिए दे रहा हूं कि हम chandrayaan-2 भी चुके हैं और हमें मालूम है कि वाकई चंद्रमा कोई देवी देवी नहीं है और उसके पास अपना कोई प्रकाश नहीं है ।
आज से लगभग 2500 साल पहले सुकरात ने समझ लिया था कि यह एक सौर मंडल है । 
ज्ञात तो आपको भी होगा कि... 6000 साल पहले कृष्ण ने अर्जुन और अपनी मातुश्री को अपने मुंह में ब्रह्मांड के घूमते हुए पिंड दिखा दिए थे । 
उसके भी पूर्ण नवग्रह के संबंध में बहुत ही व्यापक विश्लेषण कर चुके थे हमारे योगी । 
एथेंस का सत्यार्थी डेमोक्रेटिक सिस्टम की सीमाएं बताता साथ ही एकमात्र निरंकार ब्रह्म के अस्तित्व को रेखांकित करता तो एथेंस का अभिजात्य वर्ग हाहाकार करता । सत्यार्थी ईश्वर को राजा से भी ऊपर बताता वह किसी देवता के अस्तित्व को अस्वीकार करता जैसे मैं भी एक बात बार बार कहता हूं- कुबेर का अर्थ कोई देवता या व्यक्ति नहीं है बल्कि कुबेर वैश्विक इकोनामिक रेगुलेटरी सिस्टम है तो लोग सर खुजाने लगते हैं । अरे भाई सच ही तो कह रहा हूं हम जिन देवताओं को मानते हैं या एथेंस जिन देवताओं को मानता था या मानता है वे किसी ना किसी गतिविधि के हेड होते हैं और उन्हें किसी रहस्यमई देवी या देवता के रूप में मानना गलत तो नहीं है बल्कि अगर यह सोचकर माना जाए कि बुद्धि का देवता बुध है अर्थात बौद्धिकता का प्रतीक बुध ग्रह है तुम मुझे कोई आपत्ति नहीं पर वह देवता है कुछ अचानक चमत्कार कर देगा स्वीकार्य नहीं है अव्वल तो अंतरिक्ष का एक ग्रह है दूसरा बौद्धिकता का प्रतीक है और तीसरा वह कोई चमत्कार नहीं करने वाला आपकी हो अचानक अतुलित ज्ञान देने वाला भी नहीं है बल्कि आपकी अपने अध्ययन चिंतन योग्य मनन से वह सब कुछ हासिल हो जाएगा ज्ञान हासिल करने का कोई शॉर्टकट भी नहीं है मित्रों । 
और जिनको तुम देवी देवता मानते हो न वे रहस्यमय कभी नहीं थे और न ही रहस्यमय होंगे । वे तुम्हारे लिए अगर रहस्य वाली बातें श्रेयकर हैं तो सुनो .... एकबार मेरा साक्षात्कार वरुण देवता से हुआ सौहार्द पूर्ण शिष्टाचार के आदान प्रदान के बाद वे बोले - भाई ये मूर्ख मेरी पूजा करने आते हैं कि मुझ पर कहर ढाने ?
मैंने पूछा यानि 
वे बोले - तुम्हारे शहर का एक यायावर मेरी परिक्रमा करते वक्त मेरे आसपास के कचरे साफ कर दिया करता था । और ये नामाकूल मेरी राह में गंदगी डालते हैं । 
वरुण देव की बात से एग्री हूँ पर क्या कहूँ न अमृतलाल वेगड़ जी आब मौज़ूद हैं वर्ना साक्ष्य दिला देता । उनकी किताबें पढ़ लो सब सामने आ जाएगा । 
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अरस्तु डेमोक्रेटिक सिस्टम पर स्पष्ट रूप से बताते थे की अगर किसी जहाज में कप्तान को सलाह देना हो तो सलाह विशेषज्ञ से ली जावे न कि मूर्खों से वोटिंग कराई जावे तब वहां हर बात वोटिंग से तय होती थी । 
अगर ऐसा होता तो 500 के 500 जूरी मेंबर वोटिंग सुकरात के फेवर में करती सुकरात की जीवन को 220 वोट मिले और मृत्यु के फैसले को 280 लोगों ने स्वीकृति दी थी । उन लोगों से रिश्वत जरूर खाई थी जो चाहते थे कि सुकरात का अंत हो जाए सुकरात जिद्दी थे उनको मालूम था कि एथेनिका के एथेंस उनको अद्भुत प्रेम है वे यूनान और एथेंस कि लोगों से बेहद निस्वार्थ प्यार करते थे और करते भी क्यों ना एथेंस में जन्मा व्यक्ति एथेंस में ही मरना चाहेगा जैसे हम आप अपने शहर को गांव को प्यार करते हैं और उस हद तक कि इसी शहर से हम अनंत यात्रा पर निकले देश निकाली से बेहतर जहर वाली सजा को कबूल किया ।
ईशा के चार पांच सौ साल पहले की ही बात है ना और अब अभी वही स्थिति है कई सुकरातों को जहर पिलाया जाता है दफ्तरों में, मीडिया ट्रायल के रूप में, कभी-कभी तो अखबारों में, भी समाज में यानी हर जगह है लोगों को कितना नेगेटिव पोट्रेट करते हैं लोग और इसमें कितना मजा आता है इसका अंदाज़ा लगाओ । 
शेर का शिकार करना किसे पसंद नहीं दुर्भाग्य है कि शेर का शिकार शेर या शिकारी नहीं कर रहे गीदड़ करने लगे हैं आजकल...!
एक बात कहूं यहां #मैं शब्द का इस्तेमाल मैंने इस पोस्ट के प्राक्कथन में भी किया है और अंत में भी कर दिया इसका अर्थ यह ना लगाना की मैं स्वयं के बारे में कुछ लिख रहा हूं साहित्य सबके लिए लिखा जाता है ध्यान रहे मैं वही करता हूं

7.8.19

इंतज़ार था जिस पल का उस पल को जी कर अमर हो गई

आखिरी सांस तक इंतजार था जा सांस इंतजार कर रही थी जिस पल का उस पल को जी कर अमर हो गई राष्ट्र प्रेम को अभिव्यक्त करने वाली सुषमा स्वराज जी को शत शत नमन उनका आखिरी ट्वीट पढ़ते-पढ़ते निगाह जब टीवी
पर गई विश्वास ना हो सका एक आकर्षक आध्यात्मिक व्यक्तित्व की धनी सुषमा जी को राष्ट्र की महान वक्ता थीं इंदिरा जी अटल जी जैसे वक्ताओं की सूची में शामिल भारत की  चिंतक विचारक श्रीमती सुषमा स्वराज मेरी मातुश्री स्वर्गीय प्रमिला देवी को बेहद पसंद थी वे कहती थी कि अगर विश्व में महान महिलाओं का नाम शामिल किया जाए तो उसमें इंदिरा जी के साथ साथ मैं श्रीमती सुषमा स्वराज जी को महान मानती हूं मेरी मां को भी बहुत रुचि थी महिलाओं की एंपावरमेंट की आइकॉनस को रेखांकित किया करती थी सरोजनी नायडू, सुभद्रा जी, रानी दुर्गावती, लता जी  सिरिमाओ भंडारनायके मार्गरेट थैचर सुषमा स्वराज जी और इंदिरा जी  मेरी स्वर्गीय मां की पसंदीदा एंपावर्ड विमेन आईकॉन थीं ।
      आदर्श तो आदर्श होता है वह किसी पार्टी किसी संप्रदाय किसी दल किसी रंग किसी भाषा का भी हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए । क्योंकि मुझ पर मेरे बच्चों पर भी मेरी मातुश्री का गहरा प्रभाव इसलिए  मुझे  स्वर्गीय  श्रीमती सुषमा जी के निधन व्यक्तिगत सी क्षति महसूस हो रही है । आज मैं मानता हूं कि भारत ऐसी विदुषी महिलाओं को उनका स्थान अवश्य देगा । सुषमा जी का वह भाषण जो यूएन में उन्होंने दिया था और पाकिस्तान को बेनकाब किया था उस समय सुषमा जी एक वीरांगना की तरह नजर आ रही थी समकालीन महिलाओं में वह सारी बातें विकसित होती हैं उनके एंपावरमेंट से सुषमा जी उम्र भर सीखतीं रहीं । दक्षिण भारत में जब वे प्रत्याशी के रूप में गई तो उन्होंने वहां की भाषा सीख ली थी । हमारे दौर की नायिकाओं में सुषमा जी को बड़े सम्मान के साथ हर विचारधारा दल जाति से सम्मान मिलेगा यह तो तय है । जो लोग विदेश में किसी भी समस्या में होते थे सुषमा जी का हस्तक्षेप होते ही वे सुरक्षित हो जाते थे महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता उनकी महानता को और अधिक प्रभावी बनाती हैं । मित्रों उनके जीवन से कम से कम मैं तो यह सबक ले सका हूं की आप आईडियोलॉजी से कुछ भी हो लेकिन एक बेहतर इंसान होना आपके जाने के बाद भी आप को अमरता प्रदान कर देता है । सुषमा जी जात पात से ऊपर के मुस्लिम बेटी ने भी जब पाकिस्तान से ट्वीट किया था तो उसे बचाने सुषमा जी ने जो किया वह किसे याद नहीं ओम शांति शांति शत शत नमन इस युग की महान महिला को मेरी भावपूर्ण श्रद्धांजलि आज मुझे माताजी का वह कथन भी याद आ रहा है कुछ भी बनो कितने भी बड़े बन जाओ मन से पवित्र रहना सबके प्रति समभाव रखना चाहे तुम्हें कितना भी कष्ट क्यों ना हो उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि शत शत नमन

27.7.19

तालीम और इंसानियत के पैरोकार थे डा. कलाम... ज़हीर अंसारी

कलाकार : अविनाश कश्यप

आज़ाद हिंदुस्तान की तवारीख में अब तक सिर्फ़ एपीजे अब्दुल कलाम ऐसे मुस्लिम हुए हैं जिनका पूरा हिंदुस्तान एहतेराम करता था और करता है। जब तक वो इस दुनिया-ए-फ़ानी में थे, उनको पूरा मुल्क अपनी आँखों का सितारा बनाए हुए था और उनके इस जहां से रुख़्सत हो जाने के बाद पूरी शिद्दत से याद करता है और बड़े अदब से उनका नाम लेता है।

आख़िर उनमें ऐसा क्या था जिसकी वजह से उन्हें इतना आला मुक़ाम मिला। पद्म भूषण फिर पद्म विभूषण और फिर भारत रत्न से नवाज़ा गया। भारत जैसे विशाल देश के राष्ट्रपति बने। यह सब एक दिव्य स्वप्न सा लगता है, मगर कलाम साहब ने अपनी और सिर्फ़ अपनी सादगी, इंसानियत, दीनदार किरदार, वैज्ञानिक सोच और राष्ट्रप्रेम से वशीभूत भाव से इस दिव्य स्वप्न को साकार कर दिखाया।

मिसाइल मैन के नाम से उनके बारे बहुत कुछ लिखा जा चुका है। बचपन से लेकर आख़री सफ़र तक मज़मून सबके सामने खुली किताब जैसा है। लेकिन उन्होंने जिस तरह की दीनदार ज़िन्दगी जी थी वह उनको महान बनाती है। बेशक वे मुस्लिम थे लेकिन उन मुस्लिमों की तरह नहीं जो सिर्फ़ अपनी क़ौम, अपने मज़हब और अपने दीन तक महदूद (सीमित) रहते हैं। कलाम साहब ने न सिर्फ़ अपनी सरज़मीं की हिफ़ाज़त के लिए मिसाइलें तैयार की बल्कि दुनिया में मुल्क का नाम रोशन हो इसके लिए उन्नत तकनीक पर काम किया और प्रेरणा दी।

जहाँ तक उनके बारे में मेरा अपना नज़रिया है वो दिखावटी दीनदारी से दूर थे। रोज़े-नमाज़ के पाबंद थे। बचपन से ही नमाज़ पढ़ा करते थे। पक्के मुस्लिम होने के बावजूद उन्होंने कभी भी अपने धर्म की बड़ाई या दूसरे धर्म की निंदा नहीं की। वो पूरी ज़िंदगी इंसानियत और मुल्क परस्ती की पैरोकारी करते रहे।

उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद स.अ.व. की उस सुन्नत का पूरे जीवन पालन किया। कलाम साहब ने भी अपने पास कुछ भी संचय करके न रखा। ज़रूरतमंदों की मदद में ख़र्च करते रहे। तालीम की बहुत बड़े हिमायती रहे। तालीम देते-देते ही वे इस नश्वर संसार से बिदा हो गए। 27 जुलाई 2015 को शिलांग के आईआईएम में वो बच्चों को तालीम ही दे रहे थे जब उन्हें हार्ट अटैक आया। अब यही काम उनके विचार, उनकी लिखी किताबें और उनका कृतित्व कर रहा है

भारत के ऐसे महान सपूत डा एपीजे अब्दुल कलाम को आज पूरा हिंदुस्तान बड़ी इज़्ज़त से याद कर रहा है। ऐसी आलीशान शख़्सियत को हज़ार बार सलाम...

O
जय हिन्द
ज़हीर अंसारी

खाकी वर्दी के पीछे धड़कता एस पी का नाज़ुक दिल


( जबलपुर के एसपी श्री अमित सिंह बेहद सुकोमल ह्रदय के धनी है इनका ह्रदय एक पुलिस अफसर का नहीं हो कर एक सोशल वर्कर यह दिल की तरह धड़कता है एक बार जब यह बाल भवन आए थे तब एक गरीब बच्चे को अपने गले लगाया उसे अपना कैप पहनाया और प्यार भी किया ऐसा नहीं कि ऐसा गिनी तौर पर ही है करते हैं वास्तव में यह किसी को दुखी नहीं देखना चाहते पुलिस ऑफिसर्स के लिए आपका नजरिया कैसा है मैं नहीं जानता पर इतना अवश्य जानता हूं कि अगर आप कितना भी नेगेटिव सोचेंगे इनके लिए पर एक बार एसपी जबलपुर अमित सिंह के साथ बैठेंगे या उनके बारे में जानेंगे तो आपका नजरिया एकदम बदल जाएगा यही ब्रह्म सत्य है)

पिता के हत्या के अपराध में निरूद्ध होने पर 6 वर्षिय प्रीति को पुलिस अधीक्षक जबलपुर ने पहल कर रखवाया राजकुमारी बाई बाल निकेतन में, पढाई की ली जिम्मेवारी
दिनॉक 19-7-19 को विजय नगर स्थित इंडियन कॉफी हाउस के पीछे रहने वाले अज्जू उर्फ रमेश वंशकार ने अपनी डेढ वर्षिय बेटी कु. रूपाली की पत्थर पर पटक कर हत्या कर दी थी, उक्त हत्या के प्रकरण में अज्जू उर्फ रमेश वंशकार को गिरफ्तार कर केन्द्रीय जेल जबलपुर मे निरूद्ध कराया गया है।अज्ज्ू उर्फ रमेश वंशकार की पत्नि किरण वंशकार एल्गिन अस्पताल मे उपचारार्थ भर्ती थी,  आरोपी अज्जू उर्फ रमेश वंशकार के एल्गिन अस्पताल मे होने की सूचना पर पुलिस अधीक्षक जबलपुर श्री अमित सिहं (भा.पु.से.) तत्काल अस्पताल पहुंचे थे जहॉ पूछताछ पर 6 वर्षिय बेटी प्रीति  मुखर होकर अपने पिता के विरूद्ध बोली थी एवं पूरी घटना बतायी थी, और जिस तरह उसने पढाई करने की इच्छा जाहिर की थी, तभी से मै कशमकश मे था, प्रीति का प्रजेन्स ऑफ माईड, कॉमनसेंस  बहुत ही स्ट्रॉग था, 5-6 साल के बच्चों में जो बहुत की कम देखने को मिलता है, तभी मैने यह निर्णय लिया था कि बच्ची को यदि किसी अच्छी संस्था मे रखा जाये एवं अच्छा एज्यूकेशन दिलाया जाये, तो जीवन मे आत्मनिर्भर होगी तथा मॉ के लिये भी अच्छा रहेगा, क्योंकि परिवार में कोई बेटा नहीं है 2 छोटी बहनें है, पतासाजी पर यह भी जानकारी मिली कि प्रीति की मॉ ने अपनी मर्जी से शादी की थी, इसलिये बच्ची के मामा भी अपने साथ नहीं रखना चाहते हैं, मॉ लोगो के घर एवं बंगलों में काम करके अपना जीवकोपार्जन करती है, पुलिस अधिकारी के तौर पर हमारा भी दायित्व बनता है कि एैसे बच्चो को सही संरक्षण एवं मार्ग दर्शन दिया जाये ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें किसी के मौहताज न रहें। इन्हीं सब बातों को ध्यान मे रखते हुये पुलिस अधीक्षक जबलपुर द्वारा चाईल्ड हैल्प लाईन से सम्पर्क कर कु. प्रीति को थाना मदनमहल अन्तर्गत शास्त्री ब्रिज के पास स्थित राजकुमारी बाई बाल निकेतन की देखरेख में रखवाया गया, एवं कहा गया कि  कु. प्रीति की स्कूल की फीस, ड्रेस किताबें मेरे द्वारा प्रोवाईड की जायेंगी l

24.7.19

14_करोड़_रेड_इंडियन्स का कब्रिस्तान अमेरिका

14 करोड़ रेड इंडियन्स का कब्रिस्तान है #अमेरिका जहाँ का राजा झूठ बोलने लगा है....! अमेरिका में ऐसा क्या है कि आप भारतीय होकर उधर बसना जीना और फिर मरना चाहते हैं ?
अमेरिका डरता है भारतीय दर्शन से विवेकानंद जी जो किताबें ले गए थे उनको विश्व धर्म संसद में नीचे रख दिया था अमेरिकी आयोजकों ने । वे सोच रहे थे कि इससे सनातन संस्कृति को बौना साबित किया जा सकता है.... विवेकानंद ठहरे जीनियस बोल पड़े- अब विश्व का हर धर्म सुरक्षित है क्योंकि उसकी बुनियाद में सनातन दर्शन जो है ।

  • सुकरात ने ज़हर का प्याला पीने के पूर्व कहा था कि- "मेरी आत्मा अमर है शरीर का क्या ?" यही सुकरात के पहले का भारतीय दर्शन है । जो आत्मा को मजबूत कर देता है ।

मेरा हाल में एक चिंतन गोष्टी में जाना हुआ जीवन के सरलीकरण सुखद स्वरूप पर चिंतक ने बात रखी । तरीका रोचक था पर बात वही थी जो बूढ़े लोग जैसे नाना नानी आजी आदि ने कही थी जिस देश में सिकंदर  सीमाओं केेे अंदर ही ना सका हो जिसके दिमाग में हर एक भारतीय के दार्शनिक  और  आध्यात्मिक  होने की छवि आते ही बन गई हो अरस्तु का वह शिष्य भारत को गुरु मानने लगा हो उस भारत को अमेरिकी लोग या अमेरिकी चिंतन कैसेे हताश कर सकता है ।
  हमें ध्यान रखना चाहिए कि एक ओशो से डर गया था अमेरिकी सिस्टम । बेहद ज़रूरी है अमेरिका जाओ पर अमेरिका को भारत बना दो कठिन नहीं यह कार्य । पर वहां जीने या बसने के लिए नहीं बल्कि 14 करोड़ रेड इंडियन की आत्मा की शान्ति के लिए जाओ ।
ज्ञान और बुद्धि से खून नहीं गिरता बहता सड़कों पर । वहां बौद्धिकता और ज्ञान का अभाव है स्थान रिक्त हैं उन पर हक़ जमाओ ज्ञान और बुद्धि के बूते ..... उस देश को जीत लो ओशो सफल होते तो तय था कि आज विश्व की दशा कुछ अलग होती । ये अलग बात है कि ओशो सत्ता के लिए आसक्त न थे पर वे बदलते ज़रूर अमेरिका की जनता को ।

10.7.19

गीत गीले हुए अबके बरसात में,


गीत गीले हुए अबके बरसात में,
हाँ! ठिठुरते रहे जाड़ों की रात में।।
गीत गीले हुए, ये जो कुंठा भरे।
और ठिठुरे वही, जो रहे सिरफिरे।
उसका दावा बिखर के, सेमल बना,
कोई आगे फरेबी न दावा करे।।
राई के भाव बदले हैं इक रात में।।
कुछ सुदृढ़, कुछ प्रखर, कुछ मुखर बानियाँ।
थी, सदा ही चलाती रहीं घानियाँ।
कुछ मठों से मठा सींचते वृक्षों में-,
कुछ बजाते रहे हैं सदा तालियाँ।।
बिंब देखें सदी का मेरी बात में।।
सूत कट न सके भोंथरी धार से,
सो गले गस दिए फूलों के हार से।
बोलिए किससे जाके शिकायत करें-
घूस लेने लगे फूल कचनार के।
आँख सावन-सी झरती इसी बात में।
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

30.6.19

भारतीय ज्ञान का खजाना (भाग 01) : प्रशांत पोळ


पंचमहाभूतों के मंदिरों का रहस्य..!
-  प्रशांत पोळ

इस लेखमाला, अर्थात ‘भारतीय ज्ञान का खजाना’ का उद्देश्य है कि हमारे प्राचीनतम देश में छिपे हुए अनेक अदभुत एवं ज्ञानपूर्ण बातों को जनता के सामने लाना. इस पुस्तक का प्रत्येक लेख प्रिंट मीडिया एवं सोशल मीडिया के माध्यम से अक्षरशः लाखों लोगों तक पहुँचता है. संभवतः इसीलिए पत्र, फोन एवं सोशल मीडिया के माध्यम से प्रतिक्रियाओं की मानो वर्षा ही हो रही है.

परन्तु ऐसी अनेक बातें हैं, जो हमें पता चलने पर हम भौचक्के रह जाते हैं, सुन्न हो जाते हैं. आज जो बातें हमें असंभव की श्रेणी में लगती हैं, वह आज से ढाई-तीन हजार वर्षों पहले भारतीयों ने कैसे निर्माण की होंगी, कैसे बनाई होंगी... यह एक प्रश्नचिन्ह हमारे सामने निरंतर बड़ा होता जाता है.

हिन्दू दर्शन में पंचमहाभूतों का विशेष महत्त्व है. पश्चिमी जगत ने भी इस संकल्पना को मान्य किया है. डेन ब्राउन जैसे प्रसिद्ध लेखक ने भी इस संकल्पना का उल्लेख किया है और इस विषय पर ‘इन्फर्नो’ जैसा उपन्यास भी लिखा. यह पंचमहाभूत हैं, जल, वायु, आकाश, पृथ्वी एवं अग्नि. ऐसी मान्यता है कि हम सभी का जीवनचक्र इन पाँचों महाभूतों के आधार पर ही आकार ग्रहण करता है.

यह बात कितने लोगों की जानकारी में है कि हमारे देश में इन पंचमहाभूतों के भव्य एवं विशिष्टताओं से भरे मंदिर हैं? बहुत ही कम लोगों को इसकी जानकारी है. जो लोग भगवान शंकर के उपासक हैं, उन लोगों को इन मंदिरों की जानकारी होने की थोड़ी बहुत संभावना है. क्योंकि इन पंचमहाभूतों के मंदिर अर्थात शिव मंदिर, भगवान शंकर के मंदिर है. लेकिन इसमें कोई बड़ी विशेषता अथवा रहस्य तो नहीं है... फिर इनकी विशेषता किस बात में है??

पंचमहाभूतों के इन पाँच मंदिरों की विशेषता अथवा रहस्य यह है कि इनमें से तीन मंदिर, जो एक-दूसरे से कई सौ किमी दूरी पर स्थित हैं, यह तीनों एक ही रेखा पर स्थित हैं. जी हाँ..! बिलकुल एक सीधी रेखा में हैं... यह तीन मंदिर हैं –

• श्री कालहस्ती मंदिर
• श्री एकम्बरेश्वर मंदिर, कांचीपुरम
• श्री तिलई नटराज मंदिर, त्रिचनापल्ली.

पृथ्वी पर किसी स्थान को चिन्हित या तय करने के लिए हम जिन कॉर्डिनेट्स का उपयोग करते हैं, एवं जिसे हम अक्षांश व रेखांश कहते हैं. इनमें से अक्षांश (Latitude) अर्थात पृथ्वी के नक़्शे पर खींची गई (काल्पनिक) आड़ी रेखाएं. जैसे कि विषुवत, कर्क रेखा इत्यादि... जबकि रेखांश इसी नक़्शे पर खींची गई लम्बवत रेखाएं. इन तीनों मंदिरों के अक्षांश और रेखांश इस प्रकार से हैं –

क्र.    मंदिर                           अक्षांश    रेखांश     पंचमहाभूत तत्त्व
१.  श्री कालहस्ती मंदिर    13.76 N    79.41 E वायु
२.  श्री एकम्बरेश्वर मन्दिर    12.50 N    79.41 E पृथ्वी
३.  श्री तिलई नटराज मन्दिर   11.23 N    79.41 E आकाश

यह तीनों मंदिर एक ही रेखांश बिंदु 79.41E पर स्थित हैं, अर्थात एक ही सीधी रेखा पर हैं. कालहस्ती और एकाम्बरेश्वर मंदिर के बीच लगभग सवा सौ किमी की दूरी है और एकाम्बरेश्वर तथा नटराज मंदिर के बीच लगभग पौने दो सौ किमी का अंतर है. यह तीनों मंदिर कब निर्माण किए गए, यह बताना कठिन है. इस क्षेत्र में जिन्होंने शासन किया है वे पल्लव, चोल इत्यादि राजाओं द्वारा इन मंदिरों का नवीनीकरण किए जाने का उल्लेख अवश्य मिलता है. परन्तु लगभग तीन - साढ़े तीन हजार वर्ष पुराने तो हैं ही, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है.

अब इसमें वास्तविक आश्चर्य यही है कि लगभग साढ़े तीन हजार वर्ष पूर्व आपस में इतनी दूरी पर स्थित ये तीनों मंदिर एक ही सीधी रेखा यानी रेखांश पर कैसे निर्मित किए गए होंगे?

इसका अर्थ यह है कि उस कालखंड में भी भारत में नक्शाशास्त्र इतना उन्नत था कि, उन्हें अक्षांश-रेखांश इत्यादि का ठोस ज्ञान था?? परन्तु यदि किसी को अक्षांश-रेखांश का परिपूर्ण ज्ञान हो, तब भी एक सीधी रेखा में मंदिर निर्माण करने के लिए नक्शा शास्त्र के अलावा “कंटूर मैप” का ज्ञान भी आवश्यक है. तो इन मंदिरों के निर्माण में कौन सी प्रक्रिया, सूत्र एवं समीकरण उपयोग किए गए, यह अब समय की गर्त में खो गया है…

सब कुछ अविश्वसनीय सा प्रतीत होता है. और आश्चर्य यहीं पर समाप्त नहीं होता है. बल्कि जब अन्य दो मंदिरों को इस सीधी रेखा में स्थित मंदिरों से जोड़ा जाता है, तब उसमें एक विशिष्ट कोण निर्माण होता है.

इसका दूसरा अर्थ भी है. उस कालखंड में हमारे वास्तुविदों के ज्ञान की गहराई कितनी होगी यह दिखाई देता हैं. भूमि के कुछ हजार किमी में फैले हुए भूभाग पर ये वास्तुविद, पंचमहाभूतों के पाँच शैव मंदिरों का बड़ा सा बड़ा सा आकार बनाते हैं और उस रचना के माध्यम से हमें कोई विशेष संकेत देने का प्रयास करते हैं. यह हमारा ही दुर्भाग्य है कि हम उस प्राचीन ज्ञान की कूट भाषा को समझ नहीं पाते हैं.

इन पंचमहाभूतों के मंदिरों में से एक मंदिर आंध्रप्रदेश में स्थित है, जबकि चार मंदिर तमिलनाडु में निर्मित हैं. इनमें से वायु तत्त्व का प्रतिनिधित्व करने वाला मंदिर है कालहस्ती मंदिर. यह आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में, तिरुपति से लगभग ३५ किमी दूरी पर स्थित है. स्वर्णमुखी नामक छोटी सी नदी के किनारे पर यह मंदिर स्थापित किया गया है. हजारों वर्षों से इस मंदिर को ‘दक्षिण का कैलास’ अथवा ‘दक्षिण काशी’ कहा जाता है.

भले ही यह मंदिर अत्यंत प्राचीन हो तब भी मंदिर का अंदरूनी गर्भगृह वाला भाग पाँचवीं शताब्दी में, जबकि बाहरी गोपुर वाला भाग ग्यारहवीं शताब्दी में बनाया गया है. पल्लव, चोल और उसके पश्चात विजयनगर साम्राज्य के राजाओं ने इस मंदिर की मरम्मत और निर्माण किए जाने के उल्लेख मिलते है. इस मंदिर में आदि शंकराचार्य भी आ चुके हैं, ऐसा साहित्य में उल्लेख है. स्वयं शंकराचार्य ने ‘शिवानंद लहरी’ में इस मंदिर एवं यहाँ के परम भक्त कणप्पा का उल्लेख किया है.

यह मंदिर पंचमहाभूतों में से ‘वायु’ का प्रतिनिधित्व करता है. इस बात के भी आश्चर्यजनक संदर्भ हमें प्राप्त हो जाते हैं. जैसे कि इस मंदिर में शिवलिंग सफ़ेद रंग का है एवं इसे स्वयंभू शिवलिंग माना जाता है. इस शिवलिंग में वायुतत्व होने के कारण इसे कभी भी स्पर्श नहीं किया जाता है. मंदिर के मुख्य पुजारी भी इस शिवलिंग को स्पर्श नहीं करते हैं. अभिषेक एवं पूजा करने के लिए एक ‘उत्सव शिवलिंग’ पास में स्थापित किया गया है. विशेष बात यह है कि इस मंदिर के गर्भगृह में एक दीपक अखंड रूप से जलता रहता है एवं उस गर्भगृह में कहीं से भी हवा आने का साधन नहीं होने के बावजूद वह दीपक सदैव फड़फड़ाते रहता है. यहाँ तक कि पुजारियों द्वारा मंदिर का मुख्य द्वारा बन्द करने के बाद भी इस दीपक की ज्योति फडफडाती ही रहती है...! आज तक किसी भी वैज्ञानिक को इस का कारण समझ नहीं आया है. परन्तु स्थानीय लोगों का यही कहना है कि चूँकि शिवलिंग में वायु तत्त्व है, इसी कारण गर्भगृह के उस दीपक की ज्योति सदैव फडकती रहती है.

इसी मंदिर से लगभग १२५ किमी दूरी पर दक्षिण में एकदम सीधी रेखांश बिंदु पर स्थित दूसरा मंदिर है ‘एकाम्बरेश्वर मंदिर’. यह तमिलनाडु के प्रसिद्ध कांचीपुरम स्थित, पृथ्वी तत्त्व का प्रतिनिधित्व करने वाला मंदिर है.

पृथ्वी तत्त्व होने के कारण ही इस मंदिर का शिवलिंग मिट्टी का बना हुआ है. ऐसा माना जाता है कि भगवान शंकर को प्राप्त करने के लिए आम के वृक्ष के नीचे माता पार्वती ने मिट्टी के शिवलिंग की तप-आराधना की थी, यही वह शिवलिंग है. इसीलिए इसे एकाम्बरेश्वर मंदिर कहा जाता है. तमिल भाषा में एकाम्बरेश्वर’ अर्थात आम के वृक्ष वाले देवता. आज भी मंदिर के परिसर में एक बहुत प्राचीन आम का वृक्ष लगा हुआ है. कार्बन डेटिंग जाँच के अनुसार इस वृक्ष की आयु भी लगभग साढ़े तीन हजार वर्ष पुरानी ही निकली है. इस आम के वृक्ष को चार वेदों का प्रतीक समझा जाता है. ऐसा कहा जाता है कि इस एक ही पेड से चार भिन्न-भिन्न स्वादों के आम निकलते हैं.

यह मंदिर ‘कांचीपुरम’ नामक मंदिरों की नगरी में है. कांचीपुरम शहर ‘कांजीवरम’ साड़ियों के लिए विश्वप्रसिद्ध है. इस मंदिर में तमिल, तेलुगु, अंग्रेजी एवं हिन्दी में एक फलक (बोर्ड) लगा हुआ है कि यह मंदिर ३५०० वर्ष प्राचीन है. हालाँकि ठोस रूप से यह कहना कठिन है कि वास्तव में मंदिर कितना पुराना है. आगे चलकर पाँचवीं शताब्दी में पल्लव, चोल एवं विजयनगर साम्राज्य के राजाओं ने इस मंदिर की मरम्मत एवं देखरेख किए जाने के उल्लेख ग्रंथों में मिलते हैं.

इन दोनों मंदिरों की ही सीधी रेखा में दक्षिण दिशा में, एकाम्बरेश्वर मंदिर से लगभग पौने दो सौ किमी दूरी पर स्थित है पंचमहाभूतों का तीसरा मंदिर अर्थात तिलई नटराज मंदिर. आकाश तत्त्व का प्रतिनिधित्व करने वाला यह मंदिर तमिलनाडु के चिदम्बरम शहर में स्थित है.

ऐसा माना जाता है कि स्वयं पतंजलि ऋषि ने इस मंदिर की स्थापना की थी. इसलिए ठीक-ठीक कहना कठिन है कि इस मंदिर का निर्माण कब हुआ. परन्तु इसकी भी देखभाल एवं मरम्मत पल्लव, चोल एवं विजयनगर साम्राज्य के राजाओं द्वारा पाँचवी शताब्दी में की गई, इसका उल्लेख ग्रंथों में मिलता है. इस मंदिर के अंदर ‘भरतनाट्यम’ नृत्य की विभिन्न १०८ मुद्राओं को पत्थर के स्तंभों पर उकेरा गया है. इसका अर्थ यही है कि भरतनाट्यम नामक नृत्य शास्त्र भारत में कुछ हजार वर्षों से पहले से ही काफी विकसित था. मंदिर में पत्थर के अनेक स्तंभों पर भगवान शंकर की अनेक मुद्राएं भले ही खुदी हुई हों, परन्तु नटराज की मूर्ति एक भी नहीं बनाई गई है... यह मूर्ति केवल गर्भगृह में ही विराजमान है.

इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान शंकर, नटराज के रूप में हैं, और साथ में शिवकामी अर्थात पार्वती की मूर्ती भी है. अलबत्ता नटराज रूपी शिव प्रतिमा के दाँयी तरफ थोडा सा रिक्त स्थान है, जिसे ‘चिदंबरा रहस्यम’ कहा जाता है. इस खाली स्थान को स्वर्ण की गिन्नियों वाले हार से सजाया जाता है. यहाँ की मान्यता के अनुसार यह रिक्त स्थान, खाली नहीं है, बल्कि वह आकारहीन आकाश तत्त्व है.

पूजा के समय को छोड़कर बाकी के पूरे समय पर यह रिक्त स्थान लाल परदे से आच्छादित रहता है. पूजा करते समय लाल परदा सरका कर उस आकारहीन शिव तत्त्व अर्थात आकाश तत्त्व की भी पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि यहाँ पर शिव एवं कालीमाता के रूप में पार्वती, दोनों ने नृत्य किया था.

चिदम्बरम से लगभग चालीस किमी दूरी पर कावेरी नदी समुद्र में जाकर मिलती है. इस क्षेत्र में आठवीं / नौवीं शताब्दी में चोल राजाओं ने जहाज़ों के लिए बंदरगाह का निर्माण किया था. इस स्थान का नाम है पुम्पुहार. एक समय पर यह पूर्वी तट का बहुत बड़ा बंदरगाह था, परन्तु आजकल अब वह एक छोटा सा गाँव मात्र रह गया है.

इस पुम्पुहार में कुछ वर्ष पहले पुरातत्व विभाग ने उत्खनन किया था, और तब समझिए कि उन्हें अक्षरशः विशाल खजाना ही मिला था. पुराविदों को यहाँ लगभग ढाई हजार वर्ष प्राचीन एक अत्यंत समृद्ध एवं विकसित शहर का पता चला. इस विशाल नगर का नियोजन, इस नगर के मार्ग, घर, नालियाँ, जल निकासी की व्यवस्था देखकर हम आज भी आश्चर्यचकित हो जाते हैं.

कुल मिलाकर यह कहना उचित ही होगा कि आज से लगभग तीन हजार वर्ष पहले इस परिसर में एक अत्यंत समृद्ध एवं विकसित संस्कृति मौजूद थी. जिस संस्कृति द्वारा पंचमहाभूतों के पाँचों मंदिरों हेतु एक भव्य प्रांगण, इस विशाल स्थान पर निर्माण किया था.

इन तीनों ही मंदिरों द्वारा एक ही रेखांश पर तैयार की गई सीधी रेखा से एक विशेष कोण बनाते हुए इन पंचमहाभूतों में से चौथा मंदिर है - जम्बुकेश्वर मंदिर.

त्रिचनापल्ली के पास, तिरुवनैकवल गाँव में यह मंदिर स्थित है. पंच महाभूतों में से एक अर्थात ‘जल’ का प्रतिनिधित्व करने वाला, कावेरी नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ पर शिवलिंग के नीचे पानी का एक छोटा सा झरना है, जिस कारण यह शिवलिंग निरंतर पानी में डूबा हुआ रहता है.

ब्रिटिश काल में फर्ग्युसन नामक पुरातत्वविद ने इस मंदिर के बारे में काफी शोधकार्य किया, जिसे अनेक लोगों ने ठोस प्रमाण माना. उसके मतानुसार चोल वंश के प्रारंभिक काल में इस मंदिर का निर्माण हुआ. परन्तु उसका यह निरीक्षण गलत था, यह बात अब सामने आ रही है. क्योंकि मंदिर में प्राप्त एक शिलालेख के आधार पर यह अब सिद्ध किया जा चुका है कि ईसा पूर्व कुछ सौ वर्ष पहले ही यह मंदिर अस्तित्त्व में था.

उस सीधी रेखांश पंक्ति के तीन मंदिरों के साथ विशिष्ट कोण पर बनाए गए पंच महाभूतों  के मंदिरों में से अंतिम मंदिर है – अरुणाचलेश्वर मंदिर. तमिलनाडु में ही तिरुअन्नामलाई में यह मंदिर स्थित है. पंचमहाभूतों में से अग्नि तत्त्व का प्रतिनिधित्व करने वाला यह मंदिर भारत के बड़े मंदिरों में से एक है. यह मंदिर एक पहाड़ी पर एक विशाल परिसर में निर्मित किया गया है. सात सौ फुट से अधिक ऊँचाई वाली दीवारों के अंदर निर्माण किए गए इस मंदिर के प्रमुख गोपुर की ऊँचाई १४ मंजिली इमारत के बराबर है.

यह पाँचों शिव मंदिर एवं जमीन पर उनकी संरचना अक्षरशः चमत्कृत करने वाली है. इन पाँच में से तीन मंदिर एक सीधी रेखा में होना कोई साधारण संयोग नहीं हो सकता. तमिलनाडु के विशाल भूभाग पर इन मंदिरों का ऐसा सटीक निर्माण एक अदभुत घटना ही है. इन मंदिरों की रचना के माध्यम से निर्मित होने वाली कूट भाषा यदि हम आधुनिक काल में समझ पाते तो प्राचीन काल के अनेक रहस्य हमारे समक्ष खुल सकते थे...!!
- प्रशांत पोळ

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