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तालीम और इंसानियत के पैरोकार थे डा. कलाम... ज़हीर अंसारी

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कलाकार : अविनाश कश्यप आज़ाद हिंदुस्तान की तवारीख में अब तक सिर्फ़ एपीजे अब्दुल कलाम ऐसे मुस्लिम हुए हैं जिनका पूरा हिंदुस्तान एहतेराम करता था और करता है। जब तक वो इस दुनिया-ए-फ़ानी में थे, उनको पूरा मुल्क अपनी आँखों का सितारा बनाए हुए था और उनके इस जहां से रुख़्सत हो जाने के बाद पूरी शिद्दत से याद करता है और बड़े अदब से उनका नाम लेता है। आख़िर उनमें ऐसा क्या था जिसकी वजह से उन्हें इतना आला मुक़ाम मिला। पद्म भूषण फिर पद्म विभूषण और फिर भारत रत्न से नवाज़ा गया। भारत जैसे विशाल देश के राष्ट्रपति बने। यह सब एक दिव्य स्वप्न सा लगता है, मगर कलाम साहब ने अपनी और सिर्फ़ अपनी सादगी, इंसानियत, दीनदार किरदार, वैज्ञानिक सोच और राष्ट्रप्रेम से वशीभूत भाव से इस दिव्य स्वप्न को साकार कर दिखाया। मिसाइल मैन के नाम से उनके बारे बहुत कुछ लिखा जा चुका है। बचपन से लेकर आख़री सफ़र तक मज़मून सबके सामने खुली किताब जैसा है। लेकिन उन्होंने जिस तरह की दीनदार ज़िन्दगी जी थी वह उनको महान बनाती है। बेशक वे मुस्लिम थे लेकिन उन मुस्लिमों की तरह नहीं जो सिर्फ़ अपनी क़ौम, अपने मज़हब और अपने दीन तक महदूद (सीमित

खाकी वर्दी के पीछे धड़कता एस पी का नाज़ुक दिल

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( जबलपुर के एसपी श्री अमित सिंह बेहद सुकोमल ह्रदय के धनी है इनका ह्रदय एक पुलिस अफसर का नहीं हो कर एक सोशल वर्कर यह दिल की तरह धड़कता है एक बार जब यह बाल भवन आए थे तब एक गरीब बच्चे को अपने गले लगाया उसे अपना कैप पहनाया और प्यार भी किया ऐसा नहीं कि ऐसा गिनी तौर पर ही है करते हैं वास्तव में यह किसी को दुखी नहीं देखना चाहते पुलिस ऑफिसर्स के लिए आपका नजरिया कैसा है मैं नहीं जानता पर इतना अवश्य जानता हूं कि अगर आप कितना भी नेगेटिव सोचेंगे इनके लिए पर एक बार एसपी जबलपुर अमित सिंह के साथ बैठेंगे या उनके बारे में जानेंगे तो आपका नजरिया एकदम बदल जाएगा यही ब्रह्म सत्य है) पिता के हत्या के अपराध में निरूद्ध होने पर 6 वर्षिय प्रीति को पुलिस अधीक्षक जबलपुर ने पहल कर रखवाया राजकुमारी बाई बाल निकेतन में, पढाई की ली जिम्मेवारी दिनॉक 19-7-19 को विजय नगर स्थित इंडियन कॉफी हाउस के पीछे रहने वाले अज्जू उर्फ रमेश वंशकार ने अपनी डेढ वर्षिय बेटी कु. रूपाली की पत्थर पर पटक कर हत्या कर दी थी, उक्त हत्या के प्रकरण में अज्जू उर्फ रमेश वंशकार को गिरफ्तार कर केन्द्रीय जेल जबलपुर मे निरूद्ध कराया गया है।अज्ज

14_करोड़_रेड_इंडियन्स का कब्रिस्तान अमेरिका

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14 करोड़ रेड इंडियन्स का कब्रिस्तान है #अमेरिका जहाँ का राजा झूठ बोलने लगा है....! अमेरिका में ऐसा क्या है कि आप भारतीय होकर उधर बसना जीना और फिर मरना चाहते हैं ? अमेरिका डरता है भारतीय दर्शन से विवेकानंद जी जो किताबें ले गए थे उनको विश्व धर्म संसद में नीचे रख दिया था अमेरिकी आयोजकों ने । वे सोच रहे थे कि इससे सनातन संस्कृति को बौना साबित किया जा सकता है.... विवेकानंद ठहरे जीनियस बोल पड़े- अब विश्व का हर धर्म सुरक्षित है क्योंकि उसकी बुनियाद में सनातन दर्शन जो है । सुकरात ने ज़हर का प्याला पीने के पूर्व कहा था कि- "मेरी आत्मा अमर है शरीर का क्या ?" यही सुकरात के पहले का भारतीय दर्शन है । जो आत्मा को मजबूत कर देता है । मेरा हाल में एक चिंतन गोष्टी में जाना हुआ जीवन के सरलीकरण सुखद स्वरूप पर चिंतक ने बात रखी । तरीका रोचक था पर बात वही थी जो बूढ़े लोग जैसे नाना नानी आजी आदि ने कही थी जिस देश में सिकंदर  सीमाओं केेे अंदर ही ना सका हो जिसके दिमाग में हर एक भारतीय के दार्शनिक  और  आध्यात्मिक  होने की छवि आते ही बन गई हो अरस्तु का वह शिष्य भारत को गुरु मानने लगा हो उस भारत को

गीत गीले हुए अबके बरसात में,

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गीत गीले हुए अबके बरसात में, हाँ! ठिठुरते रहे जाड़ों की रात में।। गीत गीले हुए, ये जो कुंठा भरे। और ठिठुरे वही, जो रहे सिरफिरे। उसका दावा बिखर के, सेमल बना, कोई आगे फरेबी न दावा करे।। राई के भाव बदले हैं इक रात में।। कुछ सुदृढ़, कुछ प्रखर, कुछ मुखर बानियाँ। थी, सदा ही चलाती रहीं घानियाँ। कुछ मठों से मठा सींचते वृक्षों में-, कुछ बजाते रहे हैं सदा तालियाँ।। बिंब देखें सदी का मेरी बात में।। सूत कट न सके भोंथरी धार से, सो गले गस दिए फूलों के हार से। बोलिए किससे जाके शिकायत करें- घूस लेने लगे फूल कचनार के। आँख सावन-सी झरती इसी बात में। *गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

भारतीय ज्ञान का खजाना (भाग 01) : प्रशांत पोळ

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पंचमहाभूतों के मंदिरों का रहस्य..! -  प्रशांत पोळ इस लेखमाला, अर्थात ‘भारतीय ज्ञान का खजाना’ का उद्देश्य है कि हमारे प्राचीनतम देश में छिपे हुए अनेक अदभुत एवं ज्ञानपूर्ण बातों को जनता के सामने लाना. इस पुस्तक का प्रत्येक लेख प्रिंट मीडिया एवं सोशल मीडिया के माध्यम से अक्षरशः लाखों लोगों तक पहुँचता है. संभवतः इसीलिए पत्र, फोन एवं सोशल मीडिया के माध्यम से प्रतिक्रियाओं की मानो वर्षा ही हो रही है. परन्तु ऐसी अनेक बातें हैं, जो हमें पता चलने पर हम भौचक्के रह जाते हैं, सुन्न हो जाते हैं. आज जो बातें हमें असंभव की श्रेणी में लगती हैं, वह आज से ढाई-तीन हजार वर्षों पहले भारतीयों ने कैसे निर्माण की होंगी, कैसे बनाई होंगी... यह एक प्रश्नचिन्ह हमारे सामने निरंतर बड़ा होता जाता है. हिन्दू दर्शन में पंचमहाभूतों का विशेष महत्त्व है. पश्चिमी जगत ने भी इस संकल्पना को मान्य किया है. डेन ब्राउन जैसे प्रसिद्ध लेखक ने भी इस संकल्पना का उल्लेख किया है और इस विषय पर ‘इन्फर्नो’ जैसा उपन्यास भी लिखा. यह पंचमहाभूत हैं, जल, वायु, आकाश, पृथ्वी एवं अग्नि. ऐसी मान्यता है कि हम सभी का जीवनचक्र इन पाँचों म

धरोहर को ना संजोने वाले हम दुर्भाग्यशाली..! - प्रशांत पोळ

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अभी कुछ दिनों से यूरोप में हूँ. पिछले बीस वर्षों में जर्मनी में बहुत घुमा हूँ. लेकिन न्यूरेनबर्ग छूट गया था. इसलिए इस बार वहां जाने का कार्यक्रम बनाया. न्यूरेनबर्ग प्रसिध्द हैं, ‘न्यूरेनबर्ग ट्रायल्स’ के लिए. दूसरे विश्वयुध्द में जिन नाझी अफसरों ने कहर बरपाया था, यहूदियों का सर्वनाश किया था, उन सभी पर मित्र देशों की सेनाओं द्वारा (अर्थात अमरीका, ब्रिटेन, फ़्रांस आदि) मुकदमा चलाया गया. उनमेसे अधिकतर लोगों को मृत्युदंड दिया गया. सन १९४६ में दुनिया के समाचार पत्रों के शीर्षकों में यही ‘न्यूरेनबर्ग मुकदमा’ छाया हुआ था. हिटलर की नाझी पार्टी अर्थात NSDAP के उदय में न्यूरेनबर्ग का बड़ा स्थान हैं. हिटलर ने अपना प्रभाव दिखाने के लिए यही पर बड़ी बड़ी रैलियां की थी. दस, दस लाख सैनिकों की अनुशासनबध्द रैलियां. इन सब के लिए न्यूरेनबर्ग में विशाल मैदान और उसमे सारी व्यवस्थाएं की गई. न्यूरेनबर्ग, हिटलर की गतिविधियों का प्रमुख केंद्र रहा था. और इसीलिए विश्वयुध्द के पश्चात नाझियों पर किये जाने वाले मुकदमों के लिए न्यूरेनबर्ग को चुना गया. ( प्रशांत पोल ) जर्मनी, हिटलर के बारे में बात करना नह

भारत रत्न पंडित बिस्मिल्लाह खान को नमन

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        25-26 जून 2019 की रात मैं बिस्मिल्लाह खां के बारे में सोच रहा था....अचानक जाने कहां से मेरे  सामने बिस्मिल्ला खां साहब नमूदार हो गए मेरे ज़ेहन में...? मेरी दृष्टि में हर कलाकार गंधर्व होता है । जो कहीं भी कभी भी आ जा सकता है और इन गंधर्वों के बारे में कुछ भी कहना उस निरंकार सत्ता पर सवाल उठाना मेरे जैसे अदना लेखक के लिए तो ठीक वैसा ही है जैसे सूरज को लालटेन दिखाकर यह बताना कि तुम इस रास्ते से चलो...!    सुधि पाठक जानिए कि बिहार के किसी गांव में 21 मार्च 1913 को जन्मे उस्ताद बिस्मिल्लाह खां साहब के बारे में लिखने के बात मैंने  शीर्षक यानी आलेख टांगने की खूंटी खोजी ।   मैंने पंडित बिस्मिल्लाह खान लिखा है कट्टर पंथी मुझ पर निशाना साधेंगे  पर जानते हो आप हमने ऐसा क्यों किया उस्ताद को पंडित लिखा ? ऐसा इसलिए किया  क्योंकि जब मैं शीर्षक लिखने के बारे में सोच रहा था तो यह सोचा कि नहीं वे मज़हबी एकता यानी असली सेक्युलरिज्म के सबसे बड़े पैरोकार आईकॉन हैं । उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के गुरु उनके नाना अली बख्श साहब हुआ करते थे और भी गंगा के पंच घाट के पास बनी एक कोटरी में रियाज किया करते

क्रिकेट स्पोर्ट नहीं इंडस्ट्री है : गिरीश बिल्लोरे ''मुकुल"

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Dainik Bhaskar की कवरस्टोरी पढ़कर कुछ असहज सा महसूस कर रहा हूं. 5 साल में 77% बढ़ी स्पोर्ट्स इंडस्ट्री विज्ञापनों से 66% की कमाई कोहली और धोनी को यह है शीर्षक इस कवरस्टोरी का.       इसका अर्थ यह नहीं है कि विकास के इस अनोखे से पहलू का मैं विरोध करूंगा या उससे असहमत हूं । मामला यह है कि मल्टीनेशनल कंपनी के विज्ञापनदाता तथा स्पोर्ट्स को बढ़ावा देने वाली खास सोसायटी ने जिन खेलों को बढ़ावा दिया है उनमें कबड्डी और क्रिकेट की चर्चा की गई है क्रिकेट को सर्वाधिक स्पॉन्सरशिप का लाभ मिला करता है । बड़े उद्योगपतियों व्यक्तियों एवं मल्टी नेशंस और देसी कंपनियों द्वारा केवल और केवल उन खेलों को बढ़ावा दिया जा रहा है जो ऑलरेडी लोकप्रिय हैं यहां तीरंदाजी शूटिंग कुश्ती जैसे उन खेलों को 0 अथवा कुछ प्रतिशत ही स्पॉन्सरशिप और सपोर्ट मिलता है यह ग्राउंड रियलिटी ।          बेशक रिपोर्ट बहुत ही उपयोगी एवं सूचना पर है प्रस्तुतकर्ता नहीं भले ही कुछ मुद्दे स्पष्ट ना किया हो तथापि रिसर्च तो की है और विषय भी बेहद समसामयिक है । अखबार लिखता है कि स्पोर्ट्स इंडस्ट्री में किस पर कितना खर्च किया जाता है यहां 11% 3 की

प्राचीन इतिहास पर नयी रौशनी : स्वराज करुण

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      दक्षिण कोशल में दो हज़ार साल से भी ज्यादा पुरानी  एक  बसाहट का पता चला : मौर्यकालीन बौद्ध स्तूप के लिए उत्खनन जारी         स्वराज करुण छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से सिर्फ़ 25 किलोमीटर की दूरी पर दो हजार साल से भी ज्यादा पुरानी मौर्यकालीन बौद्ध संस्कृति की एक नयी बसाहट का पता चला है । रायपुर जिले  के  तहसील मुख्यालय आरंग के पास ग्राम रींवा में एक टीले पर राज्य शासन के पुरातत्व विभाग द्वारा  उत्खनन जोर -शोर से किया जा रहा है । माना जा रहा है इस उत्खनन में  दक्षिण कोशल के नाम से प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ के प्राचीन इतिहास पर नयी रौशनी पड़ सकती है ।          यह स्थान मुम्बई -कोलकाता राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 53 के बिल्कुल किनारे पर है । विभागीय अधिकारियों ने बताया कि इस टीले से एक बौद्ध स्तूप निकलने की प्रबल संभावना है । यह भी माना जा रहा है कि सुदूर अतीत में वहाँ एक विकसित बसाहट भी रही होगी ।उत्खनन के दौरान वहां स्तूप की दीवारों की बुनियाद और ईंटें  भी नज़र आने लगी है । पुरातत्व विशेषज्ञों के अनुसार यह  मौर्यकालीन स्तूप  ईसा  पूर्व तीसरी  शताब्दी का हो सकता  हैं । याने आज से कोई तेईस सौ

“18 हज़ार रेल कर्मियों एवं उनके परिवारों को मतदान के लिए प्रोत्साहित किया जावेगा : मनोज सिंह”

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लोकसभा निर्वाचन 2019 में शत-प्रतिशत मतदान सुनिश्चित कराने ज़िला निर्वाचन कार्यालय द्वारा अनेक नवाचार किये जा रहे हैं , भारत निर्वाचन आयोग के निर्देश और राज्य निर्वाचन आयोग के दिशा निर्देशों के चलते ज़िला निर्वाचन अधिकारी कलेक्टर छवि भारद्वाज के मार्गदर्शन में मतदाता जागरूकता का सतत अभियान चलाया जा रहा है , इसी कड़ी में स्वीप की प्रभारी व ज़िला पंचायत सीईओ रजनी सिंह के संयोजन में शनिवार शाम 6 बजे से स्वीप के तहत सिविल लाइन स्थित सतपुडा क्लब में मतदाता जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया । जिसमें बाल भवन के कलाकारो द्वारा मतदाताओं   को अभिप्रेरित करने बाल भवन के कलाकारों ने डाक्टर रेनू पांडे, डाक्टर शिप्रा सुल्लेरे , एवं श्री अखिलेश पटेल   के निर्देशन में बहु-आयामी   सांस्कृतिक प्रस्तुतियों स्किट्स , एक्सटेंपोर टॉक   व मतदान गीतों की प्रस्तुति देकर मनमोहा बाल कलाकारों के स्पाट पेंटिंग और क्ले आर्ट तथा नृत्य   के ज़रिये भी मजबूती के प्रभावी सन्देश दिए.   रंगारंग मंचीय कार्यक्रम रोचक तरीके से प्रस्तुत करने वाले कलाकारों में बालश्री सम्मान विजेता   फिल्म अभिनेत्री एवं नाट्य कलाका

ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है…….?

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ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ……. ?          वास्तव में ये सवाल ज़ायज़ है आज के दौर के लिए कबीर मिर्ज़ा ग़ालिब यहाँ तक कि स्वामी विवेकानंद भी मिसफिट हैं ।            मन में खिन्नता है मेरे शाम को घर लौटता हूँ टीवी पर डिबेट के नाम पर अभद्र वार्तालाप ओह क्या हो गया है... इस मीडिया को लोगों को ।           जब भी सोचता हूं गुरुदत्त के बारे में तो लगता है कि कुआं खुद बेहद प्यासा रहा है अपनी जिंदगी में । कवियों कलाकारों की जिंदगी का सच यही है बेशक मैं इन्हें शापित गंधर्व कहता हूं । याद है ना आपको राज कपूर की वह फिल्म जिसमें एक सर्कस का कलाकार अपनी जिंदगी के चारों पन्नों पर कशिश लिख देता है । जरूरी भी है ए भाई इस दुनिया को देख कर चलना । यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ।   प्यासा और कागज के फूल मैंने अपनी युवावस्था में देखी फिल्म में है जब भी इन फिल्मों को देखता हूं आंखें डबडबा जाती हैं । बहुतेरे ऐसे कलाकारों को भी जानता हूं जो मिसफिट होते हैं समाज के लिए और एक अंतर्द्वंद लेकर समाज में जीते भी हैं और मरते भी । अंतस की पीर से ऐसी ऐसी रचनाएं उभरती है गोया खुद ईश्वर उतर आ

राष्ट्रीय बालश्री 2016 में प्रदेश के 09 बच्चे सम्मानित होंगे जबलपुर संभाग से 04

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राष्ट्रीय बाल भवन नई दिल्ली द्वारा वर्ष 2016 के लिए बाल श्री पुरस्कारों की घोषणा कर दी है जिसमें देशभर के 80 बच्चों को सम्मानित किया जावेगा ।   सूची में मध्य प्रदेश से 9 बच्चों को शामिल किया गया है ।     बाल भवन जबलपुर की राजश्री चौधुरी   को रचनात्मक वैज्ञानिक इनोवेशन एवं मास्टर अंकुर विश्वकर्मा को मूर्तिकला के लिए सम्मानित किया जावेगा । जबलपुर बाल भवन से संबद्ध मंडला जिले की कुमारी अजीता रूपेश कोष्टा को अभिनय एवं संवाद ,  नरसिंहपुर जिले की कुमारी सपना पटेल को सृजनात्मक लेखन के लिए बाल से सम्मान प्राप्त होगा । नेत्र दिव्यांग कुमारी तान्या शर्मा को गायन के लिए मास्टर हर्ष कुमार जैन को सृजनात्मक इनोवेशन के लिए मनोध्यान श्रीपाद वैद्य को भी इसी विधा में सम्मानित किया जाएगा । भोपाल के पारस   अग्रवाल सृजनात्मक लेखन तथा सागर की विधि अहिरवार को सृजनात्मक कला के लिए बालश्री सम्मान से सम्मानित किया जावेगा।     बालश्री वर्ष 2015 के लिए जबलपुर से सम्मानित कुमारी श्रेया खंडेलवाल संवाद एवं अभिनय तथा मास्टर अभय सौंधिया को भी वर्ष 2019 में आयोजित अलंकरण समारोह में   बालश्री अलंकरण दिए जाएं

हम और घाट शुद्धिकरण के संकल्प

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तेरे तरल प्रवाह फलक तट वांग्मयी बातों का दौर ।। एक सुदामा ज्ञान अकिंचन- खोज रहा गुरु या कुछ और ।।    मित्रो आप भली प्रकार भिज्ञ हैं एक समय शरीर को भूख कम ही लगती है ऊर्जावान रहें उतना ही आहार ज़ायज़ होता है ।        परन्तु मानसिक रूप से भूख में अचानक इज़ाफ़ा देख खुद हतप्रभ हूँ । दुनियां भर के झंझावात के अवलोकन के बाद एक विस्तृत भीड़ में अकेला महसूस कर रहा हूँ । सोचा करता हूँ अब अकेला क्यों हूँ.... ? उम्र के साथ ऐसे ही बदलाव आते हैं.... खुद के बारे में सोचना भी लगभग बंद सा हो गया ।                 रेवा के एक घाट पर आना जाना होता है ।  कल भी था सपत्नीक तिलवाराघाट गया था । अचेता और अनिच्छा से निकला पर प्रवास पर  बाद में यही प्रवास  इच्छानुकूलित प्रवास हो गया ।     मन में केवल माँ के बारे में सोच रहा था । अक्सर ऐसा ही होता है । ग्वारीघाट और तिलवाराघाट जाकर माँ बहुत याद आतीं हैं ।  जिनकी भस्मी इसी रेवा में प्रवाहित हुई थी । तो माँ रेवा में माँ का आभास हुआ । फिर लगा वाकई रिक्तता केवल मां ही भरती है । माँ कभी दिवंगत नहीं होती है । लगा रेवा से संवाद करूँ.... पर भिक्षुकों ने आ घेरा खीसे मे