28.1.19

बैंडिट क्वीन वाली सीमा याद है न ?


                                         

                  हाँ वही सीमाबिस्वास जो साधारण से चेहरा लिए जन्मी , एन एस डी से खुद को मांजा और बन गई विश्व प्रसिद्ध फ़िल्म बैंडिट क्वीन की सबसे चर्चित नायिका । सीमा विश्वास जो काम किया है वह उनका कला के प्रति समर्पण का सर्वोच्च उदाहरण है । अगर आप उनके जीवन जाने तो पता चलता है कि कला साधना असाधारण लोग ही कर पाते हैं । असाधारण लोग लक्ष्य पर सीधा देखते हैं । 
सीमा की कहानी देख कर लगा कि - "जीवन संघर्ष कुछ न कुछ देकर जाता है ।" 
मुझे हमेशा महसूस होता है कि कलाकार की ज़िंदगी एक अभिशप्त गंधर्व की ज़िंदगी होती है । उसे औरों के सापेक्ष बेहद मेहनत करनी होती है । 
सीमा विश्वास नवाजुद्दीन सिद्दीकी ओम पुरी यह कोई खास चेहरे वाले नहीं है यह ग्लैमरस चेहरा नहीं लेकर आए हैं पर अपनी अभिनय क्षमता के दम पर आपने देखा होगा यह उत्कृष्टता के उन मानकों पर खरे उतरते हैं जो एक अभिनेता के लिए जरूरी है . अपने दौर में यह शापित गंधर्व कितना कष्ट सह रहे होंगे इसका अंदाज उनकी बायोग्राफी से लगाया जा सकता है . आईएएस बनना डॉक्टर इंजीनियर बनना औसत ख्वाहिश है ! मध्यमवर्ग खासकर भारत का एक लीक पर चलने का आदी होता है उसे रिस्क उठाने का अभ्यास नहीं है कारण है पारिवारिक आर्थिक परिस्थितियां जो निश्चय के घनघोर पर्यावरण में आकार लेती हैं. और हजारों हजार कलाकार मर जाते हैं उन सब में क्रिएशन और क्रिएटिविटी समाप्त हो जाती है कारण सिर्फ इतना होता है कि उन्हें कोई सपोर्ट आसानी से नहीं मिलता समझ गए ना आप क्यों कह रहा हूं कि कलाकार अभिशप्त गंधर्व होते हैं .
लेखक कवि साहित्यकार नाटक संगीत साधक और चित्रकार ईश्वर के बहुत करीब होते हैं इसीलिए कई तो ऐसे भी देखे गए जिनके पास जीवन यापन के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं होते ।
समाज उन्हें नसीहत देता है पान की दुकान क्यों नहीं खोल लेते ?
कुछ लोग पूछते हैं क्या सोच के तुमने यह लाइन चुनिए कोई गवईये नचइये बन जाने से पेट नहीं भरता ..... छोड़ो यह सब बकवास है कुछ हुनर सीखो जो पेट के लिए काम आए यह पेंटिंग वेंटिंग बनाना यह सब क्या है ?
कला से कभी भी आपका कैरियर सुनिश्चित नहीं रहता यह अलग बात है कि कभी किसी को प्रतिष्ठा मिल जाती है । शापित गंधर्व को बहुत कुछ सोचना पड़ता है बहुत कुछ समझना पड़ता है यह दुनिया को असल राह भी बताएं तो भी लोग उस पर कोई विश्वास नहीं करते । तब तो और मदद नहीं होती जब भी अभाव के साथ सीखते रहते हैं ।
लेकिन यश पाते ही कलाकारों के आगे पीछे दुनिया घूमती है । मेरी एक शिष्या शालिनी अहिरवार ने कल ही मुझसे पूछा था :- कि आज जो हाथ प्रतिष्ठित कलाकार के गले में मालाएं कांधे पर दुशाला डालकर सम्मान देते हैं.... तब कहां होते हैं सर जब एक साधन हीन कलाकार क अपनी साधना में व्यस्त होता है उसे उस वक्त बड़े सपोर्ट की जरूरत होती है किंतु ना तो परिवार ना ही समाज कोई भी मदद करने आगे नहीं आता ?
सवाल स्वाभाविक है और सवाल विचारणीय है शालिनी सही पूछ रही है शुरुआत घर से होनी चाहिए लेकिन घर भी एक सीमा के बाद कलाकार के प्रति अपनी संवेदनाएं तिरोहित कर देता है परिवार के लोग उस कला साधक की उपेक्षा करने से बाज नहीं आते तो समाज के लोग निश्चित तौर पर उपेक्षित कर ही देंगे । 
जबलपुर के रघुवीर यादव को अक्सर लोग हंसी में उड़ाते थे रघुवीर यादव हमारे शहर के ही महान कलाकार हैं लेकिन जब वे जबलपुर में अपनी कला साधना कर रहे थे तो लोग कितने पॉजिटिव थे उनके इस काम के लिए पूरा शहर जानता है और जैसे ही एकेडमी का वर्ड उन्हें हासिल हुआ मैसी साहब फिल्म के लिए तो प्रथम ग्रह आगमन पर घर में जगह नहीं थी वेलकम करने वालों की संख्या और घर की लंबाई चौड़ाई यानी क्षेत्रफल मैं कोई संतुलन नहीं था कुल मिलाकर अभावग्रस्त जीवन उपेक्षा और अमर्यादित नसीहत है कलाकार को छलनी करती है लेकिन यही से निकलता है आत्मविश्वास का रास्ता ।
शालिनी ड्रामा आर्टिस्ट है ड्रामा डायरेक्शन में भी रुचि है और तो और लिखती भी है सोच से बहुत मजबूत है लेकिन अभाव औसत मध्यमवर्ग की तरह उसे भी घेरे रहते हैं पर शालिनी के साथ एक अच्छी बात है कि उसके परिवार से उसे पूरा सपोर्ट मिलता है ।
मुझे बेहतर तरीके से याद है कि मेरी आने के पहले इन्हें डूबे हुए सूरजों को मंच दिलाने के नाम पर कुछ लोगों ने बहुत शोषित किया है । एक खास विचारधारा से जोड़ने की कोशिश की और बाल एवं किशोर कलाकारों की अपनी उड़ानों पर रोक लगाने की अनजाने में कोशिश की । 
2014 के वर्षान्त में बाल भवन आते ही मुझे यह बात खटकने लगी थी कि एक खास सख्शियत ने बच्चों को गुमराह कर रखा है । बच्चों की प्रतिभा संवारने की बजाय एक खास विचारधारा से जोड़ा जा रहा है । 
प्रतिभाओं के साथ इस तरह का बर्ताव किसी भी साधक से करना ईश्वर की आराधना नहीं बल्कि ईश्वर के काम में बाधा डालना है ।
पूरे 3 बरस लगे उस सख्शियत को बच्चों के दिमाग़ से हटाने में । अदभुत प्रतिभा के धनी बच्चों को उसके मोहजाल से निकाला और फिर शुरू की साधना .... लगातार बच्चों के अभिभावकों में आकर्षण और विश्वास भी बढ़ने लगा । काश सब समझें सब मेरे दर्द को
*मैं इन डूबे हुए सूरज को उठाने की कोशिश में लगा हूं आप भी साथ दीजिए ना !*

17.1.19

जीवन के प्रमेय : गिरीश बिल्लोरे




*जीवन के प्रमेय*
हैं ये साध्य असाध्य से
तुम इनको साध्य नाम मत दो
ज़िन्दगी की त्रिकोणमिति में
एक मैं हूँ जिसे सारे प्रमेय
सिद्ध करने हैं
वह भी तब जब कि
आधार भी मैं ही हूँ ?
जब आधार में हम न होते तब
आसान था न
सब मान लेते इस सिद्धि को !
है न
पर तुम हो कि आधार से
सम्पूर्ण साध्य की सिद्धी पर आमादा
ओह ! ये मुझसे न होगा
करूंगा भी तो
सिर्फ अपने लिए
सबको यही करना होगा !
********
*एक अकेला कँवल*
एक अकेला कँवल ताल में,
संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने,
तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा,
तिनका तिनका छीन कँवल से
दौड़ लगा देता है दरिया
कभी कभी तो त्राण मसल के !
सब को भाता, प्रिय सरोज है ,
उसे दर्द क्या कौन सोचता ?
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*



7.1.19

स्वामी विवेकानंद 156 वीं जयंती पर आत्मचिंतन



*ये सब क्या आसान नहीं !*
विवेकानंद की आत्मकथा की दूसरी बार अध्ययन करते समय मेरी निगाह उस पन्ने पर जाकर रुक जाती है , जहां कि स्वामी विवेकानंद ने आदि गुरु शंकराचार्य के हवाले से लिखा है की दुनिया में तीन चीजें आसानी से उपलब्ध नहीं होती एक मनुष्यत्व दूसरी मुमुक्षत्व अर्थात  मुक्ति की कामना और तीसरी महापुरुषों का साथ !
तीनों का मिलना आज के युग में बेशक कठिन है । इसे कैसे प्राप्त करना है आगे बताऊंगा अभी तो जानिए कि स्वामी विवेकानंद के 39 वर्षीय जीवन का मूल्यांकन करना मेरे जैसे जड़ बुद्धि के लिए वैसा ही है जैसे काले वाले कम्बलों को रंगना ।
           पर उनके जीवन क्रम से इतना अवश्य सीख चुका हूं कि किसी को अपने गुरु के रूप में स्वीकार लेना कदापि ठीक नहीं ।
                      विवेकानंद के जीवन का प्रारम्भ इसी बात की ओर इशारा करता है । मैं यह लेख किसी भी प्रकार की धार्मिक दृष्टांत के तौर पर नहीं लिख रहा हूं मैं उतना ही नास्तिक हूं जितना विवेकानंद ने मुझे बताया उनकी सलाह है कि मैं नास्तिक रहूं... पर  किसके लिए पर किसके प्रति आस्थावान न रहूं   अपने कथन के आगे वाले हिस्सों में स्पष्ट कर दूंगा ।
        सबसे पहले यह जान लीजिए कि स्वामी विवेकानंद गुरु देव को अंगीकृत करने में 6 साल का समय लगाया स्वामी रामकृष्ण परमहंस बहुत धैर्यवान थे उन्होंने भी जो लक्ष्य किया था की विवेकानंद को वह अपना सब कुछ सौप कर जाएंगे उन्होंने वैसा ही किया वैसा ही हुआ ।
स्वामी विवेकानंद ने अपनी पारिवारिक परिस्थितियों का जिक्र करते हुए परमहंस से कहा कि मेरी तकलीफों दुखों का अंत करा दो स्वामी, रामकृष्ण ने उनकी तकलीफों के अंत के लिए सीधे मां काली के समक्ष निवेदन करने को कहा।
रात्रि के दूसरे तीसरे पहर में चमत्कार सा हुआ स्वामी विवेकानंद पहली बार मां के दर्शन के लिए कमरे में गए मां के समक्ष उन्हें माने साक्षात दर्शन दिए साकार मां के दर्शन पाकर स्वामी विवेकानंद ने मां से कहा मां मुझे विवेक दो वैराग्य दो ज्ञान दो भक्ति दो ताकि मुझे तुम्हारे निरंकर दर्शन का लाभ मिलता रहे ।
परमहंस जानते थे कि ऐसा कुछ ही चल रहा है विवेकानंद जाएंगे और अपने भाइयों और परिवार के बारे में कुछ ना बोलेंगे उन्होंने दूसरी बार भी जा फिर तीसरी बार भी हर बार विवेकानंद केवल यही सब मांगते रहे ।
बस यह अध्याय मेरे जीवन का अंतिम और प्रथम उद्देश्य है ऐसी स्थिति तब आती है जब की मन में ना किसी के अपयश का प्रभाव नाही यश की अपेक्षा हो ऐसा ही विवेक के साथ हुआ मैं विवेकानंद नहीं हूं अभी मुझे शत-शत जन्म देने होंगे आत्मा के शुद्धिकरण के लिए एक जन्म पर्याप्त नहीं है ।
पर अच्छा गुरु मिल जाए तो मुक्ति मार्ग की कल्पना की जा सकती है । मनुष्य मात्र को यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि वह सब कुछ करता है सड़कों पर घूमता हुआ भिखारी जब यह गाता है करते हो तुम कन्हैया मेरा नाम हो रहा है तो वह भीख नहीं मांग रहा होता वास्तव में इस तत्व का दर्शन करा रहा होता है की मनुष्य होने की पहली शर्त है कि अस्थावान बनो ! तभी मनुष्यत्व पाओगे जैसा कि स्वामी विवेकानंद ने भाषित किया है ।
        स्वामी विवेकानंद ने शंकराचार्य के हवाले से मुमुक्षत्वं की ओर संकेत किया है अर्थात मुक्ति की कामना मुक्ति की कामना दैहिक भौतिक कदापि नहीं है मुक्ति की कामना सर्वदा आध्यात्मिक और आत्मिक चिंतन पर अवलंबित है सबसे पहले अच्छा मनुष्य बनना जरूरी है फिर मुक्ति की कामना काम मार्ग सरलता से प्रशस्त हो ही जाता है ।
           स्वामी विवेकानंद जी के जन्म को 156 वर्ष से अधिक होने को आए हैं फिर भी महापुरुषों के होने का एहसास अब तक मुझे नहीं हो रहा है उनका तमाम साहित्य मौज़ूद है फिर भी यह सोच कर कि मैं महापुरुषों की संगत में कैसे जाऊं दुखी हूँ वास्तव में दुःखी होने की जरूरत ही नहीं है । रोज़ रात अब उनको सिरहाने रख लेता हूँ । याद आते ही पढ़ लेता हूँ  लो हो गई न महापुरुष की संगति यही तो आदि गुरु शंकराचार्य ने महापुरुषों की संगत के बारे में जो कहा था ।  यही तो  मेरे जीवन का भी तीसरा उद्देश्य है ।
     फिर भी सोचता हूँ महापुरुषों को कैसे पहचान पाऊंगा ? अभी तो गुरु ही नहीं कर पाया हूं उम्र की आधी सदी पार कर चुका हूं पिछले नवंबर में 55 का हो गया हूं और अभी तक मैंने गुरु दीक्षा ही नहीं ली है ? और फिर मानस में मुक्ति की कामना भी को भी तो सृजित करना है ...?
        पर जब चिंतन करता हूं तो पाता हूं की प्रभु दत्तात्रेय कितने गुरु बनाए थे आप सब जानते हैं । यह मिथक नहीं है दत्तात्रेय पहचानने में कोई गलती नहीं की वह जिससे गुण हासिल कर लेते उसे गुरु का पद दे देते । अगर आपको भौतिक रूप में गुरु की प्राप्ति नहीं है न आप गुरु की तलाश न कर सके हो आज से ही आत्म चिंतन प्रारंभ कर सकते हैं । ऐसी स्थिति में आत्मा से बड़ा गुरु कोई नहीं हो सकता ।
पर रोटी कपड़ा मकान और उसके बाद आज के दौर में यश सम्मान बैंक बैलेंस बेहतरीन स्टेटस जैसी जरूरतें भी तो आन पड़ी हैं ! जाने दीजिए बहुत बड़े विस्तार में जाने की जरूरत नहीं है अच्छा मनुष्य बनने के लिए मात्र सरल रास्ता और बता दूं वह है मानवता का किसी की आंखों में आंसुओं का गिरना देखना जिस दिन तुम्हें भारी पड़ने लगेगा उस दिन तुम अच्छे मनुष्य बन जाओगे और उसी दिन मुमुक्षत्व का आभास तुम्हें हो जायेगा जैसी नवम अवतार बुद्ध को हुआ था समझ गए न सुधिजन बुद्ध राजकुमार से अचानक मनुष्य हुए और फिर उनमें मुमुक्षत्व भाव का प्रवाह हुआ महापुरुषों का संग फिर सहज हो जाता है ।
ध्यान रहे हम बुद्ध के काल भी नहीं है हमारा काल है फर्जी धन संग्रहण करने वाले व्यापारी महापुरुषों का दौर है ।
सुधिजन कृपया प्रभु की शरण में जाने के पूर्व हमारी आध्यात्मिक आईकॉन के जीवन को पढ़ ले आप को संत की संगत अर्थात महापुरुषों से मिलना सहज जावेगा ।
        पूर्व में आस्था और अनास्था का ज़िक्र किया था तो जानिए मैं निरा नास्तिक हूँ - रिचुअल्स को लेकर । उन रिचुअल्स पर मेरी तनिक भी आस्था नहीं है जो डराते हैं कि ऐसा न किया तो ईश्वरीय कोप का भाजन होना होगा । ईश्वर प्रेम का व्यापारी है गुस्सैल दैत्य नहीं है जिसे नाराज़गी हो ।  ब्रह्म के प्रति आस्तिक हूँ जो निरंकार है निर्विकार है सृजक है संवादी है उसके मेरे बीच न पंडित न मुल्ला न पादरी न और कोई भी भाषण कर्ता प्रवचनकार ।
      रास्ते उसके ( ईश्वर के ) हैं वही बताएगा कि कैसे चलना है किस रास्ते चलना है । बस एक बार मिल तो लूँ उससे पर बहुत मायावी है मानस में छिपा हुआ है नज़र नहीं आता ।
ॐ श्री रामकृष्ण हरि

5.1.19

नववर्ष चिंतन बनाम चिंता

नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं बीता 2018 कुछ दे गया कुछ ले गया और यह आदान-प्रदान स्वभाविक है यह साल भी आया है कुछ दे जाएगा कुछ ले जाएगा ।
               2018 में अगर हनुमान जी के कास्ट सर्टिफिकेट के जारी करने का मामला प्रकाश में आया है तो कहीं ऐसा ना हो कि सर्टिफिकेट की फोटो कॉपी विभिन्न मंदिरों में चस्पा 2019 में अगर आप देखे हैं तो कोई बड़ी बात नहीं ।
               सच कहूं अब तो किसी भी विषय पर लिखने में डर लगता है  किस विषय पर कौन क्या सोच है रहा  है । सामान्यतः देश को चलाने के लिए विचारधाराएं ला दी जाती हैं लेकिन देश क्या चाहता है जनता क्या चाहती है जन गण की सोच का मनोवैज्ञानिक यानी साइक्लोजिकल विश्लेषण करना जरूरी है । सियासत को चाहिए कि वे जिस भाषा में आपस में संवाद करते हैं उसका स्तर और बेहतर कर सकने में अगर सफल हुए तो जन गण उन्हें सम्मान के नजरिए से देखेंगे । ऐसा नहीं है कि  सियासी लोग काम नहीं करते उनका अपना काम करने का तरीका है मैं अपने तरीके से सोचते हैं उनका भी लक्ष्य की तिरंगे की आन बान शान बनी रहे लेकिन अचानक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सत्ता की ओर जब कदम बढ़ते हैं तो कुछ ना कुछ ऐसी गलतियां कर बैठते हैं जिससे कि सामाजिक समरूपता में कहीं ना कहीं कोई समस्या पैदा हो जाती है 2018 ऐसी घटनाओं से सराबोर रहा है बहुत कुछ देखने सुनने को मिला है लेकिन कुछ ना कह सका पर लेखककीय दायित्व बोध है मुझे और अपने दायित्वों का निर्वाहन संविधान में प्राप्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संदर्भ में करना चाहूंगा ।
जाति धर्म संप्रदाय रंग वर्ण वर्ग से ऊपर हटकर सोचिए अगर किसी एक वर्ग ने  कुछ उल्टा-सीधा सोच लिया  सोच लिया कि देश हम अपने तरीके से चलाएंगे और वे एकजुट हो गए तो यकीन मानिए कि   एकजुट होकर कुछ  उलट-पलट कर देगा ।  इसलिए इसीलिए सभी चिंतक जागृत हो जाए और सत्य का दर्शन खुले तौर पर कराएं विद्वत जन चाहे तो सियासत को सत्यान्वेषण करना सिखा दें कविता चित्र कथा अभिव्यक्ति अभिनय हमारे तरीके हैं हम इन से इन्हें सीख दे सकते हैं । मुझे नहीं लगता कि हमारी प्रजातांत्रिक व्यवस्था के सिपहसालार सिपाही समझदार नहीं है  वे समझेंगे और जो भी करेंगे मिलजुल कर तिरंगे की शान को बढ़ाने के लिए ही काम करेंगे ।
 मीडिया का एक अपना खास मुकाम है मीडिया से 2019 में यह मुराद होगी कि वे सभी प्रजातांत्रिक मूल्यों को  सुरक्षित रखने के लिए अपने दायित्व को समझे और सामाजिक समरसता को बनाए रखें जिससे socio-economic डेवलपमेंट के सारे मापदंडों को पूरा करते हुए भारत अपने आप में एक नया कीर्तिमान 2019 में स्थापित कर सके ।
शासकीय शासकीय कर्मचारियों अधिकारियों जिससे इस वर्ष उम्मीद यह होगी कि वे विकास की गतिविधियों को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए निष्पक्ष निरपेक्ष भाव से लोक कल्याणकारी कार्यक्रमों को सर्वोच्च स्थान देने की कोशिश पूर्ववत जारी रखें ।
 फिल्म स्टार इस वर्ष ऐसी कोई कंट्रोवर्सी पैदा ना करें जो राष्ट्रीय एकात्मता को क्षति पहुंचाए ।
विचारधारा कोई भी हो चाहे वह राष्ट्रवादी हो या मेरे शब्दों में आयातित हो अगर मैं भारत में है भारत के भलाई के लिए ही सोचें और ऐसा कोई भी स्टेटमेंट जारी ना करें जो कि इस देश की छवि को नकारात्मक रूप से विश्व के सामने लाके रखें और महान प्रजातांत्रिक व्यवस्था  के माथे पर कलंक का टीका साबित हो ।
यहां विश्वास करना होगा कि मैं जो संकल्प यहां आपसे चाहता हूं वह है राष्ट्रीय एकात्मता का भाव न हिंदू न मुस्लिम न सिक्ख  न ईसाई न बौद्ध अपनी अपनी सहिष्णुता को क्या गए बल्कि इन धर्मों की मूल भावना जो मानव कल्याण को रेखांकित करती है के लिए ईश्वर की सौगंध ने तभी यह देश विश्व में गुरु की श्रेणी में आ सकता है किसी विचारधारा के आह्वान पर अगर वह मानवतावादी है सब का समर्थन मिले ऐसा मेरा स्वप्न है और सोच भी यही है ।
साहित्य को चाहिए कि वह सियासी प्रतिबद्धताओं से पृथक मौलिक सृजन  को सम्मानित करें और सम पोषण करे ना की किसी खास विचारधारा का साहित्यकार को हमेशा सजग होना चाहिए निरपेक्ष होना चाहिए जब मानवता के कल्याण  के मुद्दों को  रेखांकित कर विशेष रुप से विस्तार देने की कोशिश करना चाहिए ।
   हनुमान किस जाति के थे राम कौन थे कृष्ण की क्या जाति रैदास कौन थे रहीम क्या थे उनके डीएनए का परीक्षण करना मेरे हिसाब से सबसे बड़ी मूर्खता थी 2018 की हम चाहते हैं कि 2019 में यह सब बीते दिनों का मुद्दा हो जाए इसे दिमाग से हटा दिया जाए और इस मूर्खता की पुनरावृत्ति अब कभी ना हो वरना यह देश बहुत समझदार है उसके हाथ में कुछ क्षण का पावर होता है इसे सभी सियासी ताकत है बेहतर समझ पाई है और समझना भी जरूरी है ।
इस संदेश में अगर किसी को कोई तकलीफ पहुंची हो क्षमा तो नहीं मांगूंगा क्योंकि राष्ट्रहित में यह संदेश जारी किया है और पूरी शिद्दत के साथ इसे समझने की की उम्मीद करता हूं भारत के एक छोटे से लेखक के रूप में नव वर्ष की शुभकामनाएं एवं बधाई स्वीकार कीजिए ।
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

लुईस ब्रेल के 210वें जन्मपर्व पर भावुक हुए निःशक्तजन मंत्री श्री लखन घनघोरिया


"दिव्यांग कल्याण मध्यप्रदेश सरकार की प्राथमिकता"
कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों द्वारा लुइस ब्रेल के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर दीप प्रज्वलित किया गया तदुपरांत अतिथियों का स्वागत संस्था के अध्यक्ष श्री सज्जाद शफी सचिव श्री मति रेखा विनोद जैन प्राचार्य श्री पूनम चंद्र मिश्रा श्रीमती किरण केवट सुश्री रेखा नायडू प्रीति पगली सुभाषिनी दुबे श्वेता नामदेव  रेवा सिंह सेन आदि ने किया .

डॉ राम नरेश पटेल ने इस अवसर पर कहा कि:_ " अगर लुइस ब्रेल ना होते तो निश्चित तौर पर ब्रेल लिपि का अविष्कार ना होता और बेल ब्रेल लिपि का आविष्कार ना होता तो मैं या मेरी तरह अन्य नेत्र दिव्यांगजन विश्व में कदापि लाभान्वित नहीं होते श्री राम नरेश पटेल ने लुइस ब्रेल के जीवन पर विस्तृत प्रकाश डाला .

संस्था अध्यक्ष श्री सज्जाद सैफी ने संस्था की गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बहुत समय से श्री लखन घनघोरिया जी इस संस्था से जुड़े हैं और इनकी मदद से हम असाध्य काम भी कर पाए हैं संस्था में 117 नेत्र दिव्यांग बालिकाएं अध्ययनरत हैं . जिनकी प्रतिमा और क्षमताओं पर किसी भी प्रकार का संदेह किया जाना गलत होगा .
संयुक्त संचालक डॉ आशीष दीक्षित ने कहा कि - राज्य शासन वंचित  के लिए जो भी योजनाएं लाएगी हम उसे पूरी दक्षता और पूरी लगन से लागू करेंगे अपनी ओर से भी हम दिव्यांग जन कल्याण में लीक से हटकर काम करेंगे .
संचालक संभागीय बाल भवन गिरीश बिल्लौरे ने बताया कि बाल भवन में नेत्र दिव्यांग बालिकाओं का जाना कठिन होता था कई सारी समस्याएं थी अतः संभागीय बाल भवन ने नेत्रहीन कन्या विद्यालय में दिव्यांग छात्रों को संगीत का प्रशिक्षण देने का निर्णय लिया ताकि सेवा उन तक पहुंच सके और वह अपने प्रिय विषय की शिक्षा  कक्षा के माध्यम से ग्रहण कर सकें । मानव सेवा से बड़ी पूजा कोई नहीं है और किसी को सक्षम बनाने से बेहतर पुनीत कार्य कोई भी नहीं हो सकता ।
 इस अवसर पर श्री मनीष दुबे शिक्षा अनुदान अधिकारी एवं विधि अधिकारी वरिष्ठ उद्घोषक श्री अमित प्रणामी एडवोकेट अजय शुक्ला श्री युसूफ सैफी श्री विवेक मिश्रा की उपस्थिति उल्लेखनीय रही है कार्यक्रम का संचालन प्राचार्य श्री पूनम मिश्रा द्वारा किया गया एवं आभार प्रदर्शन श्रीमती रेखा विनोद जैन ने व्यक्त किया

3.1.19

बाल भवन हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता में शामिल : विनय सक्सेना


नव वर्ष स्वागत हेतु
सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत आज संभागीय बाल भवन में उत्तर मध्य विधानसभा
क्षेत्र के विधायक श्री विनय सक्सेना
ने मुख्य आतिथि के रूप में कहा कि
वे संभागीय बाल भवन के लिए हरसंभव किसी भी तरह की कमी ना हो हम ऐसे प्रयास करेंगे
बाल भवन उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता में अब शामिल हो गया है
.  उन्होंने संचालक बाल भवन को निर्देशित किया कि
बाल भवन के लिए अपेक्षित सामग्री एवं अन्य आवश्यकताओं का भी आँकलन कर विधिवत
प्रस्ताव उन्हें सौंपा जाए ।अब भविष्य में मैं बच्चों से मिलने एवं उनकी कला साधना
से परिचित होने अनौपचारिक रूप से आता रहूँगा . बच्चों  को सुविधा से वंचित न रखना सरकार  सर्वोच्च प्राथमिकता है .
संस्था की वार्षिक
उपलब्धियों का विवरण संचालक संभागीय बालभवन गिरीश बिल्लोरे द्वारा प्रस्तुत किया
गया .  

बाल भवन में इस अवसर पर निश्चय
संस्था
द्वारा सभा का क्षेत्र
40 कुर्सियां श्री आदित्य अग्रवाल ने भेंट स्वरूप प्रदान की जो
श्री विनय सक्सेना के हाथों संचालक को सौंपी गई ।
कार्यक्रम अध्यक्ष श्री
प्रोफेसर राजेंद्र ऋषि
ने कहा कि- मैं चकित हूं कि नन्हे नन्हे
बच्चों को इतने तल्लीन का से शिक्षित प्रशिक्षित किया जाता है और वह भी वार्षिक
नाम मात्र के शुल्क पर पिछले
4
वर्षों
में जबलपुर की जरूरत बन गया है बाल भवन
 . हम भी इस बाल भवन के लिए आवश्यकतानुसार जन सहभागिता करने के
लिए तैयार है ।

डॉक्टर अभिजात कृष्ण
त्रिपाठी
{प्राचार्य
श्रीजानकीरमण म.वि.}  ने अपने उदबोधन में
कहा कि - बाल भवन में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है जानकी रमन महाविद्यालय एवं
जबलपुर की सभी सक्रिय संस्थाएं मिलकर संभागी बाल भवन के लिए एक राष्ट्रीय स्तर का
कार्यक्रम आयोजित करेगी जिसमें बाल भवन के बच्चे अपनी संपूर्ण प्रस्तुतियां दे
सकेंगे उन्होंने विशेष रूप से उन्नति तिवारी का उल्लेख करते हुए कहा उन्नति तिवारी
एक क्षमतावान बाल कलाकार है और इन्हें अवसर देना हमारा दायित्व है ।

इस अवसर पर वरिष्ठ
पत्रकार एवं कवि श्री गंगाचरण मिश्र
ने कहा कि मैं बाल भवन की सतत उन्नति को
देखकर आश्चर्यचकित हूं किसी शासकीय संस्थान में इतनी प्रतिभाओं को एक साथ देख कर
कोई भी चकित रह जाएगा । बाल भवन को अतिथियों द्वारा सहयोग प्रदान किया गया निश्चय
संस्था द्वारा रुपए
14164 की थी कुर्सियां प्रदान की गई जबकि प्रोफेसर
राजेंद्र ऋषि एवं श्री अभिमन्यु जैन द्वारा
1500 की राशि प्रदान की गई ।
एडवोकेट श्री संपूर्ण
तिवारी

ने कहा कि जबलपुर के लिए ही नहीं पूरे प्रदेश बाल भवन जबलपुर जैसी संस्थाएं
अनिवार्य है इन संस्थाओं का उन्नयन तथा इन्हें अधिक सुविधा संपन्न बनाया जाना
चाहिए ।
अतिथियों का स्वागत
श्रीमती रेनू पांडे डॉ शिप्रा श्रीदेवी यादव श्री सोमनाथ सोनी में किया ।

रंगारंग सांस्कृतिक
कार्यक्रम का आयोजन में
, आशिका ताम्रकार सरीना
बरनार्ड उन्नति तिवारी मानसी सोनी शांभवी पंड्या राजवर्धन पटेल ईशा गुप्ता देव
विश्वकर्मा
,आकर्ष जैन विशेष शर्मा एवं
समीर सराठे ने गायन प्रस्तुत किया जबकि नाक के लोग के सीनियर कलाकारों श्री
देवेंद्र सिंह ग्रोवर श्री विनय शर्मा श्री पराग तेलंग पूजा कनौजिया रविंद्र
मुरहार श्री राहुल झारिया श्री शंकर भूमिया शैलेंद्र राजपूत ने बेटी बचाओ बेटी
पढ़ाओ अंतर्गत नुक्कड़ की प्रस्तुति की । नाटक के लेखक एवं निर्देशक श्री रविंद्र
सिंह ग्रोवर थे ।

आयोजन में डॉक्टर शरद भाई
पालन
, श्री कौशल दुबे राष्ट्रीय
कवि मनीष तिवारी श्रीमती माधुरी मिश्रा कवियत्री की उपस्थिति उल्लेखनीय रही है ।
इस अवसर पर कार्यालय
सहयोगी कर्मचारी श्री टेकराम डेहरिया एवं श्री राजेंद्र श्रीवास्तव ने आयोजन में
बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया ।

 



28.12.18

सोशल मीडिया एवम इलैक्ट्रोनिक पर स्वायत्त-अनुशासन से विमुख होते लोग


सोशल मीडिया पर जितनी भी पोस्ट हो रही है वह बहुधा अनुशासनहीन एवं व्यक्तिगत आक्षेप युक्त सामाजिक राजनैतिक आर्थिक  विषयेत्तर होतीं है ।
युवा पीढ़ी अपने तरीके से एन्जॉय के लिए इस न्यू-मीडिया का प्रयोग करता है तो कुछ लोग उसका उपयोग रोमांटिक साधन के रूप में लिया करतें हैं । सामाजिक मापदड़ों के विपरीत भी पोस्ट धड़ल्ले से इधर से उधर करने से बाज़ नहीं आते ।
विवाहेत्तर एवं अनैतिक व्यापार का साधन भी इसी रास्ते पनप चुका है । कुछ एप्लिकेशन तो निहायत उच्छृंखल यौन संबंधों के मुक्त प्लेटफार्म हैं  । जहां का हाल देख कर आप शर्मिंदगी से तुरंत को डिलीट करेंगे ।
  सियासी होना सोशल मीडिया का
सोशल मीडिया के दुरूपयोग की हद तो इस बार चुनाव के पूर्व पूरे वर्ष सियासी लग्गू-भग्गुओं ने भरपूर की है । कभी कभी तो लगा वाट्सएप के सृजन का कारण ही सोसायटी में भ्रम फैलाने के लिय हुआ हो । सियासी घटनाक्रम पर नज़र डालें तो कुछ लोगों ने बेहद निकृष्टतम पोस्ट पेश कीं ।
अगर आप किसी समूह के सदस्य हैं तो गुड मॉर्निंग, गुड नाईट, हैप्पी बर्थडे, आदि आदि की भरपूर मौज़ूदगी मिलेगी । लतीफे तो लाजवाब मिलते हैं । ये अच्छा है कि कोई विवादित विषय इसमें नज़र नहीं आता । परन्तु अगर देखें तो इस सशक्त माध्यम से केवल इतना लाभ न लिया जाए वरन अपनी सृजनात्मकता का प्रदर्शन भी करना चाहिए । ऐसा करना बौद्धिक क्षमता को बढ़ाता है ।
आप अगर इस पोस्ट को पढ़ रहे हैं तो मैं भाग्यशाली हूँ कि आप ने अक्षरसः इसे देखा पर बहुतायत मित्र गण वाह कह कर छुट्टी पाते नज़र आते हैं ।
सामान्यतः लोग विषयाधारित पोस्ट को देखना ही पसंद नहीं करते । दरअसल आज का दौर विज़ुअलिटी का दौर है । लोगों में अध्ययन क्षमता का ह्रास हो रहा है । आप किसी से पूछकर देखिए - मुद्रा का अवमूल्यन क्या है ? या क्यों किया जाता है ? सनाका खिंच जावेगा ।
मेरा और मेरे मित्र का एक अघोषित सा समझौता है फेसबुक पर हम अनोखे अचर्चित विषय पर बात करते हैं । मित्र और हमको बेहतरीन लोग मिलते हैं टिप्पणियों में नवीनता नज़र आती है । हम आध्यत्मिक चिंतन पर केंद्रीय विषयों पर बात करते हैं । सौभाग्य है कि गम्भीर लोगों की भीड़ में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो गम्भीरता भरी पोस्ट देखते हैं और अपने विचार रखते हैं । दरअसल हम चाहते थे कि लोग फूहड़ता से विमुक्त हों ताकि विमर्श हो चिंतन को सही दिशा मिले ।
लब्बोलुआब यह है कि आज ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो सकारात्मक चिंतन चाहते हैं ।
गैर अनुशासित लोग हमारी पोस्ट को देखें न देखें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता पर ट्रेंड में बदलाव के लक्ष्य से हम दौनों मित्र संतुष्ट हैं ।
अवचेतन में अक्सर कुंठाएं छिपा करतीं हैं । सोशल मीडिया पर कभी कभी युद्ध जन्य स्थिति बन जाती है ।
हाल में एक समूह में एक बच्ची एक शीर्ष नेतृत्व को जूते से मारते हुए नज़र आ रही है उसकी माता जी उससे ऐसा करने का कारण पूछ रही है तो बच्ची बताती है कि इस व्यक्ति ने अमुक को चोर कहा ! उस बच्ची उम्र को देख कर मुझे नहीं लगता कि बच्ची चोर शब्द के अर्थ से भी परिचित हो बल्कि ये अवश्य समझ सका कि परिवार में क्रोध बोने की कितनी क्षमता है ।
यह सब सोशल मीडिया के दुरुपयोग का उदाहरण हैं । हम किसे क्या प्रोट्रेट कर रहे हैं ।
हमारे दौर में माता पिता अगर किसी से दुःखी होते थे तो वे अगर निंदा भी करते थे तो हमें आता देख शांत हो जाते थे । अब तो शाम के चैनल्स उन विषयों पर बात करते हैं जिनको विस्तार मिलते ही सामाजिक समरसता का अंत स्वाभाविक हो सकता है ।
इलैक्ट्रोनिक मीडिया पर भी अब स्वायत्त अनुशासन को लेकर बौध्दिक तबकों में घोर अवसाद है ।
यह है सचाई क्यों न हम मीडिया का सदुपयोग करें क्योंकि हमारे पूर्वज बंदर रहे होने पर हम नहीं न ही मीडिया अस्तुरा है ।
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

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