30.10.18

मृत्यु से बड़ी शांति कभी नही




जन्म से अद्भुत घटना कोई नहीं
मृत्यु से बड़ी शांति कभी नही ।।
माँ से महान कोई भी नहीं-
पिता से बड़ी छाँह कहीं नहीं ।।
☺️☺️☺️☺️☺️☺️
मुझे शांति की तलाश है मुझे महानता की तलाश है  जो मां के पास है मुझे उस बोधि वृक्ष की तलाश है जो पिता  के अस्तित्व का एहसास कराती है  ।
मित्रों आप सब के विचार जाने आप की सहमति स्नेह से पगी  है । इस पोस्ट में जीवन का सत्य अनुभवों और विचार विमर्श से हासिल हुआ है । सच भी यही है जब मां की महानता की बात आती है तो पता चलता है की मां हाड़ मांस सब कुछ देख कर 9 महीने तक खुद तपस्विनी सी मुझे गलती है गर्भ एक आराधना स्थल है जहां छिपाकर मां ने मेरा निर्माण किया है ।
सोचो समझो तो पता चलता है कि मेरे अनुकूल माने आहार तैयार किया है जिसे अमृत से कम नहीं समझा जाना चाहिए ।
सारे माई के लाल ऐसे ही जन्म लेते हैं । हाल में आपको कसाब वाली घटना याद होगी जब आतंकियों से मां ने बात की थी तो पूछा था बेटा तुमने कुछ खाया कि नहीं यहां आतंकियों के पीछे की तारीफ नहीं कर रहा हूं पर उसकी मां ने जो उसकी भूखे रहने की चिंता की उस पर चकित हूं आप भी जब घर में नहीं होते अपनी मां को कॉल कीजिए तो  मां केवल  यही पूछेगी-  तुमने कुछ खाया यह एहसास किसी भी नारी से आप प्राप्त कर सकते हैं ।
रामकृष्ण परमहंस ने कहा था अपनी पत्नी को मां विजन देखिए उनका दृष्टिकोण नारी के प्रति बेहद स्पष्ट और साफ-साफ था । मैं तो कहता हूं की जन्म से लेकर आखिरी सांस तक नारी मां होती है ।
 मेरी बेटी विदेश में जब भी वह कॉल करती है या उसे हम कॉल लगाते हैं तो  मेरी पत्नी सबसे पहले उसे यह पूछती है आज तुमने कुछ खाया तुमको यह खा लेना था तुमको वह खा लेना था भूखी मत रहा करो
यह घटना रोजना घटती है जो मुझसे कहती है साफ तौर पर कहती है कि अगर ईश्वर को खोजना है तू ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं केवल मां से मिल लो या उसे समझ लो ।
ठीक उसी तरह जीवन के सारे तनाव दुनिया भर की बातें रंजिश ओं के बीच जब मैं बाबूजी के बारे में सोचता हूं तो लगता है कि बरगद तो है साथ में यह अलग बात है की परिस्थितियां क्या होती है लेकिन उनका एहसास मात्र शीतलता प्रदान करता है अब जबकि भयावह अंतर्द्वंद का दौर है लोग जिंदगी को इतनी सादगी से नहीं जी सकते जितनी सादगी से हमारा अध्यात्म सिखाता है तब 87 या 88 साल के बुजुर्ग से हमें ऐसी छांव मिलती है जिसके नीचे बैठकर ऐसा लगता है कि हम बुद्ध हो गए ।
जन्म लेना सबसे अद्भुत घटना और इस अदभुत घटना को अंजाम मिलता है मां की अकथ सैक्रिफाइस से ।
मृत्यु चिरंतन शांति का पल होता है । वेदना तनाव पीड़ा हर्ष विषाद कुंठा उत्साह से दूर एक अंतहीन वैराग्य का पथ जन्म तक सनातन  से हमने सीखा है ।
मां की महानता के बिंदु  पर प्रश्न करने वाली लोगों की कमी नहीं है
एक युवक ने आज का- सर मैं यह नहीं मानता की मां सबसे महान है !
 मैंने प्रति प्रश्न किया- क्यों ?
उत्तर मिला नालियों में नदियों में नवजात शिशु मरे होते हैं तो क्या आप समझते हैं कि मां महान हो सकती है ?
युवकD को जब यह समझाया बेटा एक मात्र इस आधार पर दुनिया भर की माताओं महानता से अलग नहीं किया जा सकता ।
और बच्चा अगर झाड़ियों के पीछे फेंक दिया जाता है उसे मां  नहीं मारती है उसे मारता है समाज का दबाव असहज रूप से जिंदगी जीने से पग पग पर अपमानित होने से कुछ बेटियां शिशु को छोड़ना बेहतर समझती है इससे उसका हां केवल उसका मातृत्व लांछित  होता है दुनिया की सारी माताओं को  यह कहकर अपमानित क्यों करते हो ? उसके पास कोई जवाब ना था ।

23.10.18

दुर्गा भैया और हम

बहुत दिनों से बार्बर शॉप पर नहीं जा पाया था । जाता भी कैसे वक्त नहीं मिला दाढ़ी पर रेजर चलाया और बाल सफाचट । इस तरह आधी अधूरी सभ्यता वाली छवि और फीलिंग लेकर अपने आप में खुश था किंतु आज तो तय ही कर लिया था कि हमें बाल कटाना ही है । बाल ना कटा था रामलीला वाले पक्के में रीछ वाला रोल दे देते और फिर आप तो जानते हैं कि अपन ठहरे आग्रह के कच्चे सच में बहुत कच्चे हैं हम आग्रह के कम अक्ल साहित्यकार ठहरे । रामलीला वाले बुलाते तुझे आना ही पड़ता ठीक वैसे ही जैसे घर के दरवाजे पर कोई मित्र आता है और पुकारता काय चल रहे हो का....? रसल चौक मुन्ना कने पान खाएंगे  ?अंदर से अपन लगाते आवाज काय नईं आ रये ज़रा रुको तौ । घर में कितना भी जरूरी काम हो निकल पड़ते थे ठीक उसी तरह रामलीला वाले अगर बुलाते काय रीछ का रोल करोगे ?
पक्का हम चले जाते सो हमने सोचा चलो ऐंसो कोई ऑफर न आये कटिंग करा आंय । तो हम चुनावी ड्यूटी निपटा के सीधे जा पहुंचे सीधे दादा की दुकान पर यह तस्वीर में नजर आ रहे हैं अपने दुर्गा भैया हैं । मिलनसार व्यक्ति इस बार हमने है जाते ही कहा :- दुर्गा भैया आज तो चाय पिएंगे !
भैया ने बताया कि आसपास की सभी दुकानें बंद है तभी निशांत ने चाय मंगा ली इस बात का पता हमें ना था दुर्गा भैया ने हमारे ड्राइवर को भी कह दिया रिजॉर्ट चाय ले आओ साहब के लिए और तुम भी किया ना । फिर क्या था पहले निशांत की चाय फिर दुर्गा भैया की चाय इस बीच यूनुस भैया मशहूर सिंगर अनवर भाई के साथ इंटरव्यू ब्रॉडकास्ट कर रहे थे एक से एक गाने हमारे दौर के दुर्गा भैया और हम सुन रहे थे । मौसकी और लिरिक्स बकायदा हमारी तवज्जो थी ।
एक बात तो हम बताएं जबलपुरिया ठेठ जबलपुरिया होते हैं चाहते हैं तो दिल से चाहते हैं वरना ज्यादा फिजूल बाजी  देखी  तो फिर  मुंडा सरक जाता है  यह अलग बात है  कि दिल के  बड़े साफ होते हैं जबलपुरिया लोग ।
इसके कई  प्रमाण हैं ।
आप भी जानते हो हम भी जानते हैं अब प्रमाण देने की जरूरत मैं नहीं समझता ।  हाथ कंगन को आरसी का जबलपुरिया को परखने के लिए फारसी क्या जबलपुरीये बड्डा के नाम से जाने जाते हैं । काय और हव हमारी जुबान पर चस्पा है जब देखो जब हम इसे इस्तेमाल करते हैं काय बड्डा सही बोले ना ।
हां तो 32 साल पहले भी हम दुर्गा भैया से से ही बनवाते थे अपनी कटिंग तब अशोका में हुआ करते थे दुर्गा भैया होटल अशोका सबसे लग्जरियस होटल थी सेठ त्रिभुवनदास मालपानी इसके मालिक हुआ करते थे । जिनकी दान शीलता और लोक व्यवहार की आज भी सभी प्रशंसा करते हैं । हां तो चले हम मुद्दे पर आ जाते हैं दुर्गा भैया ने बताया कि आजकल के लड़के ढंग से बाल काटना नहीं जानते बालों की चाल को समझना पड़ता है और फिर चेहरे के साथ उस की सेटिंग कैसे की जानी है यह तय करना पड़ता है । भैया की बात में दम तो है भाई । बात करते करते दादा ने हमको कटक पान ऑफर किया । ऐसा नहीं कि हम नागपुरी मीठा पत्ता ही खाते हैं पर इच्छा न थी, सो हमने मना कर दिया जेब में रखा पान बाहर निकाला और डाल दिया मुंह में ।
2 दिन पहले फ्रेंच कट जाड़ी बनवाई थी दादा से ही लेकिन चेहरे पर सूट ना करने के कारण हमने कहा दादा दाढ़ी को तो निपटा दो ।
दादा तैयार थी तभी पता लगा कि दादा और बात करने के लिए इंटरेस्टेड है सो हमने पूछा :- दुर्गा भैया इलेक्शन की क्या खबर है ?
मुझे मालूम है कि दुर्गा भैया राजनीति की फालतू बातों पर जरा भी ध्यान और कान नहीं देते बस उन्होंने एक लाइन में उस बात को खत्म कर दिया बोले:- भैया अपने को तो फुर्सत ही नहीं मिलती किधर उधर की बात सुने तभी यूनुस भाई ने अनवर को धन्यवाद देकर कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा कर दी ।
यूनुस खान बेहतरीन एंकर है एक जाना माना नाम है उनका ठेठ जबलपुरिया हैं ।
गाने तो बेहतरीन सुनो आते हैं आवाज तो देखो रेशमी सी प्यारी सी रुक जाने को मजबूर कर देती है फिर गीतों का चुनाव करने का यूनुस भाई का अपना एक्सपीरियंस है हर व्यक्ति यही सोचता है कि वाह क्या बात है, आज तो मनपसंद गीत की झड़ी लग गई एक के बाद एक जीत चुनकर सुनवाने वाले आने वाले यूनुस  भाई के बारे में हमने जब दुर्गा भैया को बचाया कि भैया यह तो जबलपुरिया हैं बहुत खुश हुए थे . दुर्गा भैया ने हमें रीछ से इंसान बना दिया और हम निकल पड़े अपने घर की तरफ । जबलपुर की खासियत यही है दिल मिला तो फिर क्या कहने नहीं मिला तो फिर कुछ कहने की जरूरत ही नहीं कभी भी आप दो नंबर गेट पर जाएं तो वहां दुर्गा भैया की मौजूदगी आपको मिल जाएगी एक बेहतरीन पर्सनालिटी दुर्गा प्रसाद सिंह जो बालों की चाल भी समझते हैं बालों के ढाल को भी समझते हैं ! और हम पचास से साठ साल की उम्र वालों की चॉइस को भी समझते हैं । आज ही पत्रकार भाई पंकज पटेरिया जी ने भी बताया कि वह 32 सालों से भाई से ही कटिंग बनवाते हैं । दुनिया कितनी भी बदल जाए जबलपुर बदलाव जल्द स्वीकार नहीं करता और करना भी नहीं चाहिए जबलपुर में जब तक हम लोग हैं तब तक बदलाव नहीं हो तो बेहतर है । बिंदास से हमारा जबलपुर हमारे लिए खास है हमारा जबलपुर

14.10.18

MeToo Vs To me By Girish Billore

मी टू बनाम टू मी
मी टू कैंपेन से असहमत को बिल्कुल नहीं हूं असहमति की कोई वजह भी नहीं होनी चाहिए मी टू कैंपेन इन बरसों से दबी हुई एक आवाज है देर से ही सामने आ रही है जहां तक सवाल है इसके दुरुपयोग होने का तो मेरा कहना यह है यह स्वाभाविक प्रतिक्रिया है कोई भी ऐसे अवसर नहीं छोड़ता अगर वह बुद्धिमान समझदार और पूर्वाग्रह ही ना हो ।
अगर कोई किसी को कमजोर महसूस करता है तो निश्चित तौर पर उसकी कोशिश होती है कि कभी ना कभी अपनी बात को अभिव्यक्त कर दी और उसे अवसर मिलना ही चाहिए ।
समाज की परिस्थितियां अगर बेहद आदर्श होती तो ऐसी स्थिति उत्पन्न ही ना होती लेकिन माया नगरी मुंबई की कहानी ही गजब है पेज 3 पर स्वयं को एक्स्पोज़र दिलाने वाली इस कम्युनिटी जिसे केवल और केवल अपनी सेलिब्रिटी इमेज को मेंटेन करने के लिए अनिच्छा से ही सही खूबसूरत दिखना होता है मुस्कुराना होता है और अपने आप को एंटरटेनमेंट प्रोडक्ट बनाए रखने की कोशिश सतत जारी रहती है ।
यह मीडिया ही है जो उनके कपड़े उन पर केंद्रित गाशिप को हवा देता है ।
और उसी से प्रेरित होकर लोग यह समझते हैं कि माया नगरी में सब कुछ आसान है वैसे होता भी है कास्टिंग काउच जैसा
कॉम्प्रोमाइज सामान्य रूप से सुना जाता रहा है।
*कॉम्प्रोमाइज करने की जरूरत क्यों पड़ती है...?*
यह एक बड़ा सवाल है ऐसी कई कहानियां है जो साबित करती हैं कि कॉम्प्रोमाइज करने वाली या करने वाली के पास कोई विकल्प नहीं होता । कई बार तो महिला अथवा पीड़ित पक्ष कार स्वयं यह मानसिकता लेकर माया नगरी में दाखिल होता है यह सब कुछ स्वाभाविक है पार्ट आफ बिजनेस है..... शायद शायद क्या निश्चित थी उन्हें यह समझाया जाता है इस सफलता का मूल मंत्र आपकी योग्यता ना होकर समझौता है ।
मेरे मित्र ऑफिसर श्रोतीय ने कभी कहा था- कला के मामले में सफलता का रास्ता शोषण से ही निकलता है । मुझे उनकी बात न केवल हास्यास्पद लगी बल्कि तब मैं यह सोचता था यह बड़ा घटिया सोच वाला व्यक्ति है ।
लेकिन ऐसा नहीं है आज जब यह सारी घटनाएं क्रमश: सामने आ रही है तो कहीं ना कहीं स्पष्ट होता है कि यह बात बहुत पहले ही सामने आनी चाहिए थी जिससे मी टू कैंपेन की आवश्यकता ना होती ।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति इस तरह के एक्सपोजर से शर्मिंदगी का बोझ उठा चुके हैं ।
माया नगरी में यह सब उतना ही सहज है इसका सभी हिंदुस्तानियों को एहसास था ।
अब यह प्रश्न उठता है बार-बार उठता है की पुरानी बातें क्यों उभर रही है ?
सवाल बिल्कुल जायज है उभरना चाहिए सवाल करना चाहिए किंतु मेरे विचार से इस सवाल का उत्तर यह होगा कि तब कोई ऐसा प्लेटफॉर्म ना होगा जिस पर अपनी बात सुरक्षित तरीके से कही जा सके । यह बात सामान्य रूप से स्पष्ट है कि मी टू कैंपेन इन सोशल मीडिया के कारण महिलाओं में अथवा विक्टिम्स में आत्मविश्वास जगा सका है ।
लेकिन इस बात की क्या गारंटी की जो भी कुछ किया जा रहा है उसके पीछे आरोप लगाने वाले की मंशा क्या है ?
आरोप प्रतिष्ठा को हानि पहुंचाने के लिए तो नहीं है ?
आरोप कर्ता की इच्छा अनुचित लाभ प्राप्त करने की तो नहीं है ?
और उसकी अपनी सहमति से ऐसा कुछ हुआ तो नहीं हुआ ?
एक बुजुर्ग नेता को मेरे शहर में ब्लैकमेल करने के लिए ऐसा षडयंत्र किया गया । वहीं दूसरी ओर दो अधिकारियों के साथ भी ऐसा कुछ ही हुआ है लेकिन प्रथम दृष्टया यह तीनों मामलों में कथित विक्टिम भी स्वैच्छिक रूप से शामिल थीं । यद्यपि वे आपराधिक षडयंत्र कारी प्रवृत्ति के गिरोह की सदस्य थीं । पर तीनों पुरुषों में आत्मनियंत्रण की शक्ति न थीं ।
बात जो भी हो हमें इतना विजिलेंट होना तो जरूरी है कि हम अपने चारित्रिक स्तर को मेंटेन करके रखें अगर हम यह नहीं करते तो मी टू कैंपेन में फंसते ही चले जाएंगे और पारिवारिक सामाजिक कानूनी स्थितियों का सामना करने लायक भी नहीं रह पाएंगे ।
भारत के कल्चर में मी टू कैंपेन की आवश्यकता आज से बरसों पहले से ही थी अभी तो केवल रजत फलक और राजनीति से जुड़े लोग इस कैंपेन की जद में है अगर गौर से देखें समाज शास्त्रियों एवं महिलाओं के संबंध में काम करने वाली संगठनों एवं लोगों से बात करें तो पाएंगे मी टू कैंपेन की जरूरत घर परिवार कुटुंब में सबसे ज्यादा होती है । अगर सच्चाई जानेंगें तो आप चकित रह जाएंगे कि कुटुंब, परिवार, नौकर चाकर, सभी में कोई न कोई विक्टिम आसानी से आप खोज सकते हैं ।

हमारे गाँव की औरतें अपने प्रति यौनिक हिंसा के अपमान  का ख़ुलासा करने के लिये महीनों या वर्षों का इन्तज़ार नहीं करतीं । ये हम नहीं वरिष्ठ लेखिका मैत्रेयी पुष्पा दीदी का अनुभव जन्य कोट है ।

12.10.18

Me to Vs To me By Zaheer Ansari


बदनामी पर उतारु मुन्नियां.............
कई साल पहले एक फ़िल्म का गाना बड़ा लोकप्रिय हुआ था। ‘मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए’ तब मुन्नी बदनाम हुई थी अब मुन्नियाँ बदनाम कर रही हैं। मुन्नियों ने सालों बाद अपनी चिकनी चुपड़ी त्वचा से झुर्रियों की परत उकेर कर दिखाना शुरू कर दिया है कि किस-किस ने, कब-कब उनकी मलाई सी मख़मली चमड़ी का स्पर्शस्वाद लिया था। कमाल इस बात है कि मुन्नियों को बरसों पुरानी घटना अब याद आ रही है जब उनकी चमड़ी में भट्ट पड़ गई है। बड़ा ही अजीब दस्तूर निकाला है इन मुन्नियों ने। ख़ुद तो आउट आफ डेट हो चुकी हैं फिर भी एक्सपायरी डेट की बोर्डेर पर खड़े मुन्नाओं की चड्डी पब्लिकलि उतार रही हैं।

‘मी टू केम्पेन’ क्या चला मुन्नियाँ अपना नाम दैहिक शोषण की दौड़ में शामिल कराने दौड़ पड़ीं और मुन्नाओं का नाम उजागर करने लगी। दस, पंद्रह, बीस साल बाद इस तरह का पर्दाफाश होना आश्चर्यचकित करने वाला है। पब्लिक को इतने सालों के बाद यह बताया जा रहा है कि फ़लाँ मुन्ना ने दैहिक शोषण किया था। मुन्नियाँ यह नहीं बता रहीं कि दैहिक शोषण के ज़रिए उन्होंने क्या-क्या लाभ उस वक़्त उठाया था। मुन्नाओं को सीढ़ी बनाकर जिस ऊँचाई पर पहुँचीं हैं उसका ख़ुलासा भी मुन्नियों को करना चाहिए।

बड़ा सिम्पल सा फ़ंडा है ग्लैमर की दुनिया का। कम उम्र में अधिक की चाहत में कुछेक युवतियाँ-महिलायें कभी-कभी शार्ट-कट मार्ग चुन लेती हैं। सियासत, फ़िल्म इण्डस्ट्रीज, बड़े कारपोरेट सेक्टर के अलावा और भी कई ऐसे फ़ील्ड हैं जहाँ शार्ट-कट से जल्दी आगे बढ़ा जा सकता है। ये कोई आज की बात नहीं है, दशकों से यह परंपरा चली आ रही है। फ़िल्म इण्डस्ट्रीज और राजनैतिक क्षेत्र दैहिक शोषण के लिए कुख्यात हैं। यहाँ के शिकारी हर वक़्त वियाग्रा जेब में रखे शिकार की ताक में बैठे रहते हैं। सामान्य और मध्यम परिवार से पहुँचने वाली स्त्रियों के साथ यौन शोषण होना लगभग तय ही रहता है। हवस का शिकार न बनी तो समझो ‘करियर’ चौपट। उस वक़्त किए गए समझौते की पोल सालों बाद खोलना चर्चा में आना महज़ उद्देश्य प्रतीत होता है।

‘मी टू’ की शिकार कौन सी मुन्नी ट्विटर पर आने वाली है, यह ताकने कई लोग ट्विटर पर आँखें गड़ाए बैठे रहते हैं। जैसे ही किसी सेलिब्रिटी का नाम आया वैसे ही ‘जुगाली मीडिया’ की जिह्वा फड़फडाने लगती है। ‘मी टू’ में क्या हुआ, कितना हुआ, कितने साल पहले हुआ, यौन शोषण होने के बाद कितने साल संग रहे, यह जाने बिना मुन्नाओं की चड्डी उतार दी जा रही है। बेचारे मुन्नागण आदिमानव की तरह पत्ते लपेटे मुँह चुराते फिरते हैं।

अभी तक जिन मुन्नियों ने ‘मी टू केम्पेन’ के तहत अपने नक़ाब उतारे हैं, क़रीब-क़रीब वो सभी आउट-डेटेड हो चुकी हैं और मुन्ना लोग भी नाती-पोते वाले हो गए हैं। मुन्नाओं के बेटे-बेटियाँ बाप की क़लई खुलने को भले उतनी गंभीरता से न लेते हों मगर मुन्नाओं की नज़रें तो शर्मसार रहती ही होंगी। मुन्नाओं के सामने विकट स्थिति तब उत्पन्न होती होगी जब नाती-नतुरे पूछते होंगे कि नाना-दादा.. ये मी टू क्या होता है।

O
जय हिन्द
ज़हीर अंसारी

10.10.18

पीठासीन अधिकारी का दर्द


🙂🙂🙂🙂🙂🙂
बहुत दिनों पहले चुनाव की ड्यूटी में जब मैं एक गांव में पहुंचा तो वहां पीठासीन अधिकारी के रूप में तैनात व्यक्ति मुझे बहुत तनाव में दिखे ।
मेरे पहुंचते ही वे चुनाव आयोग का सारा गुस्सा मुझ पर उतारने लगे बतौर सेक्टर इंचार्ज की हैसियत से तो मैं उनके इस व्यवहार को कठोरता के साथ सही ठिकाने पर ले आता लेकिन मैंने सोचा कि जरा इन्हें सबक सिखाया जाए ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे . केवल प्रायोगिक तौर पर मैं उनसे बड़े संजीदा होकर बात करने लगा उनसे पूछा कि भाई साहब आप किस ओहदे पर हैं उन्होंने बताया कि वे केंद्र सरकार के "..." विभाग में सीनियर अकाउंट्स ऑफीसर हैं .
अपनी तारीफों के पुल बांधते हुए
प्रिसाइडिंग ऑफिसर श्री अमुक जी ने बताया - " कि उनका वेतनमान बहुत बड़ा है ये कलेक्टर कुछ समझते नहीं कहीं भी ड्यूटी लगा देते हैं ।
पीठासीन अधिकारी बताया कि उनके वेतनमान के अनुसार उन्हें काम देना चाहिए'
निर्वाचन आयोग ने उन्हें पीठासीन अधिकारी बना दिया क्योंकि बहुत हल्का काम समझा गया उनके द्वारा .
तभी उनके मुंह से यह बात भी निकली साहब कोटवार नहीं आया उन ने यह भी कहा की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के सुबह से दर्शन नहीं हुए तमाम शिकवे शिकायत के साथ साथ उन्होंने गांव में मच्छर गंदगी जाने किन किन बातों का उलाहना मेरे सिर पर ऐसे उड़ेला जैसे कि कचरे वाली गाड़ी से कचरा किसी जगह पर डंप किया जा रहा हो .
मेरी कोशिश थी कि यह आज सारी भड़ास निकाल दें ताकि अगले दिन तरोताजा होकर काम करें क्योंकि तनाव में काम बहुत मुश्किल होता है .
अंततः उन्होंने मुझसे मेरा वेतनमान और पदनाम भी पूछ लिया यह भी कहा कि हमें छोटे अधिकारियों के अधीनस्थ ड्यूटी लगाई जाती है .
मेरे चेहरे पर बहुत जबरदस्त मुस्कान तैर गई तभी कोटवार और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता पास में आए उन्होंने बताया कि साहब हमने जो जो व्यवस्था निर्देशित की थी वह सब पूर्ण कर ली है .
और उनसे हम ने यह जानकारी हासिल भी की कि भाई हमारे मेहमान हैं भारत सरकार से आए हैं ।
   अधिकारी हैं इनकी सेवा सुश्रुषा में कोई कमी तो नहीं हुई तो सारी पोलिंग पार्टी के बाक़ी  लोगों ने उन दोनों की मुक्त कंठ से सराहना करने लगे और उन्होंने कहा सर इन्होंने बहुत स्वादिष्ट चाय पिलाई नाश्ता भी कराया साथ ही साथ दोपहर का लंच भी बहुत अच्छे से खिलाया #पीठासीन_अधिकारी मुंह में ज़िप लफाकर  खामोश बैठे थे उन्होंने कुछ नहीं कहा !
     ऐसे नजर आ रहे थे जैसे अभी चावल के माड़ में उनको डूबा के निकाला हो .
बातों बातों में हमने आंगनवाड़ी कार्यकर्ता से पूछ लिया बहन जी आप को मानदेय मिल गया है ?
कार्यकर्ता ने बताया साहब सुना तो है कि मानदेय निकल आया है पर हम को बैंक जाने का टाइम नहीं मिल पाया हमने कहा तुम्हें कितना मानदेय मिलता है आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ने बताया कि उसे ₹750 मिलते हैं
इसी तरह कोटवार ने भी अपनी आमदनी का जिक्र किया .
फिर हमने दोनों से पूछा कि क्या आप भोजन की व्यवस्था ग्राम पंचायत ने की है आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ने तपाक से जवाब दिया सर ग्राम पंचायत से भोजन की व्यवस्था नहीं हुई है हमें स्वयं करना पड़ा और हमें खुशी है कि हम अपने मेहमानों को भोजन करा रहे हैं हमें बहुत प्रसन्नता है कि ऐसे देवता जैसे मेहमान हमारे गांव में पधारे .
मैंने पीठासीन अधिकारी को सरोपा निहारा जिनकी  निगाह अबतक झुक चुकीं थीं ।

       मुझे आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के बारे में जानकारी थी वह गांव की ही महिला थी और उसके दो बच्चे थे जो बड़ी क्लासों में पढ़ रहे थे लेकिन उसके पति ना थे
15 साल पहले हुए इन चुनावों की दौर में ₹750 पाने वाली महिला ने भोजन की व्यवस्था स्वयं अपनी आय से की थी कोटवार ने भी चाय की व्यवस्था अपनी ओर से की थी और साहब लोग हैं इसलिए वह पारले जी के बिस्किट भी साथ में लेकर आया था ।
मुझे लगा कि कम-से-कम तीन बार चाय के तथा 6 बार भोजन और दो बार नाश्ते पर कुल खर्च आंगनवाड़ी कार्यकर्ता एवं पटवारी पर ₹300 से ₹350 तक अवश्य हुआ होगा कार्यकर्ताओं और पटवारी को कितना मानदेय भुगतान होना है इसकी मुझे जानकारी ना थी ।
           तभी मैंने उन दोनों को धन्यवाद दिया और अपनी जेब से रुपए 350 निकाल कर दिए और यह कहा कि :-"साहब लोगों का विशेष ध्यान रखना"
    यह सुनते ही सारी पोलिंग पार्टी शर्मिंदा हो गई और उन्होंने बलपूर्वक पैसे मुझे वापस किए हो क्षमा याचना करते हुए कार्यकर्ता को ₹500 अपनी ओर से दिए सामूहिक तौर पर उन्होंने चंदा करके कार्यकर्ता और कोटवार जी को राशि उपलब्ध कराई ।
जिसे लेने से दोनों ही हिच किचा रहे थे ।
पीठासीन अधिकारी अचानक इतनी नरम हुए कि उन्होंने मुझसे कहा - सर अब मैं यह कभी नहीं कहूंगा कि मैं बहुत अधिक वेतन पाता हूं । कम वेतन पाकर मन में इतनी पवित्र भावना रखने वाली यह गांव के लोग कितने महान हैं जिन्होंने हमें यह एहसास नहीं होने दिया की पंचायत द्वारा भोजन की व्यवस्था नहीं की गई है सुदूर पर्वत के आंगन में बसे इस गांव में काम करने वाली यह दो सरकारी कर्मचारी वाकई मुझसे अधिक चीज कमा रहे हैं और वह है आप जैसे अधिकारी का सम्मान ।
यह घटना मुझे इसलिए भी याद है क्योंकि इस प्रयोग से मैं यह जान पाया था कि दुनिया में प्रेम से सिखाया गया सबक कठोरतम ह्रदय को भी परिवर्तित कर देता है । अपवादों को छोड़ दिया जाए तो इसने से बड़ा आयुध कोई नहीं जिससे किसी भी हिंसा घृणा कुंठा और गैर बराबरी के भाव का अंत आसान से किया जा सकता है ।
मुझे लगता है कि वह लेखाधिकारी साहब अब तो रिटायर हो गए होंगे क्योंकि जब भी मिले थे कभी ऐसा लग रहा था कि वह लगभग 50 वर्ष के तो है ही और ऐसे सीनियर व्यक्ति के साथ मैं किसी भी तरह की ज्यादती ना करते उनको एक गहरी शिक्षा देना चाहता था ।
चुनाव नजदीक है सरकारी कर्मचारी ड्यूटी लगने पर उत्साहित हैं पर कुछ कर्मचारी भयातुर भी है ।
जो लोग अपनी ड्यूटी कटाने के प्रयास में लगे रहते हैं अथवा वे प्रजातंत्र के इस महायज्ञ को हेय की दृष्टि से देखते हैं कौन है कोटवार जी और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता दीदी से शिक्षा लेनी चाहिए ।
*गिरीश बिल्लोरे*

8.10.18

उपलब्धियों भरा रहा ये माह बालभवन जबलपुर के लिए


कला, नृत्य एवं आध्यात्म की त्रिवेणी बनारस के घाटों पर इन दिनों चर्चा का विषय है- एक स्वयंसेवी संस्था द्वारा बनारस में 800 दिनों के लिए घाट संध्या कार्यक्रम का आयोजन तय किया है, जिसमें देश के महान कलाकार सुनाम धन्य प्रतिष्ठित कलाकार प्रस्तुति देते हैं .
इस क्रम में बालभवन के दो बालकलाकार को आमत्रण मिला . हुआ यूँ कि  यूट्यूब मौजूद सन्मार्ग एवं संकल्प परांजपे के वीडियो से प्रभावित होकर आयोजन समिति द्वारा इन बाल कलाकारों को आमंत्रित किया तथा इन्हें 30 सितंबर एवं 1 अक्टूबर 2018 को प्रस्तुति देने का अवसर दिया गया. यह प्रस्तुतियां आयोजन के 605वें दिन हुई और 606वें दिन बनारस के अस्सी घाट पर संपन्न हुई. बाल भवन जबलपुर के दो बाल कलाकारों ने काशी के घाट पर होने वाली घाट संध्या में अपना कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाना जबलपुर के लिए गौरव की बात है.
गुरु मोती शिवहरे के मार्गदर्शन में शिक्षा प्राप्त कर रहे कथक नृत्य साधक संकल्प और सन्मार्ग परांजपे के पिता संदीप परांजपे और माता श्रीमती किरण परांजपे ने इन दोनों बच्चों को कथक साधना में पारंगत करने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है. संकल्प परांजपे एवं सन्मार्ग परांजपे संभागीय बाल भवन के सदस्य हैं. उनकी प्रतिभा को पद्मश्री नूपुर जैन ने बनारस के गंगा घाट पर सम्मानित किया.
मेरा एक स्वप्न है कि ये बच्चे देश में और देश के बाहर विदेशों {यूएसए, फ़्रांस, सिंगापुर अर्थात एशिया-यूरोप आदि में} अपनी प्रस्तुतियां दें. मेरे सपने अवश्य पूरे होंगे. 

4.10.18

युवा भतीजे ने माना भारतीय प्रजातंत्र :सबसे आदर्श व्यवस्था ।

यूट्यूब लिंक :-
https://youtu.be/6Koyg0Jubhg

श्वेता सिंह से तारिक फतह की बातचीत सुनिए और देखिए पाकिस्तान की असली तस्वीर ।  यहां तारिक फतह की हर एक बात सच्ची और साफगोई से बयां हो रही है । कायदे आजम पर उनका कथन भारत में विविधताओं का सिंक्रोनाइजेशन भाषाई संस्कृति विविधता के बावजूद धार्मिक परिस्थितियों के अलग-अलग होने के बावजूद संपूर्ण भारत किस तरह से एकीकृत है । तारिक फतेह का इतिहास अगर आप जानते होंगे तो यह भी जानते होंगे कि यह एक ऐसा विचारक है जिसकी बुनियाद पवित्र वामपंथी रही है । युवावस्था में तारिक फतह ने अपने जीवन की चिंतन को समतामूलक समाज की विचारधारा से सिंक्रोनाइज किया । तारिक फतेह एक सतत अध्ययन शील व्यक्तित्व के धनी है उनको पसंद करने वालों की भारत में संख्या पाकिस्तान की आबादी से जाता है मैं खुद भी दक्षिण एशियाई मामलों के अध्ययन में पाता हूं कि तारिक फतेह एक ऐसी शख्सियत है अगर उन्हें सही अवसर मिली तो निश्चित तौर पर पाकिस्तान को अच्छा डेमोक्रेटिक राष्ट्र बनाने में सबसे बड़ा योगदान देंगे किंतु पाकिस्तान की डेमोक्रेसी प्रों मिलिट्री डेमोक्रेसी है आज ही मेरा भतीजा चिन्मय जो पिछले इलेक्शन के बाद वोटिंग पावर का हकदार हुआ है ने पूछा कि क्या पाकिस्तान में हमारे जैसा डेमोक्रेटिक सिस्टम है मित्रों मुझे समझाने और उसने मेरे कहे को समझने में कोई विलंब नहीं किया ।
उसी भारतीय डेमोक्रेसी को सबसे ऊपर पाकर जिस तरह से भावनात्मक खुशी जाहिर की उससे मैं बहुत प्रभावित हुआ हूं लेकिन पाकिस्तान का युवा क्या ऐसा ही सकारात्मक सोच ता है मुझे संदेह है ।
भारत के संपूर्ण विकास में वहां का युवा शामिल है जिसके पास सोचने की शक्ति है जो मौलिक विचारों से भरा है जो तलाश ता है अपने दिमाग में उभरने वाले सवालों को Chinmay की तरह ।
चिन्मय मेरा भतीजा है इंजीनियरिंग का छात्र है इकोनामिक सिस्टम सोशल सिस्टम कि उसे समझ है । सवाल करता है क्रिकेट देखता है किताब पढ़ता है सोचता है समझता है अखबारों की खबरें रिफरेंस के तौर पर याद रखता है ऐसे युवा दक्षिण एशिया में बहुत मात्रा में मिलते हैं ना केवल हिंदुस्तान बल्कि बांग्लादेश चाइना नेपाल श्री लंका यहां तक कि पाकिस्तान में भी ऐसे युवाओं की कमी नहीं है लेकिन भारत में ऐसे युवाओं को रास्ते सूझते हैं उन्हें काम करने की अपॉर्चुनिटी मिलती है । वह अपने वोट की कीमत जानते हैं आज बातों बातों में उसने मेरा मन टटोलना चाहा कि मैं किसे वोट दूंगा । आखिर मेरा भतीजा जो ठहरा अन्वेषण की आदत है समझने की कोशिश करता है पर मैंने कहा यह मेरा व्यक्तिगत एवं गोपनीय अधिकार मैं किसी वोट दूंगा यह सिर्फ मुझे मालूम होगा इसे गोपनीय रखने का हक भी मुझे है और वोट डालने का अधिकार भी डेमोक्रेसी में दिया हुआ है ।
तब उसने कौतूहल बस या जानबूझकर मुझसे पूछा कि फिर मैं क्या करूं ?
चिन्मय को मैंने यह सलाह दी कि तुम समाचारों को रेफरेंसेस को पढ़ते रहो समझते रहो अपना चिंतन अपनी राह स्वयं तय करो और जो तुम्हें आदर्श लगता है उसे चुन मेरे कहने से तुम्हारा चुनाव करना तुम्हारे अधिकार पर मेरा अतिक्रमण होगा जो अधिकार तुम्हें मिले हैं उस अधिकार का प्रयोग भी करना तुम्हें आना चाहिए ।
मुस्कुरा कर उसने तुरंत ही अगला सवाल किया कि क्या भारत की सेना और रॉ के बीच पाकिस्तान की आर्मी और आईएसआई जैसे संगठन के समान प्रतिस्पर्धा है ।
क्या भारत की रॉ अत्यधिक शक्तिशाली है या आर्मी.. ?
मैंने अपने ज्ञान के आधार पर बताया कि भारत की सर्वोच्च शक्ति भारत का प्रजातंत्र है रॉ का अपना महत्व है सेना की अपनी जिम्मेदारी है कंट्रोलर जनरल ऑफ अकाउंट की अपनी ड्यूटी है तो आयकर विभाग की अपनी जिम्मेदारी है कोई किसी की जिम्मेदारियों और कार्यवाही यों में मौजूद ला के हिसाब से हस्तक्षेप नहीं करता है और ना ही उनमें आपसी प्रतिस्पर्धा है यह है संपूर्ण आदर्श डेमोक्रेटिक सिस्टम का बेहतरीन उदाहरण जो अमेरिका में भी संभवत: नहीं है ...!
चिन्मय और मेरे बीच हुए लंबे संवाद का सार तत्व यह है कि भारतीय युवा सामान्य रूप से एक्स्ट्राऑर्डिनरी टैलेंट से भरा हुआ है उसमें समझने सीखने की उत्कंठा है कभी आप देख रहे होंगे कि यूरोप में टॉप कंपनी के सीईओ प्रशासन में महत्वपूर्ण पदों पर बैठने वाले लोग भारतीय ही तो है अमेरिका इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण है ।
कल मेरी बेटी ने बताया की ब्रसेल्स में आय का स्तर भारतीय प्रति व्यक्ति आय से अधिक है । लेकिन कर्मठता भारतीय उपमहाद्वीप के युवाओं की ही नजर आती है इसके पहले जब वह एमस्टरडम में थी तब उसका यही मत था ।
एशियाई देशों में संघर्षशीलता और कर्मशील युवाओं का अकूत भंडार है चाइना को छोड़ दिया जाए तो भारत बांग्लादेश इस श्रेणी में शामिल होने वाली दो महत्वपूर्ण राष्ट्र है ।
मित्रों भारतीय प्रजातांत्रिक व्यवस्था अपेक्षाकृत अधिक पारदर्शी एवं कैस्टेड ओके कही जा सकती है अगर शिक्षा का स्तर बढ़ाने में हर एक धर्म संप्रदाय भारत के लोगों की मदद करें तो यूनाइटेड किंगडम जैसे राष्ट होने में भारत को बहुत अधिक समय नहीं लगेगा ।
मुझे उम्मीद है दशकों में भारत अपना पूरी तरह से लोहा मनवाने की क्षमता को प्रदर्शित कर ही देगा ।
इसके लिए भारतीय युवाओं को हमें खासतौर पर प्रिंट मीडिया डिजिटल मीडिया जिसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी कहेंगे तथा शिक्षा व्यवस्था को सहयोग करना पड़ेगा । निर्वाचन प्रक्रिया के पूर्व अनियंत्रित वक्तव्य लालच देने वाले प्रयासों से ऊपर उठकर राष्ट्र प्रेम के संवाद विस्तारित करने होंगे ।
सामाजिक स्थितियों धार्मिक विवादों आरक्षण आरक्षण पर सहमति विरोध अपनी पहचान खोने का डर ताक पर रखकर बच्चों को सच्चे और अच्छे विचारों से अवगत कराते रहना होगा ।
मित्रों भारत का प्रजातंत्र बहुत आदर्श प्रजातंत्र है उसकी कमियां अगर कुछ हैं तो वह दूर हो सकती हैं अगर हम चाहे तो जा रहे हैं ना आप इस बार अपने पसंदीदा प्रतिनिधि को चुनने के लिए पिकनिक पिकनिक का मामला पहले निपटा लीजिए या बाद में जाइए सबसे पहले सुबह से मतदाता वाली लाइन में जरूर लग जाइए ।

2.10.18

2018 में एक बार फिर मिसफिट ब्लॉग को मिला हिन्दी के श्रेष्ठ ब्लॉग का दर्ज़ा ..!




आप सब के आशीर्वाद से तथा विश्व की असीम अनुकंपा से भारतवर्ष के श्रेष्ठ 125 हिंदी चिट्ठाकारों में मेरा ब्लॉग शामिल है । स्नेही जन जाने के अंतरजाल पर मुझ तक पहुंचने वाली और मुझे पढ़ने वाली लोगों की संख्या 1000000 से भी अधिक हो चुकी है । जिनमें मेरा सबसे लोकप्रिय ब्लॉग है मिसफिट जिसकी रीडरशिप 470000 से अधिक है जो मुझे ब्लॉग सूची में शामिल कराता है इस ब्लॉग को भारत यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका तथा वर्तमान में सिंगापुर में सबसे ज्यादा पढ़ा जा रहा है हिंदी चिट्ठाकारी का उद्देश्य गूगल अथवा अंतरजाल को हिंदी की शब्दावली वाक्य विन्यास से इतना परिचित करा देना है जिससे विश्व के किसी भी भाषा से हिंदी अथवा हिंदी से उस भाषा में अनुवाद सहजता से हो सके तथा अधिकतम कंटेंट हिंदी में अंतरजाल पर मौजूद रहे ।
मैं 2007 से हिंदी चिट्ठाकार कारिता से जुड़ा हुआ हूं तब हमें ब्लॉग लिखने की प्रक्रिया में बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था । तब यूनिकोड की आमद नहीं हुई थी । उस दौर से लगातार आज तक हम सभी अंतरजाल पर लिखने वाले लिखने का कार्य करते जा रहे हैं ।
जबलपुर संस्कारधानी के सबसे पहले ब्लॉगर के रूप में कनाडा के नागरिक श्री समीर लाल समीर तदुपरांत मैं यानी गिरीश बिल्लोरे , डॉ विजय तिवारी किसलय, भाई पंकज गुलुष, भाई हिमांशु राय के अलावा भाई श्री राजेश दुबे कार्टूनिस्ट आदि संलग्न है श्री महेंद्र मिश्रा बेहद प्रभावी लेखन के साथ समय चक्र पर लिखने का कार्य कर रहे हैं ।
हिंदी ब्लॉगिंग के जरिए मैंने 2009 में पहली बार पॉडकास्टिंग अर्थात ऑडियो ब्लॉगिंग शुरू की थी जो उस दौर का सबसे ज्यादा लोकप्रिय कार्य था इसके जरिए हम टेलीफोन पर लोगों से बात कर उनके ऑडियो को उनकी अनुमति से रिकॉर्ड करते हुए उसे एचटीएमएल में कन्वर्ट कर अपने ब्लॉग पर पोस्ट किया करते थे इस कार्य में मुझे सहयोग मिला इंदौर की ब्लॉग लेखिका अर्चना चावजी का उसके बाद बेमबज़र वेबसाइट की सहायता से हमने पॉडकास्टिंग शुरू की तब गूगल ने यह सुविधा प्रदान नहीं की थी हम उक्त वेबसाइट की सहायता से एक स्थान से दूसरे स्थान में मौजूद व्यक्ति के साथ लाइव बातचीत करते हुए लाइव हो जाते हैं यह वेबकास्टिंग अचानक बेहद लोकप्रिय हुई क्योंकि यह आश्चर्यचकित कर देने वाली थी । इसमें हमने ना केवल भारत बल्कि विश्व के कई देशों में रह रहे भारतीयों से बातचीत कर उस बातचीत को लाइव वेबकास्ट किया इसी क्रम में मुझे 2009 में वेबकास्टिंग के लिए दिल्ली में सम्मानित किया गया जो गूगल में मौजूद है ।
इस तकनीकी प्रयोग से हमने उत्तराखंड से सीधा प्रसारण किया किंतु प्रसारण केंद्र उत्तराखंड ना होकर जबलपुर में मेरा निवास था । यह विवरण गूगल के सर्च एंजिन पर मौजूद है आप देख सकते हैं ।
इस प्रयोग का असर यह हुआ की सबसे पहले हिंदी लेखन के साथ साथ वीडियो प्रसारण तथा ब्लॉगिंग में नए प्रयोग करने का हम गैर तकनीकी लोगों को अवसर मिला जिसका विवरण कादंबिनी में भी प्रकाशित हुआ था इसके अलावा लाखों दर्शकों ने कई लाइव वेबकास्ट को पसंद भी किया ।
साथ ही गूगल ने भी वेबकास्टिंग ग्रुप वेबकास्टिंग जैसी प्रक्रिया आरंभ कर दी ।
और यह सब हुआ जबलपुर से प्रारंभ हुआ था. पॉडकास्टिंग वेबकास्टिंग मेरे लिए बहुत ही आश्चर्यजनक अनुभव था .  उन दिनों मैं गंभीर रूप से फेफड़े की  बीमारी और एक अन्य समस्या में उलझा हुआ था परंतु वही दौर मेरे लिए वैश्विक उपलब्धि से भरा दौर लगता था । 
सुधी पाठकों अंतरजाल पर काम करते वक्त 100-200 शब्द लिखना बेहद कठिन एवं जोखिम भरा था समय भी बेहद खर्च होता था । घर परिवार की नसीहतों को सुनना मेरी नियति बन गई थी ।
महंगी इंटरनेट सेवाएं बजट बिगाड़ रही थी परंतु जुनून ऐसा था कि काम छोड़ने की इच्छा ना थी । समय कम था सरकारी कामकाज तू कब लिखे ऑफिस में लिखना भी मुश्किल ऑफिस का इंटरनेट इस्तेमाल करना मुझे अपराध बोध ग्रस्त कर देता था । विकल्प एक मात्र था लिखना ज़िद थी की अंतर्जाल पर इतने हिंदी रख दी जावे कि गूगल भी बाध्य हो जाए हिंदी भाषा को अपने में सम्मिलित करने के लिए ।
यह पागलपन सिर्फ मुझ में नहीं बहुत दिनों में था आज तो 125 लोगों की सूची जारी हुई है उनमें अधिकांश उसी दौर के पागल समझे जाने वाले लोग शामिल हैं अब तो मैं लिख भी लिख रहा हूं तो वॉइस टाइपिंग से इंटरनेट पर मौजूद सुविधाएं हर काम को आसान बना रही है ! लोग लिख रहे हैं तब के दौर में हम सौ डेढ़ सौ लेखक कवि विचारक विषय विशेष पर लिखने वाले लोग सक्रिय थे ।
हम एक दूसरे को पढ़ते एक दूसरे से सहमति असहमति व्यक्त करते हुए इस यात्रा में शामिल हुए 2007 से लेकर आज तक यात्रा सतत जारी है हमने अपनी जिद को नहीं छोड़ा है हम लिख रहे हैं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तकनीकी उसे विस्तारित कर रही है अंतरजाल पर अपनी जगह बना रहा है यूनिकोड वॉइस टाइपिंग फोंट कन्वर्जन की समस्या नहीं है परंतु 2007 से आज तक लगातार काम करने के बाद भी विश्व की प्रसिद्ध कंपनी गूगल हमें विज्ञापन से वंचित रखती है बीच में हिंदी लेखकों के लिए तो गूगल ने विज्ञापन देने ही बंद कर दिए थे और अभी भी जो दिए जा रहे हैं उनसे होने वाली आय ऊंट के मुंह में जीरे की तरह है ।
परंतु राष्ट्रभाषा के प्रति हम अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हुए लिखते जा रहे हैं यह अलग बात है कि अंग्रेजी अथवा चीनी भाषा में लिखने वालों को हमसे अधिक राशि प्राप्त हो रही है गूगल का यह दोगला रवैया हिंदी लेखकों के प्रति उसकी संवेदनशीलता का प्रमाण है हो सकता है कि गूगल मेरे इस लेख को प्रतिबंधित भी कर दे परंतु सच्चाई को उजागर कर देना बहुत जरूरी है ताकि हिंदी चिट्ठाकारी को प्रोफेशनल तौर पर अपनाने वाले यह तय कर सकें कि उन्हें आर्थिक लाभ नहीं होने वाला है यह सिर्फ एक जुनून है एक पागलपन है 
डायरेक्टरी आफ हिंदी ब्लॉग्स नामक वेबसाइट में वर्ष 2018 के लिए चुनिंदा 125 सुप्रसिद्ध ब्लॉग्स की सूची जारी कर दी है 2018 में उनके मूल्यांकन में जो श्रेष्ठ ब्लॉक पाए गए उनमें मेरा भी एक ब्लॉक मिसफिट शामिल किया गया ।

साथी जबलपुर मूल के कनाडा निवासी एवं कनाडा के नागरिक चार्टर्ड अकाउंटेंट चिट्ठाकार श्री समीर लाल का ब्लॉग उड़न तश्तरी भी इस सूची में शामिल है।
Directory of Best Hindi Blogs हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगों की डायरेक्टरी

The seventh edition of the Directoryof Best Hindi Blogs has been released on 30th September 2018. It has 125 blogs, listed alphabetically [according to the operative part of the URL]. 

30 सितंबर 2018 को ज़ारी हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगों की डायरेक्टरी का 7वां संस्करण आपके सामने प्रस्तुत है. इसमें 125 ब्लॉग हैं जिन्हें उनके URL के पहले अंग्रेज़ी अक्षर के क्रम में लगाया गया है.

4yashoda 
मेरी धरोहर 
aapkaablog 
आपका ब्लॉग 
aarambha 
आरम्भ 
abchhodobhi 
अब छोड़ो भी 
achhikhabar Achhikhabar 
ajit09 
अजित गुप्‍ता का कोना 
akanksha-asha Akanksha 
akhtarkhanakela 
आपका-अख्तर खान "अकेला" 
akoham 
एकोऽहम् 
andhernagri 
अंधेर नगरी 
anitanihalani 
मन पाए विश्राम जहाँ 
anubhaw 
अनुभव 
apnapanchoo 
अपना पंचू 
apninazarse 
अपनी नज़र से 
archanachaoji 
मेरे मन की 
artharthanshuman Arthaat 
aruncroy 
सरोकार 
ashokbajajcg 
ग्राम चौपाल 
asuvidha 
असुविधा.... 
baatapani 
बात अपनी 
bal-kishore Bal-Kishore 
bamulahija Bamulahija 
bastarkiabhivyakti 
बस्तर की अभिव्यक्ति -जैसे कोई झरना... 
bhadas 
भड़ास blog 
bhartiynari 
भारतीय नारी 
boletobindas Bole to...Bindaas....
बोले तो....बिंदास 
brajeshgovind 
यही है जिन्दगी 
brajkiduniya 
ब्रज की दुनिया 
bulletinofblog 
ब्लॉग बुलेटिन 
burabhala 
बुरा भला 
chandkhem 
हरिहर 
chandrabhushan 
नजरबट्टू 
charchamanch 
चर्चा मंच 
chavannichap chavanni chap (
चवन्नी चैप) 
chouthaakhambha 
चौथा खंबा 
dakbabu 
डाकिया डाक लाया 
devendra-bechainaatma 
बेचैन आत्मा 
doosrapahlu 
दूसरा पहलू 
dr-mahesh-parimal 
संवेदनाओं के पंख 
ek-shaam-mere-naam 
एक शाम मेरे नाम 
firdausdiary Firdaus Diary 
gahrana 
गहराना 
geetkalash 
गीत कलश 
girijeshrao 
एक आलसी का चिठ्ठा 
gopalpradhan 
ज़माने की रफ़्तार 
gulabkothari Gulabkothari's Blog 
gustakh 
गुस्ताख़ 
gyandarpan 
ज्ञान दर्पण 
harshvardhantripathi 
हर्षवर्धन त्रिपाठी 
hathkadh Hathkadh 
hindi-abhabharat.com हिन्दी-आभा*भारत 
हिन्दी-आभाभारत 
hinditechy Hindi Techy 
indorepolice Indore Police News 
jhoothasach 
झूठा सच - Jhootha Sach 
jindagikeerahen 
जिंदगी की राहें 
kabaadkhaana 
कबाड़खाना 
kajalkumarcartoons Kajal Kumar's Cartoons
काजल कुमार के कार्टून 
kavitarawatbpl KAVITA RAWAT 
kpk-vichar 
मेरे विचार मेरी अनुभूति 
krantiswar 
क्रांति स्वर 
kuchhalagsa 
कुछ अलग सा 
kumarendra 
रायटोक्रेट कुमारेन्द्र 
laharein 
लहरें 
laltu 
आइए हाथ उठाएँ हम भी 
lamhon-ka-safar 
लम्हों का सफ़र 
lifeteacheseverything 
मेरी भावनायें... 
likhdala likh dala 
logbaag 
लोग-बाग 
madhurgunjan 
मधुर गुंजन 
main-samay-hoon 
समय के साये में 
mykalptaru 
कल्पतरु 
naisadak 
कस्‍बा qasba 
neerajjaatji 
मुसाफिर हूँ यारों 
ngoswami 
नीरज 
omjaijagdeesh 
वंदे मातरम् 
onkarkedia 
कविताएँ 
pahleebar 
पहली बार 
pammisingh 
गुफ़्तगू 
pittpat 
बर्ग वार्ता - Burgh Vartaa 
poetmishraji Amit Mishra 
pramathesh jigyasa
जिज्ञासा 
prasunbajpai 
पुण्य प्रसून बाजपेयी 
pratibhakatiyar 
प्रतिभा की दुनिया 
purushottampandey 
जाले 
radioplaybackindia 
रेडियो प्लेबैक इंडिया 
rahulpandey 
चक्र-व्यू 
ranars Agri Commodity News English-Hindi 
rangwimarsh 
रंगविमर्श 
raviratlami 
छींटे और बौछारें 
rekhajoshi Ocean of Bliss 
rooparoop 
रूप-अरूप 
rozkiroti 
रोज़ की रोटी - Daily Bread 
sadalikhna 
सदा 
sanjaybhaskar 
शब्दों की मुस्कुराहट :) 
sanskaardhani 
मिसफिट Misfit 
sanyalsduniya2 
अग्निशिखा : 
sapne-shashi sapne(
सपने) 
sarokarnama 
सरोकारनामा 
satish-saxena 
मेरे गीत ! 
seedhikharibaat 
सीधी खरी बात.. 
shalinikaushik2 !
कौशल ! 
sharadakshara sharadakshara 
shashwat-shilp 
शाश्वत शिल्प 
shubhravastravita 
मंथन 
sriramprabhukripa 
श्रीराम प्रभु कृपा: मानो या न मानो 
sudhinama Sudhinama 
sumitpratapsingh 
सुमित के तड़के 
supportmeindia Support Me India 
swapnmere 
स्वप्न मेरे................ 
teesarakhamba 
तीसरा खंबा 
tensionproof Y K SHEETAL 
travelwithmanish 
मुसाफ़िर हूँ यारों... (Musafir Hoon Yaaron…) 
tsdaral 
अंतर्मंथन 
udantashtari 
उड़न तश्तरी .... 
ulooktimes 
उलूक टाइम्स 
vandana-zindagi 
जिन्दगी 
vatsanurag 
सबद  
vigyanvishwa 
विज्ञान विश्व 
wwwsamvedan 
सहज साहित्य 


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धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...