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Daughters Day बेटी के इरादों से ऊंचा नहीं है एफिल टावर

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#Daughters_Day  बेटी के इरादों से ऊंचा नहीं है एफिल टावर मेरे कांधे पर जिस बेटी का सिर है वह है  Shivani Billore  बेटियों पर गर्व करना यह सारी बेटियां अब काम कर रही हैं मुझे गर्व है कि मेरी बड़ी बेटी शिवानी अगले दो-तीन दिनों में कंपनी की ओर से पुनः एक बार विदेश यात्रा पर होगी इस बार शिवानी जा रही है बेल्जियम के ब्रुसेल्स शहर में जो बेल्जियम की राजधानी है बीच में उसे उसे दुबई भी जाना था किंतु कंपनी की जो भी परिस्थिति रही हो शिवानी Ey में सीनियर एसोसिएट के पद पर पदस्थ है। गर्व है और कृतज्ञ हूं शिवानी के गुरुजनों का जॉय किंडर गार्डन के श्री प्रवीण मेबैन जो मेरे मित्र भी हैं के स्कूल में शिवानी की शिक्षा प्रारंभ हुई कठोर अनुशासन मेहनत लगन के साथ श्री प्रवीण मेंबेन ने शिवानी में आत्मविश्वास जगाया तो फिर आगे की जिम्मेदारी निभाई जॉय सीनियर सेकेंडरी स्कूल ने जहां इसकी बुनियाद मजबूत हुई । शिवानी ने मुझे 9 वीं क्लास में ही बता दिया था कि पापा मुझे साइंस नहीं पढ़ना है । काफी समझाने के बाद शिवानी ने अपने तर्कों के जरिए मुझे इस बात के लिए कन्वेंस करा लिया कि वह साइंस तो नहीं पड़ेगी और मैं स

पैरेरल यूनिवर्स हो सकते हैं ? -गिरीश बिल्लोरे मुकुल

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पैरेलल यूनिवर्स की परिकल्पना और उस यूनिवर्स में पहुंचने के तौर-तरीके के संबंध में जो बात विजुअल मीडिया पर मौजूद है उस पर चर्चा करना चाहता हूं पैरेलल यूनिवर्स के संबंध में साफ कर देना चाहता हूं कि पैरेलल यूनिवर्स किसी भी स्थिति में मौजूद तो है असंख्य पैरेलल यूनिवर्स मौजूद है न की हमारे सौरमंडल से जुड़ा हुआ कोई एक मात्र सौरमंडल लेकिन एक सौरमंडल से दूसरे सौरमंडल में प्रवेश के कोई शॉर्टकट रास्ता है यह समझने के लिए ब्लैक होल थ्योरी को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है । मेरे हिसाब से पैरेलल यूनिवर्स में प्रवेश का तरीका केवल यांत्रिक होगा किंतु प्रोफ़ेसर हॉकिंस को अनदेखा करना भी गलत ही है इसका कारण है कि जो चुंबकीय रास्ते ब्लैक होल में तैयार होते हैं वह किधर जाते हैं यह एक सोचने का बिंदु है । मुझे लगता है और मैं महसूस भी करता हूं कि एक सौर मंडल दूसरे सौरमंडल से किसी तरह के ब्लैक होल से अवश्य ही जुड़ा होगा ब्लैक होल हमारे उस तक जाने का एक माध्यम होना असंभव है । अगर ऐसा है तो कभी भी उस माध्यम से किसी का आगमन होना किसी ने भी महसूस नहीं किया ना ही विश्व के किसी भी रडार, उपग्रहों ने ब्लैक होल के ज

काश आज तुम होते कृष्ण

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भारत का भगवान जिसने बचपन को भरपूर जिया उनके जन्मपर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं* 💐💐💐💐 दुनियाँ भर के ऐसे पिता माता जो निर्णय थोपते तो लगता है उनके बच्चे बच्चे नहीं *प्रजा* हैं और वे *सम्राट एवम साम्राज्ञी* ! कल जब वे आए तो लगा .. आज एक नए राजा रानी आए हैं । बालमनोविज्ञान को घर की किसी सन्दूक में बंद करके उस पर अलीगढ़ी ताला मारके आने वाले ये राजा रानी मुझसे बताने लगे कि वे अपनी बेटी के लिए सब कुछ करने तैयार हैं । बेटी को रंगकर्म सीखना है । आइये इन राजा रानी और मेरे बीच हुए संवाद को देख लेते हैं - मैं : आइये बैठिए राजा :- हमारी बेटी को अभिनय सीखना है हमें अमुक जी ने आपकी संस्था के लिए सजेस्ट किया है रानी :- बेटी को एक सीरियल में काम मिलेगा ऐसा बंदोबस्त हुआ है 5-6 माह बाद उसका स्क्रीन टेस्ट होगा । मैं :- बेटी कहाँ है ? रानी :- स्कूल गई है । मैं :- ले आइये राजा :- वहीं से कोचिंग जाएगी मैं :- क्यों स्कूल में पढ़ाई नहीं कराते क्या ?रानी :- गणित में कमज़ोर प्रतीत होती है । मैं :- और विषय राजा :- हमने सोचा सारे विषय की कोचिंग करा दें मैं :- तो स्कूल की फीस नाहक दे रहे हो स्कूल छुड़

सावधान ओशो को भी हाईजैक कर रहे हैं आयातित विचारधारा के लोग

आज एक मित्र ने आखिरकार ओशो को नक्सलवाद का पैरोकार बताने वाली पोस्ट डाली है भाई साहब ने उस पोस्ट का क्रिया कर्म उसके शीर्षक को बदल कर प्रस्तुत कर दिया बौद्धिक विपन्नता किस दर्जे तक पहुंच गई है इसका अंदाज आप स्वयं बताएं और जाने किस समाज का एक खास वर्ग कितना कुंठित सोचता है फिलहाल मैं इस पोस्ट को हूबहू यहां प्रकाशित कर रहा हूं । लेकिन इस प्रकाशन के पहले अपनी बात कह देना चाहता हूं की ओशो का यह प्रवचन जो मेरे गले पूरा-पूरा तो नहीं उतरा कुछ बिंदुओं पर सहमति है किंतु उन्होंने यह कहा कि 5000 साल से कोई क्रांति ही नहीं हुई है मैं नहीं मानता कि 5000 साल से इस विश्व विराट में कोई क्रांति नहीं हुई आजादी के लिए हुआ संघर्ष क्रांति ना थी तो क्या था निश्चित तौर पर ओशो को अपने इस भाषण में इस बात का स्मरण आ रहा होगा ठीक एक जगह ओशो यह कहते हैं की नक्सलाइट हमारी शत्रु नहीं है ओशो जब प्रेम का पाठ पढ़ाते हैं तो लगता है की प्रेम की संपूर्ण परिभाषा ओशो में उतर आई है लेकिन जब नक्सलाइट समस्या को डिस्क्राइब करते हैं तो लगा कि नहीं यहां उसने कोई गलती की है समझने की यह समझाने की ऐसा कैसे हो सकता है कि नक्सलाइट स

अचार की एक फांक : हरेश कुमार की वाल से

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  गुरुकुल घरोंदा के एक आचार्य थे। वे जनसंघ के टिकट पर सांसद बन गए, तो उन्होंने सरकारी आवास नहीं लिया। वे दिल्ली के बाजार सीताराम, दिल्ली-6 के आर्य समाज मंदिर में ही रहते थे । वहां से संसद तक पैदल जाया करते थे कार्रवाई में भाग लेने। वे ऐसे पहले सांसद थे, जो हर सवाल पूछने से पहले संसद में एक वेद मंत्र बोला करते थे। वे सब वेदमंत्र संसद की कार्रवाई के रिकॉर्ड में देखे जा सकते हैं। उन्होंने एक बार संसद का घेराव भी किया था, गोहत्या पर बंदी के लिए । एक बार इंदिरा जी ने किसी मीटिंग में उन स्वामी जी को पांच सितारा होटल में बुलाया। वहां जब लंच चलने लगा तो सभी लोग बुफे काउंटर की ओर चल दिये। स्वामी ही वहां नहीं गए । उन्होंने अपनी जेब से लपेटी हुई बाजरे की सूखी दो रोटी निकाली और बुफे काउंटर से दूर जमीन पर बैठकर खाने लगे।  इंदिरा जी ने कहा - "आप क्या करते हैं ? क्या यहां खाना नहीं मिलता ? ये सभी पांच सितारा व्यवस्थाएं आप सांसदों के लिए ही तो की गई है।" तो वे बोले - "मैं संन्यासी हूं। सुबह भिक्षा में किसी ने यही रोटियां दी थी । मैं सरकारी धन से रोटी भला कैसे खा

स्वर्ग की बातें झूठी बातें

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स्वर्ग की बातें झूठी बातें,इल्म तो है मस्ताने को हम क्यों जाएं पागलखाने पागल को समझाने को जब भी हम खुद से मिलते हैं,खुद को जाना करते हैं हम खुद से ही फिर सीखेंगे,क्यों आए समझाने को कितने पंथ कितनी राहें,कितने दर्शन कितनी सोच हम तो हैं कबीर के अनुचर,गीत हमें भी गाने दो अपनी गठरी खुद ही रख लो,हमको मत दो बोझा ये हम खुद अपना कमा ही लेंगे,खुद को भी अजमाने दो ईश्वर अल्लाह परमपिता सब से मिलना है हमको किसने सौंपा तुमको जिम्मा इन सब से मिलवाने को *गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

अनकिया सभी पूरा हो : श्री अशोक चक्रधर

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मॉरीशस में सम्पन्न विश्व हिंदी सम्मेलन पर चुटीली रिपोर्ट श्री एम एल गुप्ता आदित्य जी के ई-सन्देश से प्राप्त हुई ।  — चौं रे चंपू! लौटि आयौ मॉरीसस ते? — दिल्ली   लौट   आया   पर   सम्मेलन   से   नहीं   लौट पाया   हूं।   वहां   तीन-चार   दिन   इतना   काम   किया   कि अब   लौटकर   एक   ख़ालीपन   सा   लग   रहा   है।   करने को   कुछ   काम   चाहिए। — एक   काम   कर ,  पूरी   बात   बता ! उद्घाटन   सत्र ,  अटल   जी   की   स्मृति   में   दो   मिनिट के   मौन   से   प्रारंभ   हुआ।   दो   हज़ार   से   अधिक   प्रतिभागियों   के   साथ   दोनों   देशों   के   शीर्षस्थ   नेताओं की   उपस्थिति   श्रद्धावनत   थी   और   हिंदी   को आश्वस्त   कर   रही   थी।  ‘ डोडो   और   मोर ’  की   लघु एनीमेशन   फ़िल्म   को   ख़ूब   सराहना   मिली।   और फिर   अटल जी के   प्रति श्रद्धांजलि   का   एक   लंबा सत्र   हुआ।  ‘ हिंदी   विश्व   और   भारतीय   संस्कृति ’  से जुड़े   चार समानांतर सत्र   हुए।   चार सत्र   दूसरे   दिन हुए।  ‘ हिंदी   प्रौद्योगिकी   का   भविष्य ’  विषय   पर विचार - गोष्ठी   हुई।   प