24.5.18

नाट्यलोक एवम बालभवन के नाटकों पोट्रेट्स एवम गणपति बप्पा का मंचन


संभागीय बालभवन जबलपुर एवम नाट्यलोक द्वारा तैयार नाटक *गणपति बप्पा मोरया*  एवम *पोट्रेट्स* नाटकों का मंचन दिनाँक 3 जून से 4 जून 2018 तक  नाट्य समारोह में किया जावेगा ।
सम्भागीय बालभवन जबलपुर द्वारा 1 अप्रैल 2018 से 30 मई 2018 तक बालभवन एवम जानकीरमण महाविद्यालय में निरंतर हुई कार्यशाला में इन नाटकों का निर्माण किया गया है । नाटकों में डॉ शिप्रा सुल्लेरे के निर्देशन में म्यूज़िक पिट द्वारा लाइव संगीत का अनूठा प्रयोग माना जा रहा है । श्री संजय गर्ग द्वारा निर्देशित दौनों नाटकों का लेखन क्रमशः संजय गर्ग एवम गिरीश बिल्लोरे मुकुल ने किया । जबकि सह निर्देशिकाओं कुमारी मनीषा तिवारी ( पूर्व छात्रा बालभवन ) एवम कु शालिनी अहिरवार ( पूर्व छात्रा बालभवन ), कलात्मक सपोर्ट सुश्री शैलजा सुल्लेरे  कुमारी रेशम ठाकुर ( पूर्व छात्रा बालभवन ) श्री दविंदर सिंह ग्रोवर , इंद्र कुमार पांडेय, रविंद्र मुरहार सहित बालभवन एवम नाट्यलोक के कलाकारों का विशेष एवम उल्लेखनीय योगदान रहा है
*विस्तृत कार्यक्रम*
*आयोजन स्थल :- श्री जानकीरमण महाविद्यालय जबलपुर*
*दिनाँक 3 जून 2018 :- गणपति बप्पा मोरया लेखक / निर्देशक श्री संजय गर्ग शाम 06:30 बजे से*

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*दिनाँक 4 जून 2018 :- पोट्रेट्स लेखक गिरीश बिल्लोरे मुकुल निर्देशक श्री संजय गर्ग , शाम 06:30 बजे से*
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20.5.18

यादों का कोई सिलेबस नहीं होता


यादों का कोई सिलेबस नहीं होता
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सच है यादें जीवन के अध्ययन के लिए ज़रूरी हैं पर इनका कोई पाठ्यक्रम तय नहीं होता । जब भी आतीं हैं कुछ न कुछ सिखा जनतीं हैं । कोई तयशुदा पाठ्यक्रम कहाँ है इनका । परीक्षाएं अवश्य ही होतीं हैं । पेपर भी हल करता हूँ । पास भी होता हूँ फेल भी । चलीं आतीं हैं पिछले दरवाज़ों से और कभी स्तब्ध करतीं हैं तो कभी हतप्रभ कब तक ज़ेहन में रुकतीं हैं किसी को मालूम नहीं होता ।
1984 में डी एन जैन कॉलेज में स्व राजमती दिवाकर ऐसी प्राध्यापक थीं कि स्लीपर पहन के भी आ जातीं थीं कॉलेज में ..  साधारण से लिबास रहने वाली में  शारदा माँ मुझे वादविवाद प्रतियोगिताओं में बहस के मुद्दों को समझातीं और विपक्ष को कैसे नेस्तनाबूद करना चाहिए बतातीं भी थीं । उन दिनों कॉलेजों में जितनी भीड़ वाद विवाद प्रतियोगिताओं को सुनने जमा होती थीं आजकल उससे एक तिहाई बच्चे भी जमा नहीं हो पाते होंगे । अख़बार भी समाचार पूरे रिफरेंस के साथ छापा करते थे कुछ ऐसे -
"लगातार तीसरी बार पन्नालाल बलदुआ ट्रॉफी डीएनजैन ने जीती"
या
अमुक के तर्क न काट पाने से फलाँ कॉलेज ने कब्जाई ट्रॉफी
वक्ता तो स्टार हुआ करते थे । तालियों की गूंज से पता चल जाता था कि हम सही जा रहे हैं । उन दिनों कृषि कॉलेज के अभिषेक शुक्ला ( Now Scientist ) , अतुल जैन {( Now Bank officer) , डीएनजैन से मैं और उषा त्रिपाठी ( Now HOD polytechnic College) , या उद्धव सिंह ,
महाकौशल कला महाविद्यालय के वीरेंद्र व्यास (Now Reader Chitrakoot University) Home Science collage se अंजू सांगवान , आभा शुक्ला  IAS  ( Now Principal Secretary Maharashtra Government ), रेखा शुक्ला आईपीएस   तरुण गुहा नियोगी Tarun Guha Neogi ।
हम सब केवल अध्ययन के सहारे अपना अपना व्यक्त तैयार करते थे । टाउन हॉल लायब्रेरी , कॉलेज लायब्रेरी , और प्रोफेसर्स से विषय को समझना और खुद को वक्तव्यों के लिए तैयार करना हमारा शगल बन चुका था  । सबको अपने अपने भाग्यानुकूल बेहतरीन नौकरी भी मिली । हम में से कोई भी गजेटेड ऑफिसर से कम नहीं । ऐसा नहीं कि उस दौर में प्रतिस्पर्धा कम थी वास्तव में तब पद कम थे मुझे खुद 10 हजारी भीड़ में सफलता मिली सिविल जज बनने का स्वप्न बस स्वप्न ही रह गया आकाशवाणी का प्रोग्राम एक्जीक्यूटिव भी न बन सका  ।
आज इस पोस्ट के साथ लगी तस्वीर देख कर याद आया कि तब तो न गूगल बाबा थे किताबें खरीद कर पढ़ने की आर्थिक योग्यता न थी । तो हमने कैसे पढ़ा फिर यादों ने बताया स्वर्गीय अरविंद जैन , डॉक्टर मगन भाई पटेल, स्व रामदयाल कोस्टा जी, स्व हनुमान प्रसाद वर्मा जी , स्व राजमती  दिवाकर डॉक्टर पंकज शुक्ल DrPankaj Shukla जैसे प्रोफेसर्स  हमारा निर्माण कर रहे थे । ये वो दौर था जब हम सिर्फ छात्र थे न कि फैकल्टीज या हिंदी इंग्लिश के कारण बटे लोग । मेरी वार्ता डॉ प्रभात मिश्र जी से ख़ूब होती थी जबकि वे सायन्स के प्रोफेसर थे । कुल मिला कर एक मिडियोकर शहर जबलपुर के वाशिंदे हम पता नहीं कितनी कीमती ज़िन्दगी जी रहे थे ।
सच कितने ज़रूरी हैं गुरुजन ये न हों तो युग आदिम युग ही रह जाता ।
डा स्व हरिकृष्ण त्रिपाठी ने एक बार मुझसे कहा था - अप्प दीपो भवः
जीवन की टैग लाइन सा चस्पा है आजतक । इस वाक्य को उनके कहने से पूर्व हज़ारों बार पढा सुना पर आत्मसात उनके कथन के बाद ही कर सका ।
सुधिजन जानिए गुरु के बिना सब नीरस है समझ से परे है ।
यादों ने ये भी बताया कि ज्ञान रटने से अर्जित नहीं होता बल्कि ज्ञान मंथन चिंतन और गुरुवाणी से ही स्थायी होता है ।

अच्छी काली नागिनें : सटायर


तुम थे तो कुछ बात थी नहीं हो तो
अब बात कुछ और है ।
कोई हो न हो बात तो रहेगी ।
बात ही तो रहती है यादों के गलियारों में
तस्वीरों की तरह चस्पा रहे भी क्यों न ?
मरने के बाद में क़ीमत बताने का क्या कोई तरीका भी तो नहीं ।
इन दिनों जिस तरह का एनवायरमेंट इर्दगिर्द है उसमें कमीनगी का परसेंटेज अपेक्षाकृत ज़्यादा है । जबलपुर की ठेठ भाषा में बोलूं तो हरामी टाइप के जीवों की भरमार  चप्पे चप्पे पर रेंगते नज़र आएंगे ।
मित्रो मेरी अंतिम सलाह है कि बुद्ध की तरह माफ करना अब गैरज़रूरी है । अब चाणक्य की तरह गला काट के मंगवा लो तो आप सहजता से जी पाओगे ।
पर मुआ साहित्यकार जो बरसों से कुंडली मार कर बैठा है न मुझे ऐसा नहीं करने देगा । एक नागिन की कहानी याद आई सुनोगे तो सुनो
एक नागिन थी अच्छी काली नागिन घर के एक हिस्से में फंस गई घर मालकिन ने उसे जतन से निकाला और हूत हूत करके डंडा बजा के भगा दिया । कुछ दिन बाद फिर चूहे खाने की गरज से उसी घर में घुसी नागिन ने एक बार भी मुरव्वत न की मालकिन के अनजाने में पैर पड़ते ही ज़हर उगलने लगी
मित्रो आध्यात्मिक चिंतन के अभाव में यह सब हो रहा है अधिकतर आत्माऐं  नागिन है । ऐसी नागिन जिनको सिर्फ आहार दिखता है अर्थात आत्मकेंद्रित तृष्णा की तृप्ति उनका एकमात्र लक्ष्य है ।
ये नागिन अच्छी काली नागिनें आपकी आत्मा से सम्बद्ध होने का अभिनय अवश्य करतीं हैं ।
लोग बिंदास सहयोगी कवि स्व श्री नरेश पांडे को कितना याद करतें हैं या श्री गणेश नामदेव का कितनों को स्मरण है मुझे नहीं पता नागिनें केवल शिकार की तस्वीर अपने रेटिना पर अमिट रखतीं हैं गणेश जी नरेश जी आदि किसी काम के कहाँ ? न गणेश जी नेता थे न बड़े अफसर और नरेश जी भी कोई महल अटारी न छोड़ गए जहां टैंट लगा के टैण्ट हाउस वाले नागिन डांस की ऑपर्चुनिटी पाएं ।
पर एक बात तो है जीवन भर झुल्ला टांग के सायकल से घूमने वाले ये दौनों वाकई थे बड़े कमाल के खूब लिखते महफ़िल मुशायरे गोष्ठियों की आन बान शान थे ।
बात निकली तो चली और चलती रहेगी । में रहूँ न रहूँ । बात रहेगी तभी बात लिख दी आप क्या सोचते हो आप जानो गाली भी दो तो दे देना मैनें कइयों के ऑडियो क्लिप जमा कर रखे हैं ज़ेहन में ।
सुनो सब मेरा रिश्ता परसाई जी से बहुत नजीकी है तुम सबसे ज़्यादा टिमरनी हरदा खंडवा जमानी फिर जबलपुर
हम वहीं से बाबस्ता हैं । लिखने में तंज़ है तो जान लो तासीर नर्मदांचल के पानी में घुलेमिले #मिनरल_ऑफ_सटायर की वजह से कल आप गुंडे भेज सकते हो । हम तो लिखेंगे बेबाक़ी से । डरें क्यों खोने को मेरे पास कुछ नहीं ।

28.4.18

“बालभवन ने संस्कारधानी को गौरवान्वित किया है : मनीष शर्मा ”


“बालभवन ने संस्कारधानी को गौरवान्वित किया है : मनीष शर्मा  
                                         
                                             
महिला बाल विकास विभाग द्वारा संचालित संभागीय बालभवन की उत्तरोत्तर बढ़ती गतिविधियों एवं टीम बालभवन के प्रयासों से बालभवन के प्रतिभाशाली  बच्चों की संख्या  अब प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय पर क्रमश: बढ़ रही है. विशाल भारत के प्रतिभाशाली बच्चों में देश भर के 700 बच्चों में बालभवन के 8 बच्चों एवं बालभवन से सम्बद्ध जबलपुर संभाग मंडला, नरसिंहपुर सिवनी  एवं शहडोल संभाग के अनूपपुर एवं सिंगरौली जिलों के  7 बच्चों को हार्दिक शुभकामनाएं . तदाशय के विचार श्री मनीष शर्मा ने बालभवन में आयोजित प्रोत्साहन समारोह में व्यक्त किये

अध्यक्षीय उदबोधन में श्री सुशील शुक्ला  (अध्यक्ष बाल भवन सलाहकार एवं सहयोगी समिति )   ने कहा कि- बालभवन जिस प्रकार से सृजनशीलता को प्रोत्साहित कर रहा है उससे बिनोवाजी द्वारा जबलपुर  को दिए  नामकरण  संस्कारधानी की सार्थकता प्रमाणित हो रही है. बच्चों में सृजन की प्रवृत्ति का पोषण बिरले लोग एवं संस्थान करते हैं. बालभवन अब मिशन मोड में कार्य कर रहा है तभी तो राष्ट्रीय स्तर पर बच्चों ने महाकौशल का नाम रौशन किया है.

विशिष्ट अतिथियों क्रमश:  श्रीमती श्रद्धा शर्मापुनीत मारवाह सहायक संचालक एस.सिद्दीकी मुख्य निर्देशक आंगनवाड़ी ट्रेनिंग सेंटर , गीतकार  इरफान झांस्वी, नाट्य निर्देशक  संजय गर्ग, वरिष्ठ कला साधक अरूणकांत पाण्डेय आदि ने गुरुजनों को श्रेय देते हुए बच्चों एवं उनके अभिभावकों को बधाई दी .   कार्यक्रम का कुशल संचालन बाल विदुषी कु. उन्नति तिवारी ने किया जबकि कार्यक्रम की उपादेयता पर बाल वक्ता अरिंदम उपाध्याय ने प्रकाश डाला .  
राष्ट्रीय बालश्री एवार्ड हेतु 21 से 24 अप्रैल तक नई दिल्ली में आयोजित अंतिम चयन शिविर में जबलपुर से 8, अनूपपुर से 1, मंडला 2, नरसिंहपुर 1, सिंगरौली 1, सिवनी 2, कुल 15 बच्चे शामिल हुए थे  । प्रोत्साहन निधि  पाने वाले बच्चों में जबलपुर से कुमारी वैशाली बरसैंया (साहित्य संवाद), अंकित बेन  (संगीत तबला) देवांशी जैन  (साहित्य कहानी) बीनस खान (साहित्य आलेख), शिखा पटेल (कला हस्तकला ),  साक्षी साहू (संगीत गायन),  अंकुर विश्वकर्मा (कला मूर्तिकला), राजश्री चौधुरी (विज्ञानमॉडल), मंडला से क्रमशकु.  अजिता रूपेश  (साहित्य  संवाद ), कुसिमरन श्रीवास्तव (साहित्यकविता), सिवनी से क्रमशप्रतीक सनोडिया (साइंस मॉडल), ओसीना शर्मा (विज्ञान परियोजनाकार्य), अनूपपुर से राहुल कोल (संगीत गायन),  नरसिंहपुर  से कुसपना पटेल  (साहित्य गद्य)  सिंगरौली से मेराज अहमद ( विज्ञान मॉडल मेकिंग )  आदि शामिल हैं  जिन्हें रूपए 75 हज़ार की राशि की प्रोत्साहन राशि , मैडल्स, प्रमाणपत्र   प्रदान किए गए  .
कार्यक्रम का शुभारम्भ सरस्वती पूजन एवं अतिथि सत्कार से हुआ . इस अवसर पर बालकला साधकों द्वारा गीतकार इरफान झांस्वी रचित गीत  “हम बच्चे हिन्दुस्तान के हैं....!* की प्रस्तुति की गई . कार्यक्रम में संगीत गुरु डा. शिप्रा सुल्लेरे श्रीमती रेणु पांडे, सोमनाथ सोनी, देवेन्द्र यादव , नृत्य गुरु इंद्र पाण्डेय की विशेष भूमिका रही .
    
गिरीश बिल्लोरे

29.3.18

आफ्टर थिएटर डे

कंजूस नाटक में बालभवन जबलपुर  के पूर्व छात्र अक्षय ठाकुर  की भूमिका बेहद प्रभावी रही.. इस युवा रंगकर्मी के उजले कल की प्रतीक्षा है. इस चंचल बालक ने खुद को रंगकर्म के जोखिम भरे काम में डाल दिया है.
थियेटर से कलाकार ट्रान्सफार्म हो जाता है तो दर्शक में भी कम बदलाव नहीं होते. थियेटर बेहद जटिल विधा है जबकि फिल्म बेहद आसान .. आप मोटी मोटी फीस देकर पर्सनैलिटी को प्रभावी बनाने की कोशिश करलें तो भी वो रिजल्ट न मिलेगा जो तीन नाटकों में काम करने मिलता है . बस डायरेक्टर का खूसट होना ज़रूरी है. जो कठोर अनुशासन का पालन कराए. थियेटर के मामले में मेरा नज़रिया साफ़ है.. कि फिल्म से अधिक थियेटर प्रभावशाली होता है. सियासी लोग अपनी विचारधारा को विस्तार देने का ज़रिया थिएटर को बनाकर चुनौती देते हैं सवाल खड़े कर देतें हैं व्यवस्था के खिलाफ.... जबकि उनका "जन" से कितना लेना देना होता है इसका अंदाजा आप खुद ही लगा सकतें हैं. पर नई जमात बेहद सलीके से मानवता वादी नजर आ रही है. जबलपुर में परसाई जी की कहानियों पर आधारित नाटकों को खूब सपोर्ट मिला क्योंकि उनमें सटायर तत्व और मज़बूत रहा है पर समय के साथ तेज़ी से बदलाव हो रहा है कल ही कुमारी शालिनी अहिरवार ने एकल नाटक लिखकर स्वयम अभिनय कर साबित कर दिया कि- थियेटर अब युवाओं के हाथ है जो अतिमहत्वाकांक्षा से कोसों दूर हैं तथा वे रंगकर्म को प्रतीकों और काल्पनिक बिम्बों से दूर ले जाकर वास्तविक मुद्दों तक ले जाएंगें. तो सायंस-फिक्शन, वीमेन एम्पावरमेंट , रिश्ते, वैधव्य, कुंठा, गैर-बराबरी, जैसे विषयों की तरफ भी थियेटर को ले जा रहें हैं ये युवा वो भी एक जिद्द के साथ .
जबलपुर में यूं तो थियेटर 1960 से अधिक प्रभावी हुआ है जो रामलीला आदि से अलग नये कलेवर में आया पर एकांगी होने के निशाँ मिले रंगकर्म पर ये अलग बात है कि अरुण पांडे एवं समूह अर्थात अविभाजित विवेचना ने बड़ी मज़बूती से रंगकर्म को नई दिशा देने में कोर कसर न छोड़ी पर कुछ कलाकारों ने भ्रमवश अथाह समंदर में गोते लगाए बिना कुछेक अखबारी कतरनों के जरिये रजत पटल पर छाने की नाकामयाब कोशिशें भी कीं. तो दूसरी ओर सीता राम सोनी जैसे साफ़गोई से अपनी बात रखने वालों ने भी रंगकर्म सिखाने की बागडोर से खुद को जुदा न किया. उधर संतोष राज़पूत जैसे ज़िद्दी व्यक्ति की मेहनत पर कोई संदेह ही नहीं कर सकता. .
इस विवरण में संतोष राजपूत के अलावा संजय गर्ग दविंदर सिंह, सहित सम्पूर्ण नाट्यलोक , को भूलना गलत होगा.जो नर्सरी स्कूल की तरह सजग और सक्रिय हैं. 2007 से 2018 तक मिला तेज़ से तेज़, नशामुक्ति, रानी अवंतिबाई, भेड़िया –तंत्र, आदि के बाद बॉबी के अलावा मिला-तेज़ से तेज़ को पुन: पेश किया. बालभवन को नि:शुल्क सपोर्ट देकर इस टीम ने मुझसे भी पोट्रेट लिखवा लिया. और बालभवन के आगामी दो नाटकों को तैयार करने की ज़िम्मेदारी ले ली.

नाटक में म्यूजिक-पिट के ज़रिये लाइव संगीत के प्रयोग के लिए डॉक्टर शिप्रा सुल्लेरे को कला सेवी होने के नाते मेरी नैतिक ज़वाबदेही है. अधिकारी के तौर पर कहूं तो मुझे यह कथन करने में कोई तकलीफ नहीं कि बालभवन के बच्चों को बड़े मंच पर अवसर देना मेरी ड्यूटी भी है.
1989-90 में राजेश पांडे ने भी बच्चों के साथ काम किया उस दौर में बालभवन जैसी कला-पोषक संस्था के अभाव में काम कर लेने की जोखिम वो भी बच्चों के साथ कर लेना बेहद मुश्किल था पर शहर का नाम ही संस्कारधानी है. आगे कुछ कहने की ज़रूत नहीं.
जबलपुर में महिलाएं और उनका रंगकर्म :- यूं तो कलाकार के रूप महिलाओं की कमी नहीं हैं पर नाटक के अन्य कामों में बालभवन की मनीषा तिवारी, पूजा केवट, और शालिनी तिवारी लेखन, निदेशन, व्यवस्थापन में आगे आईं हैं जो 2014 के बाद की बड़ी उपलब्धि ही तो है.  

नगर निगम जबलपुर ने कल्चरल-स्ट्रीट बना दी पर रंगकर्म की अलख 27 मार्च 2018 को ही जागी जब विवेचना रंगमंडल, विवेचना थियेटर ग्रुप, विमर्श, रंगाभारण, समागम रंगमंडल, नाट्यलोक, के साथ बालभवन ने कुछेक साथियों की अनुपस्थिति में किन्तु सर्वाधिक समर्पितों की उपस्थिति में नाट्यदिवस मनाया . कल्चरल स्ट्रीट कलासाधकों के लिए कुछ व्यवस्था बढाने के साथ बेहद अनुकूल स्थान है. देखना अब ये शेष है कि रंगकर्म को कितना जनसमर्थन मिलता है.
{नोट :- इस आलेख में नामों का उल्लेख होना  केवल उदाहरण स्वरुप है.. जिन कला साधकों का ज़िक्र नहीं आया वे कला साधक नहीं हैं ऐसा कदापि नहीं  }


26.3.18

कैंसर से जूझ रहे गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर परिकर जी का मार्मिक सन्देश


फेसबुक पर सदानंद गोडबोले जी की पोस्ट जो मूलत 
पूर्व रक्षा मंत्री और गोवा के मुख्यमंत्री जी का  मूल मराठी सन्देश  :: अनुवादक  पुखराज सावंतवाडी
की प्रस्तुति  कुमार निखिल द्वारा की जा रही है . 
मनोहर परिकर जी कैंसर से जूझ रहे हैं, अस्पताल के विस्तर से उनका यह संदेश बहुत मार्मिक है, आप भी पढ़ें...
"मैंने राजनैतिक क्षेत्र में सफलता के अनेक शिखरों को छुआ :::
दूसरों के नजरिए में मेरा जीवन और यश एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं :::;::;
फिर भी मेरे काम के अतिरिक्त अगर किसी आनंद की बात हो तो शायद ही मुझे कभी प्राप्त हुआ ::: 
आखिर क्यो
तो जिस political status जिसमें मैं आदतन रम रहा था ::: आदी हो गया था वही मेरे जीवन की हकीकत बन कर रह गई::;
इस समय जब मैं बीमारी के कारण बिस्तर पर सिमटा हुआ हूं, मेरा अतीत स्मृतिपटल पर तैर रहा है ::: जिस ख्याति प्रसिद्धि और धन संपत्ति को मैंने सर्वस्व माना और उसी के व्यर्थ अहंकार में पलता रहा::: आज जब खुद को मौत के दरवाजे पर खड़ा देख रहा हूँ तो वो सब धूमिल होता दिखाई दे रहा है साथ ही उसकी निर्थकता बड़ी शिद्दत से महसूस कर रहा हूं::;
आज जब मृत्यु पल पल मेरे निकट आ रही है, मेरे आस पास चारों तरफ हरे प्रकाश से टिमटिमाते जीवन ज्योति बढ़ाने वाले अनेक मेडिकल उपकरण देख रहा हूँ । उन यंत्रों से निकलती ध्वनियां भी सुन रहा हूं : इसके साथ साथ अपने आगोश में लपेटने के लिए निकट आ रही मृत्यु की पदचाप भी सुनाई दे रही है::::
अब ध्यान में आ रहा है कि भविष्य के लिए आवश्यक पूंजी जमा होने के पश्चात दौलत संपत्ति से जो अधिक महत्वपूर्ण है वो करना चाहिए। वो शायद रिश्ते नाते संभालना सहेजना या समाजसेवा करना हो सकता है।
निरंतर केवल राजनीति के पीछे भागते रहने से व्यक्ति अंदर से सिर्फ और सिर्फ पिसता :: खोखला बनता जाता है ::: बिल्कुल मेरी तरह।
उम्र भर मैंने जो संपत्ति और राजनैतिक मान सम्मान कमाया वो मैं कदापि साथ नहीं ले जा सकूंगा ::;
दुनिया का सबसे महंगा बिछौना कौन सा है, पता है ? ::: "बीमारी का बिछौना" :::
गाड़ी चलाने के लिए ड्राइवर रख सकते हैं :: पैसे कमा कर देने वाले मैनेजर मिनिस्टर रखे जा सकते हैं परंतु :::: अपनी बीमारी को सहने के लिए हम दूसरे किसी अन्य को कभी नियुक्त नहीं कर सकते हैं:::::
खोई हुई वस्तु मिल सकती है । मगर एक ही चीज ऐसी है जो एक बार हाथ से छूटने के बाद किसी भी उपाय से वापस नहीं मिल सकती है। वो है :::: अपना "आयुष्य" :: "काल" ::: "समय"
ऑपरेशन टेबल पर लेटे व्यक्ति को एक बात जरूर ध्यान में आती है कि उससे केवल एक ही पुस्तक पढ़नी शेष रह गई थी और वो पुस्तक है "निरोगी जीवन जीने की पुस्तक" ;::::
फिलहाल आप जीवन की किसी भी स्थिति- उमर के दौर से गुजर रहे हों तो भी एक न एक दिन काल एक ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देता है कि सामने नाटक का अंतिम भाग स्पष्ट दिखने लगता है :::
स्वयं की उपेक्षा मत कीजिए::: स्वयं ही स्वयं का आदर कीजिए ::::दूसरों के साथ भी प्रेमपूर्ण बर्ताव कीजिए :::
लोग मनुष्यों को इस्तेमाल ( use ) करना सीखते हैं और पैसा संभालना सीखते हैं। वास्तव में पैसा इस्तेमाल करना सीखना चाहिए व मनुष्यों को संभालना सीखना चाहिए ::: अपने जीवन की शुरुआत हमारे रोने से होती है और जीवन का समापन दूसरो के रोने से होता है:::: इन दोनों के बीच में जीवन का जो भाग है वह भरपूर हंस कर बिताएं और उसके लिए सदैव आनंदित रहिए व औरों को भी आनंदित रखिए :::"
(स्वादुपिंड के) कैंसर से पीड़ित अस्पताल में जीवन के लिए जूझ रहे मनोहर पर्रिकर का आत्मचिंतन ::::



24.3.18

फिल्म रेड की पटकथा में लेखक की भूल


फिल्म रेड की पटकथा में लेखक  ने  आयकर छापे के नियम को देखा नहीं ये तो नहीं मालूम पर अगर आप आयकर अधिनियम की पूरी जानकारी नहीं रखते तो मुश्किल अवश्य हो सकती है. अगर छापा पडा तो .. भगवान न करे की हम आप  आयकर छिपाएं और छापे की नौबत आए.,. पर मिडिल क्लास .. नंगा क्या नहाएगा क्या निचोये गा साब ... ? 
1.आयकर अधिकारी बिक्री के लिए रखे गए माल को जब्त नही कर सकते हैं बल्कि वे केवल इसको अपने दस्तावेजों में नोट जरूर कर सकते हैंसाथ ही स्टॉक में रखे माल की भी सिर्फ एंट्री कर सकते हैं. यह राहत घोषित और अघोषित दोनों तरह के स्टॉक के लिए लागू होती है.
2. आयकर अधिकारी किसी ऐसी नकदी को जब्त नही कर सकते हैं जिसका पूरा लेखा जोखा उस कंपनी या आदमी के पास मौजूद है.

3. आभूषण जो कि स्टॉक के रूप में रखे गए हैं और संपत्ति कर रिटर्न में उनको जोड़ा गया है तो उन्हें भी जब्त नही किया जा सकता है.
4. यदि कोई करदाता सम्पत्ति कर जमा नही कर रहा है तो हर विवाहित स्त्री 500 ग्राम सोना रख सकती हैहर अविवाहित स्त्री 250 ग्राम सोना और हर आदमी 100 ग्राम तक सोना अपने पास रख सकते हैं. यदि इस सीमा के भीतर सोना आयकर विभाग को छापे के दौरान प्राप्त होता है तो वह उसे भी जब्त नही कर सकती है.
आयकर छापे के दौरान व्यक्तियों/कंपनियों के अधिकार इस प्रकार हैं:
1. आयकर अधिकारियों के पास मौजूद वारंट और उनके पहचान पत्रों की जाँच करने का अधिकार
2. यदि आयकर टीम महिलाओं की तलाशी भी लेना चाहती है तो ऐसा सिर्फ महिला आयकर कर्मी ही कर सकती है और वह भी पूरी इज्ज़त और सम्मान के साथ.
3. व्यक्तियों/कंपनियों को गवाहों के तौर पर मोहल्ले के दो सम्मानित लोगों को बुलाने का अधिकार है.
4. आपातकाल की दशा में डॉक्टर को बुलाने का अधिकार है.
5. बच्चों का स्कूल बैग चेक कराकर उनको स्कूल भेजने का अधिकार है.
6. लोगों को अपने नियत समय पर खाना खाने का अधिकार है.
7. जिस दिन खाते की किताबों (books of account) को जब्त किया गया था उससे 180 दिन के अन्दर किताबें वापस पाने का अधिकार.
8. व्यक्ति द्वारा दिए गए वक्तव्य (statement) की एक प्रति मांगने का अधिकार है क्योंकि यह वक्तव्य उस व्यक्ति के खिलाफ इस्तेमाल किया जायेगा.
9.  पंचानमा की एक प्रति मांगने का अधिकार है।

आयकर दाताओं या कंपनियों के निम्न कर्तव्य हैं?
1. छापा परिसर (घर या ऑफिस) में बिना किसी बाधा और विरोध के आयकर अधिकारियों को घुसने देने का कर्तव्य.
2. छापा परिसर में किसी भी अनधिकृत व्यक्ति के प्रवेश की अनुमति या प्रोत्साहन ना दें.
3. ऑफिस या घर में मौजूद सभी लोगों से अपने रिश्तों के बारे में बताना.
4. संपत्तियों के स्वामित्व और लेखा किताब के बारे में अधिकारियों के सवालों का सही सही जबाब देना.
5. जिन किताबों में संपत्तियों का विवरण लिखा है उनको अधिकारियों को सौंपना और यदि जरुरत पड़े तो तिजोरियों इत्यादि की चाबी भी सौंप देना.
6. प्राधिकृत अधिकारी के सूचना या ज्ञान के बिना जांच से सम्बंधित किसी भी दस्तावेज को मिटायें या फाड़ें नही.
7. अगर कोई व्यक्ति झूठे वक्तव्य देता हैं तो वह भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 181 के तहत कारावास, दंड या दोनों के लिए दंडनीय होगा.
8. व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह खोज के पूरे समय में शांति बनाए रखे और जांच अधिकारियों के साथ सभी मामलों में सहयोग करे ताकि पूरी जाँच जल्दी से जल्दी शांतिपूर्ण तरीके से समाप्त हो जाए.

21.3.18

रेड फिल्म की दादी पुष्पा जोशी की जिंदादिली से चमका उनका सितारा ....!!


किसी ख़ास मुकाम पर पहुँचने के लिए कोई ख़ास उम्र, रंग-रूप, लिंग, जाति, धर्म, वर्ग का होना ज़रूरी नहीं जिसके सितारे को जब बुलंदी हासिल होनी होती है तब यकबयक हासिल हो ही जाती है. ये बात साबित होती है जबलपुर निवासी होसंगाबाद में सामान्य से परिवार जन्मी  85 वर्षीय बेटी श्रीमती पुष्पा जोशी के जीवन से . हुआ यूं कि उनके मुंबई निवासी पुत्र रवीन्द्र जोशी { जो कवि संगीतकार, एवं कहानीकार हैं, तथा हाल ही में बैंक से अधिकारी के पद से रिटायर्ड हुए हैं}  की कहानी ज़ायका से . श्री जोशी की कहानी “ज़ायका” उनकी पुत्र वधु हर्षिता श्रेयस जोशी, ने निर्देशित कर तैयार की जिसे  आभास-श्रेयस  यूँ ही यूट्यूब पर पोस्ट कर  दी. एक ही दिन में ३००० से अधिक दर्शकों तक  यूट्यूब के ज़रिये पंहुची फिल्म को बेहतर प्रतिसाद मिला. उसी दौरान फिल्म रेड की निर्माता कम्पनी के सदस्यों ने देखी . और जोशी परिवार को खोज कर रेड में अम्मा के किरदार के निर्वहन की पेशकश की . दादी यानी श्रीमती जोशी जो जबलपुर से मायानगरी  बैकबोन में दर्द का इलाज़ कराने पहुँची थी ने साफ़ साफ़ इनकार कर दिया. निर्माता राजकुमार गुप्ता एवं परिवार के समझाने पर बमुश्किल राजी हुईं . मुंबई से लखनऊ फिर लखनऊ से सडक मार्ग दो घंटे की दूरी पर स्थित रायबरेली जनपद में स्थित शिवगढ़ के किले तक का सफर कर 15 दिनों तक शूटिंग के दौरान श्रीमती जोशी की मृदुल मुस्कान बरबस टीम की ज़रूरत सी बन गई थी. कुछ दिनों में वे छोटे टीम सदस्यों से लेकर अजय देवांगन तक  की अम्मा जी बन गईं . अपनी सादगी और  सहज बर्ताव घर में भी ठीक ऐसा ही है. सामाजिक पारिवारिक कार्यों में पुष्पा जी की मौजूदगी और उनके चुटीले संवाद बरसों से सब को मुस्कुराने के लिए मज़बूर कर  देतें हैं.
उनकी एक पौत्री निष्ठा बताती है कि- हमारे मित्र मिलने हमसे आते हैं पर मिलते बतियाते दादी से हैं. युवाओं के साथ युवा बच्चों के साथ बच्चे की तरह ढलने वाली दादी नार्मदीय ब्राह्मण समाज से सम्बंधित हैं जहां उनको बेहद सम्मान दिया जाता है.
किटी पार्टी की शान हैं – नार्मदीय ब्राह्मण समाज की  महिलाओं की किटीपार्टी में उम्रदराज़ दादी की गैरमौजूदगी से इस समाज की बहूएँ परेशान हैं.. श्रीमती सुलभा बिल्लोरे बतातीं हैं कि पूरे उत्साह के साथ वे हमारे समागम में शामिल हुआ करतीं हैं. उनका सेन्स ऑफ़ ह्यूमर, चुटीले अंदाज़ में जीवन के मूल्यों को समझाना उनकी एक और विशेषता है.
सत्यसाई सेवा समिति, जबलपुर की सक्रीय कार्यकर्ता के रूप में वे गुरुद्वारे में लंगर, वृद्धाश्रम कुष्ठाश्रम, एवं विक्टोरिया हॉस्पिटल में भेजने  के लिए खुद जब तक हिम्मत थी भोजन बना कर  भेजतीं रहीं.उनके हाथों बने लड्डू, नारायण-सेवा { भोजन वितरण जिसे  समिती की भाषा में नारायण-सेवा कहा  जाता है } की खासियत है.
श्रीमती जोशी के पति स्वर्गीय श्री बी आर जोशी (रिटायर्ड उप जिलाध्यक्ष ) का तबादला हर तीन चार साल में प्रदेश में कई स्थानों में हुआ करता था बच्चों के भविष्य को बनाने वे स्थाई रूप से 1971 से जबलपुर में ही रहीं.  उनकी सभी 06 संतानें कला साधक एवं उच्च शिक्षित एवं उच्च पदस्थ हैं.
इंटरनेट पर रोज़ प्रसारित होने वाले मूवी रिव्यू में हीरो अजय देवांगन इलिना , सौरभ शुक्ला , अमित की भूमिकाओं की सराहना के साथ 85 वर्षीय अम्मा जी को विशेष सराहा जा रहा है.

19.3.18

चेहरा नहीं दिल बोलता है ....!!




चेहरा नहीं दिल बोलता है ....!!
और दिल 
जब भी... दिल से बोलता है ... 
तब बुत मुस्कुरातें हैं ...
तितलियाँ मंडरातीं हैं...
हज़ारों हज़ार स्वर लहरियां ...
वीणा  तारों से छिटककर
बिखरतीं .........
पुरवैया – पछुआ हवाओं में ..
घुल जातीं हैं ...!!
हाँ तब जब
चेहरा नहीं दिल बोलता है ....!!

दिल जब बोलता है
बरसों के दबे कुचले
छिपे छिपाए एहसासों का ज्वालामुखी
फूटता है ...
कहते हुए कि- अब और नहीं ...
अब और नहीं ...!!
ठहर जाते हैं 
आघाती हाथ ... 
क्रूर आँखें डर जाती हैं...!
"तख़्त-ओ-ताज़" सम्हालते हाथ .. 


चेहरा नहीं दिल बोलता है ....!!

   


22.2.18

आलिम-ए-दीन मौलाना साहब दुनिया-ए-फ़ानी से रुख़सत फ़रमा गए....... ज़हीर अंसारी

मुफ़्ती-ए-आज़म मध्यप्रदेश मौलाना मो. महमूद अहमद क़ादरी साहब आज 22 फ़रवरी को इस दुनिया-ए- फ़ानी से रुख़सत फ़रमा गए। आप 90 साल के थे। आप उम्र के जिस पड़ाव पर पहुँच गए थे उसकी वजह से जिस्मानी तौर पर थोड़ा कमज़ोर हो गए थे लेकिन उनका दिमाग़ी तवाजन आख़री वक़्त तक मज़बूत रहा। यह उनकी दीनदारी का सिला था। अभी जनवरी माह में ही ईदमिलादुंनबी के मुबारक मौक़े पर आपने तक़रीर की और जुलूस-ए- मोहम्मदी में शामिल लोगों को मुल्क और अमन परस्ती का समझाईश दी। आप जितने बड़े आलिम-ए-दीन थे उतने बड़े ही इंसानियत के पैरोकार। बेशक आप अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त और अल्लाह के नबी हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (सअव) की हिदायतों पर ताउम्र क़ायम रहे। आपको क़ुरान-ए-मजीद और सभी हदीश शरीफ़ का गहरा इल्म था।

मौलाना साहब ने अपने दादा हज़रत अब्दुल सलाम साहब और वालिद हज़रत मौलाना जनाब बुरहानुल हक़ जी से जो दीनी और मज़हबी तालीम मिली उसका आपने पूरा ख़्याल रखा। आप उम्र भर इंसानियत और अमन के झंडाबरदार बने रहे। जब भी शहर में दो कौमों के बीच गहमा-गहमी हुई या फ़साद की नौबत आई तो आप सबसे पहले आगे आए और अपनी क़ौम को समझाईश देकर शासन-प्रशासन की मदद की। आप की इसी ख़ूबी का ऐहतराम दीगर क़ौम के लोग भी करते थे। अन्य धर्म के साधु-संतों के साथ मंच साझा किया ताकि शहर के अमन-चैन और भाई-चारे को कोई आँच न आ सके। ईदुल फितर हो या ईदुज्जुहा या फिर ईदमिलादुंनबी हर मज़हबी त्योहार पर मुल्क परस्ती, भाई-चारा, अमन, इंसानियत और तालीम-तरबियत की सीख दी। आप अपने उसूलों से कभी डिगे नहीं।

माशाअल्लाह आपका दीनी-दुनियावी इल्म, क़द-काठी, रंग-रूप और रुआब ऐसा था कि कोई भी देखने वाला मूतासिर हो जाए। ऐसे नेक दिल और अहले सुन्नत के अज़ीम पेशवा अब हमारे बीच नहीं रहे। आपकी रहनुमाई से क़ौम का भरोसा क़ायम रहा। अब आपकी रुख़सती से ख़ालीपन क़ौम को कचोटता रहेगा।

हम नाचीज़ अल्लाह की बारगाह में सिर्फ़ यही दुआ कर सकते हैं कि ‘या अल्लाह मौलाना साहब जैसे दीनदार और नेक दिल इंसान को अपने हबीब के सदके में जन्नतुल फिरदौस में आला से आला मुक़ाम अता फ़रमाना। (आमीन)

इंशाहअल्लाह कल 23 फ़रवरी को बाद नमाज़ जुमा ईदगाह कलाँ रानीताल में आपको सुपुर्देख़ाक किया जाएगा।

O
जय हिन्द
ज़हीर अंसारी

3.2.18

बेदी पर चढ़ता मध्यवर्ग


मध्यम वर्ग का आकार भारत की जनसंख्या में सबसे महत्वपूर्ण होते हुए भी सबसे नकारात्मक नज़रिए का शिकार है इन दिनों । मध्यवर्ग के लगभग 36 करोड़ सरों पर विकास, की ज़िम्मेदारी है जिसका निर्वहन कर भी रहा है मध्यवर्ग पर जब उसके हित की बारी आती है तो ताक में रखने से उसे कोई नहीं चूकता । भारत में इस मध्यवर्ग को केवल इस्तेमाल किया जाता है उसके खिलाफ प्रगतिशील चिंतन तो था ही अब सारे विचारक भी हैं जो आर्थिक सामाजिक सियासी मुद्दों से वास्ता रखते हैं ।
ऐसा क्यों है इसकी पड़ताल करने पर पता लगता है कि शासक वर्ग यानी रोज़गार प्रदाता स्वयंभू सर्वशक्तिशाली होता जा रहा है । उसे राजाश्रय प्राप्त है । पिछले दिनों रेलयात्रा में जब मैंने देखा कि दो बेटियां भोपाल रेलवे स्टेशन पर अपनी जबलपुर तक की सुरक्षित यात्रा के लिए मुझसे सहायता मांगने आईं तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए मुझे लगा कि मध्यवर्ग की ये बेटियाँ जिस परिस्थिति में सहायता मांग रहीं हैं वो केवल एक्स्ट्रा प्रीमियम तत्काल कोटे से टिकट न खरीद पाने से हट कर और कुछ भी नहीं हो सकती । भोपाल कांड के बाद मेरे मन पर गहरा भय है सो उन बेटियों को अपनी बेटी की बर्थ देना मुझे उचित लगा ।तत्काल एवम एक्स्ट्रा प्रीमियम तत्काल कोटे से टिकट बेचना रेलवे की व्यापारिक सोच है उनके 70 वेटिंग के टिकट कन्फर्म हो सकते थे अगर प्रबंधन का नज़रिया मानवीय होता तो !
मित्रो देश का मिडिल क्लास जो क्लर्क है चपरासी है या शिक्षक है प्राइवेट कंपनी में 25 हज़ार तक (अधिकतम) कमाता है उसकी 20 से 30 या 31वीं तारीख बेहद कठिन होती है । उसकी ज़िन्दगी सब्सिडाइज नहीं होती । जब देखो तब मिडिल क्लास के लोग ईश्वर से केवल एक ही दुआ माँगतें हैं कि घर में कोई बीमार न हो जाए ।
शिक्षा , स्वास्थ्य , ट्रांसपोर्टेशन , किराया आदि का मंहगा होना , बीमा कंपनीयों के लुभावने ऑफर में फंसने के बाद लाभहीन प्रीमियम, कीमतों में उतार चढ़ाव इस वर्ग सबसे अधिक प्रभावित करता है ।
इस वर्ग के पास अब पूंजी निर्माण के लिए वो सब कुछ मौके नहीं हैं जिनका ज़िक्र मोदी जी ने मेडिसन स्क्वैर में किया था । उनने कहा था कि वे व्यक्तिगत सैक्टर को बढ़ावा देंगें !
मध्यवर्ग उससे प्रभावित हुआ होगा खुश भी था परन्तु तीव्र आर्थिक विकास के प्रवाह में व्यक्तिगत सैक्टर गुमशुदा है । कम से कम मध्यवर्ग ज़रा सी भी पूंजी जमा न कर पाया । उधर क्रेडिट एक्सपानशन के की मौजूदगी से उसे ऊँची दरों पर ब्याज वाले ऋण लेकर अपनी ज़रूरतें पूरी करनी पड़ती है ।
बैंकों का दुष्प्रबंधन अपने घाटों को पूरा करने अपने इसी वर्ग को शिकार बनातीं नज़र आ रहीं हैं ।
गली गली इंजीनियर 15 से 20 हजार की पगार पर काम करते नज़र आ जाएंगे आपको....साथ ही मौका लगते वे क्लर्क तो क्या प्यून की की पोज़ीशन पर जाने को भी तैयार हैं ।
मध्यवर्ग का युवा वर्ग बेहद कन्फ्यूज है । अगर वो अनारक्षित श्रेणी का है तो फिर केवल मल्टी नेशनल कम्पनी के लिए काम करने के लिए आमादा है । जहां उसे उतना ही मिलेगा जितना उसके पिता को मिला करता था । यानी काम चलाऊ । जी हां सत्य है अमेरिका में भी आपका बेटा या बेटी खुश नहीं है वो आपको खुश होने का एहसास दिलातें है क्योंकि आपकी खुशी इस बात में है कि आपकी संतान एब्रॉड में हैं जो आपके लिए एक स्टेटस सिंबल है पर आप भीतर से कितना सुबकतें हैं अब सभी को पता है । आपकी संतानें #सुंदर_पिचाई  नहीं हैं वहां ये आपको अच्छी तरह से मालूम है । पर आप की मजबूरी है वो भारत में कुछ डॉलर भेजता है जो रुपया बन के आपके हाथ आते है विदेशी मुद्रा आना सरकार के लिए ठीक है पर आपकी आंखों का नम  रहना समाज के लिए दुःखद है ।

11.1.18

संवेदनशील किन्तु सख्त सख्शियत : आई पी एस आशा गोपालन

आशा जी के दौर में मैं हितकारणी ला कालेज से जॉइंट सेक्रेटरी का चुनाव लड़ रहा था . मुझे उनके मुझसे मेरी बैसाखियाँ देख पूछा था- "आप क्यों इलेक्शन लड़ रहे हो..?"
मेरा ज़वाब सुन बेहद खुश हुईं मातहत अधिकारियों को मेरी सुरक्षा के लिए कहा.. ये अलग बात है..... एक प्रत्याशी के समर्थक ने कट्टा अड़ाया मित्र #प्रशांत_श्रीवास्तव को .. और मित्र अपनी छोटी हाईट का फ़ायदा उठा भाग निकले थे ...... इस न्यूज़ ने वो मंजर ताज़ा कर दिया..
वे मुझे जान चुकीं थी । एक्जामिनेशन के दौरान एक रात  हम कुछ मित्र पढ़ते हुए चाय पीना तय करतें हैं किन्तु स्टोव में कैरोसिन न होने से ये तय किया कि चाय मालवीय चौक पर पीते हैं । दुर्भाग्य से सारी दुकानें बंद थीं । बात ही बात में पैदल हम सब मोटर स्टैंड ( यही कहते थे हम सब बस अड्डे को जबलपुर वाले ) जा लगे । चाय पी पान तम्बाकू वाला दबाए एक एक जेब में ठूंस के वापस आ रहे थे तब मैडम आशा गोपालन जी की गाड़ी  जो नाइट गस्त पर थीं इतना ही नहीं  आईपीएस अधिकारी एम्बेसडर की जगह टी आई की जीप पर सवार थीं ।
टी आई लार्डगंज भी मुझे पहचानते थे सुजीत ( वर्तमान #बीजेपी_नेता ) अजीत ( वर्तमान टी आई ) मेरे मानस भांजों की वजह से लार्डगंज पुलिसकर्मियों के परिवार में मुझे मामाजी के नाम से जाना जाता था । टी आई जी ने पूछा - मामाजी कहाँ घूम रहे हैं । आशा गोपालन जी ने भी समझाया कि आप रात में न घूमें चलिए हम सबको गाड़ी में बिठा कर सुपर मार्केट के सामने छोड़ा दूसरों को तो मैडम कई किलोमीटर्स दूर छोड़ दिया करतीं थीं ।
ऐसे लोकरक्षकों को कौन भूलेगा जो सख्त तो हैं पर उससे अधिक संवेदनशील ।

10.1.18

अदेह से संदेह प्रश्न

अदेह से सदेह प्रश्न
कौन गढ़ रहा कहो
गढ़ के दोष मेरे सर
कौन मढ़ रहा कहो ?
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बाग में बहार में, ,
सावनी फुहार में !
पिरो गया किमाच कौन
मोगरे के हार में !!
पग तले दबा मुझे कौन बढ़ गया कहो...?
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एक गीत आस का
एक नव प्रयास सा
गीत था अगीत था !
या कोई कयास था...?
गीत पे अगीत का वो दोष मढ़ गया कहो..

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तिमिर में खूब  रो लिये
जला सके न तुम  दिये !
दीन हीन ज़िंदगी ने
हौसले  डुबो दिये !!
बेवज़ह के शोक गीत कौन गढ़ रहा कहो.

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अलख दिखा रहे हो तुम
अलख जगा रहे हो तुम !
सरे आम जो भी है -
उसे छिपा रहे हो तुम ?
मुक्तिगान पे ये कील कौन जड़ रहा कहो ?

😊😊😊😊😊😊😊
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...