11.1.18

संवेदनशील किन्तु सख्त सख्शियत : आई पी एस आशा गोपालन

आशा जी के दौर में मैं हितकारणी ला कालेज से जॉइंट सेक्रेटरी का चुनाव लड़ रहा था . मुझे उनके मुझसे मेरी बैसाखियाँ देख पूछा था- "आप क्यों इलेक्शन लड़ रहे हो..?"
मेरा ज़वाब सुन बेहद खुश हुईं मातहत अधिकारियों को मेरी सुरक्षा के लिए कहा.. ये अलग बात है..... एक प्रत्याशी के समर्थक ने कट्टा अड़ाया मित्र #प्रशांत_श्रीवास्तव को .. और मित्र अपनी छोटी हाईट का फ़ायदा उठा भाग निकले थे ...... इस न्यूज़ ने वो मंजर ताज़ा कर दिया..
वे मुझे जान चुकीं थी । एक्जामिनेशन के दौरान एक रात  हम कुछ मित्र पढ़ते हुए चाय पीना तय करतें हैं किन्तु स्टोव में कैरोसिन न होने से ये तय किया कि चाय मालवीय चौक पर पीते हैं । दुर्भाग्य से सारी दुकानें बंद थीं । बात ही बात में पैदल हम सब मोटर स्टैंड ( यही कहते थे हम सब बस अड्डे को जबलपुर वाले ) जा लगे । चाय पी पान तम्बाकू वाला दबाए एक एक जेब में ठूंस के वापस आ रहे थे तब मैडम आशा गोपालन जी की गाड़ी  जो नाइट गस्त पर थीं इतना ही नहीं  आईपीएस अधिकारी एम्बेसडर की जगह टी आई की जीप पर सवार थीं ।
टी आई लार्डगंज भी मुझे पहचानते थे सुजीत ( वर्तमान #बीजेपी_नेता ) अजीत ( वर्तमान टी आई ) मेरे मानस भांजों की वजह से लार्डगंज पुलिसकर्मियों के परिवार में मुझे मामाजी के नाम से जाना जाता था । टी आई जी ने पूछा - मामाजी कहाँ घूम रहे हैं । आशा गोपालन जी ने भी समझाया कि आप रात में न घूमें चलिए हम सबको गाड़ी में बिठा कर सुपर मार्केट के सामने छोड़ा दूसरों को तो मैडम कई किलोमीटर्स दूर छोड़ दिया करतीं थीं ।
ऐसे लोकरक्षकों को कौन भूलेगा जो सख्त तो हैं पर उससे अधिक संवेदनशील ।

10.1.18

अदेह से संदेह प्रश्न

अदेह से सदेह प्रश्न
कौन गढ़ रहा कहो
गढ़ के दोष मेरे सर
कौन मढ़ रहा कहो ?
***********
बाग में बहार में, ,
सावनी फुहार में !
पिरो गया किमाच कौन
मोगरे के हार में !!
पग तले दबा मुझे कौन बढ़ गया कहो...?
********

एक गीत आस का
एक नव प्रयास सा
गीत था अगीत था !
या कोई कयास था...?
गीत पे अगीत का वो दोष मढ़ गया कहो..

*****************

तिमिर में खूब  रो लिये
जला सके न तुम  दिये !
दीन हीन ज़िंदगी ने
हौसले  डुबो दिये !!
बेवज़ह के शोक गीत कौन गढ़ रहा कहो.

***************

अलख दिखा रहे हो तुम
अलख जगा रहे हो तुम !
सरे आम जो भी है -
उसे छिपा रहे हो तुम ?
मुक्तिगान पे ये कील कौन जड़ रहा कहो ?

😊😊😊😊😊😊😊
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

6.1.18

सिविल सर्विसेस की तैयारी कर रहे 97% युवा डीआरडीओ क्या है नहीं जानते

रिपुसूदन अग्रवाल  यंग इसरो साईंटिस्ट विद  ग्रेट जबलपुरियन एक्टिविस्ट 

आज वाट्सएप के  एक समूह में में ग्रेट जबलपुरियन एक्टिविस्ट भाई अनुराग त्रिवेदी ने एक पोस्ट डाली पोस्ट हालांकि वे मुझे बता चुके थे बालभवन में आकर की सिविल सर्विसेस की तैयारी कर रहे  97% युवा  डीआरडीओ क्या है नहीं जानते . मुझे भी ताज्जुब हुआ था पर मुझे मालूम है कि और लोगों की तरह गप्पाष्टक नहीं सुनाते . सो उनकी पोस्ट उनकी शैली में ही यथावत पोस्ट कर के मुझे भीषण तनाव के बीच सुखानुभूति हो रही है . सुधीजन जानें तो कि जबलपुर का जबलपुर ही रह जाना कितना चिंता एवं चिन्तन का मामला है ...............  तो ये रही अनुराग जी की व्यथा ..   कल अग्रवाल स्टेशनर्स में आगामी आयोजित ईवेंट के फॉर्म प्रिंट करवा रहा था। दूकान में संचालक युवा के साथ लम्बा दुबला सा हल्के बाल बिखरे से बेहद शालीन विनम्र बच्चा सहयोग कर रहा दूकान संचालन में । प्रिंट फॉर्म होते होते बँटने भी लगे। 

   ठंड जोरदार थी पर मार्कट में देर रात 11 बजे तक स्टेशनरी की ही दूकान बस खुली।  लोग हाथों में ऊनी ग्लब्ज़ कानों में पट्टी उस पर ऊनी टोपे के उपर मफलर भी दटाये थे। 
   वह बच्चा सहज था पतली सी जैकट पहने और संचालक तो हाफ स्वेटर पहने। 
-" टेम्प्रेचर छः के नीचे पहुँच गया लगता !" उस लडके ने संचालक को बोला।

मुझे इक डाक्यूमेंट फ़ाइल बनानी थी। लैप टॉप पर फ़ाइल खोल टाइप करने लगा। असहज होने के कारण सेल फ़ोन पर ड्राफ्ट करने लगा तभी अंकित (दुकान संचालक ने कहा -" अनुराग भैया मैं बता रहा था न कि मेरा इक क्लोज फ्रैंड इसरो में है ।" 
-" हूँ ....तो ?" सर नीचे किये मैंने जबाब में कहा क्योंकि ध्यान पूरा टेक्स्ट फॉर्मेट में था। 
-" ये वही है !" 
सुनते ही मैं अदब से उठा और हाथ मिला कर उसे उपर से नीचे देखा। लगभग घंटे भर से तो देख ही रहा था कि वह मुझे हुए व्यावसायी की तरह सबसे विनम्र हो कर डील कर रहा जबकि इसको पहले कभी नहीं देखा अंकित की दूकान में। 
-" great to see you sir !" मेरे मुंह से निकला और फिर कहा -" कुछ दिन पहले जबलपुर में सौ स्टूडेंट को  एक्स डीआरडीओ चेयरमैन से मिलवाया और जानकार शर्मिंदा हुए कि सिविल सर्विसेस की तैयारी कर रही पीढी डीआरडीओ क्या है नहीं जानती । पूछने पर सिर्फ तीन हाथ उठे।" 
उस युवा को देखकर मैं लगभग भीतर से गुदगुदाने सा अनुभव कर रहा था। उसी खुशी में कहा -"मैं कैसे इस्तकबाल करूं आपका सर ? आप तो मरी हुई आशा को जन्म दे रहे। क्योंकि ..कहीं न कहीं लग रहा था जबलपुर सचमुच चेतना शून्य है।" मुझे लगा ज्यादा गम्भीर बात कह दी वह तो सन्दर्भ भी न समझा हो। पर पल भर को रुक कर पूछा -"आपने तवा देखा डोसा बनाने वाले का?"

उसने सहमती में मुंडी हाँ में हिलाई।
-" गर्म हुआ या नहीं जैसे कुक छींटे मारता है न ..वैसे ही आपने छींटे मार कहा है उम्मीद इतनी भी नहीं मरी। ..क्या नाम है आपका?" 
-" रिपु ...जी.. रिपुसूदन अग्रवाल !" 
-"9 जनवरी तक हो जबलपुर में ?"
-" नहीं ...मैं 7 जनवरी को जा रहा हूँ ...क्यूँ ?" 
पेपर बढाते हुए। ईवेंट का अनूठा प्रारूप बतलाते कहा
-" इस ईवेंट में कई बच्चे और बहुत सारे अभिभावकों को आमंत्रित किया आप जैसे प्रतिभावान युवा न केवल बच्चों बल्कि उनके पेरेंट्स के लिए प्रेरणा के स्रोत हो सकते।"
मैंने उसे समझाते कहा -" मेरा मानना है interaction ढेरों reference देते जो goal determination में help करते ऐसे stand !" 
-" जी मॉडल हाई का पढ़ा हूँ । अपनी स्कूल जाता हूँ और बच्चों से मिलता हूँ । उनसे बातें करता हूँ।" मेरी बात को बीच में रोकते उसने जबाब दिया। सुनते ही मन ही मन दुआएं उसके और उसके पेरेंट्स के लिए निकली । मुझे लगा वो मुझसे अब रूहानियत में बेहद बड़ा है। 
रिपु ने कहा -" बच्चे अक्सर सोचते कि जो पढ़ रहे उसका कोई use नहीं। मैं उनसे कहता कुछ भी पूछो मैं practical daily routine में उसका use बताऊँगा।"
मैंने भी उससे कई प्रश्न पूछे और उसने समझाना लगभग किसी परिपक्व शिक्षक की तरह शुरू किया। 
असल ऋण चुकता यदि किसी को करना इससे बेहतर इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता। नगर जिधर नकली दबंगाई के अभ्यास युवाओं को देता फिरता और कुर्ताधारी, टीकाधारी चालीस पचास युवाओं को पीछे लिए घूमते। 
   नगर की होटलों पान की दुकानों आहतों में जो यारों की यारियाँ फिकरे कसते मिलती वो दशकों पीछे धकेल रहे नगर को प्रदेश को देश को। 
   ऐसी गैरजिम्मेदार नागरिकता कभी स्मार्ट नहीं हो सकती किन्तु रिपुसुदन अग्रवाल ( युवा साइंटिस्ट) सुधीश मिश्रा ( डायरेक्टर ब्रह्मोस , डीआरडीओ) चन्द्रशेखर विश्वकर्मा( पूर्व प्रचार्य, मिलट्री कालेज देहरादून) रजवंत बहादुर सिंह ( पूर्व अध्यक्ष कर्मिक प्रतिभा प्रबंधन विभाग, डीआरडीओ)  के साथ युवा रुद्राक्ष पंकज अभिनव सारांश वीरेंद्र प्रदीप हनुमान यशा कविता इन्द्री पूजा शुभेन्दु अनुराग चतुर्वेदी विवेक शर्मा से अनगिनत उदाहरण जो अलग विधाओं में लगे पड़े।
मुझे देश पर भाषण सुनने देने में दिलचस्पी न रही न रहेगी क्योंकि साफ दिख रहा असल नगर की प्रबुद्धता तो आत्मप्रशंसा आत्ममुग्धता में माटी पलित किये भविष्य को। जीवट कर्मठ व्यक्तित्व और सकारत्मक ऊर्जा से भरे ये लोग जो बिन किसी बड़े गाजे बाजे मंच प्रपंच माला विमला के अपना काम करते।
     सोशल मीडिया में झाडू पकड़े या गाय को चारा खिलाते पतलून में सिलवट भी न पड़े क्रीज भी खराब न हो और विश्वास दिलाते समाज सेवा हो रही तो यह स्वच्छता का ढिंढोरा कर्जों में लाद देगा।
   मुझे माँ रेवा के वे भक्त सच्चे हिन्द लगेंगे जो आटे की लुई लिये बेठें न कि वो जो आरती कर घर की पूजा हवन कचरा का विसर्जन आस्था से करने माँ नर्मदा के गाल पर तमाचा जड़ने आते। 

    

अनुराग त्रिवेदी एहसास 
लेखक एक्टिविस्ट


1.1.18

2018 के लिए नए संकल्प लेने होंगे

बीते बरस की कक्षा में बहुत कुछ सीखने को मिला इस साल अपने जन्मपर्व 29 नवम्बर 1963 से अब तक जो भी कुछ सीखा था वो सब 0 सा लगा इस साल ने मुझे बताया कि - हर सवाल ज़वाब आज देना ज़रूरी नहीं है कुछ ज़वाब अगले समय के लिए छोड़ना चाहिए कोई कितनी भी चुभते हुए आरोप लगाएं मुझे मंद मंद मुस्कुराकर उनको नमन करने की आदत सी हो गई । मुझे पता लगा कि आरोप लगाने वालों को जब समय जवाब देता है तो वे आरोप लगाने के अभ्यास से मुक्त हो जाएगा ।
यूँ तो सबसे असफल मानता हूँ खुदको पर आत्मनियंत्रण और उद्विग्नता से मुक्ति पिछले कई सालों से व्यक्तिगत ज्ञान संपदा के कोषागार को बेपनाह भर रही है । साथ ही सत्य के लिए संघर्षशीलता की शक्ति भी मिल रही है वर्ष कितना कुछ दे जाता है कभी सोचके तो देखिए 
*बीते साल में यश्चवन्त होना एक उपलब्धि थी कोई मुझे अस्वीकारता तो दुःखी न होता क्योंकि वो उसका अधिकार है किसे स्वीकारे किसे न स्वीकारे किसी के अधिकार पर अतिक्रमण करना मेरा कार्य नहीं !*
*इस बरस मुझे एहसास हुआ कि मैं रक्तबीज हूँ मुझे काटो मारो मेरी उपेक्षा करो सार्वजनिक रूप से आहत करो हराने की चेष्ठा करो मेरा रक्त माथे पर पसीने सा चुहचुहा के भूमि पर टपकेगा और मुझे और अधिक शक्ति से जीवित कर देगा सत्य के उदघोष के लिए !
वैमनस्यता वो बोएं और मैं काटूँ सनातन संस्कृति में यह जायज़ नहीं है इसके कई मामले मेरे सामने आए एक पल आक्रोश से भरा दूसरे पल ही मानस में उमड़ते आध्यात्मिक  ज्ञान ने रोका कहा - "तुम शांत रहो चिंतन और आत्म निरीक्षण करो देखो शायद कोई कमी हो तुममें ? कई बार पाया कि हाँ में गलत था कई बार दूसरे गलत थे खुद को सुधारने की सफल कोशिश की दूसरों को ईश्वर के भरोसे छोड़ा ! बीते वर्ष ने यही सिखाया अच्छी थी सीख ।
*फिर भी मुझसे जो गलतियाँ हुईं हों उसके लिए मुझे क्षमा कीजिये इस विराट में मैं बहुत छोटा हूँ आप सब विशाल मेरी भूलों को माफ़ करने का आपमें मुझसे अधिक सामर्थ्य है ।
   भारत के विशाल एवम विविद्वतापूर्ण समाज के लिए खतरा कुछ नहीं है उसका सांस्कृतिक वैभव और सामर्थ्य अक्षुण्ण है चेतना में सकारात्मकता की अक्षय ऊर्जा भरी पड़ी है । बस 100 बरस में विचारधाराओं के आक्रामक आघात से लोग चिंतन हीं हो गए हैं । महात्मा अम्बेडकर के कुछ स्वयंभू अनुयायियों के मन में कुण्ठा का प्रवेश वामधर्मी विचारकों ने भर दिया है जबकि अब जब तेज़ी से समाज में में बदलाव आ रहा है सामाजिक सहिष्णुता के कपाट खुलने जा रहे हैं तब आयातित विचार पोषक तत्वों बे फिर वर्गीकरण कर दिया । 2017 में रोहिंग्या पर रोने वालों ने काश्मीर पर एक भी एवार्ड वापस न किये थे 1990 के बाद क्रूर असहिष्णुता की प्रतिक्रिया हुई होगी स्वभाविक है होगी ही क्योंकि विशाल देश में ईद दीवाली गुरुपर्व क्रिसमस साथ साथ मनाने का दृश्य वामधर्मी ज़ह नहीं सके वे पहले वर्गीकरण करतें हैं फिर वर्गों में संघर्ष कराते हैं ताकि भारत चीन की तरह विकास को गति न दे सके परन्तु हम साहित्यकार कवि कलाकार चेतना के लिए एक शक्तिकोश हैं बदलाव ले आएंगे 2029 तक भारत को उस दिशा में ले जाएंगे जो विश्व का मार्गदर्शन करेगी ।
     आप सुधिजन जानिए 2017 के बाद 2018 और अधिक सम्पन्न करेगा भारत को बस प्रत्येक मन में ऊपर लिखी मेरी व्यक्तिगत अभिव्यक्ति को स्वीकृति देनी होगी ।
        सरकारों को भी अब ऐसे प्रयास करने होंगे जिससे सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिल मसलन आरक्षण की जगह जाति सशक्तिकरण के कांसेप्ट को लाना होगा । आरक्षण अब गैर जरूरी एवम अनावश्यक बिंदु है  तथा कालांतर में यह व्यवस्था सबसे विध्वंसक स्वरूप धारण कर लेगी इससे हम  2029 के स्वप्न को प्राप्त न कर पाएंगे ।

22.12.17

कलाकार की सफलता के सूरज के 9 अश्व


मेरे एक मुम्बइया परिचित ने गलती से अपनी कलाकृति मुझे भेज दी मैनें जबलपुरिया स्नेहवश नहीं जान बूझकर कहा -वाह क्या बात है इसे अपने चैनल पर पोस्ट कर दूं । श्रीमन मेरे झांसे में आए सो हाँ कह दिया फिर तुरन्त कॉलबैक किया - अरे भाई हमने कर दिया है आप परेशान न हों ।
 मित्रो व्यक्ति कितना सतर्क रहें मुम्बई वालों से सीखो हमारे जबलपुरी कलाकार बहुत भोले हैं । उनको समझना चाहिए कि जब रोटियों की ज़रूरत होती है तो ये तालियाँ किसी काम की नहीं होतीं ।
     मेरे कलाजगत के मकसद परस्तों के साथ कि बार मुठभेड़ हो चुकी है ।
      मेरे परिचित एक युवा ने मुझे सपत्नीक घर आकर अपनी आर्थिक तंगी का किस्सा सुनाया सो मैने उनको संस्थान से काम दिलाने का वादा कर उनको काम भी दिलाया । भाई को जब ये लगा कि मेरा काम उनके बिना नहीं चल पाएगा तो भाई ने एक बार छोटे से काम के लिए इतना बड़ा बिल दिया जो किसी भी हालात नें उस काम के लायक तो न था ।
       इस बीच भाई ने अनवांछित मांग का प्रपोगन्दा शुरू कर दिया । मेरे अधिकारी ने उसे विवादों से बचने के लिए भुगतान कर दिया पर मुझे कलाजगत के इस भ्रष्टाचार पर बहुत दर्द हुआ । आज भी है । उसी व्यक्ति ने मुझसे मेरी कविता मांग कुछ पोस्टर बनाए जब मैंने अपनी लेखनी की कीमत मांगी तो मुकर गए ज़नाब हालांकि मुझे शब्दों की कीमत से कोई लेना देना न था पर उसे एहसास दिलाना था कि पवित्रता सार्व श्रेष्ठ है आप अगर तूलिका और रंग का सम्मिश्रण केनवस पर मुंह मांगे बेच सकते हो तो शब्दों का भी मूल्य होता है ।
  मित्रो कलाजगत रहस्य का जगत भी है । पता नहीं किसे कब और कितना दे दे गीत संगीत के मशीनीकरण ने सारेगामा को नेपथ्य में पटक दिया तो देह प्रदर्शन एवम आयातित विचारकों ने सकारात्मक रंगकर्म को तो मानो बंधक बना लिया । कविताई में सियासत चुट्कुले बाजों का राज़ गई तो पेंटर वो छा रहा है जो न्यूड बना रहा है या शास्त्रीय लोक कला को ताक में रख अधकचरे चित्र दे रहा गई । उस पर एक बात और आजकल मौलिक सृजन कर्ताओं का टोटा है । नकलचियों की तादात इतनी है कि कला जगत में विकास के मार्ग अवरुद्ध होते जा रहे हैं ।
टीवी चैनल्स ने हर विधा का अंत करने का ठेका सा ले लिया है
 चैनल्स केवल पैसों के लिए रियलिटी शो पेश करतें हैं । डांस जे नाम पर कसरतें गायन के नामपर फ़िल्मी गीतों पर तीनचार जजेस की मूर्खताएं नाट्य एवम अभिनय का तो कुछ न पूछिये  विषय ऐसा उठाते हैं हैं जो केवल सीमा हीन होकर वर्जनाओं को तोड़ने के लिए प्रेरित करे ,,,, युवा उस ऐन्द्रजाल में फंसकर मूल साधना से भटक जाते हैं । संगीत के कुछ ही साधक हैं जो रोटी में घी लगाकर अपने फ़्लैट में मुम्बइया हो पाए हैं शेष आज भी एड़ियां घिस रहे हैं ।
एक युवा जोड़ा एक दिन मेरे संस्थान में आया बेचारा सोच रहा था कि हम उनकी कुछ सहायता करेंगे पर हम अपने सीमित साधनों से उनको क्या देते उनको दुनियाँ का राज़ समझ आया दौनों एक स्वर में बोले- सर आज समझे कि रोटी कितनी मुश्किल से हासिल की जाती है । बच्चे रूमानियत और प्रेम से पगे थे । घर लौट गए माँ बाप ने अवश्य उनको गले  लगाया होगा ।
 
 संतवृत्ति के साधकों को भी देखा है रोजिन्ना नाम छपाउँ सृजकों को भी । संतवृत्ति के कलाकार केवल साधक होते हैं कला के सतत अन्वेषण और अध्यवसाय में लगे ये गन्धर्व सामवेद वर्णित कला के निष्णात होकर भी मासूम होते हैं ।
 लेकिन नाम के लिए दौड़ने वाले उफ़्फ़ विश्व में गोया सीधे इंद्र सभा से भेजे गए हों । वैसे इनका अधोपतन एक दशक से भी कम अवधि में हो ही जाता है ।
मित्रो फिर भी कोशिश कर रहा हूँ बेहतरीन कलाकार समाज को दूं जो सच्चे गंधर्व साबित हों
     कलाकर की सफलता के सूरज के 9 अश्व
1:- कभी भी बेवजह किसी को प्रमोट न करो उसका टेलेंट बोलेगा ।
2:- प्रसिद्धि का लोभ प्रतिभा का अंत कर देता है
3:- अपने शहर के कूड़े कर्कट को भी सम्मान न दे सको तो सद्भाव ही दो
4:- जिस पायदान पर पैर रख के आए हो उससे उतार के दिनों के लिए सलामती की दुआ करो
5:- ग्लैमर वर्ल्ड कभी भी आपको हारा जुआरी साबित कर सकता है ।
6:- मेंटर्स भी मुंह देखा प्रमोशन न करें जबरन अपने ही स्टूडेंट्स को जिताएं न
7:- माँ बाप और मुगालते में न रहें कि उनकी संतान/शिष्य-शिष्या ही श्रेष्ठ  कलाकार है । बैजू बावरा की कथा याद रखें
8:- हार जाने पर विजेता को सम्मान दें न कि खोट निकालें
9:- कलाकार खुद को सबसे नया साधक माने
      

18.12.17

ॐ का कंठ संगीत में महत्व : एक प्रयोग


इसके आगे भौतिक और सौर विज्ञानी इसके उदगम तक जा पहुँचे । सूर्य की घूर्णन प्रक्रिया से ॐ के सृजन को NASA - National Aeronautics and Space Administration ने आइडेंटीफाई किया ।
ॐ के अनुनाद से वाणीगत मधुरता के लिए आप स्वयम एक प्रयोग करें 30 दिन में आपको अपनी भाषा में लयात्मकता एवम उसके उत्पन्न करने के लिए ध्वनि आघात की आवृत्ति का स्वयम बोध होगा ।
 Balbhavan में संगीत के विद्यार्थियों को मेरा  निर्देश है कि वे 5 से 10 बार इस का अनुनाद का अभ्यास करें । डॉ शिप्रा सुल्लेरे की देखरेख में बच्चे ॐ का अभ्यास करतें भी हैं । कुछ घर में करतें है ।
 इससे ध्वनि  फेफड़ों जीभ और वोकल काड के आटो सिंक्रोनाइज शरीररूपी मशीन से उत्पादित होगी जो आकर्षक और गेयता के काफी नजदीक होगी ।
 आप  वेस्टर्न गीतों में गायिकाओं की ध्वनि को  महसूस करें तो पाएंगे कि आवाज़ हमारी गायिकाओं से एकदम भिन्न हैं मेनिष्ट हैं जबकि भारतीय गायिकाओं की आवाज़ मूलतः फेमिनिस्ट ही होती है । अधिकतर गायिकाएं किसी न किसी रूप में A U M के संयुक्त शब्द ॐ का उदघोष करने के कारण फेमिनिस्ट ही होती हैं ।
   कर्नाटक राबिंद संगीत में भी यही ॐ स्वर साधना में ही शामिल होता है ।
    सुधिजन हम इस  प्रयोग को कराते हैं Bal Bhavan Jabalpur में जो एक कोशिश है  छोटे बच्चों के साथ
इससे जो परिणाम मिलेंगे
1 बच्चों की आयु अनुसार बदली वोकलकाड के कारण गायन में प्रतिकूल प्रभाव न होगा
2 फेफड़ों  वोकलकाड एवम जीभ में सिंक्रोनाइज़ेशन स्थापित हो जाने से ध्वनि का उत्पादन अभ्यास के एवम मस्तिष्क के आदेशानुसार ही होगा ।
3 ॐ के अभ्यास के दौरान ध्वनि  नाभिकीय संचरण करने से आरोह अवरोह स्वराघात के मामले में नाभि तक के नियंत्रण के कारण गायकी ताल से न कटेगी और न ही सुरों में भटकाव होगा ।
       ये प्रयोग है हमने एक वर्ष में पाया कि बाल  संगीत साधक अपेक्षा के अनुरूप गायन को निखार पाते हैं । जो बच्चे घर में धार्मिक कारणों से अथवा आलस की वजह से ॐ का घोष नहीं कर पाते उनको नियमित स्वराभ्यास की ज़रूरत होती है ।
उम्मीद है आप इसे शेयर कर नए स्वर साधकों को मदद करेंगे ।

12.12.17

और यूँ उत्सव मनाया आनंद गोत्रीयों ने

पलपल इंडिया , जबलपुर. से साभार
 'ओशो ट्रेल' के कारण ओशो के महाप्रयाण के 27 साल बाद मध्यप्रदेश के जबलपुर में 'ओशो अवतरण दिवस' खास बन गया, जिसका चर्चा सोशल मीडिया के जरिए देश-दुनिया तक फैल गया. सुबह 10 बजे एक सैकड़ा से अधिक ओशो प्रेमी ओशो संबोधि स्थली भंवरताल स्थित मौलश्री वृक्ष के तले एकत्र हुए. वहां से ओशो ट्रेल योगेश भवन नेपियर टाउन पहुंची, जहां 'ओशो हॉल' के दर्शन कर ओशो के निवास-काल की स्मृतियां साकार की गईं. तीसरे चरण में 'निःशुल्क ओशो ट्रेल' महाकोशल कॉलेज पहुंची, जहां 'ओशो चेयर' के दर्शन कर सभी ओशो प्रेमी मंत्रमुग्ध हो गए. इसी के साथ ओशो ट्रेल देवताल स्थित ओशो संन्यास अमृतधाम पहुंची, जहां ओशो सेलिब्रेशन की मस्ती में चार चांद लग गए. सभी ने ओशो ध्यान शिला के दर्शन किए. फिर सभी 'ओशो मार्बल रॉक' के दीदार करने भेड़ाघाट पहुंचे, जहां आयोजक संस्था विवेकानंद विज्डम इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल ने स्वागत किया.
ओशो ट्रेल जब भेड़ाघाट ने भंवरताल कल्चरल स्ट्रीट पहुंची तो ओशो के महासूत्र हंसिबा, खेलिबा, धरिबा ध्यानम और उत्सव आमार जाति, आनंद आमार गोत्र धरती पर साकार हो गए. सभी ओशो ट्रेल के यात्री ओशो के व्हाइट रोब ब्रदरहुड ध्यान की मस्ती में गहराई तक डूब गए. इसके बाद एक-दूसरे से गले मिलकर बाहर प्रेम का प्रसाद बांटा. ये पल यादगार बन गए. ओशो ट्रेल को रोमांचक पर्यटन यात्रा बनाने में विवेकानंद विज्डम इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल के संचालक डॉ.प्रशांत कौरव और सुदेशना अभियान के मोटिवेटर सुरेन्द्र दुबे की विशेष भूमिका रही. इसके अलावा ओशो आश्रम के स्वामी अनादि अनंत ने ध्यान प्रयोगों के माध्यम से अविस्मरणीय भूमिका निभाई.
देवताल में केक काटकर बर्थडे मनाया
ओशो सन्यास अमृतधाम में ओशो का बर्थडे केक काटकर मनाया गया. इस दौरान सतोरी सभागार में ध्यान हुआ. प्रवचन हुए. नृत्य की मस्ती में सभी ने गोते लगाए. ओशो संन्यासियों ने ओशो ट्रेल की भूरि-भूरि सराहना की. साथ ही इसे एक ऐतिहासिक पहल निरूपित किया. सुदेशना अभियान व विवेकानंद विज्डम इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल के संचालक डॉ.प्रशांत कौरव ने संकल्प लिया कि ओशो ट्रेल आगे भी समय-समय पर आयोजित करके जबलपुर में आचार्य रजनीश के 59 वर्षीय कुल जीवनकाल में से सबसे ज्यादा 19 वर्ष निवासकाल की स्मृतियों व स्थलियों का दर्शन कार्यक्रम जारी रखा जाएगा. इससे देश-विदेश में जबलपुर का महत्व बढ़ेगा, पर्यटक आकर्षित होंगे. भविष्य में ओशो ट्रेल में रायसेन कुचवाड़ा और गाडरवारा को भी शामिल करने का निर्णय विचाराधीन है.
ओशो की छोटी बहन, बहनोई व भांजे ने आयोजन को दी गरिमा
सबसे खास बात यह रही कि ओशो ट्रेल के साथ शुरूआत से लेकर समापन तक जबलपुर के आचार्य रजनीश यानी ओशो की सगी छोटी बहन मां निशा भारती, बहनोई हरक भाई व उनके पुत्र साथ रहे. तीनों ने ओशो सेलिब्रेशन में शामिल होकर आनंदलाभ लिया. राजेन्द्र चन्द्रकांत राय और लक्ष्मीकांत शर्मा सहित अन्य वरिष्ठ नागरिकों ने ओशो ट्रेल को ओशो प्रेमियों और शहर जबलपुर के लिए बड़ी सौगात माना.
इनका सहयोग रहा
योगेश भवन में आर्ट ऑफ लिंविग के टीचर और भवन स्वामी ऋतुराज असाटी और महाकोशल कॉलेज में डॉ.अरुण शुक्ला का सहयोग उल्लेखनीय रहा. ओशो आश्रम में स्वामी आनंद विजय, स्वामी शिखर व स्वामी राजकुमार सहित अन्य ने सहयोग दिया. कार्यक्रम के दौरान शुभम कौरव, अनुश्री, मां किरण, अंजु, ज्योति, अमित परनामी, शक्ति प्रजापति और विनोद सराफ सहित अन्य ने सहयोग के साथ ओशो के जीवन से जुड़ी जगहों का दर्शन कर रोमांच का अनुभव किया. ओशो ट्रेल का कभी भुलाया न जा सकने वाला नेरेशन सुदेशना अभियान के मोटिवेटर सुरेन्द्र दुबे रोमांचक अंदाज, आवाज और अल्फाजों के जरिए किया. भंवरताल में स्वामी राजकुमार ने ओशो साहित्य का स्टॉल लगाकर ओशो की पुस्तकों के प्रेमियों को मनपसंद साहित्य उपलब्ध कराया.
ओशो ट्रेल को मिला संस्कारधानी का अभूतपूर्व स्नेह
बात 50 की थी 90 लोग हो गए, बस एक करना थी 3 करना पडी, भोजन की व्यवस्था 50 लोगों की थी दोपहर में डेढ़ सौ और रात में 350 सौ लोग बढ़ गए, ओशो के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में ओशो ट्रेल का आयोजन शहर के अब तक के इस तरह के आयोजनों में बेहद सफल आयोजन रहा. ट्रेल की पहली खासियत थी समय पर शुरू होना और दूसरी खासियत थी लोगों का बहुत अधिक रिस्पांस, आयोजकों ने शहर से मिले स्नेह के लिए आभार जताया है.
ओशो ट्रेल की सफलता के बाद विवेकानंद ग्रुप ऑफ़ इंस्टिट्यूशन विवेकानंद जयंती पर एक और कार्यक्रम की प्रस्तावना रख रहा है जिसका नाम है कहे शिकागो सुने जबलपुर इस कार्यक्रम में सबसे रचनात्मक सुझाव एवं सहयोग आमंत्रित किये हैं.

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धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...