11.1.18

संवेदनशील किन्तु सख्त सख्शियत : आई पी एस आशा गोपालन

आशा जी के दौर में मैं हितकारणी ला कालेज से जॉइंट सेक्रेटरी का चुनाव लड़ रहा था . मुझे उनके मुझसे मेरी बैसाखियाँ देख पूछा था- "आप क्यों इलेक्शन लड़ रहे हो..?"
मेरा ज़वाब सुन बेहद खुश हुईं मातहत अधिकारियों को मेरी सुरक्षा के लिए कहा.. ये अलग बात है..... एक प्रत्याशी के समर्थक ने कट्टा अड़ाया मित्र #प्रशांत_श्रीवास्तव को .. और मित्र अपनी छोटी हाईट का फ़ायदा उठा भाग निकले थे ...... इस न्यूज़ ने वो मंजर ताज़ा कर दिया..
वे मुझे जान चुकीं थी । एक्जामिनेशन के दौरान एक रात  हम कुछ मित्र पढ़ते हुए चाय पीना तय करतें हैं किन्तु स्टोव में कैरोसिन न होने से ये तय किया कि चाय मालवीय चौक पर पीते हैं । दुर्भाग्य से सारी दुकानें बंद थीं । बात ही बात में पैदल हम सब मोटर स्टैंड ( यही कहते थे हम सब बस अड्डे को जबलपुर वाले ) जा लगे । चाय पी पान तम्बाकू वाला दबाए एक एक जेब में ठूंस के वापस आ रहे थे तब मैडम आशा गोपालन जी की गाड़ी  जो नाइट गस्त पर थीं इतना ही नहीं  आईपीएस अधिकारी एम्बेसडर की जगह टी आई की जीप पर सवार थीं ।
टी आई लार्डगंज भी मुझे पहचानते थे सुजीत ( वर्तमान #बीजेपी_नेता ) अजीत ( वर्तमान टी आई ) मेरे मानस भांजों की वजह से लार्डगंज पुलिसकर्मियों के परिवार में मुझे मामाजी के नाम से जाना जाता था । टी आई जी ने पूछा - मामाजी कहाँ घूम रहे हैं । आशा गोपालन जी ने भी समझाया कि आप रात में न घूमें चलिए हम सबको गाड़ी में बिठा कर सुपर मार्केट के सामने छोड़ा दूसरों को तो मैडम कई किलोमीटर्स दूर छोड़ दिया करतीं थीं ।
ऐसे लोकरक्षकों को कौन भूलेगा जो सख्त तो हैं पर उससे अधिक संवेदनशील ।

10.1.18

अदेह से संदेह प्रश्न

अदेह से सदेह प्रश्न
कौन गढ़ रहा कहो
गढ़ के दोष मेरे सर
कौन मढ़ रहा कहो ?
***********
बाग में बहार में, ,
सावनी फुहार में !
पिरो गया किमाच कौन
मोगरे के हार में !!
पग तले दबा मुझे कौन बढ़ गया कहो...?
********

एक गीत आस का
एक नव प्रयास सा
गीत था अगीत था !
या कोई कयास था...?
गीत पे अगीत का वो दोष मढ़ गया कहो..

*****************

तिमिर में खूब  रो लिये
जला सके न तुम  दिये !
दीन हीन ज़िंदगी ने
हौसले  डुबो दिये !!
बेवज़ह के शोक गीत कौन गढ़ रहा कहो.

***************

अलख दिखा रहे हो तुम
अलख जगा रहे हो तुम !
सरे आम जो भी है -
उसे छिपा रहे हो तुम ?
मुक्तिगान पे ये कील कौन जड़ रहा कहो ?

😊😊😊😊😊😊😊
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

6.1.18

सिविल सर्विसेस की तैयारी कर रहे 97% युवा डीआरडीओ क्या है नहीं जानते

रिपुसूदन अग्रवाल  यंग इसरो साईंटिस्ट विद  ग्रेट जबलपुरियन एक्टिविस्ट 

आज वाट्सएप के  एक समूह में में ग्रेट जबलपुरियन एक्टिविस्ट भाई अनुराग त्रिवेदी ने एक पोस्ट डाली पोस्ट हालांकि वे मुझे बता चुके थे बालभवन में आकर की सिविल सर्विसेस की तैयारी कर रहे  97% युवा  डीआरडीओ क्या है नहीं जानते . मुझे भी ताज्जुब हुआ था पर मुझे मालूम है कि और लोगों की तरह गप्पाष्टक नहीं सुनाते . सो उनकी पोस्ट उनकी शैली में ही यथावत पोस्ट कर के मुझे भीषण तनाव के बीच सुखानुभूति हो रही है . सुधीजन जानें तो कि जबलपुर का जबलपुर ही रह जाना कितना चिंता एवं चिन्तन का मामला है ...............  तो ये रही अनुराग जी की व्यथा ..   कल अग्रवाल स्टेशनर्स में आगामी आयोजित ईवेंट के फॉर्म प्रिंट करवा रहा था। दूकान में संचालक युवा के साथ लम्बा दुबला सा हल्के बाल बिखरे से बेहद शालीन विनम्र बच्चा सहयोग कर रहा दूकान संचालन में । प्रिंट फॉर्म होते होते बँटने भी लगे। 

   ठंड जोरदार थी पर मार्कट में देर रात 11 बजे तक स्टेशनरी की ही दूकान बस खुली।  लोग हाथों में ऊनी ग्लब्ज़ कानों में पट्टी उस पर ऊनी टोपे के उपर मफलर भी दटाये थे। 
   वह बच्चा सहज था पतली सी जैकट पहने और संचालक तो हाफ स्वेटर पहने। 
-" टेम्प्रेचर छः के नीचे पहुँच गया लगता !" उस लडके ने संचालक को बोला।

मुझे इक डाक्यूमेंट फ़ाइल बनानी थी। लैप टॉप पर फ़ाइल खोल टाइप करने लगा। असहज होने के कारण सेल फ़ोन पर ड्राफ्ट करने लगा तभी अंकित (दुकान संचालक ने कहा -" अनुराग भैया मैं बता रहा था न कि मेरा इक क्लोज फ्रैंड इसरो में है ।" 
-" हूँ ....तो ?" सर नीचे किये मैंने जबाब में कहा क्योंकि ध्यान पूरा टेक्स्ट फॉर्मेट में था। 
-" ये वही है !" 
सुनते ही मैं अदब से उठा और हाथ मिला कर उसे उपर से नीचे देखा। लगभग घंटे भर से तो देख ही रहा था कि वह मुझे हुए व्यावसायी की तरह सबसे विनम्र हो कर डील कर रहा जबकि इसको पहले कभी नहीं देखा अंकित की दूकान में। 
-" great to see you sir !" मेरे मुंह से निकला और फिर कहा -" कुछ दिन पहले जबलपुर में सौ स्टूडेंट को  एक्स डीआरडीओ चेयरमैन से मिलवाया और जानकार शर्मिंदा हुए कि सिविल सर्विसेस की तैयारी कर रही पीढी डीआरडीओ क्या है नहीं जानती । पूछने पर सिर्फ तीन हाथ उठे।" 
उस युवा को देखकर मैं लगभग भीतर से गुदगुदाने सा अनुभव कर रहा था। उसी खुशी में कहा -"मैं कैसे इस्तकबाल करूं आपका सर ? आप तो मरी हुई आशा को जन्म दे रहे। क्योंकि ..कहीं न कहीं लग रहा था जबलपुर सचमुच चेतना शून्य है।" मुझे लगा ज्यादा गम्भीर बात कह दी वह तो सन्दर्भ भी न समझा हो। पर पल भर को रुक कर पूछा -"आपने तवा देखा डोसा बनाने वाले का?"

उसने सहमती में मुंडी हाँ में हिलाई।
-" गर्म हुआ या नहीं जैसे कुक छींटे मारता है न ..वैसे ही आपने छींटे मार कहा है उम्मीद इतनी भी नहीं मरी। ..क्या नाम है आपका?" 
-" रिपु ...जी.. रिपुसूदन अग्रवाल !" 
-"9 जनवरी तक हो जबलपुर में ?"
-" नहीं ...मैं 7 जनवरी को जा रहा हूँ ...क्यूँ ?" 
पेपर बढाते हुए। ईवेंट का अनूठा प्रारूप बतलाते कहा
-" इस ईवेंट में कई बच्चे और बहुत सारे अभिभावकों को आमंत्रित किया आप जैसे प्रतिभावान युवा न केवल बच्चों बल्कि उनके पेरेंट्स के लिए प्रेरणा के स्रोत हो सकते।"
मैंने उसे समझाते कहा -" मेरा मानना है interaction ढेरों reference देते जो goal determination में help करते ऐसे stand !" 
-" जी मॉडल हाई का पढ़ा हूँ । अपनी स्कूल जाता हूँ और बच्चों से मिलता हूँ । उनसे बातें करता हूँ।" मेरी बात को बीच में रोकते उसने जबाब दिया। सुनते ही मन ही मन दुआएं उसके और उसके पेरेंट्स के लिए निकली । मुझे लगा वो मुझसे अब रूहानियत में बेहद बड़ा है। 
रिपु ने कहा -" बच्चे अक्सर सोचते कि जो पढ़ रहे उसका कोई use नहीं। मैं उनसे कहता कुछ भी पूछो मैं practical daily routine में उसका use बताऊँगा।"
मैंने भी उससे कई प्रश्न पूछे और उसने समझाना लगभग किसी परिपक्व शिक्षक की तरह शुरू किया। 
असल ऋण चुकता यदि किसी को करना इससे बेहतर इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता। नगर जिधर नकली दबंगाई के अभ्यास युवाओं को देता फिरता और कुर्ताधारी, टीकाधारी चालीस पचास युवाओं को पीछे लिए घूमते। 
   नगर की होटलों पान की दुकानों आहतों में जो यारों की यारियाँ फिकरे कसते मिलती वो दशकों पीछे धकेल रहे नगर को प्रदेश को देश को। 
   ऐसी गैरजिम्मेदार नागरिकता कभी स्मार्ट नहीं हो सकती किन्तु रिपुसुदन अग्रवाल ( युवा साइंटिस्ट) सुधीश मिश्रा ( डायरेक्टर ब्रह्मोस , डीआरडीओ) चन्द्रशेखर विश्वकर्मा( पूर्व प्रचार्य, मिलट्री कालेज देहरादून) रजवंत बहादुर सिंह ( पूर्व अध्यक्ष कर्मिक प्रतिभा प्रबंधन विभाग, डीआरडीओ)  के साथ युवा रुद्राक्ष पंकज अभिनव सारांश वीरेंद्र प्रदीप हनुमान यशा कविता इन्द्री पूजा शुभेन्दु अनुराग चतुर्वेदी विवेक शर्मा से अनगिनत उदाहरण जो अलग विधाओं में लगे पड़े।
मुझे देश पर भाषण सुनने देने में दिलचस्पी न रही न रहेगी क्योंकि साफ दिख रहा असल नगर की प्रबुद्धता तो आत्मप्रशंसा आत्ममुग्धता में माटी पलित किये भविष्य को। जीवट कर्मठ व्यक्तित्व और सकारत्मक ऊर्जा से भरे ये लोग जो बिन किसी बड़े गाजे बाजे मंच प्रपंच माला विमला के अपना काम करते।
     सोशल मीडिया में झाडू पकड़े या गाय को चारा खिलाते पतलून में सिलवट भी न पड़े क्रीज भी खराब न हो और विश्वास दिलाते समाज सेवा हो रही तो यह स्वच्छता का ढिंढोरा कर्जों में लाद देगा।
   मुझे माँ रेवा के वे भक्त सच्चे हिन्द लगेंगे जो आटे की लुई लिये बेठें न कि वो जो आरती कर घर की पूजा हवन कचरा का विसर्जन आस्था से करने माँ नर्मदा के गाल पर तमाचा जड़ने आते। 

    

अनुराग त्रिवेदी एहसास 
लेखक एक्टिविस्ट


1.1.18

2018 के लिए नए संकल्प लेने होंगे

बीते बरस की कक्षा में बहुत कुछ सीखने को मिला इस साल अपने जन्मपर्व 29 नवम्बर 1963 से अब तक जो भी कुछ सीखा था वो सब 0 सा लगा इस साल ने मुझे बताया कि - हर सवाल ज़वाब आज देना ज़रूरी नहीं है कुछ ज़वाब अगले समय के लिए छोड़ना चाहिए कोई कितनी भी चुभते हुए आरोप लगाएं मुझे मंद मंद मुस्कुराकर उनको नमन करने की आदत सी हो गई । मुझे पता लगा कि आरोप लगाने वालों को जब समय जवाब देता है तो वे आरोप लगाने के अभ्यास से मुक्त हो जाएगा ।
यूँ तो सबसे असफल मानता हूँ खुदको पर आत्मनियंत्रण और उद्विग्नता से मुक्ति पिछले कई सालों से व्यक्तिगत ज्ञान संपदा के कोषागार को बेपनाह भर रही है । साथ ही सत्य के लिए संघर्षशीलता की शक्ति भी मिल रही है वर्ष कितना कुछ दे जाता है कभी सोचके तो देखिए 
*बीते साल में यश्चवन्त होना एक उपलब्धि थी कोई मुझे अस्वीकारता तो दुःखी न होता क्योंकि वो उसका अधिकार है किसे स्वीकारे किसे न स्वीकारे किसी के अधिकार पर अतिक्रमण करना मेरा कार्य नहीं !*
*इस बरस मुझे एहसास हुआ कि मैं रक्तबीज हूँ मुझे काटो मारो मेरी उपेक्षा करो सार्वजनिक रूप से आहत करो हराने की चेष्ठा करो मेरा रक्त माथे पर पसीने सा चुहचुहा के भूमि पर टपकेगा और मुझे और अधिक शक्ति से जीवित कर देगा सत्य के उदघोष के लिए !
वैमनस्यता वो बोएं और मैं काटूँ सनातन संस्कृति में यह जायज़ नहीं है इसके कई मामले मेरे सामने आए एक पल आक्रोश से भरा दूसरे पल ही मानस में उमड़ते आध्यात्मिक  ज्ञान ने रोका कहा - "तुम शांत रहो चिंतन और आत्म निरीक्षण करो देखो शायद कोई कमी हो तुममें ? कई बार पाया कि हाँ में गलत था कई बार दूसरे गलत थे खुद को सुधारने की सफल कोशिश की दूसरों को ईश्वर के भरोसे छोड़ा ! बीते वर्ष ने यही सिखाया अच्छी थी सीख ।
*फिर भी मुझसे जो गलतियाँ हुईं हों उसके लिए मुझे क्षमा कीजिये इस विराट में मैं बहुत छोटा हूँ आप सब विशाल मेरी भूलों को माफ़ करने का आपमें मुझसे अधिक सामर्थ्य है ।
   भारत के विशाल एवम विविद्वतापूर्ण समाज के लिए खतरा कुछ नहीं है उसका सांस्कृतिक वैभव और सामर्थ्य अक्षुण्ण है चेतना में सकारात्मकता की अक्षय ऊर्जा भरी पड़ी है । बस 100 बरस में विचारधाराओं के आक्रामक आघात से लोग चिंतन हीं हो गए हैं । महात्मा अम्बेडकर के कुछ स्वयंभू अनुयायियों के मन में कुण्ठा का प्रवेश वामधर्मी विचारकों ने भर दिया है जबकि अब जब तेज़ी से समाज में में बदलाव आ रहा है सामाजिक सहिष्णुता के कपाट खुलने जा रहे हैं तब आयातित विचार पोषक तत्वों बे फिर वर्गीकरण कर दिया । 2017 में रोहिंग्या पर रोने वालों ने काश्मीर पर एक भी एवार्ड वापस न किये थे 1990 के बाद क्रूर असहिष्णुता की प्रतिक्रिया हुई होगी स्वभाविक है होगी ही क्योंकि विशाल देश में ईद दीवाली गुरुपर्व क्रिसमस साथ साथ मनाने का दृश्य वामधर्मी ज़ह नहीं सके वे पहले वर्गीकरण करतें हैं फिर वर्गों में संघर्ष कराते हैं ताकि भारत चीन की तरह विकास को गति न दे सके परन्तु हम साहित्यकार कवि कलाकार चेतना के लिए एक शक्तिकोश हैं बदलाव ले आएंगे 2029 तक भारत को उस दिशा में ले जाएंगे जो विश्व का मार्गदर्शन करेगी ।
     आप सुधिजन जानिए 2017 के बाद 2018 और अधिक सम्पन्न करेगा भारत को बस प्रत्येक मन में ऊपर लिखी मेरी व्यक्तिगत अभिव्यक्ति को स्वीकृति देनी होगी ।
        सरकारों को भी अब ऐसे प्रयास करने होंगे जिससे सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिल मसलन आरक्षण की जगह जाति सशक्तिकरण के कांसेप्ट को लाना होगा । आरक्षण अब गैर जरूरी एवम अनावश्यक बिंदु है  तथा कालांतर में यह व्यवस्था सबसे विध्वंसक स्वरूप धारण कर लेगी इससे हम  2029 के स्वप्न को प्राप्त न कर पाएंगे ।

22.12.17

कलाकार की सफलता के सूरज के 9 अश्व


मेरे एक मुम्बइया परिचित ने गलती से अपनी कलाकृति मुझे भेज दी मैनें जबलपुरिया स्नेहवश नहीं जान बूझकर कहा -वाह क्या बात है इसे अपने चैनल पर पोस्ट कर दूं । श्रीमन मेरे झांसे में आए सो हाँ कह दिया फिर तुरन्त कॉलबैक किया - अरे भाई हमने कर दिया है आप परेशान न हों ।
 मित्रो व्यक्ति कितना सतर्क रहें मुम्बई वालों से सीखो हमारे जबलपुरी कलाकार बहुत भोले हैं । उनको समझना चाहिए कि जब रोटियों की ज़रूरत होती है तो ये तालियाँ किसी काम की नहीं होतीं ।
     मेरे कलाजगत के मकसद परस्तों के साथ कि बार मुठभेड़ हो चुकी है ।
      मेरे परिचित एक युवा ने मुझे सपत्नीक घर आकर अपनी आर्थिक तंगी का किस्सा सुनाया सो मैने उनको संस्थान से काम दिलाने का वादा कर उनको काम भी दिलाया । भाई को जब ये लगा कि मेरा काम उनके बिना नहीं चल पाएगा तो भाई ने एक बार छोटे से काम के लिए इतना बड़ा बिल दिया जो किसी भी हालात नें उस काम के लायक तो न था ।
       इस बीच भाई ने अनवांछित मांग का प्रपोगन्दा शुरू कर दिया । मेरे अधिकारी ने उसे विवादों से बचने के लिए भुगतान कर दिया पर मुझे कलाजगत के इस भ्रष्टाचार पर बहुत दर्द हुआ । आज भी है । उसी व्यक्ति ने मुझसे मेरी कविता मांग कुछ पोस्टर बनाए जब मैंने अपनी लेखनी की कीमत मांगी तो मुकर गए ज़नाब हालांकि मुझे शब्दों की कीमत से कोई लेना देना न था पर उसे एहसास दिलाना था कि पवित्रता सार्व श्रेष्ठ है आप अगर तूलिका और रंग का सम्मिश्रण केनवस पर मुंह मांगे बेच सकते हो तो शब्दों का भी मूल्य होता है ।
  मित्रो कलाजगत रहस्य का जगत भी है । पता नहीं किसे कब और कितना दे दे गीत संगीत के मशीनीकरण ने सारेगामा को नेपथ्य में पटक दिया तो देह प्रदर्शन एवम आयातित विचारकों ने सकारात्मक रंगकर्म को तो मानो बंधक बना लिया । कविताई में सियासत चुट्कुले बाजों का राज़ गई तो पेंटर वो छा रहा है जो न्यूड बना रहा है या शास्त्रीय लोक कला को ताक में रख अधकचरे चित्र दे रहा गई । उस पर एक बात और आजकल मौलिक सृजन कर्ताओं का टोटा है । नकलचियों की तादात इतनी है कि कला जगत में विकास के मार्ग अवरुद्ध होते जा रहे हैं ।
टीवी चैनल्स ने हर विधा का अंत करने का ठेका सा ले लिया है
 चैनल्स केवल पैसों के लिए रियलिटी शो पेश करतें हैं । डांस जे नाम पर कसरतें गायन के नामपर फ़िल्मी गीतों पर तीनचार जजेस की मूर्खताएं नाट्य एवम अभिनय का तो कुछ न पूछिये  विषय ऐसा उठाते हैं हैं जो केवल सीमा हीन होकर वर्जनाओं को तोड़ने के लिए प्रेरित करे ,,,, युवा उस ऐन्द्रजाल में फंसकर मूल साधना से भटक जाते हैं । संगीत के कुछ ही साधक हैं जो रोटी में घी लगाकर अपने फ़्लैट में मुम्बइया हो पाए हैं शेष आज भी एड़ियां घिस रहे हैं ।
एक युवा जोड़ा एक दिन मेरे संस्थान में आया बेचारा सोच रहा था कि हम उनकी कुछ सहायता करेंगे पर हम अपने सीमित साधनों से उनको क्या देते उनको दुनियाँ का राज़ समझ आया दौनों एक स्वर में बोले- सर आज समझे कि रोटी कितनी मुश्किल से हासिल की जाती है । बच्चे रूमानियत और प्रेम से पगे थे । घर लौट गए माँ बाप ने अवश्य उनको गले  लगाया होगा ।
 
 संतवृत्ति के साधकों को भी देखा है रोजिन्ना नाम छपाउँ सृजकों को भी । संतवृत्ति के कलाकार केवल साधक होते हैं कला के सतत अन्वेषण और अध्यवसाय में लगे ये गन्धर्व सामवेद वर्णित कला के निष्णात होकर भी मासूम होते हैं ।
 लेकिन नाम के लिए दौड़ने वाले उफ़्फ़ विश्व में गोया सीधे इंद्र सभा से भेजे गए हों । वैसे इनका अधोपतन एक दशक से भी कम अवधि में हो ही जाता है ।
मित्रो फिर भी कोशिश कर रहा हूँ बेहतरीन कलाकार समाज को दूं जो सच्चे गंधर्व साबित हों
     कलाकर की सफलता के सूरज के 9 अश्व
1:- कभी भी बेवजह किसी को प्रमोट न करो उसका टेलेंट बोलेगा ।
2:- प्रसिद्धि का लोभ प्रतिभा का अंत कर देता है
3:- अपने शहर के कूड़े कर्कट को भी सम्मान न दे सको तो सद्भाव ही दो
4:- जिस पायदान पर पैर रख के आए हो उससे उतार के दिनों के लिए सलामती की दुआ करो
5:- ग्लैमर वर्ल्ड कभी भी आपको हारा जुआरी साबित कर सकता है ।
6:- मेंटर्स भी मुंह देखा प्रमोशन न करें जबरन अपने ही स्टूडेंट्स को जिताएं न
7:- माँ बाप और मुगालते में न रहें कि उनकी संतान/शिष्य-शिष्या ही श्रेष्ठ  कलाकार है । बैजू बावरा की कथा याद रखें
8:- हार जाने पर विजेता को सम्मान दें न कि खोट निकालें
9:- कलाकार खुद को सबसे नया साधक माने
      

18.12.17

ॐ का कंठ संगीत में महत्व : एक प्रयोग


इसके आगे भौतिक और सौर विज्ञानी इसके उदगम तक जा पहुँचे । सूर्य की घूर्णन प्रक्रिया से ॐ के सृजन को NASA - National Aeronautics and Space Administration ने आइडेंटीफाई किया ।
ॐ के अनुनाद से वाणीगत मधुरता के लिए आप स्वयम एक प्रयोग करें 30 दिन में आपको अपनी भाषा में लयात्मकता एवम उसके उत्पन्न करने के लिए ध्वनि आघात की आवृत्ति का स्वयम बोध होगा ।
 Balbhavan में संगीत के विद्यार्थियों को मेरा  निर्देश है कि वे 5 से 10 बार इस का अनुनाद का अभ्यास करें । डॉ शिप्रा सुल्लेरे की देखरेख में बच्चे ॐ का अभ्यास करतें भी हैं । कुछ घर में करतें है ।
 इससे ध्वनि  फेफड़ों जीभ और वोकल काड के आटो सिंक्रोनाइज शरीररूपी मशीन से उत्पादित होगी जो आकर्षक और गेयता के काफी नजदीक होगी ।
 आप  वेस्टर्न गीतों में गायिकाओं की ध्वनि को  महसूस करें तो पाएंगे कि आवाज़ हमारी गायिकाओं से एकदम भिन्न हैं मेनिष्ट हैं जबकि भारतीय गायिकाओं की आवाज़ मूलतः फेमिनिस्ट ही होती है । अधिकतर गायिकाएं किसी न किसी रूप में A U M के संयुक्त शब्द ॐ का उदघोष करने के कारण फेमिनिस्ट ही होती हैं ।
   कर्नाटक राबिंद संगीत में भी यही ॐ स्वर साधना में ही शामिल होता है ।
    सुधिजन हम इस  प्रयोग को कराते हैं Bal Bhavan Jabalpur में जो एक कोशिश है  छोटे बच्चों के साथ
इससे जो परिणाम मिलेंगे
1 बच्चों की आयु अनुसार बदली वोकलकाड के कारण गायन में प्रतिकूल प्रभाव न होगा
2 फेफड़ों  वोकलकाड एवम जीभ में सिंक्रोनाइज़ेशन स्थापित हो जाने से ध्वनि का उत्पादन अभ्यास के एवम मस्तिष्क के आदेशानुसार ही होगा ।
3 ॐ के अभ्यास के दौरान ध्वनि  नाभिकीय संचरण करने से आरोह अवरोह स्वराघात के मामले में नाभि तक के नियंत्रण के कारण गायकी ताल से न कटेगी और न ही सुरों में भटकाव होगा ।
       ये प्रयोग है हमने एक वर्ष में पाया कि बाल  संगीत साधक अपेक्षा के अनुरूप गायन को निखार पाते हैं । जो बच्चे घर में धार्मिक कारणों से अथवा आलस की वजह से ॐ का घोष नहीं कर पाते उनको नियमित स्वराभ्यास की ज़रूरत होती है ।
उम्मीद है आप इसे शेयर कर नए स्वर साधकों को मदद करेंगे ।

12.12.17

और यूँ उत्सव मनाया आनंद गोत्रीयों ने

पलपल इंडिया , जबलपुर. से साभार
 'ओशो ट्रेल' के कारण ओशो के महाप्रयाण के 27 साल बाद मध्यप्रदेश के जबलपुर में 'ओशो अवतरण दिवस' खास बन गया, जिसका चर्चा सोशल मीडिया के जरिए देश-दुनिया तक फैल गया. सुबह 10 बजे एक सैकड़ा से अधिक ओशो प्रेमी ओशो संबोधि स्थली भंवरताल स्थित मौलश्री वृक्ष के तले एकत्र हुए. वहां से ओशो ट्रेल योगेश भवन नेपियर टाउन पहुंची, जहां 'ओशो हॉल' के दर्शन कर ओशो के निवास-काल की स्मृतियां साकार की गईं. तीसरे चरण में 'निःशुल्क ओशो ट्रेल' महाकोशल कॉलेज पहुंची, जहां 'ओशो चेयर' के दर्शन कर सभी ओशो प्रेमी मंत्रमुग्ध हो गए. इसी के साथ ओशो ट्रेल देवताल स्थित ओशो संन्यास अमृतधाम पहुंची, जहां ओशो सेलिब्रेशन की मस्ती में चार चांद लग गए. सभी ने ओशो ध्यान शिला के दर्शन किए. फिर सभी 'ओशो मार्बल रॉक' के दीदार करने भेड़ाघाट पहुंचे, जहां आयोजक संस्था विवेकानंद विज्डम इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल ने स्वागत किया.
ओशो ट्रेल जब भेड़ाघाट ने भंवरताल कल्चरल स्ट्रीट पहुंची तो ओशो के महासूत्र हंसिबा, खेलिबा, धरिबा ध्यानम और उत्सव आमार जाति, आनंद आमार गोत्र धरती पर साकार हो गए. सभी ओशो ट्रेल के यात्री ओशो के व्हाइट रोब ब्रदरहुड ध्यान की मस्ती में गहराई तक डूब गए. इसके बाद एक-दूसरे से गले मिलकर बाहर प्रेम का प्रसाद बांटा. ये पल यादगार बन गए. ओशो ट्रेल को रोमांचक पर्यटन यात्रा बनाने में विवेकानंद विज्डम इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल के संचालक डॉ.प्रशांत कौरव और सुदेशना अभियान के मोटिवेटर सुरेन्द्र दुबे की विशेष भूमिका रही. इसके अलावा ओशो आश्रम के स्वामी अनादि अनंत ने ध्यान प्रयोगों के माध्यम से अविस्मरणीय भूमिका निभाई.
देवताल में केक काटकर बर्थडे मनाया
ओशो सन्यास अमृतधाम में ओशो का बर्थडे केक काटकर मनाया गया. इस दौरान सतोरी सभागार में ध्यान हुआ. प्रवचन हुए. नृत्य की मस्ती में सभी ने गोते लगाए. ओशो संन्यासियों ने ओशो ट्रेल की भूरि-भूरि सराहना की. साथ ही इसे एक ऐतिहासिक पहल निरूपित किया. सुदेशना अभियान व विवेकानंद विज्डम इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल के संचालक डॉ.प्रशांत कौरव ने संकल्प लिया कि ओशो ट्रेल आगे भी समय-समय पर आयोजित करके जबलपुर में आचार्य रजनीश के 59 वर्षीय कुल जीवनकाल में से सबसे ज्यादा 19 वर्ष निवासकाल की स्मृतियों व स्थलियों का दर्शन कार्यक्रम जारी रखा जाएगा. इससे देश-विदेश में जबलपुर का महत्व बढ़ेगा, पर्यटक आकर्षित होंगे. भविष्य में ओशो ट्रेल में रायसेन कुचवाड़ा और गाडरवारा को भी शामिल करने का निर्णय विचाराधीन है.
ओशो की छोटी बहन, बहनोई व भांजे ने आयोजन को दी गरिमा
सबसे खास बात यह रही कि ओशो ट्रेल के साथ शुरूआत से लेकर समापन तक जबलपुर के आचार्य रजनीश यानी ओशो की सगी छोटी बहन मां निशा भारती, बहनोई हरक भाई व उनके पुत्र साथ रहे. तीनों ने ओशो सेलिब्रेशन में शामिल होकर आनंदलाभ लिया. राजेन्द्र चन्द्रकांत राय और लक्ष्मीकांत शर्मा सहित अन्य वरिष्ठ नागरिकों ने ओशो ट्रेल को ओशो प्रेमियों और शहर जबलपुर के लिए बड़ी सौगात माना.
इनका सहयोग रहा
योगेश भवन में आर्ट ऑफ लिंविग के टीचर और भवन स्वामी ऋतुराज असाटी और महाकोशल कॉलेज में डॉ.अरुण शुक्ला का सहयोग उल्लेखनीय रहा. ओशो आश्रम में स्वामी आनंद विजय, स्वामी शिखर व स्वामी राजकुमार सहित अन्य ने सहयोग दिया. कार्यक्रम के दौरान शुभम कौरव, अनुश्री, मां किरण, अंजु, ज्योति, अमित परनामी, शक्ति प्रजापति और विनोद सराफ सहित अन्य ने सहयोग के साथ ओशो के जीवन से जुड़ी जगहों का दर्शन कर रोमांच का अनुभव किया. ओशो ट्रेल का कभी भुलाया न जा सकने वाला नेरेशन सुदेशना अभियान के मोटिवेटर सुरेन्द्र दुबे रोमांचक अंदाज, आवाज और अल्फाजों के जरिए किया. भंवरताल में स्वामी राजकुमार ने ओशो साहित्य का स्टॉल लगाकर ओशो की पुस्तकों के प्रेमियों को मनपसंद साहित्य उपलब्ध कराया.
ओशो ट्रेल को मिला संस्कारधानी का अभूतपूर्व स्नेह
बात 50 की थी 90 लोग हो गए, बस एक करना थी 3 करना पडी, भोजन की व्यवस्था 50 लोगों की थी दोपहर में डेढ़ सौ और रात में 350 सौ लोग बढ़ गए, ओशो के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में ओशो ट्रेल का आयोजन शहर के अब तक के इस तरह के आयोजनों में बेहद सफल आयोजन रहा. ट्रेल की पहली खासियत थी समय पर शुरू होना और दूसरी खासियत थी लोगों का बहुत अधिक रिस्पांस, आयोजकों ने शहर से मिले स्नेह के लिए आभार जताया है.
ओशो ट्रेल की सफलता के बाद विवेकानंद ग्रुप ऑफ़ इंस्टिट्यूशन विवेकानंद जयंती पर एक और कार्यक्रम की प्रस्तावना रख रहा है जिसका नाम है कहे शिकागो सुने जबलपुर इस कार्यक्रम में सबसे रचनात्मक सुझाव एवं सहयोग आमंत्रित किये हैं.

11.12.17

आज ओशो ट्रेल कर ओशो प्रेमी करेंगे प्रेम का इज़हार

पलपल जबलपुर. साभार प्रेस कॉन्फ्रेंस रपट
प्रेसवार्ता का दृश्य 

ओशो ट्रेल के प्रति संस्कारधानी में लगातार बढ़ रही उत्सुकता को दूर करने विवेकानंद विजडम इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल के डायरेक्टर और इस ट्रेल के आयोजक प्रशांत कौरव ने एक पत्रकार वार्ता की. उनके साथ ही पत्रकार एवं सुदेशना गुरु सुरेन्द्र दुबे एवं अन्य आयोजको ने बताया की इस आयोजन के प्रति शहर वासियों और ओशोप्रेमियों में जितनी उत्सुकता है उसी तरह वे भी इस ट्रेल को लेकर बेहद उत्साहित हैं. उन्होंने कहा की यह उनका नहीं बल्कि शहरवासियों का है एक आयोजन हैं.
अब भी महसूस की जाती है ओशो की चेतना रूपी सूक्ष्म उपस्थिति
श्री कौरव ने बताया कि सत्ताइस साल पूर्व 19 जनवरी 1990 को ओशो इस संसार से भौतिक रूप से महाप्रयाण कर गए लेकिन समग्र अस्तित्व में उनकी चेतना रूपी सूक्ष्म उपस्थिति सतत महसूस की जा रही है, उनकी 750 से अधिक पुस्तकें और ऑडियो, वीडियो प्रवचन व चित्ताकर्षक स्टिल फोटोग्राफ्स देश-दुनिया में फैले करोड़ो ओशो प्रेमियों और जिज्ञासुओं के सम्मोहन का केन्द्र बने हुए हैं. ओशो का जबलपुर से 1951 से 1970 के मध्य यानी लगभग 2 दशक तक बेहद गहरा लगाव और जुड़ाव रहा.
जबलपुर को होम टाउन मानते थे ओशो
श्री कौरव ने बताया कि स्वयं ओशो ने अपने जीवनकाल में जबलपुर को अपने होम-टाउन का दर्जा दिया. उनका कथन था कि जबलपुर मेरा पर्वतस्थल है, जहां मैं सर्वाधिक ध्यानस्थ और आनंदित हुआ. यही वजह है कि जबलपुर को ओशो-सिटी की गरिमा हासिल है. अवतरण-ग्राम कुचवाड़ा के राजा नामक बालक और पैतृक-ग्राम गाडरवारा के रजनीश चन्द्रमोन जैन नामक युवक को इस ओशो-नगरी जबलपुर में ही पहले जातिमुक्त रजनीश चन्द्रमोहन, फिर क्रांतिकारी पत्रकार, लेखक, संगठनकर्ता, विचारक व युगकबीर-वक्ता रजनीश और आगे चलकर दर्शनशास्त्र के अनूठे व लोकप्रिय प्राध्यापक आचार्य रजनीश बतौर पहचान मिली. सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि जबलपुर में प्रवासकाल के दौरान ही आचार्य रजनीश से विश्वविख्यात ओशो होने की संभावना के बीज का अंकुरण हुआ. 21 मार्च 1953 को जबलपुर के भंवरताल पार्क स्थित मौलश्री वृक्ष के तले उन्हें संबोधि की उपलब्धि हुई. इस दौरान उनका निवास स्थान नेपियर टाउन स्थित योगेश-भवन था. संबोधि के पूर्व आचार्य रजनीश को जबलपुर के नर्मदा तटीय संगमरमरी भेड़ाघाट ने सर्वाधिक आकर्षित किया, उन्होंने इसे संसार में अपना सबसे प्रिय स्थान कहा है. इसके अलावा खामोश वादियों से घिरी नैसर्गिक स्थली लघुकाशी देवताल की शिला पर ध्यानस्थ होना उन्हें अतिशय प्रिय था, जो अब ओशो संन्यास अमृतधाम के भीतर संरक्षित है. जबलपुर प्रवास के दौरान आचार्य रजनीश महाकोशल कॉलेज में दर्शनशास्त्र की कक्षाएं लेने के बाद एक मनपसंद ‘‘विश्राम-कुर्सी‘‘ पर आसीन हुआ करते थे, जो अब धरोहर बतौर कॉलेज लायब्रेरी में सुरक्षित है.
विवेकानंद विज्डम इंटरनेशनल पब्लिक स्कूलभेड़ाघाट की अनूठी पहल
इस तरह साफ है कि एक प्रतिभाशाली मानव आचार्य रजनीश से भगवत्तापूर्ण महामानव ओशो होने तक के सफर में जबलपुर का अमूल्य योगदान रहा. इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए भेड़ाघाट स्थित ओशो की देशना पर आधारित अनूठी शिक्षण संस्था विवेकानंद विज्डम इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल ने ‘‘ओशो ट्रेल: रोमांचक पर्यटन यात्रा ओशो-नगरी की‘‘ नामक अनूठे प्रकल्प के 11 दिसम्बर, 2017 से श्शुभारंभ का संकल्प लिया है, जिसके पीछे जबलपुर में देशी-विदेशी पर्यटन को बढ़ावा देने की महत्वपूर्ण सोच भी समाहित है.
ओशो ट्रेल: टाइमलाइन
ओशो ट्रेल के तहत प्रातः 10 बजे ओशो ट्री, मौलश्री भंवरताल पार्क से शुरूआत के बाद ओशो-हाॅल, योगेश-भवन नेपियर टाउन ले जाया जाएगा. इन दोनों जगहों पर ओशो की चेतना को अनुभूत करने के बाद यात्रीगण भेड़ाधाट की तरफ प्रस्थान करेंगे, जहां पुण्यसलिला मां नर्मदा के तट पर स्थित ओशो-मार्बल का दर्शन-लाभ लजीज लंच के साथ होगा. भेड़ाघाट में ही स्थित विवेकानंद विज्डम इंटरनेशल पब्लिक स्कूल की विजिट के बाद ओशो ट्रेल का प्रवेश ओशो संन्यास अमृतधाम देवताल में होगा, जहां ओशो-राॅक के दर्शन कराए जाएंगे. 11 दिसम्बर ओशो का अवतरण दिवस है, जिसके उपलक्ष्य में आयोजित आनंदोत्सव में सभी यात्रीगण सहभागी होने का सौभाग्य अर्जित कर सकेंगे. इसके बाद सभी यात्रियों को उस महाकोशल कॉलेज स्थित ओशो चेयर के दर्शन कराए जाएंगे, जिसके काॅरीडोर और क्लास-रूम में कभी आचार्य रजनीश के कदम पड़ा करते थे. ओशो ट्रेल का समापन कल्चरल स्ट्रीट में होगा, जहां ओशो छविदर्शन चित्रप्रदर्शनी और व्हाइट रोब ब्रदरहुड के जरिए ओशो के संदेश ‘‘उत्सव आमार जाति, आनंद आमार गोत्र‘‘ को साकार किया जाएगा. हाईटी-टेस्टी स्नैक्स ग्रहण करने के बाद सभी यात्री अपने-अपने गंतव्य की ओर रवाना होंगे.
यानि सोमवार 11 दिसम्बर 2017 को सुबह 10 बजे ओशो ट्री मौलश्री भंवरताल पार्क से ओशो ट्रेल का शुभारंभ होगा.....सवा 11 बजे तक ओशो हाॅल योगेश भवन नेपियर टाउन का दीदार करने के बाद ओशो ट्रेल ओशो को संसार में सबसे प्रिय रहे पुण्यसलिला मां नर्मदा के सुंदरतम-स्थल भेड़ाघाट की तरफ रवाना होगी.....1.15 बजे ओशो ट्रेल ओशो संन्यास अमृतधाम देवताल की तरफ रवाना होकर आश्रम में दोपहर 2 से 3.30 बजे तक आयोजित होने वाले ओशो अवतरण दिवस आनंदोत्सव में शामिल होगी.....4.30 बजे तक महाकोशल काॅलेज, सिविल लाइन्स में संरक्षित अद्वितीय ओशो चेयर का दर्शन करने के साथ ही शाम पौने 5 बजे ओशो ट्रेल ओशो छविदर्शन और व्हाइट रोब ब्रदरहुड के लिए कल्चरल स्ट्रीट पहुंचेगी. यहां 6.30 बजे तक सांस्कृतिक संध्या का आयोजन ओशो के ‘‘उत्सव आमार जाति, आनंद आमार गोत्र‘‘ जैसे प्रेरणादायी संदेश को साकार करते हुए किया जाएगा.
ओशो ट्रेल एक रोमांचक पर्यटन यात्रा
ओशो और जबलपुर अपने लांचिंग पेड जबलपुर से दार्शनिक और आध्यात्मिक उडान भरकर विश्व-गगन पर छाए क्रांतिदृश्टा संस्कारधानी के गौरव आचार्य रजनीश यानी विष्वविख्यात महान शख्सियत ओशो से संबंधित स्थानीय स्थलों का दर्शन आनंदायक, अविस्मरणीय और अनूठा होगा. सुदेशना यही है कि हम जबलपुर से जुड़ी ओशो की स्मृतियों व स्मारकों को संजोकर अधिकाधिक देशी-विदेशी पर्यटकों को अपने प्यारे श्शहर जबलपुर की तरफ आकर्षित करने में सफल होंगे.
ओशो ट्रेल: मुख्य आकर्षण
1- ओशो ट्री- मौलश्री भंवरताल...आमंत्रण ओशो की दिलकश संबोधि-स्थली का.
2- ओशो हाॅल- नेपियर टाउन योगेश-भवन...आमंत्रण ओशो की तरंगों से ओतप्रोत निवास-स्थान का.
3- ओशो मार्बल- नर्मदा तट भेड़ाघाट...आमंत्रण ओशो की संसार में सबसे मनपसंद नयनाभिराम जगह का.
4- ओशो रॉक- अमृतधाम देवताल...आमंत्रण ओशो की पसंदीदा ध्यान में डुबोने वाली नैसर्गिक खामोश वादियों का
5- ओशो चेयर- महाकोशल काॅलेज सिविल लाइन्स...आमंत्रण ओशो की गरिमामय अध्यापन-स्थली का.
6- ओशो छविदर्शन और व्हाइट रोब ब्रदरहुड-कल्चरल स्ट्रीट जबलपुर...आमंत्रण ओशो के महासूत्र ‘‘उत्सव आमार जाति-आनंद आमार गोत्र‘‘ का.
ओशो ट्री
जबलपुर के भंवरताल पार्क में मौलश्री का वह परम-पावन वृक्ष संरक्षित है, जिसके तले 21 मार्च 1953 को आचार्य रजनीश को संबोधि की उपलब्धि हुई थी. इसे अब ‘‘ओशो ट्री‘‘ के रूप में जाना जाता है. नगर पालिक निगम, जबलपुर ने भंवरताल पार्क का रेनोवेशन करते हुए ओशो संबोधि स्थली मौलश्री को चातुर्दिक अत्यंत रमणीय और चित्ताकर्शण स्वरूप दे दिया है. गोलाकार जलप्रवाह के मध्य फेंस से घिरा मौलश्री महावृक्ष पूर्ण सुरक्षित है. ओशो के देश-दुनिया में फैले करोड़ों प्रेमियों के लिए इस स्थान का वैसा ही महत्व है, जैसा कि तथागत गौतम बुद्ध के अनुयायियों के लिए बोधिगया बिहार का है. इसीलिए ‘‘ओशो टेल‘‘ का शुभारम्भ-स्थल यही है.
ओशो हॉल
जबलपुर के नेपियर टाउन क्षेत्र में भंवरताल के नजदीक ही वह ऐतिहासिक मकान ‘‘योगेश भवन‘‘ स्थित है, जहां 1951 से 1970 की अवधि में आचार्य रजनीश निवास करते थे. जिस सभागार में उन्होंने प्रारंभिक स्तर पर अपनी तरफ खिंचे चले आने वाले अध्यात्म-प्रेमियों को प्रवचन के साथ शिथिल ध्यान के प्रयोग कराए, उसे ही अब ओशो हॉल कहा जाता है. इस मकान में रहते हुए आचार्य रजनीश ने अनेक पुस्तकों का अध्ययन किया. ओशो हॉल की सभी अलमारियां उनकी मनपसंद किताबों से भरी थीं. जब उन्होंने जबलपुर को अलविदा कहकर मुंबई प्रस्थान किया तो उनकी सारी किताबें ट्रकों में भरकर मुंबई पहुंचा दी गईं. ओशो संबोधन से पहले भगवान रजनीश के रूप में ख्यातिलब्ध हुए जबलपुर के आचार्य रजनीश के ओशो हॉल में निवास-काल की स्मृति अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसीलिए इसे ओशो ट्रेल में दूसरा स्थान दिया गया है.
ओशो मार्बल
जबलपुर की शान भेड़ाघाट कलकल निनादिनी मां नर्मदा के अमरकंटक से लेकर खम्बात की खाड़ी तक के बीच समूचे प्रवाह-पथ में सबसे खूबसूरत रेवातट है. यही वजह है 1951 से 1970 तक जबलपुर निवास-काल के दौरान आचार्य रजनीश को इस जगह ने सम्मोहित कर लिया था. वे विश्वप्रसिद्ध जलप्रपात धुआंधार को खूब निहारते थे. कभी-कभी लम्हेटा राॅक्स और जिलेहरीघाट के किनारे ध्यान में डूब जाया करते थे, लेकिन भेड़ाघाट की संगमरमरी शिलाओं पर बैठकर ध्यानस्थ होना उन्हें अतिशत प्रिय था. यहां आज भी ओशो की तरंगें व्याप्त हैं. अपने सम्मोहक व्यक्तित्व के लिए दुनियाभर में विख्यात हुए ओशो को भेड़ाघाट की सुंदरता से सम्मोहित कर लिया था, इसीलिए ओशो मार्बल को ओशो ट्रेल में तीसरा स्थान दिया गया है. इसके साथ ओशो की देशना पर आधारित विश्व की एकमात्र शिक्षण-संस्था भेड़ाघाट स्थित विवेकानंद विज्डम इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल का भी पूरक-दर्शन श्शामिल किया गया है.
ओशो रॉक
जबलपुर के उपनरीय क्षेत्र गढ़ा अंतर्गत लघुकाशी देवताल में अत्यंत नयनाभिराम पर्वतीय उपत्यकाओं के मध्य ओशो संन्यास अमृतधाम स्थित है. यहां एक शिला-विशेश पर आचार्य रजनीश सर्वाधिक ध्यानस्थ हुए. इसीलिए उसे ‘‘ओशो राॅक‘‘ की गरिमा हासिल है. ओशो आश्रम, ओशो संन्यास अमृतधाम देवताल के संचालक स्वामी आनंद विजय आचार्य रजनीश के सबसे नजदीकी संन्यासियों में से एक हैं, जिन्होंने अपने सद्गुरू ओशो के इशारे को समझकर ओशो ध्यान शिला के समीप आश्रम विकसित किया. ओशो ने स्वयं कहा था कि जबलपुर मेरा पर्वतस्थल है, जहां मैं सर्वाधिक आनंदित हुआ....इस दृश्टि से ‘‘ओशो राॅक‘‘ अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसीलिए इसे ओशो ट्र्रेल में चौथा स्थान दिया गया है.
ओशो चेयर
जबलपुर के सिविल लाइन्स क्षेत्र में सबसे पुराना राबर्टसन कॉलेज स्थित है, जो अब महाकोशल और साइंस काॅलेज में विभाजित हो गया है. दर्शनशास्त्र के उद्भट विद्वान आचार्य रजनीश यहीं अध्यापन कराते थे. खाली समय में वे शीशम की लकड़ी से बनी एक शानदार आराम कुर्सी पर ध्यानस्थ हो जाया करते थे. वह कुर्सी अब ‘‘ओशो चेयर‘‘ बतौर बेशकीमती धरोहर बन गई है. महाकोशल कॉलेज की लायब्रेरी में उसे पूरे सम्मान के साथ सहेजा गया है. ओशो चेयर के समीप एक अलमारी में ओशो साहित्य भी संग्रहित है.महाकोशल कॉलेज में फिलाॅसफी के प्रोफेसर रहते हुए आचार्य रजनीश की ख्याति देश-दुनिया में फैलने लगी थी. उनसे मिलने दूर-दूर से जिज्ञासुओं का जबलपुर आगमन होने लगा था. इस दौरान आगंतुकों से ज्यादातर मुलाकातें मनपसंद आराम-कुर्सी पर बैठकर ही की गईं, इसीलिए ओशो चेयर रूपी अनमोल विरासत को ‘‘ओशो ट्रेल‘‘ में पांचवा स्थान दिया गया है.
जबलपुर में ओशो ट्रेल क्यों?
11 दिसम्बर 1931 से 19 जनवरी 1990 तक, कुल 59 वर्ष के जीवनकाल में से 1951 से 1970 तक, कुल 19 वर्ष ओशो जबलपुर में रहे. यह अवधि ननिहाल रायसेन कुचवाड़ा में 1931 संे 1939 तक, कुल 9 वर्ष, पैतृक ग्राम गाडरवारा में 1939 से 1951 तक, कुल 11 वर्ष, मुंबई 1970 से 1974 तक, कुल 4 वर्ष पुणे 1974 से 1981 तक, कुल 7 वर्श और अमेरिका 1981 से 1985 तक, कुल 4 वर्ष और अंततः विश्वभ्रमण और पुणे वापिसी काल 1985 से 1990 तक, कुल 5 वर्ष के मुकाबले सर्वाधिक रही है. इससे साफ है कि ओशो ने विश्वगगन पर अपने लांचिंग-पेड, अपनी कर्मभूमि जबलपुर का नाम रोशन किय इसीलिए ओशो और जबलपुर के परस्पर गहरे जुड़ाव को ओशो ट्रेल के जरिए रेखांकित करने का कत्र्तव्य पूरा किया गया है. ओशो ट्रेल को निरंतरता देकर जबलपुर में अधिकाधिक ओशो प्रेमी देशी-विदेशी पर्यटकों को आकर्षित किया जाए, यही इस प्रकल्प के पीछे मूल सुदेशना है.

9.12.17

ओशो और सामाजिकता 02


पिछले आलेख के  बाद पब्लिक रिएक्शन से साफ हो गया कि धारणा स्थापित कर दी गई है कि ओशो का सामाजिकता से कोई सरोकार नहीं  था ।
मन ही मन  हँसने के अलावा कोई बात मेरे पास शेष कुछ  नहीं रहा । पर समाधान आवश्यक है ।
मित्रो मुझे लगा था कि संक्षिप्त आलेख से समाधान हो जाएगा । पर लगता है ओशो महाशय मुझे छोड़ेंगे नहीं स्वाभाविक हैं रजनीश और गिरीश के बीच डीएनजैन कॉलेज वाला नाता तो है इस नाते ही सही समाधान करने आज फिर एक आलेख लिखना तय किया  ।
सबकी मान्यता है  कि प्रतिष्ठित सामाजिक नियमों निर्देशों को जो भी अस्वीकार  उसे असामाजिक माना जाए ? 
       तो फिर मुझे एक  सवाल का उत्तर दीजिये दीजिये - विवाह संस्था के प्रति वे असहमत थे पर नर-मादा संबंध पर उनकी कोई असहमति भरी टिप्पणी नहीं की
        उनके बाद देखिये भारतीय  न्याय व्यवस्था ने लिव इन संबंधों को भाषित कर दिया । लिव इन रिलेशनशिप तो समाजी विवाह संस्था के विपरीत वाला छोर है न ? तो क्या उत्तर है आपका ?
   आदिम व्यवस्था में झुंड हुए होंगे फिर कबीले फिर शनै: शनै: विवाह संस्था आदि से विकसित हुए अर्थात परिवर्तन हुआ न  जिसे हम सामाजिकता कहतें हैं उस सामाजिकता को  हम ने स्वीकारा
विकास के अनुक्रम में परिवर्तन होते हैं रिचुअल्स में आदतों कार्यप्रणाली जीवन शैली में बदलाव हुए हम सब उनको स्वीकार करते भी हैं  । सामाजिक वर्जनाओं के विरुद्ध बात करने वालों को समकालीन अस्वीकृति मिलती है पर कालांतर में स्वीकृति मिलती है ।
  एक बदलाव देखें कि आज राम जैसे रसूखदार आदर्श व्यक्तित्व ने सीता जी जैसी महान महिला को वन क्षेत्र जाने का आदेश आज दिया जाता तो डॉमेस्टिक वायलेंस का मुद्दा बन जाता है सामाजिकता के किस स्वरूप को स्वीकृति दें ये सोच रहा हूँ ।
  अर्थात हमें बदलाव को स्वीकृति देनी ही होगी । रजनीश की बातें तब अस्वीकृत योग हो सकतीं थी  पर उनके अनुयायियों की संख्या से लगता है कम्यून संस्कृति को लोगों की मान्यता है यही तो उनकी यानि ओशो की अपनी सामाजिकता है । जिसे एक समूह मानता है ।
गटागट की गोली वाले दादाजी का असीम स्नेह था उनपर रजनीश ने भी कभी परसाई जी को अपमानित नहीं किया । उस दौर में जाने कितनी विभूतियां थीं कुछेक नाम महेश योगी, पंडित केशव पाठक जी, ऊंट जी, जिनसे  आचार्य का सहज नाता था ।
अब बताएं कि कोई और सवाल शेष है यदि है तो और भी लिखूंगा ।

ओशो की सामाजिकता 01


   
जबलपुर वाले ओशो की सामाजिकता पर सवाल खड़ा हुआ . मेरी नज़र  में प्रथम दृष्टया ही  प्रश्न गैरज़रूरी  सा है ऐसा मुझे इस लिए लगा क्योंकि लोग अधिकतर ऐसे सवाल तब करतें हैं जब उनके द्वारा किसी का समग्र मूल्यांकन किया जा रहा हो तब सामान्यतया लोग ये जानना चाहतें हैं की फलां  व्यक्ति ने कितने कुँए खुदवाए, कितनी राशि दान में दी, कितनों को आवास दिया कितने मंदिर बनवाए . मुझे लगता है  कि सवाल कर्ता ने उनको   व्यापारी अफसर नेता जनता समझ के ये सवाल कर  रहे हैं . जो जनता  के बीच जाकर  और किसी आम आदमी की / किसी ख़ास  की ज़रूरत पूरी  करे ?
ओशो ऐसे धनाड्य तो न थे बाद में यानी अमेरिका जाकर वे धनाड्य हुए वो जबलपुर के सन्दर्भ में ओरेगान  प्रासंगिक नहीं है. पूना भी नहीं है प्रासंगिक
     पर ओशो सामाजिक थे समकालीन उनको टार्च बेचने वाले की उपाधि दे गए यानी वे सामाजिक थे इससे बड़ा प्रमाण क्या होगा...?
सामाजिक वो ही होता है जिससे सत्ता को भय हो जावे .. टार्च बेचने वाले की उपाधि सरकारी किताबों के ज़रिये खोपड़ियों  में ठूंस दी गई थी . स्पष्ट है कि समकालीन व्यवस्था कितनी भयभीत थी. 

     जबलपुर के परिपेक्ष्य में कहूं तो प्रोफ़ेसर से आचार्य रजनीश में बदल जाने की प्रक्रिया ही सामाजिक सरोकार प्राथमिक संकेत था. अब आप  विवेकानंद में सामाजिक सरोकार तलाशें तो अजीब बात न लगेगी आपको . 
    कुछ उत्साही किस्म के लोग  . दूध, तेल, नापने के लिए इंचीटेप का प्रयोग करने की कोशिश करतें हैं अलग थलग दिखने के लिए जो  कभी हो ही नहीं सकता . 
    सांसारिक लोग बेचारे होते हैं विद्वानों के प्रयोगों और उनकी अंतर-ध्वनि  को समझ नहीं  पाते हैं बेचारे .
      सम्भोग से समाधि तक पर पाबंदी लगाने की मांग करते सुने जाते थे तब लोग. मैं भी बच्चा था न सम्भोग का अर्थ समझता न समाधि का . घरेलू कपडे सुखाने वाले  तार / रस्सी आदि पर  चिड़िया चिडा के इस मिलन को मेरा बाल मन चिडे द्वारा चिड़िया के प्रति क्रूरता समझता था. और समाधियाँ तो स्थूल रूप में देखीं हीं थी जहां माथा नवाते थे हम लोग .
     बहुत देर बाद समझ पाया अर्थ क्या है .! किशोर होते ही एक बार शिर्डी जाने का अवसर मिला जहां उस समय चाय न मिली .. इतनी तड़प हुई कि आँसू बह  निकले . फिर अचानक पूज्य भैया मेरे लिए चाय की व्यवस्था की  . मैंने भी तीन कप चाय गटक ली ... और अचानक इतनी संतृप्ति मिली कि अब चाय मिले न मिले कोई लालसा शेष नहीं है. 
    तब समझ पाया  मानव उकता जाता है ... ओशो ने अति सर्वत्र वर्जयेत को नकार के साबित किया कि  प्रभू से मिलना है तो पहले तृप्ति पा लो फिर स्वयमेव साधू हो जाओगे और आत्ममंथन करते हुए आत्मज्ञान सहज आत्मसात कर  सकोगे . उनने नज़रिया बदल दिया अनुयाइयों का सामूहिक विचार ही नहीं विजन में बड़े पैमाने पर बदलाव समाज से प्रभावी संवाद था.  क्या ये सामाजिकता नहीं की आत्मानंद के साथ आध्यात्मिकता के पथ पर पद संचरण के लिए प्रकाश की ज़रूरत होती है. संत एवं दार्शनिक   विभ्रम के  अँधेरे पथ पर चलने के लिए सोचतें हैं कि  टार्च बेच दी जाए. ये अलग मसला है कि टार्च की कीमत  गटागट की गोली देने वाले दादा जी ने न बताई .. खैर  
    मित्रो एक दार्शनिक के  सामाजिक सिन्क्रोनाइज़ेशन  के सवाल को न चाहते हुए भी खारिज करता हूँ क्योंकि दार्शनिक  शासक नहीं जो व्यवस्थापन करे वो व्यापारी नहीं कि अपने खजाने का दशांस बाँटें
       जबलपुर वाले आचार्य रजनीश मेरी नज़र  में सम्मोहक वक्ता थे जीवन को परिष्कृत करने की उर्जा से ओतप्रोत से ऊर्जा बाँटते थे. टार्च नहीं बेचते थे ये तो तय है. समूह के  चिंतन को सकारात्मक बनाने का माद्दा रखते थे . वे न बाएँ देखते न दाएं वे सीधे सीधे आत्मोत्कर्ष का पाठ सिखाने के सद्प्रयासों में सक्रीय थे . वे मनुष्यों से  से सीधा संवाद करते थे . अर्थात समाज से संवादी थे अर्थात वे पेड़ों पौधों पहाड़ों को प्रवचन नहीं देते थे ... साफ़ तौर पर सामाजिक ही  थे भाई  ....!!
        लोगों को ऐसा लगता है महात्मा गांधी को तो वे किशोरावस्था में ही नकारने लगे थे जब वे बापू जी  से मिले समाज कल्याण के लिए जेब का पैसा भी दिया वापस भी ले  लिया . पर ऐसा उनने इस लिए किया समाज कल्याण किसी के ज़रिये क्यों करें ?

       वे गांधी जी से असहमत थे या नहीं ये वार्ता का हिस्सा नहीं पर वे निकट की समस्या के संकट के लिए सतर्कता का सन्देश देना चाहते थे ऐसा मैं समझता हूँ. यह भी सामाजिकता है .    

5.12.17

गुलज़ार साहब के लिए


गम्भीर रूप से एक्सीडेंट होने के कारण मेरी पोलियो ग्रस्त पैर की फीमर बोन के सबसे ऊपरी भाग की हड्डी टूटी गई थी ।  नवम्बर 1999 की इस घटना के बाद वरिष्ठ अस्थि रोग विशेषज्ञ स्व  डा  बाबुलर  नागपुर के  हॉस्पिटल में मेरा पुनर्जन्म हुआ । माँ भैया आदि  सभी ने बाद में बताया था  कि  स्व डाक्टर बाभुलकर जी ने मेरा ऑपरेशन किया वो सबसे रिस्की था ।  सैंट्रल इंडिया का अबसे अनोखा एवम रिस्की ऑपरेशन किया जो 100% सफल था । ऐसी चर्चा सर्वत्र थी ।
उस समय मेरे सिरहाने संगसाथ होते थे गुलज़ार साहब जैसे लोग भी
एक दिन अस्पताल में किसी कार्ड बोर्ड पर उनके लिए लिखी नज़्म शायद आपको पसंद आए
*गुलज़ार जी के लिए*
रोज़ रात देर तलक
गुलज़ार के हर्फ़ हर्फ़ से बुने
नज़्म गीत जब पढ़ता हूँ
तो लगता है गोया
माँ के नर्म आँचल ने मुझे
ढांप लिया हो
और फिर हौले से पता नहीं कब अविरल रात के बहाव में
में नीँद की नाव पर सवार
सुबह की ओर चला जाता हूँ ।
गुलज़ार जी
होती है सुबह
हर्फ़ हर्फ़ ज़िंदगी जुड़ते बिखरते पल समेटता हूँ ।
तक कर कभी  गीत
सुनता हूँ आपके
जो टूटती जुड़ती ज़िंदगी को
बना देती है
तुम्हारी नज़्म
और फिर हो जाता हूँ गुलज़ार
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

1.12.17

परदेसी पाखियों का आना जाना

#अमेया मेरे भतीजे Ankur Billore की बेटी एक हफ्ते तक हमारी आदत में शुमार थी । कुछ दिनों में अपने दादू का देश छोड़  वापस ट्रम्प दादू के देश फुर्र हो जाएगी । कब आएगी कौन जाने । थैंक्स मीडिया के नए वर्जन को जिसके के ज़रिए मिलती रहेगी । हज़ारों लाखों परिवार बच्चों को सीने पे पत्थर रख भेजते हैं । विकास के इस दौर में गोद में बिठाकर घण्टों बच्चों से गुटरगूँ करते रहने का स्वप्न केवल स्वप्न ही रह जाता है । देश के कोने कोने के चाचे मामे ताऊ माँ बाबा दादा दादी इस परदेशियों के लिए तड़पते हैं मुझे इस बात का मुझे और हम सबको अंदाज़ है ।
 पहली बार रू ब रू मिला वो मुझे पहचान गई  2 बरस का इन्वेस्टमेंट था नींद तब आती थी जब अमेया से नेट के  ज़रिए मस्ती न कर लूं । दिन भर Balbhavan के बच्चों में अमेया मिला करती है ।
प्रवास से देश का विकास ज़रूरी भी है । इस देश में यूं तो कुछ हासिल नहीं होता योग्यताएं सुबकतीं है तो तय ही है बच्चों का प्रवासी पंछी बन जाना ।
साउथ एशिया में भारत के योग्य बच्चे भले ही विदेशों में राजनीतिक रूप से महिमा मंडित किये जाते हैं किंतु किसी बड़बोले सियासी की जुबान पर ये नहीं आया कि बच्चों बाहर मत जाओ हम तुमको तुम्हारी योग्यता का यथोचित सम्मान देने का वादा करते हैं ।
हम ज़रूर ये कहतें हैं मेरा एक बेटा यहां है दूसरा वहां हैं पर हम इस नाबालिग व्यवस्था में रोज़ रात उनकी याद में आंसू से तकिया ज़रूर भिगोते हैं ।
इस दिवाली बेटी के पास चेन्नई में था बेटी की सारी मित्र सामान्य वर्ग से हैं एक मल्टीनेशनल कम्पनी में सब तेज़ दिमाग़ कर्मठ सबसे कहा तुमने अपना ब्रेन आखिर किसी की सेवा में लगाया है वो तुम्हारी वज़ह से जो कमा रहा है उसका 5% भी तुमको नहीं देता क्यों नहीं सरकारी क्षेत्र में
सब की भौंहें तन सी गईं - बेटी ने बड़े सादगीपूर्ण पूर्ण तरीके से कहा - पापा व्यवस्था में प्रतिभा का दमन तो मैंने देखा है इन सबने भी सब सरकारी कामकाज को अच्छे से समझते हैं ।
    आपको समझने की ज़रूरत है ब्रेन क्यों बह के सुदूर सात समंदर पार जा रहा है ?
    यह भी कि कहीं न कहीं प्रतिमा का दमन तो हो रहा है कभी आरक्षण के नाम पर तो कभी भाई भतीजा वाद से , भ्रष्टाचार से सब कुछ स्पष्ट है ।
    मेरे बड़े भाई साहब कहते हैं - घर तो एयर पोर्ट के नज़दीक होना चाहिए ।
मित्रो अमेया अब कब इंडिया आएगी ये मेरा सरदर्द है अब व्यवस्था के सर में दर्द उठना चाहिये कि उसके 87 साल के पितामह से अमेया दूर क्यों है ?
देखें ये टीवी चैनलों पर ध्वनि विचार  प्रदूषण फैलाने वाले इस दिशा में कितना सोचते हैं

14.11.17

ब्राह्मणों के विरुद्ध अभियान को उमेश सिंह का उत्तर


           मैं ब्राह्मण नही हूँ। कल एक वामी satya Raja मेरी पोस्ट पर ब्राह्मण के खिलाफ गालियां लिख रहा था। उस मनहूस को ये पोस्ट समर्पित करता हूँ।

सवर्णों में एक जाति आती है ब्राह्मण, जिस पर सदियों से राक्षस, पिशाच, दैत्य, यवन, मुगल, अंग्रेज, कांग्रेस, सपा, बसपा, वामपंथी, भाजपा, सभी राजनीतिक पार्टियाँ, विभिन्न जातियाँ आक्रमण करते आ रहे हैं।

आरोप ये लगे कि ~ब्राह्मणों ने जाति का बँटवारा किया।

उत्तर - सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद जो अपौरुषेय है और जिसका संकलन वेद व्यास जी ने किया, जो मल्लाहिन के गर्भ से उत्पन्न हुए थे।

18 पुराण, महाभारत, गीता सब व्यास जी रचित है जिसमें वर्णव्यवस्था और जाति व्यवस्था दी गयी है। रचनाकार व्यास ब्राह्मण जाति से नही थे।

ऐसे ही कालीदास आदि कई कवि जो वर्णव्यवस्था और जातिव्यवस्था के पक्षधर थे जन्मजात ब्राह्मण नहीं थे।

अब मेरा प्रश्न उस satya raja के लिए

कोई एक भी ग्रन्थ का नाम बताओ जिसमें जाति व्यवस्था लिखी गयी हो और उसे ब्राह्मण ने लिखा हो?

शायद एक भी नही मिलेगा। मुझे पता है तुम मनु स्मृति का ही नाम लोगे, जिसके लेखक मनु महाराज थे, जो कि क्षत्रिय थे।

मनु स्मृति जिसे आपने कभी पढ़ा ही नही और पढ़ा भी तो टुकड़ों में कुछ श्लोकों को जिसके कहने का प्रयोजन कुछ अन्य होता है और हम समझते अपने विचारानुसार है।

मनु स्मृति पूर्वाग्रह रहित होकर सांगोपांग पढ़े। छिद्रान्वेषण की अपेक्षा गुणग्राही बनकर पढ़ने पर स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।

अब रही बात " ब्राह्मणों "ने क्या किया ?तो नीचे पढ़े।

(1)यन्त्रसर्वस्वम् (इंजीनियरिंग का आदि ग्रन्थ)-भरद्वाज

(2)वैमानिक शास्त्रम् (विमान बनाने हेतु)- भरद्वाज

(3)सुश्रुतसंहिता (सर्जरी चिकित्सा)-सुश्रुत

(4)चरकसंहिता (चिकित्सा)-चरक

(5)अर्थशास्त्र (जिसमें सैन्यविज्ञान, राजनीति, युद्धनीति, दण्डविधान, कानून आदि कई महत्वपूर्ण विषय है)-कौटिल्य

(6)आर्यभटीयम् (गणित)-आर्यभट्ट

ऐसे ही छन्दशास्त्र, नाट्यशास्त्र, शब्दानुशासन,
परमाणुवाद, खगोल विज्ञान, योगविज्ञान सहित प्रकृति और मानव कल्याणार्थ समस्त विद्याओं का संचय अनुसंधान एवं प्रयोग हेतु ब्राह्मणों ने अपना पूरा जीवन भयानक जंगलों में, घोर दरिद्रता में बिताए।

उसके पास दुनियाँ के प्रपंच हेतु समय ही कहाँ शेष था?

कोई बताएगा समस्त विद्याओं में प्रवीण होते हुए भी, सर्वशक्तिमान् होते हुए भी ब्राह्मण ने पृथ्वी का भोग करने हेतु गद्दी स्वीकारा हो?

विदेशी मानसिकता से ग्रसित कम्युनिस्टों(वामपंथियों) ने कुचक्र रचकर गलत तथ्य पेश किये। आजादी के बाद इतिहास संरचना इनके हाथों सौपी गयी और ये विदेश संचालित षड्यन्त्रों के तहत देश में जहर बोने लगे।

ब्राह्मण हमेशा ये चाहता रहा किराष्ट्र शक्तिशाली हो,  अखण्ड हो,न्याय व्यवस्था सुदृढ़ हो।

सर्वे भवन्तु सुखिन:सर्वे सन्तु निरामया:
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दु:ख भाग्भवेत्।।

का मन्त्र देने वाला ब्राह्मण,वसुधैव कुटुम्बकम् का पालन करने वाला ब्राह्मण, सर्वदा काँधे पर जनेऊ कमर में लंगोटी बाँधे एक गठरी में लेखनी, मसि, पत्ते, कागज और पुस्तक लिए चरैवेति चरैवेति का अनुसरण करता रहा।मन में एक ही भाव था लोक कल्याण।

ऐसा नहीं कि लोक कल्याण हेतु मात्र ब्राह्मणों ने ही काम किया। बहुत सारे ऋषि, मुनि, विद्वान्, महापुरुष अन्य वर्णों के भी हुए जिनका महत् योगदान रहा है।

किन्तु आज ब्राह्मण के विषय में ही इसलिए कह रहा हूँ कि जिस देश  की शक्ति के संचार में ब्राह्मणों के त्याग तपस्या का इतना बड़ा योगदान रहा।

जिसने मुगलों यवनों, अंग्रेजों और राक्षसी प्रवृत्ति के लोंगों का भयानक अत्याचार सहकर भी यहाँ की संस्कृति और ज्ञान को बचाए रखा।

वेदों शास्त्रों को जब जलाया जा रहा था तब ब्राह्मणों ने पूरा का पूरा वेद और शास्त्र कण्ठस्थ करके बचा लिया और आज भी वो इसे नई पीढ़ी में संचारित कर रहे है वे सामान्य कैसे हो सकते है?

उन्हे सामान्य जाति का कहकर आरक्षण के नाम पर सभी सरकारी सुविधाओं से रहित क्यों रखा जाता है ?

ब्राह्मण अपनी रोजी रोटी कैसे चलाये ? ब्राह्मण को देना पड़ता है पढ़ाई के लिए सबसे ज्यादा फीस और सरकारी सारी सुविधाएँ obc, sc, st, अल्पसंख्यक के नाम पर पूँजीपति या गरीब के नाम पर अयोग्य लोंगों को दी जाती है।

मैं अन्य जाति विरोधी नही हूँ लेकिन किसी ने ब्राह्मण को गाली देकर उकसाया है।

इस देश में गरीबी से नहीं जातियों से लड़ा जाता है। एक ब्राह्मण के लिए सरकार कोई रोजगार नही देती कोई सुविधा नही देती।

एक ब्राह्मण बहुत सारे व्यवसाय नही कर सकता
जैसे -- पोल्ट्रीफार्म, अण्डा, मांस, मुर्गीपालन,
कबूतरपालन, बकरी, गदहा,ऊँट, सूअरपालन, मछलीपालन, जूता,चप्पल, शराब आदि, बैण्डबाजा और विभिन्न जातियों के पैतृक व्यवसाय क्योंकि उसका धर्म एवं समाज दोनों ही इसकी अनुमति नही देते।

ऐसा करने वालों से उनके समाज के लोग सम्बन्ध नही बनाते।

वो शारीरिक परिश्रम करके अपना पेट पालना चाहे तो उसे मजदूरी नही मिलती, क्योंकि लोग ब्राह्मण से सेवा कराना पाप समझते है।

हाँ उसे अपना घर छोड़कर दूर मजदूरी, दरवानी आदि करने के लिए जाना पड़ता है। कुछ को मजदूरी मिलती है कुछ को नहीं।

अब सवाल उठता है कि ऐसा हो क्यों रहा है? जिसने संसार के लिए इतनी कठिन तपस्या की उसके साथ इतना बड़ा अन्याय क्यों?जिसने शिक्षा को बचाने के लिए सर्वस्व त्याग दिया उसके साथ इतनी भयानक ईर्ष्या क्यों?

मैं ब्राह्मण नहीं लेकिन बताना चाहूँगा की ब्राह्मण को किसी जाति विशेष से द्वेष नही होता है। उन्होंने शास्त्रों को जीने का प्रयास किया है अत: जातिगत छुआछूत को पाप मानते है।

मेरा सबसे निवेदन --गलत तथ्यों के आधार पर उन्हें क्यों सताया जा रहा है ?उनके धर्म के प्रतीक शिखा और यज्ञोपवीत, वेश भूषा का मजाक क्यों बनाया जा रहा हैं ?

मन्त्रों और पूजा पद्धति का उपहास होता है और आप सहन कैसे करते है?

विश्व की सबसे समृद्ध और एकमात्र वैज्ञानिक भाषा संस्कृत को हम भारतीय हेय दृष्टि से क्यों देखते है? हमें पता है आप कुतर्क करेंगे, आजादी के बाद भी 74 साल से अत्याचार होता रहा ।

हर युग में ब्राह्मण के साथ भेदभाव, अत्याचार होता आया है।

              कुमार अवधेश सिंह के वाल से  (साभार)

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...